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'''बटुक''' [[दधीचि]] के पुत्र थे। इनका मूल नाम 'शिवदर्शन' था। बटुक नाम इन्हें भगवान [[शिव]] द्वारा प्रदान किया गया था। शिव ने वर दिया कि बटुक जिस ओर होगा, युद्ध में उसी ओर की विजय होगी तथा ब्रह्मभोज का समापन भी उसी से होगा।
'''बटुक''' [[दधीचि]] के पुत्र 'शिवदर्शन' का ही एक अन्य नाम है। शिवदर्शन को 'बटुक' नाम स्वयं भगवान [[शिव]] द्वारा प्रदान किया गया था। शिव ने उसे यह वर भी दिया, कि बटुक जिस ओर होगा, युद्ध में उसी ओर की विजय होगी तथा ब्रह्मभोज का समापन भी उसी से होगा।


*महर्षि दधीचि भगवान शिव के परम [[भक्त]] थे।
*महर्षि दधीचि भगवान शिव के परम [[भक्त]] थे।
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*दधीचि ने जाना तो उसकी पत्नी को घर से निकाल दिया तथा शिव-आराधना आरम्भ कर दी।
*दधीचि ने जाना तो उसकी पत्नी को घर से निकाल दिया तथा शिव-आराधना आरम्भ कर दी।
*शिवदर्शन ने भी एक बार फिर से [[शिव]] तथा [[पार्वती]] की तपस्या प्रारम्भ कर दी।
*शिवदर्शन ने भी एक बार फिर से [[शिव]] तथा [[पार्वती]] की तपस्या प्रारम्भ कर दी।
*अत: प्रसन्न होकर शिव ने गांठ बांधकर उसे जनेऊ पहनाया, [[घी]] से स्नान करवाया तथा उसका नाम 'बटुक' रखा।
*अत: प्रसन्न होकर शिव ने गांठ बांधकर उसे [[जनेऊ]] पहनाया, [[घी]] से स्नान करवाया तथा उसका नाम 'बटुक' रखा।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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09:28, 2 जून 2013 के समय का अवतरण

बटुक दधीचि के पुत्र 'शिवदर्शन' का ही एक अन्य नाम है। शिवदर्शन को 'बटुक' नाम स्वयं भगवान शिव द्वारा प्रदान किया गया था। शिव ने उसे यह वर भी दिया, कि बटुक जिस ओर होगा, युद्ध में उसी ओर की विजय होगी तथा ब्रह्मभोज का समापन भी उसी से होगा।

  • महर्षि दधीचि भगवान शिव के परम भक्त थे।
  • उनके आदेश से उनका पुत्र शिवदर्शन प्रतिदिन शिव-आराधना करता था।
  • एक बार दधीचि कहीं बाहर गए, तो पीछे शिवदर्शन अपने भोग-विलास में ही लिप्त रहा।
  • वह शिवपूजन करना भूल गया, और शिवरात्रि पर भी बिना स्नान किए ही भगवान का पूजन किया।
  • शिव ने रुष्ट होकर शाप दिया कि वह जड़ हो जाए, केवल आँखों से ही देख पाए।
  • दधीचि ने जाना तो उसकी पत्नी को घर से निकाल दिया तथा शिव-आराधना आरम्भ कर दी।
  • शिवदर्शन ने भी एक बार फिर से शिव तथा पार्वती की तपस्या प्रारम्भ कर दी।
  • अत: प्रसन्न होकर शिव ने गांठ बांधकर उसे जनेऊ पहनाया, घी से स्नान करवाया तथा उसका नाम 'बटुक' रखा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 197 |


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