"सोयाबीन": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Soybean.jpg|thumb|सोयाबीन|250px]] | |||
'''सोयाबीन''' एक बहुउपयोगी 40 से 50 प्रतिशत तक तेल देने वाली द्विदल फ़सल है। इसका उत्पादन [[1975]] के पश्चात् देश में निरन्तर बढ़ता जा रहा है। यह मुख्यतः रबी की फ़सल हैं और कम [[वर्षा]] वाले क्षेत्रों में भी पैदा की जा सकती है। प्रारम्भ में पाला सोयाबीन के लिए घातक नहीं है। इसे अब खरीफ काल में भी बोना आसान है। इसका उपयोग तेल निकालने, प्रोटीनयुक्त पदार्थ, [[प्रोटीन]] व विविध मानव व पशु आहार आदि में होता है, क्योंकि अन्य दलहनों या तिलहनों की तुलना में इसमें प्रोटीन एवं तेल का अंश बहुत अधिक होता है अतः सोया, [[दूध]] एवं सोया आहार इसी कारण विशेष प्रचलित हो रहे हैं। अब रिफाइण्ड सोयाबीन के तेल की खपत [[मूंगफली]] एवं सरसों के तेल के पश्चात् सबसे अधिक होने लगी है। इसके सभी उत्पाद स्वास्थ्य के लिए गुणकारी माने गए हैं। | |||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
सोयाबीन दाल की तरह एक वस्तु है, परन्तु इससे उत्पन्न दूध और दही देखने में और खाने में दूध और दूध की वस्तुओं की तरह ही होते हैं परन्तु इसका मूल्य दूध के मूल्य का सोलवां भाग है। उपकारिता की दृष्टि से भी सोयाबीन का स्थान दूध से किसी तरह कम नहीं हैं। संसार में सोयाबीन के समान पुष्टिकारक कोई अन्य खाद्य मिलना कठिन है। यह विभिन्न विटामिन, धातव, लवण और उच्च श्रेणी के प्रोटीन, शर्करा तथा चर्बी जातीय | सोयाबीन [[दाल]] की तरह एक वस्तु है, परन्तु इससे उत्पन्न [[दूध]] और [[दही]] देखने में और खाने में दूध और दूध की वस्तुओं की तरह ही होते हैं परन्तु इसका मूल्य दूध के मूल्य का सोलवां भाग है। उपकारिता की दृष्टि से भी सोयाबीन का स्थान दूध से किसी तरह कम नहीं हैं। संसार में सोयाबीन के समान पुष्टिकारक कोई अन्य खाद्य मिलना कठिन है। यह विभिन्न [[विटामिन]], धातव, लवण और उच्च श्रेणी के [[प्रोटीन]], शर्करा तथा चर्बी जातीय खाद्यों से समृद्ध है। सोयाबीन गुणवत्ता की दृष्टी से भी सभी खाद्यान्नों से बढ़कर है। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण सोयाबीन को जादुई बीज भी कहा जाता है।<ref name="hbmd">{{cite web |url=http://knol.google.com/k/%E0%A4%B8-%E0%A4%AF-%E0%A4%AC-%E0%A4%A8-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A6-%E0%A4%A8# |title=सोयाबीन एक वरदान |accessmonthday=9 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=है बातों में दम (ब्लॉग)|language=हिन्दी}} </ref> | ||
====वैज्ञानिक नाम==== | |||
सोयाबीन का वैज्ञानिक नाम '''ग्लाईसिन मैक्स''' (Glycine max) हैं। यह शिम्बी कुल और सेम जाति का धान्य हैं। [[अंग्रेज़ी]] में इसे सोयाबीन तथा हिंदी सोया, सेवदाना भट्वास कहा जाता हैं। यह [[वसा]] [[हृदय]] रोग में हितकर हैं और [[घी]] व माखन के सामान रोग प्रतिरोधक हैं। | |||
====प्रकार==== | |||
सोयाबीन कई प्रकार के होते हैं - लाल, पीले, बादामी, काले आदि रंगों के सोयाबीन बाज़ार में बिकते है। मनुष्य केवल हरे तथा [[सफ़ेद रंग]] के सोयाबीन खाद्य के रूप में ग्रहण करते हैं। | |||
==प्रोटीन का स्रोत== | |||
[[चित्र:Soybean-Field.jpg|thumb|350px|सोयाबीन के खेत]] | |||
सोयाबीन पोषक तत्वों से परिपूर्ण एवं पोषण की खान के रूप में जाना जाता है इसलिये इसे सुनहरे बीन की उपाधि दी गई है। सोयाबीन प्रोटीन का सर्वोत्तम स्रोत हैं। इसमें प्रोटीन के अन्य सभी उपलब्ध स्रोतों की तुलना में सबसे अधिक लगभग 43.2% अच्छी गुणवत्ता की प्रोटीन एवं 20% तेल की मात्रा होती है। इस कारण इस स्वास्थ्यवर्धक आहार को "प्रोटीनों का राजा" कहा जाता हैं। सोयाबीन का प्रोटीन सुपाच्य होता हैं जिसके कारण यह बालक, वृद्ध, कमज़ोर, रुग्ण, गर्भवती और प्रसूति महिलाओ के लिए बहुत उपयोगी हैं। 100 ग्राम सोयाबीन में जितनी प्रोटीन होती हैं, उतना ही प्रोटीन पाने के लिए 200 ग्राम पिश्ते की गिरी या 1200 ग्राम [[गाय]]-[[भैंस]] का दूध या 7-8 अंडे या 300 ग्राम हड्डी विहीन मांस की आवश्यकता पड़ती हैं। इसके अन्दर अधिक मात्रा में लोह रहने के कारण रक्तालापता में यह विशेष रूप से हितकर है। सोयाबीन विभिन्न दुर्लभ विटामिनों से समृद्ध है, इसलिय यह स्मरण शक्ति बढ़ता है, स्नायुओं को शांत रखता है, चिड़चिड़े स्वभाव को दूर रखता है, देह स्वस्थ रखता है, यौवन दीर्घ और लम्बी आयु प्रदान करता है। यह कैल्सियम और फोस्फोरस का एक मूल्य प्राप्ति स्थान है। | |||
<ref>{{cite web |url=http://amitkrgupta.jagranjunction.com/2010/06/14/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%97-%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%A8/ |title=स्वास्थ्य ब्लॉग: सोयाबीन और भिन्डी के गुणकारी गुण |accessmonthday=9 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण जंक्शन |language=हिन्दी }}</ref> | |||
सोयाबीन का | हजारों वर्ष से चीन, जापान, मंचूरिया, मंगोलिया आदि में सोयाबीन का सेवन होता आ रहा है। लोगों का मानना है कि सोयाबीन खाने से वज़न और शरीर में शीग्रता से वृद्धि होती है, देह का रंग उज्ज्वल होता है, तथा बदन स्वस्थ और सुदोठित हो उठता है। जापान में ऐसा कोई ग्राम नहीं है जहाँ पर सोयाबीन के [[दूध]], [[दही]] तथा पनीर की दुकान नहीं मिलती हों। | ||
सोयाबीन | साधारणतः ऐसा सोचा जाता है कि सोयाबीन बहुत मुश्किल से पचने वाला खाद्य है परन्तु ऐसा सोचना व्यर्थ है। जब यह ठीक तरह से पकाया जाता है तब यह अन्य किसी भी खाद्य के समान सुपाच्य हो जाता है। | ||
सोयाबीन | ==औषधीय महत्त्व== | ||
[[चित्र:Soybean-1.jpg|thumb|250px|सोयाबीन]] | |||
सोयाबीन में उपस्थित [[प्रोटीन]] व आहरिक रेशे पाये जाने के कारण इससे रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कम होती है जिससे ख़ून की कमी होने से रोकता है तथा सोयाबीन में आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण यह एनीमिया को भी नियन्त्रित करता है। | |||
सोयाबीन | सोयाबीन में पाई जाने वाली प्रोटीन से हमारे शरीर के रक्त में हानिकारक कोलेस्ट्रोल की मात्रा भी कम होती है। जिससे हृदय रोग की संभावनाये कम होती है। डॉक्टरों का मानना है कि दवाओं से कोलेस्ट्राल पर काबू पाने से बेहतर है कि आप अपना खान-पान थोडा बदलें। जैसे- सोया प्रोटीन एलडीएल की मात्रा 14 फीसदी तक घटा सकते हैं। हर दिन 2 गिलास सोया का दूध पीना ही इसके लियें काफ़ी है। इसके अलावा [[जौ]] के साबुत दानों में मौजूद रेशे जो कि दालों में भी मिलते हैं, एलडीएल की समस्या से निजात दिलाने में सहायक है। | ||
सोयाबीन दिल के स्वास्थ्य का पोषक है। रोजाना 25 ग्राम सोया प्रोटीन को खाने से लाभ होता है। खोजों में यह पाया गया है कि सोयाबीन रक्तवसा को घटाता है और सीएचडी के वृद्धि के खतरे को बढ़ने नहीं देता। जो लोग रोजाना औसतन 47 ग्राम सोया प्रोटीन खाते हैं, उनकी पूर्ण रक्तवसा में 9 प्रतिशत कमी होती है। एलडीएल ख़राब कोलेस्ट्रॉल का स्तर प्राय: 13 प्रतिशत कम हुआ। एचडीएल अच्छा कोलेस्ट्रॉल मगर बढ़ा और ट्राइग्लीसेराइड्स घट कर 10 से 11 प्रतिशत कम हुआ। जिनके रक्तवसा के माप शुरू में ही अपेक्षाकृत अधिक थे, उनको आश्चर्यजनक रूप से लाभ हुआ।<ref name="nadi">{{cite web |url=http://m.newsaaj.in/news.php?id=17_67_14185 |title=सोयाबीन प्रसंस्करण -एक घरेलू उद्योग |accessmonthday=9 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=न्यूज़ आज डॉट इन|language=हिन्दी}}</ref> | |||
सोयाबीन दिल के स्वास्थ्य का पोषक है। रोजाना 25 ग्राम सोया प्रोटीन को खाने से लाभ होता है। खोजों में यह पाया गया है कि सोयाबीन रक्तवसा को घटाता है और सीएचडी के वृद्धि के खतरे को बढ़ने | |||
;कैंसर के रोगी में सोयाबीन | ;कैंसर के रोगी में सोयाबीन | ||
सोयाबीन में पाये जाने वाले आइसोफ़्लोविन रसायन के कारण महिलाओं से सम्बन्धित रोग व स्तन कैंसर से बचाव करता है। | सोयाबीन में पाये जाने वाले आइसोफ़्लोविन रसायन के कारण महिलाओं से सम्बन्धित रोग व स्तन कैंसर से बचाव करता है। | ||
सोयाबीन में कुछ ऐसे तत्त्व | सोयाबीन में कुछ ऐसे तत्त्व पाये जाते हैं, जो कैंसर से बचाव का कार्य करते है। क्योंकि इसमें कायटोकेमिकल्स पाये जाते हैं, ख़ासकर फायटोएस्ट्रोजन और 950 प्रकार के हार्मोन्स। यह सब बहुत लाभदायक है। इन तत्त्वों के कारण स्तन कैंसर एवं एंडोमिट्रियोसिस जैसी बीमारियों से बचाव होता है। यह देखा गया है कि इन तत्त्वों के कारण कैंसर के टयूमर बढ़ते नहीं है और उनका आकार भी घट जाता है। सोयाबीन के उपयोग से कैंसर में 30 से 45 प्रतिशत की कमी देखी गई है। | ||
अध्ययनों से पता चला है कि सोयायुक्त भोजन लेने से ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर का | अध्ययनों से पता चला है कि सोयायुक्त भोजन लेने से ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर का ख़तरा कम हो जाता है। महिलाओं की सेहत के लिये सोयाबीन बेहद लाभदायक आहार है। ओमेगा 3 नामक वसा युक्त अम्ल महिलाओं में जन्म से पहले से ही उनमें स्तन कैंसर से बचाव करना आरम्भ कर देता है। जो महिलायें गर्भावस्था तथा स्तनपान के समय ओमेगा 3 अम्ल की प्रचुरता युक्त भोजन करती है, उनकी संतानों कें स्तन कैंसर की आशंका कम होती है। ओमेगा-3 [[अखरोट]], सोयाबीन व मछलियों में पाया जाता है। इससे दिल के रोग होने की आंशका में काफ़ी कमी आती है। इसलिये महिलाओं को गर्भावस्था व स्तनपान कराते समय अखरोट और सोयाबीन का सेवन करते रहना चाहियें। | ||
कैंसर के रोगी जो केमोथेरेपी, रेडिएशन कराते है उन पर उनके दुष्प्रभाव-असहनीय दर्द, | कैंसर के रोगी जो केमोथेरेपी, रेडिएशन कराते है उन पर उनके दुष्प्रभाव-असहनीय दर्द, ख़ून बहना, ख़ून की कमी, थकान, वजन घटना, जी मिचलाना, उल्टी, दस्त, कब्ज, भूख की कमी, कमज़ोरी, सिर के बाल गिरना, निराशा, रोग की असाध्यता से मानसिक रूप से पड़ते है।<ref name="jkhw">{{cite web |url=http://www.jkhealthworld.com/detail.php?id=4309 |title=सोयाबीन |accessmonthday=9 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी. |publisher=jkhealthworld.com|language=हिन्दी}}</ref> | ||
==सोयाबीन के उपयोग में सावधानी== | |||
सोयाबीन में कुछ ऐसे तत्व पाये जाते हैं जो कि सामान्य पोषण के पाचन में बाधा डाल सकते हैं इसलिये इन तत्वों के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिये हमें सोयाबीन के बने खाद्य पदार्थों को या उन्हे बनाने से पहले सोयाबीन को कम से कम 15 मिनट के लिये 100 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर गरम कर लेना चाहिये एवं कभी भी कच्चे सोयाबीन का सेवन नहीं करना चाहिये। | सोयाबीन में कुछ ऐसे तत्व पाये जाते हैं जो कि सामान्य पोषण के पाचन में बाधा डाल सकते हैं इसलिये इन तत्वों के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिये हमें सोयाबीन के बने खाद्य पदार्थों को या उन्हे बनाने से पहले सोयाबीन को कम से कम 15 मिनट के लिये 100 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर गरम कर लेना चाहिये एवं कभी भी कच्चे सोयाबीन का सेवन नहीं करना चाहिये। | ||
गर्भधारण करने वाली स्त्रियों को सोयाबीन का प्रयोग बिलकुल | * गर्भधारण करने वाली स्त्रियों को सोयाबीन का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहियें इससे होने वाली सन्तान पर बुरा असर पड़ता है। | ||
==सोयाबीन से बने पदार्थ== | ==सोयाबीन से बने पदार्थ== | ||
सोयाबीन की पौष्टिकता को देखते हुये इसे हमारे दैनिक जीवन में विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जा | [[चित्र:Soybean-2.jpg|thumb|250px|सोयाबीन की फलियाँ]] | ||
सोयाबीन की पौष्टिकता को देखते हुये इसे हमारे दैनिक जीवन में विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जा सकता है। सोयाबीन को प्रयोग करने के मुख्य तरीके निम्न प्रकार हैं - | |||
;सोयाबीन का दूध | ;सोयाबीन का दूध | ||
दुग्धोत्पादन के लिए यह ज़रूरी है कि सोयाबीन स्वस्थ पीली और ताजी हो अर्थात तीन माह से | दुग्धोत्पादन के लिए यह ज़रूरी है कि सोयाबीन स्वस्थ पीली और ताजी हो अर्थात तीन माह से ज़्यादा दिन की भंडारित न हो। सोया रिसर्च सेंटर से जुड़े माहिरों के मुताबिक़ सोयाबीन से दूध बनाने के लिए सर्वप्रथम साफ़ किये हुये सोयाबीन या सोयाबीन की दाल को 6-8 घंटे भिगोया जाता है और फिर हाथ से रगड़कर उसका छिलका उतार लिया जाता है। उसके बाद दाल को धोकर तत्पश्चात् 1 भाग सोयाबीन तथा 6 भाग पानी के साथ उसे सिलबट्टे पर या मिक्सी / इलेक्ट्रिक ग्राइंडर में बारीक पीसा जाता है। इस तैयार स्लरी में पिसी हुई इलायची और शक्कर मिलाकर 15 मिनट तक उबालना चाहिये, जिससे उसमें हानिकारक तत्व नष्ट हो जाते हैं। तत्पश्चात् मलमल के कपड़े से छान लें और स्वाद अनुसार चीनी मिलायें। ठंडा करने पर मनपसंद की खुशबू मिलायें। इस प्रकार सोयाबीन से दूध तैयार किया जाता है। इस दूध को फ्रीज में 15 दिन तक रखा जा सकता है। इसमें [[रंग]] मिलाकर इसे रंगीन भी बनाया जा सकता है। इस प्रकार 1 किलोग्राम सोयाबीन से लगभग 6 लीटर दूध तैयार हो जाता है। इस सोया दूध से दही, [[पनीर]], [[मठ्ठा]], आइसक्रीम, श्रीखंड और खीर आसानी से बनायी जा सकती है। सोया दूध गाय, भैंस के दूध के समतुल्य पौष्टिक होता है। मसलन - गाय के 100 ग्राम दूध में 3.2 प्रतिशत [[प्रोटीन]], 4 प्रतिशत [[वसा]], 4.6 प्रतिशत कारबोज, 0.11 प्रतिशत [[कैल्शियम]], 0.07 प्रतिशत [[फॉस्फोरस]] पाया जाता है, वहीं सोया दूध में 4.2 प्रतिशत प्रोटीन, 2.4 प्रतिशत वसा, 3.2 प्रतिशत कारबोज, 0.08 प्रतिशत कैल्शियम, 0.10 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है। इस प्रकार सोयादूध पौष्टिक होने के साथ-साथ संपूर्ण आहार भी है। | ||
सोयादूध में लैक्टोज बिल्कुल नहीं होता, जबकि गाय-भैंस के दूध में लैक्टोज की मात्रा पायी जाती है। इस कारण से भी बच्चों और डायबिटीज के मरीजों के लिए सोयादूध वरदान है। बाज़ार में आमतौर पर सोयादूध 20 रुपये प्रति लीटर मिलता है। सोयाबीन के दाम भी लगभग 20 रुपये प्रति किलो हैं। इस प्रकार 1 किलोग्राम सोयाबीन में 2 लीटर से | सोयादूध में लैक्टोज बिल्कुल नहीं होता, जबकि गाय-भैंस के दूध में लैक्टोज की मात्रा पायी जाती है। इस कारण से भी बच्चों और डायबिटीज के मरीजों के लिए सोयादूध वरदान है। बाज़ार में आमतौर पर सोयादूध 20 रुपये प्रति लीटर मिलता है। सोयाबीन के दाम भी लगभग 20 रुपये प्रति किलो हैं। इस प्रकार 1 किलोग्राम सोयाबीन में 2 लीटर से ज़्यादा सोया दूध बनाया जा सकता है। हमारे देश में दूध महंगा होने के कारण निर्धन वर्ग इससे वंचित रहता है और कुपोषण के कारण अनेक बीमारियों का शिकार बनता है। ऐसी स्थिति में ग़रीब थोड़ा-सा परिश्रम करके घर में ही 10 रुपये प्रति किलो की दर से सोया दूध तैयार कर सकते हैं और कुपोषण से भी बच सकते हैं। व्यावसायिक स्तर पर भी सोया दुग्ध उत्पादन किया जा सकता है। सोया दूध ग़रीबों और बेरोज़गारों के लिए अलादीन के चिराग से कम नहीं है।<ref name="hbmd"/> | ||
;सोयाबीन का पनीर | ;सोयाबीन का पनीर | ||
सोया पनीर सोयाबीन का सर्वोत्तम खाद्य पदार्थ है तथा आसानी से पाचन हो जाता है। आइसोफ़्लेवान की मात्रा इसमें सर्वाधिक मिलती है तथा यह देखने में दूध के पनीर जैसा लगता है जापान में इसको टोफ़ू कहते | सोया पनीर सोयाबीन का सर्वोत्तम खाद्य पदार्थ है तथा आसानी से पाचन हो जाता है। आइसोफ़्लेवान की मात्रा इसमें सर्वाधिक मिलती है तथा यह देखने में दूध के पनीर जैसा लगता है जापान में इसको टोफ़ू कहते हैं। इसको भी आसानी से घर पर बनाया जा सकता है। इसको बनाने के लिये साफ़ सोयाबीन को उबलते पानी में डालकर गरम करें तथा फिर ठंडे पानी में 3/4 घंटे के लिये भिगो दें। तत्पश्चात् मिक्सी में गरम पानी के साथ 1:9 के अनुपात में पीस लें तथा मलमल के कपडे से छान लें दूध के समान तरल पदार्थ को उबालें तथा 5 मिनट पश्चात् कैल्शियम क्लोराइड के घोल से फ़ाड दें तथा 5 मिनट के लिये बिना हिलाये डुलाये रख दें फिर मलमल के कपडे में दबाकर रख दें लगभग 10 मिनट बाद कपडे से निकालकर टुकडों में विभाजित कर दें। पानी में डुबोकर रखने से इसे 24 घंटे तक ख़राब होने से बचा कर रखा जा सकता है। सोयाबीन के बने पनीर को उन सभी स्थानो पर उपयोग किया जा सकता है जहाँ कि दूध का पनीर उपयोग किया जाता है। इस प्रकार 1 किलो सोयाबीन से लगभग 1-5 से 2 किलोग्राम पनीर बनाया जा सकता है। सोया पनीर संतृप्त वसा से रहित होता है तथा [[मधुमेह]] व दिल के मरीजों के लिये प्रोटीन का कम कीमत का स्रोत है।<ref name="ksc"/> | ||
;सोयाबीन का वसा रहित आटा | ;सोयाबीन का वसा रहित आटा | ||
वैज्ञानिकों का कहना है कि ‘साफ़ सोयाबीन को मशीन से साफ़ करके उसका छिलका हटाने के बाद 3 गुना साफ़ पानी में पहले 30 मिनट तक उबालने के बाद पानी से निकालकर धूप में सुखायें एबं सुखाकर पीसने से बढिय़ा क्वालिटी का सोया आटा बनता है। सोयाबीन के तैयार आटे को गेंहू के आटे या बेसन के साथ विभिन्न खाद्य पदार्थ बनाने के लिये मिलाया जा सकता है। इसे गेहूं के आटे व मैदा में 10 फीसदी तथा बेसन में 25 फसीदी मिलाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। आम तौर पर सोयाबीन को अन्य अनाजों की तरह पीस कर आटा बना लिया जाता है। सूखे हुये सोयाबीन को [[गेहूँ]] या चने के साथ भी पिसवाया जा सकता है, लेकिन गेहूँ तथा सोयाबीन का अनुपात 1:9 का होना चाहिये। | |||
सोयाबीन का वसारहित आटा प्रोटीन का बहुत ही अच्छा स्रोत | सोयाबीन का वसारहित आटा प्रोटीन का बहुत ही अच्छा स्रोत है। इसमें 50-60 प्रतिशत प्रोटीन होता है और इसमें बीन की गन्ध भी बहुत कम आती है। इसको आसानी से प्रयोग में लाया जा सकता है। गेहूं के आटे में मिलाकर सभी गेहूं के आटे से बनने वाले व्यंजन बनाये जा सकते हैं। जैसे - रोटी, डबलरोटी, पूडी पराठा, समोसे, हल्वा आदि खाद्य पदार्थों में 30 प्रतिशत मिलाने पर भी स्वाद में अन्तर नहीं आता है। वसा रहित आटे को बेसन के साथ भी मिलाया जा सकता है। बेसन के सेब (नमकीन) बनाने में इसको 40% तक स्वाद मे बिना अंतर आये मिलाया जा सकता है तथा वसा रहित आटा मिलाने पर बेसन के नमकीन का रंग व कुरकुरापन बढ जाता है। इसी प्रकार बेसन का हलुआ बनाने में भी 20% तक सोयाबीन आटा मिलाया जा सकता है। बेसन में मिलाने पर खाद्य पदार्थों की पोष्टिक गुण वत्ता बढने के साथ साथ कीमत भी कम हो जाती है।<ref name="ksc"/> | ||
;सोयाबीन का दही बड़ा | ;सोयाबीन का दही बड़ा | ||
सामग्री : 100 ग्राम सोयाबीन, 50 ग्राम उड़द की धुली दाल, घी-तेल तलने के | [[चित्र:Soybean-Field-1.jpg|thumb|250px|सोयाबीन के खेत]] | ||
सामग्री : 100 ग्राम सोयाबीन, 50 ग्राम उड़द की धुली दाल, घी-तेल तलने के लिये, सोंठ पिसी-चौथाई छोटी चम्मच, 500 ग्राम दही, भुना जीरा, लाल मिर्च, काला नमक, सफेद नमक स्वादानुसार। | |||
विधि : सोयाबीन व उड़द की दाल को अलग-अलग रातभर भिगोयें। सोयाबीन के छिलके अलग कर दोनों को मिलाकर पेस्ट बना लें। इसमें सोंठ भी मिलायें इसे खूब अच्छी तरह मिलाकर फेट लें और बड़े बना कर तल लें। थोड़े गुनगुने पानी में नमक मिलाकर तले हुए बड़ों को 2 मिनट पानी में रखकर, निकालकर, दबाकर पानी अलग कर बड़ों को दही में डाल दें। ऊपर से मसाला डालकर परोसें। | '''विधि :''' सोयाबीन व उड़द की दाल को अलग-अलग रातभर भिगोयें। सोयाबीन के छिलके अलग कर दोनों को मिलाकर पेस्ट बना लें। इसमें सोंठ भी मिलायें फिर इसे खूब अच्छी तरह मिलाकर फेट लें और बड़े बना कर तल लें। थोड़े गुनगुने पानी में नमक मिलाकर तले हुए बड़ों को 2 मिनट पानी में रखकर, निकालकर, दबाकर पानी अलग कर बड़ों को दही में डाल दें। ऊपर से मसाला डालकर परोसें। | ||
स्वाद के लियें : इस बने हुए पेस्ट में सभी मसालें, हरी मिर्च, हरा धनिया आदि डालकर बड़े बनाकर चटनी या सॉस के साथ परोंसें। | '''स्वाद के लियें :''' इस बने हुए पेस्ट में सभी मसालें, हरी मिर्च, [[धनिया|हरा धनिया]] आदि डालकर बड़े बनाकर [[चटनी]] या सॉस के साथ परोंसें। | ||
;सोयाबीन की छाछ | ;सोयाबीन की छाछ | ||
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;सोयाबीन पापड | ;सोयाबीन पापड | ||
घरों में पापड सामान्यत उडद या मूंग की दाल से बनाये जाते है। पापड के लिये भी वसा रहित सोयाबीन के आटे को तैयार कर अन्य दालों के आटे के साथ मिलाकर पापड बनाने में उपयोग कर सकते हैं शोध द्वारा यह ज्ञात हो चुका है कि वसा रहित सोयाबीन का आटा पापड बनाने के लिये 80 % तक प्रयोग में लाया जा सकता है। | घरों में पापड सामान्यत उडद या मूंग की दाल से बनाये जाते है। पापड के लिये भी वसा रहित सोयाबीन के आटे को तैयार कर अन्य दालों के आटे के साथ मिलाकर पापड बनाने में उपयोग कर सकते हैं शोध द्वारा यह ज्ञात हो चुका है कि वसा रहित सोयाबीन का आटा पापड बनाने के लिये 80 % तक प्रयोग में लाया जा सकता है।<ref name="ksc"/> | ||
;सोयाबीन नमकीन | ;सोयाबीन नमकीन | ||
साफ़ सोयाबीन को नमक के घोल में 20 मिनट तक उबालें तथा बाद में नमक के घोल से निकालकर 5 मिनट के लिये पंखे के नीचे फ़ैला दें तथा | साफ़ सोयाबीन को नमक के घोल में 20 मिनट तक उबालें तथा बाद में नमक के घोल से निकालकर 5 मिनट के लिये पंखे के नीचे फ़ैला दें तथा फिर गरम तेल में तल लें और फिर चाट मसाला स्वाद अनुसार मिला लें सोया नमकीन तैयार है। | ||
;अंकुरित सोयाबीन का नाश्ता | ;अंकुरित सोयाबीन का नाश्ता | ||
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;सोयाबीन की बडी | ;सोयाबीन की बडी | ||
सोयाबीन 100 ग्राम, मूंग दाल 100 ग्राम, चना दाल 100 ग्राम, उडद दाल 100 ग्राम तथा कुम्हडा | सोयाबीन 100 ग्राम, मूंग दाल 100 ग्राम, चना दाल 100 ग्राम, उडद दाल 100 ग्राम तथा कुम्हडा पिसा हुआ 500 ग्राम हरी मिर्च, अदरक, हींग स्वाद अनुसार। सभी दालों को 8-10 घंटे के लिये पानी में भिगो दें उसके बाद अच्छी तरह साफ़ पानी से धो लें तथा इसमें सोयाबीन को छिलके निकालकर धोयें। इसके बाद में सभी दालों को पीस कर उसमें किसा हुआ कुम्हडा व मसाले मिलायें तथा इसकी बडी बनाकर धूप में सुखा लें व हवा बंद डिब्बे में रखें एवं आवश्यकतानुसार उपयोग करें।<ref name="ksc"/> | ||
==सोयाबीन से जुड़े उद्योग== | |||
[[चित्र:Soybean-Flower.jpg|thumb|250px|सोयाबीन का फूल]] | |||
हमारे देश में पैदा कुल सोयाबीन का 10 फीसदी हिस्सा बीज आदि में व 90 फीसदी प्रोसेसिंग इकाइयों के काम आता है। सोया तेल निकालने के बाद क़रीब 5,000 करोड़ रुपये सालाना की खली बचती है। वह बतौर पशु आहार दूसरे मुल्कों को निर्यात की जाती है। देश में लगी सोया प्रोसेसिंग इकाइयों की कुवत के 40 फीसदी हिस्से का आज भी इस्तेमाल नहीं हो पाता। खान-पान के अलावा सोयाबीन का इस्तेमाल जैव इंधन, टैक्सटाइल्स, स्याही व पेंट आदि कई चीजों में होता है। | |||
प्रसंस्कृत सोयाबीन सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद है लेकिन ज़्यादातर लोग सोयाबीन की खूबियों से नावाकिफ हैं। अत: सोयाबीन की बडिय़ां व तेल ही ज़्यादा इस्तेमाल होता है, जबकि कई तरह से इसका इस्तेमाल हो सकता है। यदि तकनीक समझ में आ जाए और वाजिब दाम पर अच्छी क्वालिटी की चीज़ें बनाई जाएं तो सोयाबीन की प्रोसेसिंग सोने की खान बन सकती है। सोयाबीन से दूध, दही, लस्सी, पनीर, गुलाब-जामुन, सोया बिस्कुट, नमकीन, टाफी, कैंडी मीठी खील, आटा, सत्तू, सास, आइसक्रीम व श्रीखंड आदि बनाने की इकाई लगाकर कमाई की जा सकती है। सोया प्रोसेसिंग से ज़्यादा कमाई करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि नए, सुधरे व बेहतर तरीके अपनाए जाएं। | |||
सोयाबीन के प्रसंस्करण से विभिन्न पदार्थ बनाये जा सकते हैं जिनका हम अपने घर में उपयोग करने के साथ साथ अपना घरेलू उद्योग भी प्रारम्भ कर सकते हैं। उद्यमों की स्थापना तथा बेरोज़गारों को रोज़गार प्रदान करने में सोयाबीन प्रसंस्करण काफ़ी हद तक मददगार सिद्ध हो सकता है। इसका लाभ उठाने के लिये तथा सोया पदार्थों की ग्रामीण ज़रूरतों को पूरा करने के लिये देहातों / कस्बों में ऐसे उद्यमों की स्थापना करनी चाहिये। जिससे वहां के लोगों की जरुरतें पूरी होने के साथ साथ उनको रोज़गार स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध हो सके तथा उनको शहर की ओर रुख़ करने की आवश्यकता महसूस न हो साथ छोटे शहरों में सोयाबीन पर आधारित उद्यमों को प्रोत्साहन मिलने से शहरवासियों को कम दाम पर अच्छी गुणवत्ता वाला प्रोटीन उपलब्ध हो सके। यह तरीका अपनाने से प्रसंस्करण के लिये कच्चे माल को शहर की तरफ़ जाने तथा प्रसंस्कृत पदार्थ को देहात में वापस ले आने में परिवहन व्यय तथा इसके रख रखाव में होने वाली हानियों को कम किया जा सकता है। ग्रामों तथा शहरों में सोयाबीन का प्रसंस्करण करते समय तथा उद्यमों का चयन करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिये कि जो खाद्य पदार्थ तैयार करने की इकाई लगाई जा रही है उस पदार्थ में लोगों की रुचि या पसन्द अवश्य हो। जो पदार्थ उस क्षेत्र में पारम्परिक रूप से प्रचलन में हो तथा स्थानीय लोगों के खान पान / आहार का एक हिस्सा हो उनके आधार पर तथा स्थानीय मांग के अनुरूप सोयाबीन का उद्यम स्थापित करना लाभप्रद सिद्ध हो सकता है।<ref name="ksc">{{cite web |url=http://krishisewa.com/articles/2010/soyaproducts.html |title=सॊयाबीन प्रसंस्करण की आवश्यकता क्यों |accessmonthday=9 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=krishisewa.com|language=हिन्दी}}</ref> | |||
==भारत में उत्पादन== | |||
देश की 49.95 प्रतिशत सोयाबीन [[मध्य प्रदेश]] से प्राप्त होती। इसी कारण से मध्य प्रदेश को 'सोयाबीन राज्य' के नाम से पुकारते हैं। इसकी [[कृषि]] का विस्तार [[1982]] के पश्चात् दक्षिणी-पूर्वी [[राजस्थान]], मध्य प्रदेश, [[गुजरात]] एवं दक्षिण [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ है। [[2008]]-[[2009]] में देश में 91 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ। देश में सोयाबीन उत्पादन में मध्य प्रदेश (49.95 प्रतिशत) व [[महाराष्ट्र]] (36.28 प्रतिशत) का स्थान प्रथम तथा राजस्थान (9.75 प्रतिशत) का द्वितीय स्थान है। | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://krishisewa.com/articles/2010/soyaproducts.html सॊयाबीन प्रसंस्करण की आवश्यकता क्यों] | |||
*[http://m.newsaaj.in/news.php?id=17_67_14185 सोयाबीन प्रसंस्करण -एक घरेलू उद्योग] | |||
*[http://knol.google.com/k/%E0%A4%B8-%E0%A4%AF-%E0%A4%AC-%E0%A4%A8-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A6-%E0%A4%A8# सोयाबीन एक वरदान] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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09:57, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
सोयाबीन एक बहुउपयोगी 40 से 50 प्रतिशत तक तेल देने वाली द्विदल फ़सल है। इसका उत्पादन 1975 के पश्चात् देश में निरन्तर बढ़ता जा रहा है। यह मुख्यतः रबी की फ़सल हैं और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी पैदा की जा सकती है। प्रारम्भ में पाला सोयाबीन के लिए घातक नहीं है। इसे अब खरीफ काल में भी बोना आसान है। इसका उपयोग तेल निकालने, प्रोटीनयुक्त पदार्थ, प्रोटीन व विविध मानव व पशु आहार आदि में होता है, क्योंकि अन्य दलहनों या तिलहनों की तुलना में इसमें प्रोटीन एवं तेल का अंश बहुत अधिक होता है अतः सोया, दूध एवं सोया आहार इसी कारण विशेष प्रचलित हो रहे हैं। अब रिफाइण्ड सोयाबीन के तेल की खपत मूंगफली एवं सरसों के तेल के पश्चात् सबसे अधिक होने लगी है। इसके सभी उत्पाद स्वास्थ्य के लिए गुणकारी माने गए हैं।
परिचय
सोयाबीन दाल की तरह एक वस्तु है, परन्तु इससे उत्पन्न दूध और दही देखने में और खाने में दूध और दूध की वस्तुओं की तरह ही होते हैं परन्तु इसका मूल्य दूध के मूल्य का सोलवां भाग है। उपकारिता की दृष्टि से भी सोयाबीन का स्थान दूध से किसी तरह कम नहीं हैं। संसार में सोयाबीन के समान पुष्टिकारक कोई अन्य खाद्य मिलना कठिन है। यह विभिन्न विटामिन, धातव, लवण और उच्च श्रेणी के प्रोटीन, शर्करा तथा चर्बी जातीय खाद्यों से समृद्ध है। सोयाबीन गुणवत्ता की दृष्टी से भी सभी खाद्यान्नों से बढ़कर है। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण सोयाबीन को जादुई बीज भी कहा जाता है।[1]
वैज्ञानिक नाम
सोयाबीन का वैज्ञानिक नाम ग्लाईसिन मैक्स (Glycine max) हैं। यह शिम्बी कुल और सेम जाति का धान्य हैं। अंग्रेज़ी में इसे सोयाबीन तथा हिंदी सोया, सेवदाना भट्वास कहा जाता हैं। यह वसा हृदय रोग में हितकर हैं और घी व माखन के सामान रोग प्रतिरोधक हैं।
प्रकार
सोयाबीन कई प्रकार के होते हैं - लाल, पीले, बादामी, काले आदि रंगों के सोयाबीन बाज़ार में बिकते है। मनुष्य केवल हरे तथा सफ़ेद रंग के सोयाबीन खाद्य के रूप में ग्रहण करते हैं।
प्रोटीन का स्रोत
सोयाबीन पोषक तत्वों से परिपूर्ण एवं पोषण की खान के रूप में जाना जाता है इसलिये इसे सुनहरे बीन की उपाधि दी गई है। सोयाबीन प्रोटीन का सर्वोत्तम स्रोत हैं। इसमें प्रोटीन के अन्य सभी उपलब्ध स्रोतों की तुलना में सबसे अधिक लगभग 43.2% अच्छी गुणवत्ता की प्रोटीन एवं 20% तेल की मात्रा होती है। इस कारण इस स्वास्थ्यवर्धक आहार को "प्रोटीनों का राजा" कहा जाता हैं। सोयाबीन का प्रोटीन सुपाच्य होता हैं जिसके कारण यह बालक, वृद्ध, कमज़ोर, रुग्ण, गर्भवती और प्रसूति महिलाओ के लिए बहुत उपयोगी हैं। 100 ग्राम सोयाबीन में जितनी प्रोटीन होती हैं, उतना ही प्रोटीन पाने के लिए 200 ग्राम पिश्ते की गिरी या 1200 ग्राम गाय-भैंस का दूध या 7-8 अंडे या 300 ग्राम हड्डी विहीन मांस की आवश्यकता पड़ती हैं। इसके अन्दर अधिक मात्रा में लोह रहने के कारण रक्तालापता में यह विशेष रूप से हितकर है। सोयाबीन विभिन्न दुर्लभ विटामिनों से समृद्ध है, इसलिय यह स्मरण शक्ति बढ़ता है, स्नायुओं को शांत रखता है, चिड़चिड़े स्वभाव को दूर रखता है, देह स्वस्थ रखता है, यौवन दीर्घ और लम्बी आयु प्रदान करता है। यह कैल्सियम और फोस्फोरस का एक मूल्य प्राप्ति स्थान है। [2]
हजारों वर्ष से चीन, जापान, मंचूरिया, मंगोलिया आदि में सोयाबीन का सेवन होता आ रहा है। लोगों का मानना है कि सोयाबीन खाने से वज़न और शरीर में शीग्रता से वृद्धि होती है, देह का रंग उज्ज्वल होता है, तथा बदन स्वस्थ और सुदोठित हो उठता है। जापान में ऐसा कोई ग्राम नहीं है जहाँ पर सोयाबीन के दूध, दही तथा पनीर की दुकान नहीं मिलती हों।
साधारणतः ऐसा सोचा जाता है कि सोयाबीन बहुत मुश्किल से पचने वाला खाद्य है परन्तु ऐसा सोचना व्यर्थ है। जब यह ठीक तरह से पकाया जाता है तब यह अन्य किसी भी खाद्य के समान सुपाच्य हो जाता है।
औषधीय महत्त्व
सोयाबीन में उपस्थित प्रोटीन व आहरिक रेशे पाये जाने के कारण इससे रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कम होती है जिससे ख़ून की कमी होने से रोकता है तथा सोयाबीन में आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण यह एनीमिया को भी नियन्त्रित करता है।
सोयाबीन में पाई जाने वाली प्रोटीन से हमारे शरीर के रक्त में हानिकारक कोलेस्ट्रोल की मात्रा भी कम होती है। जिससे हृदय रोग की संभावनाये कम होती है। डॉक्टरों का मानना है कि दवाओं से कोलेस्ट्राल पर काबू पाने से बेहतर है कि आप अपना खान-पान थोडा बदलें। जैसे- सोया प्रोटीन एलडीएल की मात्रा 14 फीसदी तक घटा सकते हैं। हर दिन 2 गिलास सोया का दूध पीना ही इसके लियें काफ़ी है। इसके अलावा जौ के साबुत दानों में मौजूद रेशे जो कि दालों में भी मिलते हैं, एलडीएल की समस्या से निजात दिलाने में सहायक है।
सोयाबीन दिल के स्वास्थ्य का पोषक है। रोजाना 25 ग्राम सोया प्रोटीन को खाने से लाभ होता है। खोजों में यह पाया गया है कि सोयाबीन रक्तवसा को घटाता है और सीएचडी के वृद्धि के खतरे को बढ़ने नहीं देता। जो लोग रोजाना औसतन 47 ग्राम सोया प्रोटीन खाते हैं, उनकी पूर्ण रक्तवसा में 9 प्रतिशत कमी होती है। एलडीएल ख़राब कोलेस्ट्रॉल का स्तर प्राय: 13 प्रतिशत कम हुआ। एचडीएल अच्छा कोलेस्ट्रॉल मगर बढ़ा और ट्राइग्लीसेराइड्स घट कर 10 से 11 प्रतिशत कम हुआ। जिनके रक्तवसा के माप शुरू में ही अपेक्षाकृत अधिक थे, उनको आश्चर्यजनक रूप से लाभ हुआ।[3]
- कैंसर के रोगी में सोयाबीन
सोयाबीन में पाये जाने वाले आइसोफ़्लोविन रसायन के कारण महिलाओं से सम्बन्धित रोग व स्तन कैंसर से बचाव करता है।
सोयाबीन में कुछ ऐसे तत्त्व पाये जाते हैं, जो कैंसर से बचाव का कार्य करते है। क्योंकि इसमें कायटोकेमिकल्स पाये जाते हैं, ख़ासकर फायटोएस्ट्रोजन और 950 प्रकार के हार्मोन्स। यह सब बहुत लाभदायक है। इन तत्त्वों के कारण स्तन कैंसर एवं एंडोमिट्रियोसिस जैसी बीमारियों से बचाव होता है। यह देखा गया है कि इन तत्त्वों के कारण कैंसर के टयूमर बढ़ते नहीं है और उनका आकार भी घट जाता है। सोयाबीन के उपयोग से कैंसर में 30 से 45 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
अध्ययनों से पता चला है कि सोयायुक्त भोजन लेने से ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर का ख़तरा कम हो जाता है। महिलाओं की सेहत के लिये सोयाबीन बेहद लाभदायक आहार है। ओमेगा 3 नामक वसा युक्त अम्ल महिलाओं में जन्म से पहले से ही उनमें स्तन कैंसर से बचाव करना आरम्भ कर देता है। जो महिलायें गर्भावस्था तथा स्तनपान के समय ओमेगा 3 अम्ल की प्रचुरता युक्त भोजन करती है, उनकी संतानों कें स्तन कैंसर की आशंका कम होती है। ओमेगा-3 अखरोट, सोयाबीन व मछलियों में पाया जाता है। इससे दिल के रोग होने की आंशका में काफ़ी कमी आती है। इसलिये महिलाओं को गर्भावस्था व स्तनपान कराते समय अखरोट और सोयाबीन का सेवन करते रहना चाहियें।
कैंसर के रोगी जो केमोथेरेपी, रेडिएशन कराते है उन पर उनके दुष्प्रभाव-असहनीय दर्द, ख़ून बहना, ख़ून की कमी, थकान, वजन घटना, जी मिचलाना, उल्टी, दस्त, कब्ज, भूख की कमी, कमज़ोरी, सिर के बाल गिरना, निराशा, रोग की असाध्यता से मानसिक रूप से पड़ते है।[4]
सोयाबीन के उपयोग में सावधानी
सोयाबीन में कुछ ऐसे तत्व पाये जाते हैं जो कि सामान्य पोषण के पाचन में बाधा डाल सकते हैं इसलिये इन तत्वों के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिये हमें सोयाबीन के बने खाद्य पदार्थों को या उन्हे बनाने से पहले सोयाबीन को कम से कम 15 मिनट के लिये 100 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर गरम कर लेना चाहिये एवं कभी भी कच्चे सोयाबीन का सेवन नहीं करना चाहिये।
- गर्भधारण करने वाली स्त्रियों को सोयाबीन का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहियें इससे होने वाली सन्तान पर बुरा असर पड़ता है।
सोयाबीन से बने पदार्थ
सोयाबीन की पौष्टिकता को देखते हुये इसे हमारे दैनिक जीवन में विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जा सकता है। सोयाबीन को प्रयोग करने के मुख्य तरीके निम्न प्रकार हैं -
- सोयाबीन का दूध
दुग्धोत्पादन के लिए यह ज़रूरी है कि सोयाबीन स्वस्थ पीली और ताजी हो अर्थात तीन माह से ज़्यादा दिन की भंडारित न हो। सोया रिसर्च सेंटर से जुड़े माहिरों के मुताबिक़ सोयाबीन से दूध बनाने के लिए सर्वप्रथम साफ़ किये हुये सोयाबीन या सोयाबीन की दाल को 6-8 घंटे भिगोया जाता है और फिर हाथ से रगड़कर उसका छिलका उतार लिया जाता है। उसके बाद दाल को धोकर तत्पश्चात् 1 भाग सोयाबीन तथा 6 भाग पानी के साथ उसे सिलबट्टे पर या मिक्सी / इलेक्ट्रिक ग्राइंडर में बारीक पीसा जाता है। इस तैयार स्लरी में पिसी हुई इलायची और शक्कर मिलाकर 15 मिनट तक उबालना चाहिये, जिससे उसमें हानिकारक तत्व नष्ट हो जाते हैं। तत्पश्चात् मलमल के कपड़े से छान लें और स्वाद अनुसार चीनी मिलायें। ठंडा करने पर मनपसंद की खुशबू मिलायें। इस प्रकार सोयाबीन से दूध तैयार किया जाता है। इस दूध को फ्रीज में 15 दिन तक रखा जा सकता है। इसमें रंग मिलाकर इसे रंगीन भी बनाया जा सकता है। इस प्रकार 1 किलोग्राम सोयाबीन से लगभग 6 लीटर दूध तैयार हो जाता है। इस सोया दूध से दही, पनीर, मठ्ठा, आइसक्रीम, श्रीखंड और खीर आसानी से बनायी जा सकती है। सोया दूध गाय, भैंस के दूध के समतुल्य पौष्टिक होता है। मसलन - गाय के 100 ग्राम दूध में 3.2 प्रतिशत प्रोटीन, 4 प्रतिशत वसा, 4.6 प्रतिशत कारबोज, 0.11 प्रतिशत कैल्शियम, 0.07 प्रतिशत फॉस्फोरस पाया जाता है, वहीं सोया दूध में 4.2 प्रतिशत प्रोटीन, 2.4 प्रतिशत वसा, 3.2 प्रतिशत कारबोज, 0.08 प्रतिशत कैल्शियम, 0.10 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है। इस प्रकार सोयादूध पौष्टिक होने के साथ-साथ संपूर्ण आहार भी है।
सोयादूध में लैक्टोज बिल्कुल नहीं होता, जबकि गाय-भैंस के दूध में लैक्टोज की मात्रा पायी जाती है। इस कारण से भी बच्चों और डायबिटीज के मरीजों के लिए सोयादूध वरदान है। बाज़ार में आमतौर पर सोयादूध 20 रुपये प्रति लीटर मिलता है। सोयाबीन के दाम भी लगभग 20 रुपये प्रति किलो हैं। इस प्रकार 1 किलोग्राम सोयाबीन में 2 लीटर से ज़्यादा सोया दूध बनाया जा सकता है। हमारे देश में दूध महंगा होने के कारण निर्धन वर्ग इससे वंचित रहता है और कुपोषण के कारण अनेक बीमारियों का शिकार बनता है। ऐसी स्थिति में ग़रीब थोड़ा-सा परिश्रम करके घर में ही 10 रुपये प्रति किलो की दर से सोया दूध तैयार कर सकते हैं और कुपोषण से भी बच सकते हैं। व्यावसायिक स्तर पर भी सोया दुग्ध उत्पादन किया जा सकता है। सोया दूध ग़रीबों और बेरोज़गारों के लिए अलादीन के चिराग से कम नहीं है।[1]
- सोयाबीन का पनीर
सोया पनीर सोयाबीन का सर्वोत्तम खाद्य पदार्थ है तथा आसानी से पाचन हो जाता है। आइसोफ़्लेवान की मात्रा इसमें सर्वाधिक मिलती है तथा यह देखने में दूध के पनीर जैसा लगता है जापान में इसको टोफ़ू कहते हैं। इसको भी आसानी से घर पर बनाया जा सकता है। इसको बनाने के लिये साफ़ सोयाबीन को उबलते पानी में डालकर गरम करें तथा फिर ठंडे पानी में 3/4 घंटे के लिये भिगो दें। तत्पश्चात् मिक्सी में गरम पानी के साथ 1:9 के अनुपात में पीस लें तथा मलमल के कपडे से छान लें दूध के समान तरल पदार्थ को उबालें तथा 5 मिनट पश्चात् कैल्शियम क्लोराइड के घोल से फ़ाड दें तथा 5 मिनट के लिये बिना हिलाये डुलाये रख दें फिर मलमल के कपडे में दबाकर रख दें लगभग 10 मिनट बाद कपडे से निकालकर टुकडों में विभाजित कर दें। पानी में डुबोकर रखने से इसे 24 घंटे तक ख़राब होने से बचा कर रखा जा सकता है। सोयाबीन के बने पनीर को उन सभी स्थानो पर उपयोग किया जा सकता है जहाँ कि दूध का पनीर उपयोग किया जाता है। इस प्रकार 1 किलो सोयाबीन से लगभग 1-5 से 2 किलोग्राम पनीर बनाया जा सकता है। सोया पनीर संतृप्त वसा से रहित होता है तथा मधुमेह व दिल के मरीजों के लिये प्रोटीन का कम कीमत का स्रोत है।[5]
- सोयाबीन का वसा रहित आटा
वैज्ञानिकों का कहना है कि ‘साफ़ सोयाबीन को मशीन से साफ़ करके उसका छिलका हटाने के बाद 3 गुना साफ़ पानी में पहले 30 मिनट तक उबालने के बाद पानी से निकालकर धूप में सुखायें एबं सुखाकर पीसने से बढिय़ा क्वालिटी का सोया आटा बनता है। सोयाबीन के तैयार आटे को गेंहू के आटे या बेसन के साथ विभिन्न खाद्य पदार्थ बनाने के लिये मिलाया जा सकता है। इसे गेहूं के आटे व मैदा में 10 फीसदी तथा बेसन में 25 फसीदी मिलाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। आम तौर पर सोयाबीन को अन्य अनाजों की तरह पीस कर आटा बना लिया जाता है। सूखे हुये सोयाबीन को गेहूँ या चने के साथ भी पिसवाया जा सकता है, लेकिन गेहूँ तथा सोयाबीन का अनुपात 1:9 का होना चाहिये।
सोयाबीन का वसारहित आटा प्रोटीन का बहुत ही अच्छा स्रोत है। इसमें 50-60 प्रतिशत प्रोटीन होता है और इसमें बीन की गन्ध भी बहुत कम आती है। इसको आसानी से प्रयोग में लाया जा सकता है। गेहूं के आटे में मिलाकर सभी गेहूं के आटे से बनने वाले व्यंजन बनाये जा सकते हैं। जैसे - रोटी, डबलरोटी, पूडी पराठा, समोसे, हल्वा आदि खाद्य पदार्थों में 30 प्रतिशत मिलाने पर भी स्वाद में अन्तर नहीं आता है। वसा रहित आटे को बेसन के साथ भी मिलाया जा सकता है। बेसन के सेब (नमकीन) बनाने में इसको 40% तक स्वाद मे बिना अंतर आये मिलाया जा सकता है तथा वसा रहित आटा मिलाने पर बेसन के नमकीन का रंग व कुरकुरापन बढ जाता है। इसी प्रकार बेसन का हलुआ बनाने में भी 20% तक सोयाबीन आटा मिलाया जा सकता है। बेसन में मिलाने पर खाद्य पदार्थों की पोष्टिक गुण वत्ता बढने के साथ साथ कीमत भी कम हो जाती है।[5]
- सोयाबीन का दही बड़ा
सामग्री : 100 ग्राम सोयाबीन, 50 ग्राम उड़द की धुली दाल, घी-तेल तलने के लिये, सोंठ पिसी-चौथाई छोटी चम्मच, 500 ग्राम दही, भुना जीरा, लाल मिर्च, काला नमक, सफेद नमक स्वादानुसार।
विधि : सोयाबीन व उड़द की दाल को अलग-अलग रातभर भिगोयें। सोयाबीन के छिलके अलग कर दोनों को मिलाकर पेस्ट बना लें। इसमें सोंठ भी मिलायें फिर इसे खूब अच्छी तरह मिलाकर फेट लें और बड़े बना कर तल लें। थोड़े गुनगुने पानी में नमक मिलाकर तले हुए बड़ों को 2 मिनट पानी में रखकर, निकालकर, दबाकर पानी अलग कर बड़ों को दही में डाल दें। ऊपर से मसाला डालकर परोसें।
स्वाद के लियें : इस बने हुए पेस्ट में सभी मसालें, हरी मिर्च, हरा धनिया आदि डालकर बड़े बनाकर चटनी या सॉस के साथ परोंसें।
- सोयाबीन की छाछ
सोयाबीन को दही में उचित मात्रा में पानी मिलाकर अच्छी तरह मिलाने से छाछ बन जाती है और मक्खन भी निकलता है।
- सोयाबीन पापड
घरों में पापड सामान्यत उडद या मूंग की दाल से बनाये जाते है। पापड के लिये भी वसा रहित सोयाबीन के आटे को तैयार कर अन्य दालों के आटे के साथ मिलाकर पापड बनाने में उपयोग कर सकते हैं शोध द्वारा यह ज्ञात हो चुका है कि वसा रहित सोयाबीन का आटा पापड बनाने के लिये 80 % तक प्रयोग में लाया जा सकता है।[5]
- सोयाबीन नमकीन
साफ़ सोयाबीन को नमक के घोल में 20 मिनट तक उबालें तथा बाद में नमक के घोल से निकालकर 5 मिनट के लिये पंखे के नीचे फ़ैला दें तथा फिर गरम तेल में तल लें और फिर चाट मसाला स्वाद अनुसार मिला लें सोया नमकीन तैयार है।
- अंकुरित सोयाबीन का नाश्ता
सोयाबीन 2 भाग तथा 1 भाग चना तथा 1 भाग मूंग को पानी में भिगोकर रात भर रखना चाहिये तथा इसके लिये तीनों दालों को अलग अलग कपडे में बांध कर 6-8 घंटे भिगोकर रखें तथा जब अंकुरण ह जाये तो साफ़ पानी से धोकर अंकुरित सोया दालों को हल्की भाप में पका लेना चाहिये। तथा बाद में तीनों को मिलाकर हरा धनिया, प्याज, टमाटर, मिर्च तथा नमक व नींबू स्वाद अनुसार मिलाकर नाश्ते में उपयोग किया जा सकता है।
- सोयाबीन की बडी
सोयाबीन 100 ग्राम, मूंग दाल 100 ग्राम, चना दाल 100 ग्राम, उडद दाल 100 ग्राम तथा कुम्हडा पिसा हुआ 500 ग्राम हरी मिर्च, अदरक, हींग स्वाद अनुसार। सभी दालों को 8-10 घंटे के लिये पानी में भिगो दें उसके बाद अच्छी तरह साफ़ पानी से धो लें तथा इसमें सोयाबीन को छिलके निकालकर धोयें। इसके बाद में सभी दालों को पीस कर उसमें किसा हुआ कुम्हडा व मसाले मिलायें तथा इसकी बडी बनाकर धूप में सुखा लें व हवा बंद डिब्बे में रखें एवं आवश्यकतानुसार उपयोग करें।[5]
सोयाबीन से जुड़े उद्योग
हमारे देश में पैदा कुल सोयाबीन का 10 फीसदी हिस्सा बीज आदि में व 90 फीसदी प्रोसेसिंग इकाइयों के काम आता है। सोया तेल निकालने के बाद क़रीब 5,000 करोड़ रुपये सालाना की खली बचती है। वह बतौर पशु आहार दूसरे मुल्कों को निर्यात की जाती है। देश में लगी सोया प्रोसेसिंग इकाइयों की कुवत के 40 फीसदी हिस्से का आज भी इस्तेमाल नहीं हो पाता। खान-पान के अलावा सोयाबीन का इस्तेमाल जैव इंधन, टैक्सटाइल्स, स्याही व पेंट आदि कई चीजों में होता है।
प्रसंस्कृत सोयाबीन सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद है लेकिन ज़्यादातर लोग सोयाबीन की खूबियों से नावाकिफ हैं। अत: सोयाबीन की बडिय़ां व तेल ही ज़्यादा इस्तेमाल होता है, जबकि कई तरह से इसका इस्तेमाल हो सकता है। यदि तकनीक समझ में आ जाए और वाजिब दाम पर अच्छी क्वालिटी की चीज़ें बनाई जाएं तो सोयाबीन की प्रोसेसिंग सोने की खान बन सकती है। सोयाबीन से दूध, दही, लस्सी, पनीर, गुलाब-जामुन, सोया बिस्कुट, नमकीन, टाफी, कैंडी मीठी खील, आटा, सत्तू, सास, आइसक्रीम व श्रीखंड आदि बनाने की इकाई लगाकर कमाई की जा सकती है। सोया प्रोसेसिंग से ज़्यादा कमाई करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि नए, सुधरे व बेहतर तरीके अपनाए जाएं।
सोयाबीन के प्रसंस्करण से विभिन्न पदार्थ बनाये जा सकते हैं जिनका हम अपने घर में उपयोग करने के साथ साथ अपना घरेलू उद्योग भी प्रारम्भ कर सकते हैं। उद्यमों की स्थापना तथा बेरोज़गारों को रोज़गार प्रदान करने में सोयाबीन प्रसंस्करण काफ़ी हद तक मददगार सिद्ध हो सकता है। इसका लाभ उठाने के लिये तथा सोया पदार्थों की ग्रामीण ज़रूरतों को पूरा करने के लिये देहातों / कस्बों में ऐसे उद्यमों की स्थापना करनी चाहिये। जिससे वहां के लोगों की जरुरतें पूरी होने के साथ साथ उनको रोज़गार स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध हो सके तथा उनको शहर की ओर रुख़ करने की आवश्यकता महसूस न हो साथ छोटे शहरों में सोयाबीन पर आधारित उद्यमों को प्रोत्साहन मिलने से शहरवासियों को कम दाम पर अच्छी गुणवत्ता वाला प्रोटीन उपलब्ध हो सके। यह तरीका अपनाने से प्रसंस्करण के लिये कच्चे माल को शहर की तरफ़ जाने तथा प्रसंस्कृत पदार्थ को देहात में वापस ले आने में परिवहन व्यय तथा इसके रख रखाव में होने वाली हानियों को कम किया जा सकता है। ग्रामों तथा शहरों में सोयाबीन का प्रसंस्करण करते समय तथा उद्यमों का चयन करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिये कि जो खाद्य पदार्थ तैयार करने की इकाई लगाई जा रही है उस पदार्थ में लोगों की रुचि या पसन्द अवश्य हो। जो पदार्थ उस क्षेत्र में पारम्परिक रूप से प्रचलन में हो तथा स्थानीय लोगों के खान पान / आहार का एक हिस्सा हो उनके आधार पर तथा स्थानीय मांग के अनुरूप सोयाबीन का उद्यम स्थापित करना लाभप्रद सिद्ध हो सकता है।[5]
भारत में उत्पादन
देश की 49.95 प्रतिशत सोयाबीन मध्य प्रदेश से प्राप्त होती। इसी कारण से मध्य प्रदेश को 'सोयाबीन राज्य' के नाम से पुकारते हैं। इसकी कृषि का विस्तार 1982 के पश्चात् दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात एवं दक्षिण उत्तर प्रदेश में हुआ है। 2008-2009 में देश में 91 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ। देश में सोयाबीन उत्पादन में मध्य प्रदेश (49.95 प्रतिशत) व महाराष्ट्र (36.28 प्रतिशत) का स्थान प्रथम तथा राजस्थान (9.75 प्रतिशत) का द्वितीय स्थान है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 सोयाबीन एक वरदान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) है बातों में दम (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 9 सितंबर, 2011।
- ↑ स्वास्थ्य ब्लॉग: सोयाबीन और भिन्डी के गुणकारी गुण (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 9 सितंबर, 2011।
- ↑ सोयाबीन प्रसंस्करण -एक घरेलू उद्योग (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) न्यूज़ आज डॉट इन। अभिगमन तिथि: 9 सितंबर, 2011।
- ↑ सोयाबीन (हिन्दी) (पी.एच.पी.) jkhealthworld.com। अभिगमन तिथि: 9 सितंबर, 2011।
- ↑ 5.0 5.1 5.2 5.3 5.4 सॊयाबीन प्रसंस्करण की आवश्यकता क्यों (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) krishisewa.com। अभिगमन तिथि: 9 सितंबर, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
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