"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-11": अवतरणों में अंतर
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-11
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विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | तीसरा |
कुल खण्ड | 19 (उन्नीस) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय तीसरे का यह ग्यारहवाँ खण्ड है।
- इस खण्ड में यह बताया गया है कि ब्रह्मज्ञान किसे देना चाहिए?
- इस खण्ड में ऋषि 'ब्रह्मज्ञान' को सुयोग्य शिष्य को ही प्रदान करने की बात कहते हैं।
- जो साधक 'ब्रह्मज्ञान' के निकट पहुंच चुका है अथवा उसमें आत्मसात हो चुका है, उसके लिए सूर्य या ब्रह्म न तो उदित होता है, न अस्त होता है। वह तो सदा दिन के प्रकाश की भांति जगमगाता रहता है और साधक उसी में मगन रहता है। किसी समय यह 'ब्रह्मा जी ने प्रजापति से कहा था।
- देव प्रजापति ने इसे मनु से कहा और मनु ने इसे प्रजा के लिए अभिव्यक्त किया।
- उद्दालक ऋषि को उनके पिता ने अपना ज्येष्ठ और सुयोग्य पुत्र होने के कारण यह ब्रह्मज्ञान दिया था। अत: इस ब्रह्मज्ञान का उपदेश अपने सुयोग्य ज्येष्ठ पुत्र अथवा शिष्य को ही देना चाहिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 |
खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 |
खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 |