"सितारा देवी": अवतरणों में अंतर
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'''सितारा देवी''' (जन्म- [[1920]], [[कोलकाता]]) | {{सूचना बक्सा कलाकार | ||
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'''सितारा देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sitara Devi'' ; जन्म- [[8 नवम्बर]], [[1920]], [[कोलकाता]]; मृत्यु- [[25 नवम्बर]], [[2014]], [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]) [[भारत]] की प्रसिद्ध नृत्यांगना थीं। उनका नाम [[कथक]] नृत्यांगना के रूप में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे जिस मुकाम पर थीं, वहाँ तक पहुँचने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया था। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि मात्र सोलह साल की उम्र में उनका [[नृत्य]] देखकर गुरुदेव [[रवींद्रनाथ टैगोर]] ने उन्हें "कथक क्वीन" के खिताब से सम्मानित किया था। आज भी लोग इसी खिताब से उनका परिचय कराते हैं। इसके अतिरिक्त सितारा देवी के खाते में '[[पद्मश्री]]' और 'कालिदास सम्मान' भी हैं, जो कथक के प्रति उनकी सच्ची लगन और मेहनत को दर्शाते हैं। | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
सितारा देवी का जन्म | सितारा देवी का जन्म [[8 नवम्बर]], [[1920]] में [[दीपावली]] की पूर्वसंध्या पर 'कलकत्ता' (आधुनिक [[कोलकाता]]) में एक [[वैष्णव]] [[ब्राह्मण]] परिवार में हुआ था। इनका मूल नाम 'धनलक्ष्मी' था, जबकि घर में प्यार से इन्हें 'धन्नो' कहकर पुकारा जाता था। कथक इन्हें अपने पिता आचार्य सुखदेव से विरासत में मिला था। सितारा देवी को बाल्यकाल में ही [[माता]]-[[पिता]] के प्यार से वंचित होना पड़ा। मुँह टेढ़ा होने के कारण भयभीत अभिभावकों ने इन्हें एक दाई को सौंप दिया था, जिसने आठ साल की उम्र तक इनका पालन-पोषण किया। इसके बाद ही सितारा देवी अपने घर आ सकीं। सितारा देवी के एक भाई और दो बहनें अलकनन्दा और तारा हैं। | ||
====विवाह==== | ====विवाह==== | ||
उस समय की परम्परा के अनुसार सितारा देवी का [[विवाह]] आठ वर्ष की आयु में ही कर दिया गया था। उनके ससुराल वाले चाहते थे कि वह घरबार संभाल लें, किंतु वह स्कूल जाकर शिक्षा ग्रहण करना चाहती थीं। स्कूल जाने के लिए जिद पकड़ लेने पर उनका विवाह टूट गया और उन्हें 'कामछगढ़ हाई स्कूल' में प्रवेश दिला दिया गया। यहाँ सितारा देवी ने एक अवसर पर [[नृत्य]] का उत्कृष्ट प्रदर्शन करके सत्यवान और [[सावित्री]] की पौराणिक कहानी पर आधारित एक नृत्य नाटिका में भूमिका प्राप्त करने के साथ ही अपने साथी कलाकारों को भी नृत्य सिखाने की ज़िम्मेदारी प्राप्त की। कुछ समय बाद सितारा देवी का परिवार [[मुम्बई]] चला आया। फ़िल्मों में [[कथक]] को लाने में इनका प्रमुख योगदान रहा था। बाद के दिनों में प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक के आसिफ़ और फिर प्रदीप बरोट से इन्होंने विवाह किया। | उस समय की परम्परा के अनुसार सितारा देवी का [[विवाह]] आठ वर्ष की आयु में ही कर दिया गया था। उनके ससुराल वाले चाहते थे कि वह घरबार संभाल लें, किंतु वह स्कूल जाकर शिक्षा ग्रहण करना चाहती थीं। स्कूल जाने के लिए जिद पकड़ लेने पर उनका विवाह टूट गया और उन्हें 'कामछगढ़ हाई स्कूल' में प्रवेश दिला दिया गया। यहाँ सितारा देवी ने एक अवसर पर [[नृत्य]] का उत्कृष्ट प्रदर्शन करके सत्यवान और [[सावित्री]] की पौराणिक कहानी पर आधारित एक नृत्य नाटिका में भूमिका प्राप्त करने के साथ ही अपने साथी कलाकारों को भी नृत्य सिखाने की ज़िम्मेदारी प्राप्त की। कुछ समय बाद सितारा देवी का परिवार [[मुम्बई]] चला आया। फ़िल्मों में [[कथक]] को लाने में इनका प्रमुख योगदान रहा था। बाद के दिनों में प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक के आसिफ़ और फिर प्रदीप बरोट से इन्होंने विवाह किया।[[चित्र:Shyama's-Birthday-Party-in-2008.jpg|thumb|left|[[श्यामा|अभिनेत्री श्यामा]] के जन्मदिन पर<br /> | ||
ऊपर से बाईं ओर- जबीन जलील, सुनीता प्रसाद, [[अज़रा]], निशि, शशिकला, [[निम्मी]], यासमिन<br /> | |||
नीचे से बाईं ओर- बेगम पारा, [[श्यामा]], [[सितारा देवी]]]] | |||
==पिता का सहयोग== | ==पिता का सहयोग== | ||
75 साल पहले कोई भी यह नहीं सोचता था कि एक शरीफ़ घराने की लड़की नाच-गाना सीखे। धार्मिक और परंपरावादी ब्राह्मण परिवार में सितारा देवी के पिता और दादा-परदादा सभी संगीतकार हुआ करते थे, लेकिन परिवार में लड़कियों को [[नृत्य]] और [[संगीत]] की शिक्षा देने की परंपरा नहीं थी। सितारा देवी के पिता आचार्य सुखदेव ने यह क्रांतिकारी कदम उठाया और पहली बार परिवार की परंपरा को तोड़ा। सुखदेव जी नृत्य कला के साथ-साथ गायन से भी ज़ुडे हुए थे। वे नृत्य नाटिकाएँ लिखा करते थे। उन्हें हमेशा एक ही परेशानी होती थी कि नृत्य किससे करवाएँ, क्योंकि इस तरह के नृत्य उस समय पुरुष ही करते थे। इसलिए अपनी नृत्य नाटिकाओं में वास्तविकता लाने के लिए उन्होंने घर की बेटियों को नृत्य सिखाना शुरू किया। उनके इस फैसले पर पूरे परिवार ने कड़ा विरोध प्रदर्शित किया था, किंतु वे अपने निर्णय पर अडिग रहे। इस तरह सितारा देवी और उनकी बहनें अलकनंदा, तारा और उनका भाई भी नृत्य सीखने लगे। | 75 साल पहले कोई भी यह नहीं सोचता था कि एक शरीफ़ घराने की लड़की नाच-गाना सीखे। धार्मिक और परंपरावादी [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] में सितारा देवी के पिता और दादा-परदादा सभी संगीतकार हुआ करते थे, लेकिन परिवार में लड़कियों को [[नृत्य]] और [[संगीत]] की शिक्षा देने की परंपरा नहीं थी। सितारा देवी के पिता आचार्य सुखदेव ने यह क्रांतिकारी कदम उठाया और पहली बार परिवार की परंपरा को तोड़ा। सुखदेव जी नृत्य कला के साथ-साथ गायन से भी ज़ुडे हुए थे। वे नृत्य नाटिकाएँ लिखा करते थे। उन्हें हमेशा एक ही परेशानी होती थी कि नृत्य किससे करवाएँ, क्योंकि इस तरह के नृत्य उस समय पुरुष ही करते थे। इसलिए अपनी नृत्य नाटिकाओं में वास्तविकता लाने के लिए उन्होंने घर की बेटियों को नृत्य सिखाना शुरू किया। उनके इस फैसले पर पूरे परिवार ने कड़ा विरोध प्रदर्शित किया था, किंतु वे अपने निर्णय पर अडिग रहे। इस तरह सितारा देवी और उनकी बहनें अलकनंदा, तारा और उनका भाई भी नृत्य सीखने लगे। | ||
====मुंबई आगमन==== | ====मुंबई आगमन==== | ||
किसी रूढ़ी को तोड़कर [[कला]] की साधना में लीन होने का पुरस्कार उन्हें बिरादरी के बहिष्कार के रूप में मिला। समाज से बहिष्कृत होने के बाद भी सितारा देवी के [[पिता]] बिना विचलित हुए अपने काम में लगे रहे। बहुत छोटी उम्र में ही उन्हें फ़िल्म में काम करने का मौका मिल गया। फ़िल्म निर्माता निरंजन शर्मा को अपनी फ़िल्म के लिए एक कम उम्र की नृत्यांगना लड़की चाहिए थी। किसी परिचित की सलाह पर वे [[बनारस]] आए और सितारा देवी का [[नृत्य]] देखकर उन्हें फ़िल्म में भूमिका दे दी। सितारा देवी के पिता इस प्रस्ताव पर राजी नहीं थे, क्योंकि तब वे छोटी थीं और सीख ही रही थीं। परंतु निरंजन शर्मा ने आग्रह किया और इस तरह वे अपनी [[माँ]] और बुआ के साथ [[मुम्बई]] आ गईं। कुछ फ़िल्मों में काम करने के अलावा उन्होंने फ़िल्मों में कोरियोग्राफ़ी का काम भी किया। | किसी रूढ़ी को तोड़कर [[कला]] की साधना में लीन होने का पुरस्कार उन्हें बिरादरी के बहिष्कार के रूप में मिला। समाज से बहिष्कृत होने के बाद भी सितारा देवी के [[पिता]] बिना विचलित हुए अपने काम में लगे रहे। बहुत छोटी उम्र में ही उन्हें फ़िल्म में काम करने का मौका मिल गया। फ़िल्म निर्माता निरंजन शर्मा को अपनी फ़िल्म के लिए एक कम उम्र की नृत्यांगना लड़की चाहिए थी। किसी परिचित की सलाह पर वे [[बनारस]] आए और सितारा देवी का [[नृत्य]] देखकर उन्हें फ़िल्म में भूमिका दे दी। सितारा देवी के पिता इस प्रस्ताव पर राजी नहीं थे, क्योंकि तब वे छोटी थीं और सीख ही रही थीं। परंतु निरंजन शर्मा ने आग्रह किया और इस तरह वे अपनी [[माँ]] और बुआ के साथ [[मुम्बई]] आ गईं। कुछ फ़िल्मों में काम करने के अलावा उन्होंने फ़िल्मों में कोरियोग्राफ़ी का काम भी किया। | ||
==प्रसिद्धि== | ==प्रसिद्धि== | ||
सितारा देवी ने अपने सुदीर्घ नृत्य कार्यकाल के दौरान देश-विदेश में कई कार्यक्रमों और महोत्सवों में चकित कर देने वाले लयात्मक और [[ऊर्जा]] से भरपूर नृत्य प्रदर्शनों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। वह [[लंदन]] में प्रतिष्ठित 'रॉयल अल्बर्ट' और 'विक्टोरिया हॉल' तथा न्यूयार्क के 'कार्नेगी हॉल' में अपने नृत्य का जादू बिखेर चुकी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि सितारा देवी न सिर्फ़ [[कथक]], बल्कि [[भरतनाट्यम]] सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोक नृत्यों में पारंगत हैं। उन्होंने रूसी बैले और पश्चिम के कुछ और नृत्य भी सीखें हैं। सितारा देवी के कथक में [[बनारस]] और [[लखनऊ]] के घरानों के तत्वों का सम्मिश्रण दिखाई देता है। वह उस समय की कलाकार हैं, जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी। | सितारा देवी ने अपने सुदीर्घ नृत्य कार्यकाल के दौरान देश-विदेश में कई कार्यक्रमों और महोत्सवों में चकित कर देने वाले लयात्मक और [[ऊर्जा]] से भरपूर नृत्य प्रदर्शनों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। वह [[लंदन]] में प्रतिष्ठित 'रॉयल अल्बर्ट' और 'विक्टोरिया हॉल' तथा न्यूयार्क के 'कार्नेगी हॉल' में अपने नृत्य का जादू बिखेर चुकी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि सितारा देवी न सिर्फ़ [[कथक]], बल्कि [[भरतनाट्यम]] सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोक नृत्यों में पारंगत हैं। उन्होंने रूसी बैले और पश्चिम के कुछ और नृत्य भी सीखें हैं। सितारा देवी के कथक में [[बनारस घराना|बनारस]] और [[लखनऊ]] के घरानों के तत्वों का सम्मिश्रण दिखाई देता है। वह उस समय की कलाकार हैं, जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी। | ||
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[[भारतीय सिनेमा]] की प्रसिद्ध अभिनेत्रियों [[मधुबाला]], रेखा, [[माला सिन्हा]] और काजोल जैसी बॉलीवुड की अभिनेत्रियों ने सितारा देवी से ही [[कथक नृत्य]] की शिक्षा ली। सितारा देवी ने कई फ़िल्मों में भी काम किया था। उनकी फ़िल्मों में 'शहर का जादू' ([[1934]]), 'जजमेंट ऑफ़ अल्लाह' ([[1935]]), 'नगीना', 'बागबान', 'वतन' ([[1938]]), 'मेरी आँखेंं' ([[1939]]) 'होली', 'पागल', 'स्वामी' ([[1941]]), 'रोटी' ([[1942]]), 'चांद' ([[1944]]), 'लेख' ([[1949]]), 'हलचल' ([[1950]]) और 'मदर इंडिया' ([[1957]]) प्रमुख हैं।<ref>{{cite web |url=http://bollywood.punjabkesari.in/news/article-309741#.VHQShmcdDcs |title= मशहूर कथक डांसर सितारा देवी का निधन|accessmonthday=25 नवम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= पंजाब केसरी|language= हिन्दी}}</ref> | |||
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05:28, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
सितारा देवी
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पूरा नाम | सितारा देवी |
अन्य नाम | धनलक्ष्मी |
जन्म | 8 नवम्बर, 1920 |
जन्म भूमि | कोलकाता |
मृत्यु | 25 नवम्बर, 2014 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | सुखदेव |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | कथक नृत्यांगना |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्मश्री' (1970), 'संगीत नाटक अकादमी सम्मान' (1987), 'शिखर सम्मान' (1991), 'पद्मभूषण' (2006) |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | मात्र सोलह वर्ष की उम्र में इनका नृत्य देखकर रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें 'कत्थक क्वीन' के खिताब से सम्मानित किया था। |
सितारा देवी (अंग्रेज़ी: Sitara Devi ; जन्म- 8 नवम्बर, 1920, कोलकाता; मृत्यु- 25 नवम्बर, 2014, मुम्बई, महाराष्ट्र) भारत की प्रसिद्ध नृत्यांगना थीं। उनका नाम कथक नृत्यांगना के रूप में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे जिस मुकाम पर थीं, वहाँ तक पहुँचने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया था। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि मात्र सोलह साल की उम्र में उनका नृत्य देखकर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें "कथक क्वीन" के खिताब से सम्मानित किया था। आज भी लोग इसी खिताब से उनका परिचय कराते हैं। इसके अतिरिक्त सितारा देवी के खाते में 'पद्मश्री' और 'कालिदास सम्मान' भी हैं, जो कथक के प्रति उनकी सच्ची लगन और मेहनत को दर्शाते हैं।
जीवन परिचय
सितारा देवी का जन्म 8 नवम्बर, 1920 में दीपावली की पूर्वसंध्या पर 'कलकत्ता' (आधुनिक कोलकाता) में एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका मूल नाम 'धनलक्ष्मी' था, जबकि घर में प्यार से इन्हें 'धन्नो' कहकर पुकारा जाता था। कथक इन्हें अपने पिता आचार्य सुखदेव से विरासत में मिला था। सितारा देवी को बाल्यकाल में ही माता-पिता के प्यार से वंचित होना पड़ा। मुँह टेढ़ा होने के कारण भयभीत अभिभावकों ने इन्हें एक दाई को सौंप दिया था, जिसने आठ साल की उम्र तक इनका पालन-पोषण किया। इसके बाद ही सितारा देवी अपने घर आ सकीं। सितारा देवी के एक भाई और दो बहनें अलकनन्दा और तारा हैं।
विवाह
उस समय की परम्परा के अनुसार सितारा देवी का विवाह आठ वर्ष की आयु में ही कर दिया गया था। उनके ससुराल वाले चाहते थे कि वह घरबार संभाल लें, किंतु वह स्कूल जाकर शिक्षा ग्रहण करना चाहती थीं। स्कूल जाने के लिए जिद पकड़ लेने पर उनका विवाह टूट गया और उन्हें 'कामछगढ़ हाई स्कूल' में प्रवेश दिला दिया गया। यहाँ सितारा देवी ने एक अवसर पर नृत्य का उत्कृष्ट प्रदर्शन करके सत्यवान और सावित्री की पौराणिक कहानी पर आधारित एक नृत्य नाटिका में भूमिका प्राप्त करने के साथ ही अपने साथी कलाकारों को भी नृत्य सिखाने की ज़िम्मेदारी प्राप्त की। कुछ समय बाद सितारा देवी का परिवार मुम्बई चला आया। फ़िल्मों में कथक को लाने में इनका प्रमुख योगदान रहा था। बाद के दिनों में प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक के आसिफ़ और फिर प्रदीप बरोट से इन्होंने विवाह किया।
पिता का सहयोग
75 साल पहले कोई भी यह नहीं सोचता था कि एक शरीफ़ घराने की लड़की नाच-गाना सीखे। धार्मिक और परंपरावादी ब्राह्मण परिवार में सितारा देवी के पिता और दादा-परदादा सभी संगीतकार हुआ करते थे, लेकिन परिवार में लड़कियों को नृत्य और संगीत की शिक्षा देने की परंपरा नहीं थी। सितारा देवी के पिता आचार्य सुखदेव ने यह क्रांतिकारी कदम उठाया और पहली बार परिवार की परंपरा को तोड़ा। सुखदेव जी नृत्य कला के साथ-साथ गायन से भी ज़ुडे हुए थे। वे नृत्य नाटिकाएँ लिखा करते थे। उन्हें हमेशा एक ही परेशानी होती थी कि नृत्य किससे करवाएँ, क्योंकि इस तरह के नृत्य उस समय पुरुष ही करते थे। इसलिए अपनी नृत्य नाटिकाओं में वास्तविकता लाने के लिए उन्होंने घर की बेटियों को नृत्य सिखाना शुरू किया। उनके इस फैसले पर पूरे परिवार ने कड़ा विरोध प्रदर्शित किया था, किंतु वे अपने निर्णय पर अडिग रहे। इस तरह सितारा देवी और उनकी बहनें अलकनंदा, तारा और उनका भाई भी नृत्य सीखने लगे।
मुंबई आगमन
किसी रूढ़ी को तोड़कर कला की साधना में लीन होने का पुरस्कार उन्हें बिरादरी के बहिष्कार के रूप में मिला। समाज से बहिष्कृत होने के बाद भी सितारा देवी के पिता बिना विचलित हुए अपने काम में लगे रहे। बहुत छोटी उम्र में ही उन्हें फ़िल्म में काम करने का मौका मिल गया। फ़िल्म निर्माता निरंजन शर्मा को अपनी फ़िल्म के लिए एक कम उम्र की नृत्यांगना लड़की चाहिए थी। किसी परिचित की सलाह पर वे बनारस आए और सितारा देवी का नृत्य देखकर उन्हें फ़िल्म में भूमिका दे दी। सितारा देवी के पिता इस प्रस्ताव पर राजी नहीं थे, क्योंकि तब वे छोटी थीं और सीख ही रही थीं। परंतु निरंजन शर्मा ने आग्रह किया और इस तरह वे अपनी माँ और बुआ के साथ मुम्बई आ गईं। कुछ फ़िल्मों में काम करने के अलावा उन्होंने फ़िल्मों में कोरियोग्राफ़ी का काम भी किया।
प्रसिद्धि
सितारा देवी ने अपने सुदीर्घ नृत्य कार्यकाल के दौरान देश-विदेश में कई कार्यक्रमों और महोत्सवों में चकित कर देने वाले लयात्मक और ऊर्जा से भरपूर नृत्य प्रदर्शनों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। वह लंदन में प्रतिष्ठित 'रॉयल अल्बर्ट' और 'विक्टोरिया हॉल' तथा न्यूयार्क के 'कार्नेगी हॉल' में अपने नृत्य का जादू बिखेर चुकी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि सितारा देवी न सिर्फ़ कथक, बल्कि भरतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोक नृत्यों में पारंगत हैं। उन्होंने रूसी बैले और पश्चिम के कुछ और नृत्य भी सीखें हैं। सितारा देवी के कथक में बनारस और लखनऊ के घरानों के तत्वों का सम्मिश्रण दिखाई देता है। वह उस समय की कलाकार हैं, जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी।
पुरस्कार व सम्मान
अपनी कला और नृत्य के प्रति उनके विशेष योगदान ने उन्हें कई पुरस्कार व सम्मान दिलाये हैं-
- 'पद्मश्री' - 1970
- 'संगीत नाटक अकादमी सम्मान' - 1987
- 'शिखर सम्मान' - 1991
- 'राष्ट्रीय कालिदास सम्मान' - 1994
अभिनय
भारतीय सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्रियों मधुबाला, रेखा, माला सिन्हा और काजोल जैसी बॉलीवुड की अभिनेत्रियों ने सितारा देवी से ही कथक नृत्य की शिक्षा ली। सितारा देवी ने कई फ़िल्मों में भी काम किया था। उनकी फ़िल्मों में 'शहर का जादू' (1934), 'जजमेंट ऑफ़ अल्लाह' (1935), 'नगीना', 'बागबान', 'वतन' (1938), 'मेरी आँखेंं' (1939) 'होली', 'पागल', 'स्वामी' (1941), 'रोटी' (1942), 'चांद' (1944), 'लेख' (1949), 'हलचल' (1950) और 'मदर इंडिया' (1957) प्रमुख हैं।[1]
निधन
सितारा देवी का निधन 25 नवम्बर, 2014 में मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ। उन्हें पेट दर्द की शिकायत के बाद मुम्बई के जसलोक अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मशहूर कथक डांसर सितारा देवी का निधन (हिन्दी) पंजाब केसरी। अभिगमन तिथि: 25 नवम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख