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#अनुसूचित जातियों के लिए एक आयोग होना चाहिए जिसे अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग के नाम से जाना जाए। | #अनुसूचित जातियों के लिए एक आयोग होना चाहिए जिसे अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग के नाम से जाना जाए। | ||
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'''(4)''' आयोग को अपनी कार्यप्रक्रिया स्वयं निर्धारित करने का अधिकार होगा। | '''(4)''' आयोग को अपनी कार्यप्रक्रिया स्वयं निर्धारित करने का अधिकार होगा। | ||
'''(5)''' आयोग का यह कर्त्तव्य होगा कि- (ए) संविधान या वर्तमान में लागू अन्य किसी | '''(5)''' आयोग का यह कर्त्तव्य होगा कि- (ए) संविधान या वर्तमान में लागू अन्य किसी क़ानून के अंतर्गत या सरकार द्वारा जारी किसी आदेश के तहत अनुसूचित जातियों को दी गई सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों की छानबीन एवं निगरानी तथा इन तय सुरक्षा मानदंडों का मूल्यांकन; (बी) अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों तथा सुरक्षा तथा सुरक्षा से वंचित करने के संदर्भ में किसी विशेष शिकायत की जांच; (सी) अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में शामिल होना एवं सलाह देना और केंद्र तथा किसी राज्य के अंतर्गत उनके विकास का मूल्यांकन; (डी) निर्धारित सुरक्षा मानकों की कारगर होने या न होने के बारे में आयोग अपनी रिपोर्ट वार्षिक तथा अन्य किसी ऐसे समय, जब उसे उचित लगे, राष्ट्रपति को सौंपेगा; (ई) ऐसी रिपोर्ट अथवा सिफारिशें करेगा, उपाय सुझाएगा जो केंद्र या किसी राज्य सरकार द्वारा इन सुरक्षा उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए उठाए/कार्यांवित किए जाएंगे ताकि अनुसूचित जन जातियों के हितों की रक्षा, उनका कल्याण और आर्थिक सामाजिक विकास हो सके। (एफ) अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण एवं विकास तथा उनकी प्रगति संबंधी ऐसे अन्य कार्य करेगा जोकि संसद द्वारा बनाए गए किसी क़ानून के मुताबिक़ राष्ट्रपति निर्दिष्ट करे। | ||
'''(6)''' [[राष्ट्रपति]] यह सुनिश्चित करे कि ऐसी सभी रिपोर्ट संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जांए। साथ ही, केंद्र से संबंधित सिफारिशों के सन्दर्भ में उठाए गए या प्रस्तावित कदमों के बारे में ज्ञापन भी हो जिसमें किसी सिफारिश को अगर स्वीकार नहीं किया गया हो तो उसका कारण भी निर्दिष्ट हो। | '''(6)''' [[राष्ट्रपति]] यह सुनिश्चित करे कि ऐसी सभी रिपोर्ट संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जांए। साथ ही, केंद्र से संबंधित सिफारिशों के सन्दर्भ में उठाए गए या प्रस्तावित कदमों के बारे में ज्ञापन भी हो जिसमें किसी सिफारिश को अगर स्वीकार नहीं किया गया हो तो उसका कारण भी निर्दिष्ट हो। | ||
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(ई) गवाहों तथा दस्तावेजों की जाँच-परख के लिए कमीशन जारी करना, | (ई) गवाहों तथा दस्तावेजों की जाँच-परख के लिए कमीशन जारी करना, | ||
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'''(9)''' केंद्र तथा सभी राज्य सरकारें अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी बड़े नीतिगत मामलों पर आयोग से विचार-विमर्श करेंगी। | '''(9)''' केंद्र तथा सभी राज्य सरकारें अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी बड़े नीतिगत मामलों पर आयोग से विचार-विमर्श करेंगी। | ||
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संविधान संशोधन- 89वाँ
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विवरण | 'भारतीय संविधान' का निर्माण 'संविधान सभा' द्वारा किया गया था। संविधान में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन भी होते रहे हैं। विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को ही 'संशोधन' कहा जाता है। |
संविधान लागू होने की तिथि | 26 जनवरी, 1950 |
89वाँ संशोधन | 2003 |
संबंधित लेख | संविधान सभा |
अन्य जानकारी | 'भारत का संविधान' ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली के नमूने पर आधारित है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है। ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है, जबकि भारत में संसद नहीं; बल्कि 'संविधान' सर्वोच्च है। |
संविधान (89वां संशोधन) अधिनियम, 2003
- भारत के संविधान में एक और संशोधन किया गया।
- यह संशोधन उस दिन से प्रभावी होगा जिस दिन से केंद्र सरकार इसे अधिसूचना द्वारा सरकारी गजट में शामिल करेगी।
- संविधान के अनुच्छेद 338
(ए) में उपांतिक (मार्जिनल) शीर्षक की जगह निम्नलिखित उपांतिक शीर्षक लिखा जाए: "अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग"
(बी) धारा (1) और (2) के स्थान पर निम्नलिखित धारायें शामिल की जाएँ:
- अनुसूचित जातियों के लिए एक आयोग होना चाहिए जिसे अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग के नाम से जाना जाए।
- संसद द्वारा इस बारे में बनाए गए क़ानून के प्रावधानों के मुताबिक़ आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा तीन अन्य सदस्य होंगे और नियुक्त किए गए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा तीन अन्य सदस्यों की सेवा की शर्तें तथा कार्यकाल राष्ट्रपति द्वारा तय नियमों से निर्धारित होंगे।"
(सी) धारा (5), (9) तथा (10) में जहाँ भी 'अनुसूचित जनजाति' शब्द प्रयुक्त हुआ हो, उसे हटा दिया जाए। अनुच्छेद 338 के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद जोड़ा जाए।
338ए-(1) अनुसूचित जनजातियों के लिए एक आयोग होना चाहिए जिसे अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग के नाम से जाना जाएगा।
(2) संसद द्वारा इस संदर्भ में पारित किसी क़ानून के प्रावधानों के मुताबिक़, आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा तीन अन्य सदस्य होंगे और नियुक्त किए गए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा तीन अन्य सदस्यों की सेवा शर्तें तथा कार्यकाल राष्ट्रपति द्वारा तय नियमों से निर्धारित होंगे।
(3) आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अपने हाथ से जारी सीलबंद वारंट द्वारा की जाएगी।
(4) आयोग को अपनी कार्यप्रक्रिया स्वयं निर्धारित करने का अधिकार होगा।
(5) आयोग का यह कर्त्तव्य होगा कि- (ए) संविधान या वर्तमान में लागू अन्य किसी क़ानून के अंतर्गत या सरकार द्वारा जारी किसी आदेश के तहत अनुसूचित जातियों को दी गई सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों की छानबीन एवं निगरानी तथा इन तय सुरक्षा मानदंडों का मूल्यांकन; (बी) अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों तथा सुरक्षा तथा सुरक्षा से वंचित करने के संदर्भ में किसी विशेष शिकायत की जांच; (सी) अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में शामिल होना एवं सलाह देना और केंद्र तथा किसी राज्य के अंतर्गत उनके विकास का मूल्यांकन; (डी) निर्धारित सुरक्षा मानकों की कारगर होने या न होने के बारे में आयोग अपनी रिपोर्ट वार्षिक तथा अन्य किसी ऐसे समय, जब उसे उचित लगे, राष्ट्रपति को सौंपेगा; (ई) ऐसी रिपोर्ट अथवा सिफारिशें करेगा, उपाय सुझाएगा जो केंद्र या किसी राज्य सरकार द्वारा इन सुरक्षा उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए उठाए/कार्यांवित किए जाएंगे ताकि अनुसूचित जन जातियों के हितों की रक्षा, उनका कल्याण और आर्थिक सामाजिक विकास हो सके। (एफ) अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण एवं विकास तथा उनकी प्रगति संबंधी ऐसे अन्य कार्य करेगा जोकि संसद द्वारा बनाए गए किसी क़ानून के मुताबिक़ राष्ट्रपति निर्दिष्ट करे।
(6) राष्ट्रपति यह सुनिश्चित करे कि ऐसी सभी रिपोर्ट संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जांए। साथ ही, केंद्र से संबंधित सिफारिशों के सन्दर्भ में उठाए गए या प्रस्तावित कदमों के बारे में ज्ञापन भी हो जिसमें किसी सिफारिश को अगर स्वीकार नहीं किया गया हो तो उसका कारण भी निर्दिष्ट हो।
(7) जहाँ ऐसी कोई रिपोर्ट, या उसका कोई हिस्सा, किसी ऐसे मामले से संबंधित हो जोकि किसी राज्य सरकार से संबद्ध हो, ऐसी रिपोर्ट की एक प्रति राज्य के राज्यपाल को भेजी जानी चाहिए जोकि यह सुनिश्चित करे कि वह रिपोर्ट राज्य विधानमंडल के समक्ष रखी जाए। साथ ही, राज्य से संबद्ध सिफारिश को अगर स्वीकार नहीं किया गया है, तो उसकी अस्वीकृति के कारणों के बारे में भी बताया जाए।
(8) आयोग धारा 5 की उपधारा (ए) में दिए गए किसी मामले की छानबीन कर रहा हो या उपधारा बी के तहत किसी शिकायत की जाँच कर रहा हो, ऐसे में वह सभी शक्तियाँ प्राप्त हैं जो किसी मुकदमें की सुनवाई के दौरान सिविल कोर्ट को प्राप्त होती हैं, विशेषतौर से निम्नलिखित मामलों के संदर्भ में, जो इस प्रकार हैं:
(ए) भारत के किसी भी हिस्से से किसी व्यक्ति की उपस्थिति के लिए उसे सम्मन जारी करना तथा उसकी उपस्थिति दर्ज करना और शपथ से उसकी जाँच करना;
(बी) किसी दस्तावेज की खोज तथा प्रस्तुति की आवश्यकता पड़ने पर;
(सी) शपथपत्र पर प्रमाण प्राप्त करने पर;
(डी) किसी अदालत या कार्यालय से कोई सार्वजनिक रिकार्ड या प्रति प्राप्त करने के लिए प्रार्थना;
(ई) गवाहों तथा दस्तावेजों की जाँच-परख के लिए कमीशन जारी करना,
(एफ) अन्य कोई मामला जो किसी नियम के मुताबिक़ राष्ट्रपति सामने रखे।
(9) केंद्र तथा सभी राज्य सरकारें अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी बड़े नीतिगत मामलों पर आयोग से विचार-विमर्श करेंगी।
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