"सुन्दरी सवैया": अवतरणों में अंतर
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*"बरु मारिये मोहिं बिना पग धोये हौ नाथ न नाव चढ़ाइहौ जू।"<ref> कवितावली, 2 : 6</ref> | *"बरु मारिये मोहिं बिना पग धोये हौ नाथ न नाव चढ़ाइहौ जू।"<ref> कवितावली, 2 : 6</ref> | ||
*"सब भूतल भूधर हाले अचानक आह भरत्थ के दुन्दुभि बाजे।"<ref> रामचन्द्रिका, 10 : 14</ref> | *"सब भूतल भूधर हाले अचानक आह भरत्थ के दुन्दुभि बाजे।"<ref> रामचन्द्रिका, 10 : 14</ref> | ||
*"पलकैं अरुनै, झलकै अरु नैन छुटी अलकै, छलकै लर मोती।"<ref> [[देव]] : शब्द रसायन, 10</ref> | *"पलकैं अरुनै, झलकै अरु नैन छुटी अलकै, छलकै लर मोती।"<ref> [[देव (कवि)|देव]] : शब्द रसायन, 10</ref> | ||
*"बिनु पण्डित ग्रन्थ प्रकाश नहीं, बिन ग्रन्थ न पावत पण्डित भा है।" <ref>[[भिखारीदास|भिखारीदास]] ग्र., पृष्ठ 246)</ref> | *"बिनु पण्डित ग्रन्थ प्रकाश नहीं, बिन ग्रन्थ न पावत पण्डित भा है।" <ref>[[भिखारीदास|भिखारीदास]] ग्र., पृष्ठ 246)</ref> | ||
*"मनु के यह पुत्र निराश न हों, नव धर्म-प्रदीप अवश्य जलेगा।"<ref>[[दिनकर]] : कुरुक्षेत्र</ref> | *"मनु के यह पुत्र निराश न हों, नव धर्म-प्रदीप अवश्य जलेगा।"<ref>[[दिनकर]] : कुरुक्षेत्र</ref> | ||
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14:07, 1 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
सुन्दरी सवैया छन्द 25 वर्णों का है। इसमें आठ सगणों और गुरु का योग होता है। इसका दूसरा नाम माधवी है। केशव ने इसे 'सुन्दरी' और दास ने 'माधवी' नाम दिया है। केशव[1], तुलसी [2], अनूप[3], दिनकर[4] ने इस छन्द का प्रयोग किया है।
- "बरु मारिये मोहिं बिना पग धोये हौ नाथ न नाव चढ़ाइहौ जू।"[5]
- "सब भूतल भूधर हाले अचानक आह भरत्थ के दुन्दुभि बाजे।"[6]
- "पलकैं अरुनै, झलकै अरु नैन छुटी अलकै, छलकै लर मोती।"[7]
- "बिनु पण्डित ग्रन्थ प्रकाश नहीं, बिन ग्रन्थ न पावत पण्डित भा है।" [8]
- "मनु के यह पुत्र निराश न हों, नव धर्म-प्रदीप अवश्य जलेगा।"[9]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 741-742।
बाहरी कड़ियाँ
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