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'''पंचशिख''' एक [[गन्धर्व]] पुत्र था। वह 'पंचशिखा' नामक एक गन्धर्व [[वीणा]] के वादन द्वारा शास्ता की गन्धर्व [[पूजा]] ([[संगीत]] अभिनन्दन) के लिए गन्धर्व लोक से [[पृथ्वी ग्रह|पृथ्वी]] पर उतरा था। तब भगवान [[महात्मा बुद्ध]] त्रयस्त्रिंश भवन ([[इन्द्र]] के लोक) में पांडु-कंबल शिला पर माता (महामाया) को अभिधर्मपिटक का त्रिमास (तीन माह) अवधि का उपदेश देकर पुन: भूलोक में आये थे।<ref>[[बुद्धचरित]], पृष्ठ 8</ref> | '''पंचशिख''' एक [[गन्धर्व]] पुत्र था। वह 'पंचशिखा' नामक एक गन्धर्व [[वीणा]] के वादन द्वारा शास्ता की गन्धर्व [[पूजा]] ([[संगीत]] अभिनन्दन) के लिए गन्धर्व लोक से [[पृथ्वी ग्रह|पृथ्वी]] पर उतरा था। तब भगवान [[महात्मा बुद्ध]] त्रयस्त्रिंश भवन ([[इन्द्र]] के लोक) में पांडु-कंबल शिला पर माता (महामाया) को अभिधर्मपिटक का त्रिमास (तीन माह) अवधि का उपदेश देकर पुन: भूलोक में आये थे।<ref>[[बुद्धचरित]], पृष्ठ 8</ref> | ||
10:50, 23 जनवरी 2012 के समय का अवतरण
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पंचशिख | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पंचशिख (बहुविकल्पी) |
पंचशिख एक गन्धर्व पुत्र था। वह 'पंचशिखा' नामक एक गन्धर्व वीणा के वादन द्वारा शास्ता की गन्धर्व पूजा (संगीत अभिनन्दन) के लिए गन्धर्व लोक से पृथ्वी पर उतरा था। तब भगवान महात्मा बुद्ध त्रयस्त्रिंश भवन (इन्द्र के लोक) में पांडु-कंबल शिला पर माता (महामाया) को अभिधर्मपिटक का त्रिमास (तीन माह) अवधि का उपदेश देकर पुन: भूलोक में आये थे।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 61 |