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*कार्तिकेय जी [[शिव]] [[पार्वती देवी|पार्वती]] के पुत्र हैं तथा सदैव बालक रूप ही रहते हैं। परंतु उनके इस बालक स्वरूप का भी एक रहस्य है।  
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*एक बार [[शंकर]] भगवान ने पार्वती के साथ जुआ खेलने की अभिलाषा प्रकट की। खेल में भगवान शंकर अपना सब कुछ हार गए। हारने के बाद भोलेनाथ अपनी लीला को रचते हुए पत्तो के वस्त्र पहनकर [[गंगा नदी|गंगा]] के तट पर चले गए। कार्तिकेय जी को जब सारी बात पता चली, तो वह माता पार्वती से समस्त वस्तुएं वापस लेने आए। इस बार खेल में पार्वती जी हार गईं तथा कार्तिकेय शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। अब इधर पार्वती भी चिंतित हो गईं कि सारा सामान भी गया तथा पति भी दूर हो गए। पार्वती जी ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र गणेश को बताई तो मातृ भक्त गणोश जी स्वयं खेल खेलने शंकर भगवान के पास पहुंचे। गणेश जी जीत गए तथा लौटकर अपनी जीत का समाचार माता को सुनाया। इस पर पार्वती बोलीं कि उन्हें अपने पिता को साथ लेकर आना चाहिए था। [[गणेश]] जी फिर भोलेनाथ की खोज करने निकल पड़े। भोलेनाथ से उनकी भेंट [[हरिद्वार]] में हुई। उस समय भोले नाथ भगवान [[विष्णु]] व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। पार्वती से नाराज भोलेनाथ ने लौटने से मना कर दिया। भोलेनाथ के भक्त [[रावण]] ने गणेश जी के वाहन मूषक को बिल्ली का रूप धारण करके डरा दिया। मूषक गणेश जी को छोड़कर भाग गए। इधर भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया था। गणेश जी ने माता के उदास होने की बात भोलेनाथ को कह सुनाई। इस पर भोलेनाथ बोले कि हमने नया पासा बनवाया है, अगर तुम्हारी माता पुन: खेल खेलने को सहमत हों, तो मैं वापस चल सकता हूं।
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==पार्वती का श्राप==
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गणेश जी के आश्वासन पर भोलेनाथ वापस पार्वती के पास पहुंचे तथा खेल खेलने को कहा। इस पर पार्वती हंस पड़ी व बोलीं ‘अभी पास क्या चीज है, जिससे खेल खेला जाए।’ यह सुनकर भोलेनाथ चुप हो गए। इस पर [[नारद]] जी ने अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हें दी। इस खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फैंकने के बाद गणेश जी समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया। सारी बात सुनकर पार्वती जी को क्रोध आ गया। रावण ने माता को समझाने का प्रयास किया, पर उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तथा क्रोधवश उन्होंने भोलेनाथ को श्राप दे दिया कि [[गंगा नदी|गंगा]] की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा। नारद जी को कभी एक स्थान पर न टिकने का अभिषाप मिला। भगवान विष्णु को श्राप दिया कि यही रावण तुम्हारा शत्रु होगा तथा रावण को श्राप दिया कि विष्णु ही तुम्हारा विनाश करेंगे। कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने कभी जवान न होने का श्राप दे दिया।
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|अन्य जानकारी=कार्तिकेय देवों के सेनापति हैं, शक्ति के अधिदेव हैं, प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन सभी कुछ इनकी कृपा से सम्पन्न होते हैं। कृत्तिकाओं ने इन्हें अपना पुत्र बनाया था, इस कारण इन्हें 'कार्तिकेय' कहा गया।
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'''कार्तिकेय''' भगवान [[शिव]] और [[पार्वती देवी|माता पार्वती]] के पुत्र हैं। माता द्वारा दिये गए एक शाप के कारण ही ये सदैव बालक रूप में रहते हैं। परंतु उनके इस बालक स्वरूप का भी एक रहस्य है। इनका एक नाम 'स्कन्द' भी है और इन्हें [[दक्षिण भारत]] में '[[मुरुगन]]' भी कहा जाता है। भगवान कार्तिकेय  के अधिकतर [[भक्त]] तमिल [[हिन्दू]] हैं। इनकी [[पूजा]] मुख्यत: [[भारत]] के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर [[तमिलनाडु]] में होती है। इसके अतिरिक्त विश्व में [[श्रीलंका]], [[मलेशिया]], सिंगापुर आदि में भी इन्हें पूजा जाता है। भगवान स्कंद के सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडू में स्थित हैं, इन्हें '''तमिलों के देवता''' कह कर भी संबोधित किया जाता है।
==जन्म कथा==
कार्तिकेय की जन्म कथा के विषय में [[पुराण|पुराणों]] से ज्ञात होता है कि पिता [[दक्ष]] के यहाँ आयोजित एक [[यज्ञ]] में भगवान [[शिव]] के अपमान से दु:खी होकर [[सती]] यज्ञ की [[अग्नि]] में ही आत्मदाह कर लेती हैं। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्ति हीन हो जाती है। तब दैत्यों का अत्याचार ओर आतंक फैल जाता है और देवताओं को पराजय का समाना करना पड़ता है, जिस कारण सभी [[देवता]] भगवान [[ब्रह्मा]] के पास पहुंचते हैं और अपनी रक्षार्थ उनसे प्रार्थना करते हैं। ब्रह्मा उनके दु:ख को जानकर उनसे कहते हैं कि [[तारक]] का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है। परंतु सती के अंत के पश्चात् भगवान शिव गहन साधना में लीन हुए रहते हैं। [[इंद्र]] और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं। तब भगवान शंकर [[पार्वती]] के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का [[विवाह]] हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है। कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार [[षष्ठी]] तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन स्कन्द भगवान की [[पूजा]] का विशेष महत्व है।
====स्वरूप====
कार्तिकेय स्वामी सेनाधिप हैं, शक्ति के अधिदेव हैं, प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन सभी कुछ इनकी कृपा से सम्पन्न  होते हैं। कृत्तिकाओं ने इन्हें अपना पुत्र बनाया था, इस कारण इन्हें 'कार्तिकेय' कहा गया, देवताओं ने इन्हें अपना सेनापतित्व प्रदान किया। [[मयूर]] पर आसीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना [[दक्षिण भारत]] मे सबसे ज्यादा होती है, यहाँ पर यह '[[मुरुगन]]' नाम से विख्यात हैं। [[स्कन्दपुराण]] के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय ही हैं तथा यह पुराण सभी पुराणों में सबसे विशाल है।
==माता का शाप==
एक बार शंकर भगवान ने पार्वती के साथ जुआ खेलने की अभिलाषा प्रकट की। खेल में भगवान शंकर अपना सब कुछ हार गए। हारने के बाद भोलेनाथ अपनी लीला को रचते हुए पत्तो के वस्त्र पहनकर [[गंगा नदी|गंगा]] के तट पर चले गए। कार्तिकेय जी को जब सारी बात पता चली, तो वह माता पार्वती से समस्त वस्तुएँ वापस लेने आए। इस बार खेल में पार्वती हार गईं तथा कार्तिकेय शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। अब इधर पार्वती भी चिंतित हो गईं कि सारा सामान भी गया तथा पति भी दूर हो गए। पार्वती जी ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र [[गणेश]] को बताई तो मातृ भक्त गणोश जी स्वयं खेल खेलने शंकर भगवान के पास पहुंचे। गणेश जी जीत गए तथा लौटकर अपनी जीत का समाचार माता को सुनाया। इस पर पार्वती बोलीं कि उन्हें अपने पिता को साथ लेकर आना चाहिए था। गणेशफिर भोलेनाथ की खोज करने निकल पड़े। भोलेनाथ से उनकी भेंट [[हरिद्वार]] में हुई। उस समय भोलेनाथ भगवान [[विष्णु]] व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। पार्वती से नाराज़ भोलेनाथ ने लौटने से मना कर दिया। भोलेनाथ के भक्त [[रावण]] ने गणेश के वाहन मूषक को बिल्ली का रूप धारण करके डरा दिया। मूषक गणेश जी को छोड़कर भाग गए। इधर भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया। गणेश जी ने माता के उदास होने की बात भोलेनाथ को कह सुनाई। इस पर भोलेनाथ बोले कि हमने नया पासा बनवाया है, अगर तुम्हारी माता पुन: खेल खेलने को सहमत हों, तो मैं वापस चल सकता हूँ।
 
गणेश जी के आश्वासन पर भोलेनाथ वापस पार्वती के पास पहुंचे तथा खेल खेलने को कहा। इस पर पार्वती हंस पड़ी व बोलीं- ‘अभी पास क्या चीज़ है, जिससे खेल खेला जाए।’ यह सुनकर भोलेनाथ चुप हो गए। इस पर [[नारद]] ने अपनी [[वीणा]] आदि सामग्री उन्हें दी। इस खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फैंकने के बाद गणेश जी समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया। सारी बात सुनकर पार्वती जी को क्रोध आ गया। रावण ने माता को समझाने का प्रयास किया, पर उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तथा क्रोधवश उन्होंने भोलेनाथ को शाप दे दिया कि [[गंगा नदी|गंगा]] की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा। नारद को कभी एक स्थान पर न टिकने का अभिषाप मिला। भगवान विष्णु को शाप दिया कि यही रावण तुम्हारा शत्रु होगा तथा रावण को शाप दिया कि विष्णु ही तुम्हारा विनाश करेंगे। कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने कभी जवान न होने का शाप दे दिया।
==पार्वती का वरदान==
==पार्वती का वरदान==
इस पर सर्वजन चिंतित हो उठे। तब नारद जी ने अपनी विनोदपूर्ण बातों से माता का क्रोध शांत किया, तो माता ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। नारद जी बोले कि आप सभी को वरदान दें, तभी मैं वरदान लूंगा। पार्वती जी सहमत हो गईं। तब शंकर जी ने कार्तिक शुक्ल के दिन जुए में विजयी रहने वाले को वर्ष भर विजयी बनाने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु ने अपने प्रत्येक छोटे- बड़े कार्य में सफलता का वर मांगा, परंतु कार्तिकेय जी ने सदा बालक रहने का ही वर मांगा तथा कहा, ‘मुझे विषय वासना का संसर्ग न हो तथा सदा भगवत स्मरण में लीन रहूं।’
इस पर सर्वजन चिंतित हो उठे। तब नारद जी ने अपनी विनोदपूर्ण बातों से माता का क्रोध शांत किया, तो माता ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। नारद जी बोले कि आप सभी को वरदान दें, तभी मैं वरदान लूँगा। पार्वती जी सहमत हो गईं। तब शंकर ने कार्तिक शुक्ल के दिन जुए में विजयी रहने वाले को वर्ष भर विजयी बनाने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु ने अपने प्रत्येक छोटे-बड़े कार्य में सफलता का वर मांगा, परंतु कार्तिकेय ने सदा बालक रहने का ही वर मांगा तथा कहा- ‘मुझे विषय वासना का संसर्ग न हो तथा सदा भगवत स्मरण में लीन रहूँ।’ अंत में नारद जी ने देवर्षि होने का वरदान मांगा। माता पार्वती ने [[रावण]] को समस्त [[वेद|वेदों]] की सुविस्तृत व्याख्या देते हुए सबके लिए तथास्तु कहा।
अंत में नारद जी ने देवर्षि होने का वरदान मांगा। माता पार्वती ने रावण को समस्त वेदों की सुविस्तृत व्याख्या देते हुए सबके लिए तथास्तु कहा।
==विभिन्न नाम==
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[[चित्र:Bhagwan-Shiv-1.jpg|thumb|250px|[[शिव]], [[पार्वती देवी|पार्वती]], [[गणेश]] और कार्तिकेय]]
*षण्मुख, द्विभुज, शक्तिघर, मयूरासीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत में बहुत प्रचलित हैं ये ब्रह्मपुत्री देवसेना-षष्टी देवी के पति होने के कारण सन्तान प्राप्ति की कामना से तो पूजे ही जाते हैं, इनको नैष्ठिक रूप से आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय भी है।
संस्कृत ग्रंथ [[अमरकोष]] के अनुसार कार्तिकेय के निम्न नाम हैं:
*[[तारकासुर]] के अत्याचार से पीड़ित देवताओं पर प्रसन्न होकर भगवान [[शंकर]] ने [[पार्वती देवी|पार्वती]] जी का पाणिग्रहण किया। भगवान शंकर भोले बाबा ठहरे। उमा के प्रेम में वे एकान्तनिष्ठ हो गये। [[अग्निदेव]] सुरकार्य का स्मरण कराने वहाँ उज्ज्वल कपोत वेश से पहुँचे। उन अमोघ वीर्य का रेतस धारण कौन करे? भूमि, [[अग्निदेव|अग्नि]], [[गंगा नदी|गंगा]]देवी सब क्रमश: उसे धारण करने में असमर्थ रहीं। अन्त में शरवण (कास-वन) में वह निक्षिप्त होकर तेजोमय बालक बना। कृत्तिकाओं ने उसे अपना पुत्र बनाना चाहा। बालक ने छ: मुख धारण कर छहों कृत्तिकाओं का स्तनपान किया। उसी से षण्मुख कार्तिकेय हुआ वह शम्भुपुत्र। देवताओं ने अपना सेनापतित्व उन्हें प्रदान किया। तारकासुर उनके हाथों मारा गया।
#[[भूतेश (कार्तिकेय)|भूतेश]]   
*[[स्कन्द पुराण]] के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय (स्कन्द) ही हैं। समस्त भारतीय तीर्थों का उसमें माहात्म्य आ गया है। [[पुराण|पुराणों]] में यह सबसे विशाल है।
#[[भगवत् (कार्तिकेय)|भगवत्]]                   
*स्वामी कार्तिकेय सेनाधिप हैं। सैन्यशक्ति की प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन इनकी कृपा से सम्पन्न होता है। ये इस शक्ति के अधिदेव हैं। धनुर्वेद पद इनकी एक संहिता का नाम मिलता है, पर ग्रन्थ प्राप्य नहीं है।  
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संस्कृत ग्रंथ अमरकोष के अनुसार कार्तिकेय के निम्न नाम हैं:
#कार्तिकेय                    
#महासेन
#महासेन
#शरजन्मा
#शरजन्मा
पंक्ति 29: पंक्ति 88:
#कुमार
#कुमार
#क्रौञ्चदारण
#क्रौञ्चदारण
==मुरुगन के प्रसिद्ध मन्दिर==
निम्नलिखित छह आवास, जिसे 'आरुपदै विदु' के नाम से जाना जाता है, [[भारत]] के [[तमिलनाडु]] में [[मुरुगन|भगवान मुरुगन]] के भक्तों के लिए बहुत ही मुख्य तीर्थ स्थानों में से हैं-
#पलनी मुरुगन मन्दिर - [[कोयंबटूर]] से 100 कि.मी. पूर्वी-दक्षिण में स्थित।
#स्वामीमलई मुरुगन मन्दिर - [[कुंभकोणम]] के पास।
#तिरुत्तनी मुरुगन मन्दिर - [[चेन्नई]] से 84 कि.मी.।
#पज्हमुदिर्चोलाई मुरुगन मन्दिर - [[मदुरई]] से 10 कि.मी. उत्तर में स्थित।
#श्री सुब्रहमन्य स्वामी देवस्थानम, तिरुचेन्दुर - तूतुकुडी से 40 कि.मी. दक्षिण में स्थित।
#तिरुप्परनकुंद्रम मुरुगन मन्दिर - मदुरई से 10 कि.मी. दक्षिण में स्थित।


==सम्बंधित लिंक==
*'मरुदमलै मुरुगन मन्दिर' (कोयंबतूर का उपनगर) एक और प्रमुख तीर्थ स्थान है।
{{शिव2}}
*[[भारत]] के [[कर्णाटक]] में मंगलौर शहर के पास 'कुक्के सुब्रमण्या मन्दिर' भी बहुत प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, जो भगवान 'मुरुगन' को समर्पित हैं। लेकिन यह भगवान मुरुगन के उन छह निवास स्थान का हिस्सा नहीं है, जो तमिलनाडु में स्थित हैं।<ref>{{cite web |url=http://hi.drikpanchang.com/vrats/skanda-sashti-dates.html |title= स्कंद षष्ठी|accessmonthday= 23 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
{{शिव}}
[[Category:हिन्दू भगवान अवतार]]
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
[[Category:हिन्दू देवी-देवता]] 


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{शिव2}}{{हिन्दू देवी देवता और अवतार}}{{शिव}}{{पौराणिक चरित्र}}
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11:46, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

संक्षिप्त परिचय
कार्तिकेय
भगवान कार्तिकेय
भगवान कार्तिकेय
अन्य नाम स्कंद, मुरुगन
वंश-गोत्र भगवाना शिव व पार्वती के पुत्र
पिता शिव
माता पार्वती
जन्म विवरण दैत्य तारकासुर के वध के लिए कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ था।
परिजन शिव, पार्वती, गणेश
वाहन मयूर
प्रसिद्ध मंदिर पलनी मुरुगन मन्दिर (कोयंबटूर), स्वामीमलई मुरुगन मन्दिर (कुंभकोणम), तिरुत्तनी मुरुगन मन्दिर (चेन्नई), पज्हमुदिर्चोलाई मुरुगन मन्दिर (मदुरई) आदि।
पर्व-त्योहार स्कंद षष्ठी
शत्रु-संहार तारकासुर
अन्य विवरण माता पार्वती के एक शाप के कारण कार्तिकेय सदा किशोर अवस्था में ही रहते हैं।
संबंधित लेख शिव, पार्वती, गणेश, स्कंद षष्ठी
अन्य जानकारी कार्तिकेय देवों के सेनापति हैं, शक्ति के अधिदेव हैं, प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन सभी कुछ इनकी कृपा से सम्पन्न होते हैं। कृत्तिकाओं ने इन्हें अपना पुत्र बनाया था, इस कारण इन्हें 'कार्तिकेय' कहा गया।

कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। माता द्वारा दिये गए एक शाप के कारण ही ये सदैव बालक रूप में रहते हैं। परंतु उनके इस बालक स्वरूप का भी एक रहस्य है। इनका एक नाम 'स्कन्द' भी है और इन्हें दक्षिण भारत में 'मुरुगन' भी कहा जाता है। भगवान कार्तिकेय के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं। इनकी पूजा मुख्यत: भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर तमिलनाडु में होती है। इसके अतिरिक्त विश्व में श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर आदि में भी इन्हें पूजा जाता है। भगवान स्कंद के सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडू में स्थित हैं, इन्हें तमिलों के देवता कह कर भी संबोधित किया जाता है।

जन्म कथा

कार्तिकेय की जन्म कथा के विषय में पुराणों से ज्ञात होता है कि पिता दक्ष के यहाँ आयोजित एक यज्ञ में भगवान शिव के अपमान से दु:खी होकर सती यज्ञ की अग्नि में ही आत्मदाह कर लेती हैं। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्ति हीन हो जाती है। तब दैत्यों का अत्याचार ओर आतंक फैल जाता है और देवताओं को पराजय का समाना करना पड़ता है, जिस कारण सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचते हैं और अपनी रक्षार्थ उनसे प्रार्थना करते हैं। ब्रह्मा उनके दु:ख को जानकर उनसे कहते हैं कि तारक का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है। परंतु सती के अंत के पश्चात् भगवान शिव गहन साधना में लीन हुए रहते हैं। इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं। तब भगवान शंकर पार्वती के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है। कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन स्कन्द भगवान की पूजा का विशेष महत्व है।

स्वरूप

कार्तिकेय स्वामी सेनाधिप हैं, शक्ति के अधिदेव हैं, प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन सभी कुछ इनकी कृपा से सम्पन्न होते हैं। कृत्तिकाओं ने इन्हें अपना पुत्र बनाया था, इस कारण इन्हें 'कार्तिकेय' कहा गया, देवताओं ने इन्हें अपना सेनापतित्व प्रदान किया। मयूर पर आसीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत मे सबसे ज्यादा होती है, यहाँ पर यह 'मुरुगन' नाम से विख्यात हैं। स्कन्दपुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय ही हैं तथा यह पुराण सभी पुराणों में सबसे विशाल है।

माता का शाप

एक बार शंकर भगवान ने पार्वती के साथ जुआ खेलने की अभिलाषा प्रकट की। खेल में भगवान शंकर अपना सब कुछ हार गए। हारने के बाद भोलेनाथ अपनी लीला को रचते हुए पत्तो के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर चले गए। कार्तिकेय जी को जब सारी बात पता चली, तो वह माता पार्वती से समस्त वस्तुएँ वापस लेने आए। इस बार खेल में पार्वती हार गईं तथा कार्तिकेय शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। अब इधर पार्वती भी चिंतित हो गईं कि सारा सामान भी गया तथा पति भी दूर हो गए। पार्वती जी ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र गणेश को बताई तो मातृ भक्त गणोश जी स्वयं खेल खेलने शंकर भगवान के पास पहुंचे। गणेश जी जीत गए तथा लौटकर अपनी जीत का समाचार माता को सुनाया। इस पर पार्वती बोलीं कि उन्हें अपने पिता को साथ लेकर आना चाहिए था। गणेशफिर भोलेनाथ की खोज करने निकल पड़े। भोलेनाथ से उनकी भेंट हरिद्वार में हुई। उस समय भोलेनाथ भगवान विष्णु व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। पार्वती से नाराज़ भोलेनाथ ने लौटने से मना कर दिया। भोलेनाथ के भक्त रावण ने गणेश के वाहन मूषक को बिल्ली का रूप धारण करके डरा दिया। मूषक गणेश जी को छोड़कर भाग गए। इधर भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया। गणेश जी ने माता के उदास होने की बात भोलेनाथ को कह सुनाई। इस पर भोलेनाथ बोले कि हमने नया पासा बनवाया है, अगर तुम्हारी माता पुन: खेल खेलने को सहमत हों, तो मैं वापस चल सकता हूँ।

गणेश जी के आश्वासन पर भोलेनाथ वापस पार्वती के पास पहुंचे तथा खेल खेलने को कहा। इस पर पार्वती हंस पड़ी व बोलीं- ‘अभी पास क्या चीज़ है, जिससे खेल खेला जाए।’ यह सुनकर भोलेनाथ चुप हो गए। इस पर नारद ने अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हें दी। इस खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फैंकने के बाद गणेश जी समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया। सारी बात सुनकर पार्वती जी को क्रोध आ गया। रावण ने माता को समझाने का प्रयास किया, पर उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तथा क्रोधवश उन्होंने भोलेनाथ को शाप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा। नारद को कभी एक स्थान पर न टिकने का अभिषाप मिला। भगवान विष्णु को शाप दिया कि यही रावण तुम्हारा शत्रु होगा तथा रावण को शाप दिया कि विष्णु ही तुम्हारा विनाश करेंगे। कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने कभी जवान न होने का शाप दे दिया।

पार्वती का वरदान

इस पर सर्वजन चिंतित हो उठे। तब नारद जी ने अपनी विनोदपूर्ण बातों से माता का क्रोध शांत किया, तो माता ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। नारद जी बोले कि आप सभी को वरदान दें, तभी मैं वरदान लूँगा। पार्वती जी सहमत हो गईं। तब शंकर ने कार्तिक शुक्ल के दिन जुए में विजयी रहने वाले को वर्ष भर विजयी बनाने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु ने अपने प्रत्येक छोटे-बड़े कार्य में सफलता का वर मांगा, परंतु कार्तिकेय ने सदा बालक रहने का ही वर मांगा तथा कहा- ‘मुझे विषय वासना का संसर्ग न हो तथा सदा भगवत स्मरण में लीन रहूँ।’ अंत में नारद जी ने देवर्षि होने का वरदान मांगा। माता पार्वती ने रावण को समस्त वेदों की सुविस्तृत व्याख्या देते हुए सबके लिए तथास्तु कहा।

विभिन्न नाम

शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय

संस्कृत ग्रंथ अमरकोष के अनुसार कार्तिकेय के निम्न नाम हैं:

  1. भूतेश
  2. भगवत्
  3. महासेन
  4. शरजन्मा
  5. षडानन
  6. पार्वतीनन्दन
  7. स्कन्द
  8. सेनानी
  9. अग्निभू
  10. गुह
  11. बाहुलेय
  12. तारकजित्
  13. विशाख
  14. शिखिवाहन
  15. शक्तिश्वर
  16. कुमार
  17. क्रौञ्चदारण

मुरुगन के प्रसिद्ध मन्दिर

निम्नलिखित छह आवास, जिसे 'आरुपदै विदु' के नाम से जाना जाता है, भारत के तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के भक्तों के लिए बहुत ही मुख्य तीर्थ स्थानों में से हैं-

  1. पलनी मुरुगन मन्दिर - कोयंबटूर से 100 कि.मी. पूर्वी-दक्षिण में स्थित।
  2. स्वामीमलई मुरुगन मन्दिर - कुंभकोणम के पास।
  3. तिरुत्तनी मुरुगन मन्दिर - चेन्नई से 84 कि.मी.।
  4. पज्हमुदिर्चोलाई मुरुगन मन्दिर - मदुरई से 10 कि.मी. उत्तर में स्थित।
  5. श्री सुब्रहमन्य स्वामी देवस्थानम, तिरुचेन्दुर - तूतुकुडी से 40 कि.मी. दक्षिण में स्थित।
  6. तिरुप्परनकुंद्रम मुरुगन मन्दिर - मदुरई से 10 कि.मी. दक्षिण में स्थित।
  • 'मरुदमलै मुरुगन मन्दिर' (कोयंबतूर का उपनगर) एक और प्रमुख तीर्थ स्थान है।
  • भारत के कर्णाटक में मंगलौर शहर के पास 'कुक्के सुब्रमण्या मन्दिर' भी बहुत प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, जो भगवान 'मुरुगन' को समर्पित हैं। लेकिन यह भगवान मुरुगन के उन छह निवास स्थान का हिस्सा नहीं है, जो तमिलनाडु में स्थित हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्कंद षष्ठी (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 अक्टूबर, 2013।

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