"ब्रज": अवतरणों में अंतर
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'''ब्रज का परिचय | {{ब्रज विषय सूची}}{{चयनित लेख}} | ||
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'''ब्रज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Braj'') भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली के रूप में सारे विश्व में प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में [[उत्तर प्रदेश]] के [[मथुरा]] सहित वह भू-भाग, जो श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी विविध लीलाओं से सम्बंधित है, ब्रज कहलाता है। इस प्रकार ब्रज वर्तमान मथुरा मंडल और प्राचीन शूरसेन प्रदेश का अपर नाम और उसका एक छोटा रूप है। इसमें मथुरा, [[वृन्दावन]], [[गोवर्धन]], [[गोकुल]], [[महावन]], [[बलदेव]], [[नन्दगाँव]], [[बरसाना]], [[डीग]] और [[काम्यवन]] आदि भगवान श्रीकृष्ण के सभी लीला-स्थल सम्मिलित हैं। ब्रज की सीमा को [[ब्रज चौरासी कोस की यात्रा|चौरासी कोस]] माना गया है। [[सूरदास]] तथा अन्य [[ब्रजभाषा]] के भक्त कवियों और वार्ताकारों ने [[भागवत पुराण]] के अनुकरण पर मथुरा के निकटवर्ती वन्य प्रदेश को ब्रज कहा है और उसे सर्वत्र 'मथुरा', '[[मधुपुरी]]' या '[[मधुवन]]' से पृथक् वतलाया है। मथुरा, जलेसर, [[भरतपुर]], [[आगरा]], [[हाथरस]], [[धौलपुर]], [[अलीगढ़]], [[इटावा]], [[मैनपुरी]], [[एटा]], कासगंज और [[फ़िरोजाबाद]], ये सभी ब्रज क्षेत्र में आने वाले प्रमुख नगर हैं। | |||
==परिचय== | |||
{{main|ब्रज का परिचय}} | |||
ब्रज [[उत्तर प्रदेश|उत्तर प्रदेश राज्य]] का सर्वप्रमुख प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह सम्पूर्ण [[भारत]] में [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की क्रीड़ास्थली और उनकी लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है। 'ब्रज' शब्द के अर्थ का काल-क्रमानुसार ही विकास हुआ है। [[वेद|वेदों]] और [[रामायण]]-[[महाभारत]] के काल में जहाँ इसका प्रयोग ‘गोष्ठ’, 'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था, वहीं पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थान के लिये इसका प्रयोग किया जाने लगा। उस समय तक यह शब्द एक प्रदेश के लिए प्रयुक्त न होकर क्षेत्र विशेष का ही प्रयोजन स्पष्ट करता था। भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे [[गाँव]] की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘[[ब्रजमंडल]]’ हो गया और तब उसका आकार 84 कोस का माना जाने लगा था। उस समय [[मथुरा]] ‘ब्रज’ में सम्मिलित नहीं माना जाता था। [[सूरदास]] तथा अन्य [[ब्रजभाषा]] के कवियों ने ‘ब्रज’ और मथुरा का पृथक् रूप में ही कथन किया है। | |||
==ब्रज शब्द की परिभाषा== | |||
{{main|ब्रज शब्द की परिभाषा}} | |||
[[संहिता|वैदिक संहिताओं]] तथा [[रामायण]], [[महाभारत]] आदि [[संस्कृत]] के प्राचीन धर्मग्रंथों में ब्रज शब्द गोशाला, गो-स्थान, गोचर भूमि के अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। [[ऋग्वेद]] में यह शब्द गोशाला अथवा गायों के खिरक के रूप में वर्णित है। [[यजुर्वेद]] में गायों के चरने के स्थान को ब्रज और गोशाला को गोष्ठ कहा गया है। शुक्ल यजुर्वेद में सुन्दर सींगों वाली गायों के विचरण स्थान से ब्रज का संकेत मिलता है। [[अथर्ववेद]] में गोशलाओं से सम्बंधित पूरा सूक्त ही प्रस्तुत है। [[हरिवंशपुराण]] तथा [[भागवतपुराण]] आदि में यह शब्द गोप बस्त के रूप में प्रयुक्त हुआ है। [[स्कंदपुराण]] में [[शाण्डिल्य|महर्षि शाण्डिल्य]] ने ब्रज शब्द का अर्थ वतलाते हुए इसे व्यापक ब्रह्म का रूप कहा है। अत: यह शब्द ब्रज की आध्यात्मिकता से सम्बंधित है। | |||
==भूगोल== | |||
{{main|ब्रज का भूगोल}} | |||
किसी भी सांस्कृतिक भू-खंड के सास्कृतिक वैभव के अध्ययन के लिये उस भू-खंड का प्राकृतिक व भौगोलिक अध्ययन अति आवश्यक होता है। [[संस्कृत]] और [[ब्रजभाषा]] के ग्रन्थों में ब्रज के धार्मिक महत्व पर अधिक प्रकाश डाला गया है, किन्तु उनमें कुछ प्राकृतिक और भौगोलिक स्थिति से भी सम्बंधित वर्णन प्रस्तुत हैं। ये उल्लेख ब्रज के उन भक्त कवियों की कृतियों में प्रस्तुत हैं, जिन्होंने 16वीं शती के बाद यहाँ निवास कर अपनी रचनाएँ सृजित की थीं। उनमें से कुछ महानुभावों ने ब्रज के लुप्त स्थलों और भूले हुए उपकरणों का अनुवेषण कर उनके महत्व को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। आज जिसे हम ब्रज क्षेत्र मानते हैं, उसकी [[दिशा|दिशाएँ]], [[उत्तर दिशा]] में [[पलवल]] ([[हरियाणा]]), [[दक्षिण]] में [[ग्वालियर]] ([[मध्य प्रदेश]]), [[पश्चिम]] में [[भरतपुर]] ([[राजस्थान]]) और [[पूरब|पूर्व]] में [[एटा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) को छूती हैं। | |||
==विस्तार== | |||
{{main|ब्रज का विस्तार}} | |||
ब्रज को यदि [[ब्रजभाषा]] बोलने वाले क्षेत्र से परिभाषित करें तो यह बहुत विस्तृत क्षेत्र हो जाता है। इसमें [[पंजाब]] से [[महाराष्ट्र]] तक और [[राजस्थान]] से [[बिहार]] तक के लोग भी ब्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग बोलचाल में प्रतिदिन करते हैं। [[कृष्ण]] से तो पूरा विश्व परिचित है। ऐसा लगता है कि ब्रज की सीमाएँ निर्धारित करने का कार्य आसान नहीं है, फिर भी ब्रज की सीमाएँ तो हैं ही और उनका निर्धारण भी किया गया है। वर्तमान [[मथुरा]] तथा उसके आस-पास का प्रदेश, जिसे ब्रज कहा जाता है; प्राचीन काल में [[शूरसेन जनपद]] के नाम से प्रसिद्ध था। ई. सातवीं शती में जब चीनी यात्री [[हुएन-सांग]] यहाँ आया, तब उसने लिखा कि- "मथुरा राज्य का विस्तार 5,000 ली (लगभग 833 मील) था। दक्षिण-पूर्व में मथुरा राज्य की सीमा [[जेजाकभुक्ति]] (जिझौती) की पश्चिमी सीमा से तथा दक्षिण-पश्चिम में मालव राज्य की उत्तरी सीमा से मिलती रही होगी।" | |||
==पौराणिक इतिहास== | |||
{{main|ब्रज का पौराणिक इतिहास}} | |||
सरस्वती के निकट ही [[दृषद्वती नदी|दृषद्वती]] नदी बहती थी। मनु ने सरस्वती और दृषद्वती नदियों के [[दोआब]] को 'ब्रह्मावर्त' प्रदेश की संज्ञा दी है। ब्रह्मावर्त का निकटवर्ती भू-भाग 'ब्रह्मर्षि प्रदेश' कहलाता था। उसके अंतर्गत [[कुरु]], [[मत्स्य]], [[पंचाल]] और [[शूरसेन]] जनपदों की स्थिति मानी गई है। [[मनुस्मृति]]<ref>मनुस्मृति - 2-17,16, 20</ref> में जनपदों के निवासियों के आचार-विचार समस्त [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] के नर-नारियों के लिए आदर्श बतलाये गये हैं। वैदिक संस्कृति का प्रादुर्भाव चाहे सप्त सिंधव प्रदेश में हुआ, किंतु वह ब्रह्मावर्त और ब्रह्मर्षि प्रदेशों में विकसित हुई थी। सिंधु, सरस्वती और दृषद्वती से लेकर [[यमुना]] नदी तक के विशाल पावन प्रदेश ने वैदिक संस्कृति के प्रादुर्भाव और विकास में महत्त्वपूर्ण योग दिया था। इस प्रकार शूरसेन जनपद, जो [[मथुरा]] मंडल अथवा [[ब्रजमंडल]] का प्राचीन नाम है, वैदिक संस्कृति के विकास का अन्यतम पुरातन प्रदेश रहा है। | |||
== | ==ब्रज में गोपी बने त्रिपुरारि== | ||
[[चित्र:Galteshwar-Mahadeva-Temple-2.jpg|250px|left|[[गर्तेश्वर महादेव मथुरा|गर्तेश्वर महादेव]], [[मथुरा]]|thumb]] | |||
<poem>श्रीमद्रोपीश्वरं वन्दे शंकरं करुणाकरम्। | |||
सर्वक्लेशहरं देवं वृन्दारण्ये रतिप्रदम्।।</poem> | |||
====राम अवतार के समय==== | |||
जब-जब धरती पर भगवान ने अवतार लिया, तब-तब उनके बालरूप के दर्शन करने के लिए भगवान [[शिव]] पृथ्वी पर पधारे। श्रीरामावतार के समय भगवान शंकर वृद्ध ज्योतिषी के रूप में [[काकभुशुण्डि]] जी के साथ अयोध्या में पधारे और रनिवास में प्रवेश कर भगवान [[श्रीराम]], [[लक्ष्मण]], [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] और शत्रुघ्न के दर्शन किये। | |||
<poem>औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी।। | |||
काकभुसंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ।।</poem> | |||
====कृष्ण अवतार के समय==== | |||
श्रीकृष्णावतार के समय साधु वेष में बाबा भोलेनाथ [[गोकुल]] पधारे। [[यशोदा]] भोलेनाथ जी का वेष देखकर डर गयीं उन्होंने कान्हा के दर्शन नहीं कराये। धूनी लगा दी द्वार पर, लाला रोने लगे, नज़र लग गयी। बाबा भोलेनाथ ने लाला की नज़र उतारी। बाबा भोलेनाथ कान्हा को गोद में लेकर नन्द के आंगन में नाच उठे। आज भी नन्द गाँव में भोलेनाथ `नन्देश्वर' नाम से विराजमान हैं। | |||
==ब्रज में स्वामी हरिदास जी== | |||
{{Main|स्वामी हरिदास जी}} | |||
[[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांकेबिहारी]] जी महाराज को [[वृन्दावन]] में प्रकट करने वाले स्वामी हरिदास जी का जन्म विक्रम सम्वत् 1535 में [[भाद्रपद]] [[मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[अष्टमी]] ([[राधाष्टमी]]) के ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। इनके पिता आशुधीर जी अपने उपास्य श्रीराधा-माधव की प्रेरणा से पत्नी गंगादेवी के साथ अनेक तीर्थो की यात्रा करने के पश्चात् [[अलीगढ़]] जनपद की कोल तहसील में 'ब्रज' आकर एक गांव में बस गए। विक्रम सम्वत् 1560 में पच्चीस वर्ष की अवस्था में हरिदास वृन्दावन पहुंचे। वहाँ उन्होंने [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]] को अपनी तप स्थली बनाया। | |||
<div align="center">'''[[ब्रज का परिचय|आगे जाएँ »]]'''</div> | |||
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==वीथिका== | ==वीथिका== | ||
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चित्र:kambojika-1.jpg|महाराज्ञी [[कम्बोजिका]], [[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]] | |||
चित्र:kambojika-1.jpg|महाराज्ञी [[कम्बोजिका]], [[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]] | चित्र:Buddha-3.jpg|[[बुद्ध]] प्रतिमा, [[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]] | ||
चित्र:Vishram-Ghat-11.jpg|[[यमुना नदी|यमुना]] स्नान, [[विश्राम घाट मथुरा|विश्राम घाट]], [[मथुरा]] | |||
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चित्र:Buddha-3.jpg|[[बुद्ध]] प्रतिमा, [[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]] | चित्र:kuber-1.jpg|आसवपायी [[कुबेर]] | ||
चित्र:Vishram-Ghat-11.jpg|[[यमुना नदी|यमुना]] स्नान, [[विश्राम घाट मथुरा|विश्राम घाट]], [[मथुरा]] | चित्र:Ramlila-Mathura-7.jpg|[[रामलीला]], [[मथुरा]] | ||
चित्र:rang-ji-temple-2.jpg|[[रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन|रंग नाथ जी मन्दिर]], [[वृन्दावन]] | चित्र:Keshi-Ghat-1.jpg|[[केशी घाट वृन्दावन|केशी घाट]], [[वृन्दावन]] | ||
चित्र:Mansi-Ganga-1.jpg|[[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]], [[गोवर्धन]] | चित्र:kanishk.jpg|[[कनिष्क]], [[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]] | ||
चित्र:Ramlila-Mathura-7.jpg|[[रामलीला]], [[मथुरा]] | चित्र:dwarikadish-temple-1.jpg|[[द्वारिकाधीश मन्दिर मथुरा|द्वारिकाधीश मन्दिर]], [[मथुरा]] | ||
चित्र:Keshi-Ghat-1.jpg|[[केशी घाट वृन्दावन|केशी घाट]], [[वृन्दावन]] | चित्र:Mathura-Museum-1.jpg|[[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]] | ||
चित्र:kanishk.jpg|[[कनिष्क]], [[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]] | चित्र:Ghats-of-Yamuna-4.jpg|[[यमुना के घाट, मथुरा|यमुना के घाट]], [[मथुरा]] | ||
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चित्र:Danghati Temple Govardhan Mathura 2.jpg|[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]] मंदिर, [[गोवर्धन]] | चित्र:Yamuna Gokul-3.jpg|गोकुल घाट, [[गोकुल]] | ||
चित्र:barsana-temple-3.jpg|[[राधा]] | चित्र:Surkuti Sur Sarovar-Agra-1.jpg|सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] | ||
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चित्र:Krishna Janm Bhumi Holi Mathura 10.jpg|[[चरकुला नृत्य]], [[होली]], [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]] | चित्र:Krishna Kund Govardhan Mathura 2.jpg|कृष्ण कुण्ड, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]] | ||
चित्र:Peacock-Mathura-3.jpg|मोर, [[मथुरा]] | चित्र:Radha Kund Govardhan Mathura 2.jpg|[[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधाकुण्ड]], [[गोवर्धन]], [[मथुरा]] | ||
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[[Category:उत्तर_प्रदेश_के_ऐतिहासिक_स्थान]][[Category:उत्तर_प्रदेश_के_धार्मिक_स्थल]][[Category:उत्तर_प्रदेश_के_पर्यटन_स्थल | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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10:58, 17 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
ब्रज
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विवरण | भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए ही प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे ग्राम की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘ब्रजमंडल’ हो गया और तब उसका आकार 84 कोस का माना जाने लगा था। |
ब्रज क्षेत्र | आज जिसे हम ब्रज क्षेत्र मानते हैं उसकी दिशाऐं, उत्तर दिशा में पलवल (हरियाणा), दक्षिण में ग्वालियर (मध्य प्रदेश), पश्चिम में भरतपुर (राजस्थान) और पूर्व में एटा (उत्तर प्रदेश) को छूती हैं। |
ब्रज के केंद्र | मथुरा एवं वृन्दावन |
ब्रज के वन | कोटवन, काम्यवन, कुमुदवन, कोकिलावन, खदिरवन, तालवन, बहुलावन, बिहारवन, बेलवन, भद्रवन, भांडीरवन, मधुवन, महावन, लौहजंघवन एवं वृन्दावन |
भाषा | हिंदी और ब्रजभाषा |
प्रमुख पर्व एवं त्योहार | होली, कृष्ण जन्माष्टमी, यम द्वितीया, गुरु पूर्णिमा, राधाष्टमी, गोवर्धन पूजा, गोपाष्टमी, नन्दोत्सव एवं कंस मेला |
प्रमुख दर्शनीय स्थल | कृष्ण जन्मभूमि, द्वारिकाधीश मन्दिर, राजकीय संग्रहालय, बांके बिहारी मन्दिर, रंग नाथ जी मन्दिर, गोविन्द देव मन्दिर, इस्कॉन मन्दिर, मदन मोहन मन्दिर, दानघाटी मंदिर, मानसी गंगा, कुसुम सरोवर, जयगुरुदेव मन्दिर, राधा रानी मंदिर, नन्द जी मंदिर, विश्राम घाट , दाऊजी मंदिर |
संबंधित लेख | ब्रज का पौराणिक इतिहास, ब्रज चौरासी कोस की यात्रा, मूर्ति कला मथुरा |
अन्य जानकारी | ब्रज के वन–उपवन, कुन्ज–निकुन्ज, श्री यमुना व गिरिराज अत्यन्त मोहक हैं। पक्षियों का मधुर स्वर एकांकी स्थली को मादक एवं मनोहर बनाता है। मोरों की बहुतायत तथा उनकी पिऊ–पिऊ की आवाज़ से वातावरण गुन्जायमान रहता है। |
ब्रज (अंग्रेज़ी: Braj) भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली के रूप में सारे विश्व में प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के मथुरा सहित वह भू-भाग, जो श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी विविध लीलाओं से सम्बंधित है, ब्रज कहलाता है। इस प्रकार ब्रज वर्तमान मथुरा मंडल और प्राचीन शूरसेन प्रदेश का अपर नाम और उसका एक छोटा रूप है। इसमें मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल, महावन, बलदेव, नन्दगाँव, बरसाना, डीग और काम्यवन आदि भगवान श्रीकृष्ण के सभी लीला-स्थल सम्मिलित हैं। ब्रज की सीमा को चौरासी कोस माना गया है। सूरदास तथा अन्य ब्रजभाषा के भक्त कवियों और वार्ताकारों ने भागवत पुराण के अनुकरण पर मथुरा के निकटवर्ती वन्य प्रदेश को ब्रज कहा है और उसे सर्वत्र 'मथुरा', 'मधुपुरी' या 'मधुवन' से पृथक् वतलाया है। मथुरा, जलेसर, भरतपुर, आगरा, हाथरस, धौलपुर, अलीगढ़, इटावा, मैनपुरी, एटा, कासगंज और फ़िरोजाबाद, ये सभी ब्रज क्षेत्र में आने वाले प्रमुख नगर हैं।
परिचय
ब्रज उत्तर प्रदेश राज्य का सर्वप्रमुख प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह सम्पूर्ण भारत में भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली और उनकी लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है। 'ब्रज' शब्द के अर्थ का काल-क्रमानुसार ही विकास हुआ है। वेदों और रामायण-महाभारत के काल में जहाँ इसका प्रयोग ‘गोष्ठ’, 'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था, वहीं पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थान के लिये इसका प्रयोग किया जाने लगा। उस समय तक यह शब्द एक प्रदेश के लिए प्रयुक्त न होकर क्षेत्र विशेष का ही प्रयोजन स्पष्ट करता था। भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे गाँव की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘ब्रजमंडल’ हो गया और तब उसका आकार 84 कोस का माना जाने लगा था। उस समय मथुरा ‘ब्रज’ में सम्मिलित नहीं माना जाता था। सूरदास तथा अन्य ब्रजभाषा के कवियों ने ‘ब्रज’ और मथुरा का पृथक् रूप में ही कथन किया है।
ब्रज शब्द की परिभाषा
वैदिक संहिताओं तथा रामायण, महाभारत आदि संस्कृत के प्राचीन धर्मग्रंथों में ब्रज शब्द गोशाला, गो-स्थान, गोचर भूमि के अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद में यह शब्द गोशाला अथवा गायों के खिरक के रूप में वर्णित है। यजुर्वेद में गायों के चरने के स्थान को ब्रज और गोशाला को गोष्ठ कहा गया है। शुक्ल यजुर्वेद में सुन्दर सींगों वाली गायों के विचरण स्थान से ब्रज का संकेत मिलता है। अथर्ववेद में गोशलाओं से सम्बंधित पूरा सूक्त ही प्रस्तुत है। हरिवंशपुराण तथा भागवतपुराण आदि में यह शब्द गोप बस्त के रूप में प्रयुक्त हुआ है। स्कंदपुराण में महर्षि शाण्डिल्य ने ब्रज शब्द का अर्थ वतलाते हुए इसे व्यापक ब्रह्म का रूप कहा है। अत: यह शब्द ब्रज की आध्यात्मिकता से सम्बंधित है।
भूगोल
किसी भी सांस्कृतिक भू-खंड के सास्कृतिक वैभव के अध्ययन के लिये उस भू-खंड का प्राकृतिक व भौगोलिक अध्ययन अति आवश्यक होता है। संस्कृत और ब्रजभाषा के ग्रन्थों में ब्रज के धार्मिक महत्व पर अधिक प्रकाश डाला गया है, किन्तु उनमें कुछ प्राकृतिक और भौगोलिक स्थिति से भी सम्बंधित वर्णन प्रस्तुत हैं। ये उल्लेख ब्रज के उन भक्त कवियों की कृतियों में प्रस्तुत हैं, जिन्होंने 16वीं शती के बाद यहाँ निवास कर अपनी रचनाएँ सृजित की थीं। उनमें से कुछ महानुभावों ने ब्रज के लुप्त स्थलों और भूले हुए उपकरणों का अनुवेषण कर उनके महत्व को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। आज जिसे हम ब्रज क्षेत्र मानते हैं, उसकी दिशाएँ, उत्तर दिशा में पलवल (हरियाणा), दक्षिण में ग्वालियर (मध्य प्रदेश), पश्चिम में भरतपुर (राजस्थान) और पूर्व में एटा (उत्तर प्रदेश) को छूती हैं।
विस्तार
ब्रज को यदि ब्रजभाषा बोलने वाले क्षेत्र से परिभाषित करें तो यह बहुत विस्तृत क्षेत्र हो जाता है। इसमें पंजाब से महाराष्ट्र तक और राजस्थान से बिहार तक के लोग भी ब्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग बोलचाल में प्रतिदिन करते हैं। कृष्ण से तो पूरा विश्व परिचित है। ऐसा लगता है कि ब्रज की सीमाएँ निर्धारित करने का कार्य आसान नहीं है, फिर भी ब्रज की सीमाएँ तो हैं ही और उनका निर्धारण भी किया गया है। वर्तमान मथुरा तथा उसके आस-पास का प्रदेश, जिसे ब्रज कहा जाता है; प्राचीन काल में शूरसेन जनपद के नाम से प्रसिद्ध था। ई. सातवीं शती में जब चीनी यात्री हुएन-सांग यहाँ आया, तब उसने लिखा कि- "मथुरा राज्य का विस्तार 5,000 ली (लगभग 833 मील) था। दक्षिण-पूर्व में मथुरा राज्य की सीमा जेजाकभुक्ति (जिझौती) की पश्चिमी सीमा से तथा दक्षिण-पश्चिम में मालव राज्य की उत्तरी सीमा से मिलती रही होगी।"
पौराणिक इतिहास
सरस्वती के निकट ही दृषद्वती नदी बहती थी। मनु ने सरस्वती और दृषद्वती नदियों के दोआब को 'ब्रह्मावर्त' प्रदेश की संज्ञा दी है। ब्रह्मावर्त का निकटवर्ती भू-भाग 'ब्रह्मर्षि प्रदेश' कहलाता था। उसके अंतर्गत कुरु, मत्स्य, पंचाल और शूरसेन जनपदों की स्थिति मानी गई है। मनुस्मृति[1] में जनपदों के निवासियों के आचार-विचार समस्त पृथ्वी के नर-नारियों के लिए आदर्श बतलाये गये हैं। वैदिक संस्कृति का प्रादुर्भाव चाहे सप्त सिंधव प्रदेश में हुआ, किंतु वह ब्रह्मावर्त और ब्रह्मर्षि प्रदेशों में विकसित हुई थी। सिंधु, सरस्वती और दृषद्वती से लेकर यमुना नदी तक के विशाल पावन प्रदेश ने वैदिक संस्कृति के प्रादुर्भाव और विकास में महत्त्वपूर्ण योग दिया था। इस प्रकार शूरसेन जनपद, जो मथुरा मंडल अथवा ब्रजमंडल का प्राचीन नाम है, वैदिक संस्कृति के विकास का अन्यतम पुरातन प्रदेश रहा है।
ब्रज में गोपी बने त्रिपुरारि
श्रीमद्रोपीश्वरं वन्दे शंकरं करुणाकरम्।
सर्वक्लेशहरं देवं वृन्दारण्ये रतिप्रदम्।।
राम अवतार के समय
जब-जब धरती पर भगवान ने अवतार लिया, तब-तब उनके बालरूप के दर्शन करने के लिए भगवान शिव पृथ्वी पर पधारे। श्रीरामावतार के समय भगवान शंकर वृद्ध ज्योतिषी के रूप में काकभुशुण्डि जी के साथ अयोध्या में पधारे और रनिवास में प्रवेश कर भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के दर्शन किये।
औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी।।
काकभुसंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ।।
कृष्ण अवतार के समय
श्रीकृष्णावतार के समय साधु वेष में बाबा भोलेनाथ गोकुल पधारे। यशोदा भोलेनाथ जी का वेष देखकर डर गयीं उन्होंने कान्हा के दर्शन नहीं कराये। धूनी लगा दी द्वार पर, लाला रोने लगे, नज़र लग गयी। बाबा भोलेनाथ ने लाला की नज़र उतारी। बाबा भोलेनाथ कान्हा को गोद में लेकर नन्द के आंगन में नाच उठे। आज भी नन्द गाँव में भोलेनाथ `नन्देश्वर' नाम से विराजमान हैं।
ब्रज में स्वामी हरिदास जी
बांकेबिहारी जी महाराज को वृन्दावन में प्रकट करने वाले स्वामी हरिदास जी का जन्म विक्रम सम्वत् 1535 में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी (राधाष्टमी) के ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। इनके पिता आशुधीर जी अपने उपास्य श्रीराधा-माधव की प्रेरणा से पत्नी गंगादेवी के साथ अनेक तीर्थो की यात्रा करने के पश्चात् अलीगढ़ जनपद की कोल तहसील में 'ब्रज' आकर एक गांव में बस गए। विक्रम सम्वत् 1560 में पच्चीस वर्ष की अवस्था में हरिदास वृन्दावन पहुंचे। वहाँ उन्होंने निधिवन को अपनी तप स्थली बनाया।
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वीथिका
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महाराज्ञी कम्बोजिका, राजकीय संग्रहालय, मथुरा
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बुद्ध प्रतिमा, राजकीय संग्रहालय, मथुरा
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यमुना स्नान, विश्राम घाट, मथुरा
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आसवपायी कुबेर
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नन्द जी मंदिर, नन्दगाँव
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गोकुल घाट, गोकुल
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सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
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मोर, मथुरा
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शक राज पुरुष, राजकीय संग्रहालय, मथुरा
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मनुस्मृति - 2-17,16, 20
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