"गोपाष्टमी": अवतरणों में अंतर
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*गौ या गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह [[गंगा नदी|गंगा]], [[गायत्री]], [[गीता]], [[गोवर्धन]] और [[कृष्ण|गोविन्द]] की तरह पूज्य है। | |अन्य नाम = | ||
*शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे [[शैव मत|शैव]], शाक्त, [[वैष्णव]], गाणपत्य, [[जैन]], [[बौद्ध]], सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। | |अनुयायी = [[हिंदू]], भारतीय | ||
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'''गोपाष्टमी''' [[ब्रज]] में [[संस्कृति]] का एक प्रमुख पर्व है। [[गाय|गायों]] की रक्षा करने के कारण [[कृष्ण|भगवान श्री कृष्ण जी]] का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। [[कार्तिक]], [[शुक्ल पक्ष]], [[प्रतिपदा]] से [[सप्तमी]] तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन [[इन्द्र]] अहंकार रहित होकर भगवान की शरण में आये। [[कामधेनु]] ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इनका नाम गोविन्द पड़ा। इसी समय से [[अष्टमी]] को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है। इस दिन प्रात: काल गौओं को स्नान कराएँ तथा गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ में जाएँ तो सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती हैं। गोपाष्टमी को सांयकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका अभिवादन और पंचोपचार पूजन करके कुछ भोजन कराएँ और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। उससे सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतवर्ष के प्राय: सभी भागों में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गोशालाओं तथा पिंजरा पोलो के लिए यह बड़े ही महत्त्व का उत्सव है। इस दिन गोशालाओं की संस्था को कुछ दान देना चाहिए। इस प्रकार से सारा दिन गो-चर्चा में ही लगना चाहिए। ऐसा करने से ही गो वंश की सच्ची उन्नति हो सकेगी, जिस पर हमारी उन्नति सोलह आने निर्भर है। गाय की रक्षा को हमारी रक्षा समझना चाहिए। इस दिन गायों को नहलाकर नाना प्रकार से सजाया जाता है और [[मेंहदी]] के थापे तथा [[हल्दी]] रोली से पूजन कर उन्हें विभिन्न भोजन कराये जाते हैं। | |||
==धार्मिक मान्यताएँ== | |||
*गौ या [[गाय]] हमारी संस्कृति की प्राण है। यह [[गंगा नदी|गंगा]], [[गायत्री]], [[गीता]], [[गोवर्धन]] और [[कृष्ण|गोविन्द]] की तरह पूज्य है। | |||
*शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे [[शैव मत|शैव]], [[शाक्त]], [[वैष्णव]], गाणपत्य, [[जैन]], [[बौद्ध]], सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। | |||
*हम गाय को 'गोमाता' कहकर संबोधित करते हैं। मान्यता है कि दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर साक्षात देवी के समान हैं। | *हम गाय को 'गोमाता' कहकर संबोधित करते हैं। मान्यता है कि दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर साक्षात देवी के समान हैं। | ||
*सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है- 'सर्वे देवा: स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:।' गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है। | *सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है- 'सर्वे देवा: स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:।' गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है। | ||
*मान्यता है कि जो मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है। | |||
*संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ [[वेद]] हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में दिव्य शाक्तियां होने का वर्णन मिलता है। | *संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ [[वेद]] हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में दिव्य शाक्तियां होने का वर्णन मिलता है। | ||
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==गाय के अंगों में देवी-देवताओं का निवास== | |||
[[पद्म पुराण]] के अनुसार गाय के मुख में चारों वेदों का निवास हैं। उसके सींगों में भगवान [[शंकर]] और [[विष्णु]] सदा विराजमान रहते हैं। गाय के उदर में [[कार्तिकेय]], मस्तक में [[ब्रह्मा]], ललाट में [[रुद्र]], सीगों के अग्र भाग में [[इन्द्र]], दोनों कानों में [[अश्विनीकुमार]], नेत्रों में [[सूर्य देवता|सूर्य]] और [[चंद्र देवता|चंद्र]], [[दाँत|दांतों]] में [[गरुड़]], [[जिह्वा]] में [[सरस्वती देवी|सरस्वती]], अपान (गुदा) में सारे तीर्थ, मूत्र-स्थान में [[गंगा नदी|गंगा]] जी, रोमकूपों में ऋषि गण, पृष्ठभाग में [[यमराज]], दक्षिण पार्श्व में [[वरुण देवता|वरुण]] एवं [[कुबेर]], वाम पार्श्व में महाबली [[यक्ष]], मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं स्थित हैं। [[भविष्य पुराण]], [[स्कंद पुराण]], [[ब्रह्माण्ड पुराण]], [[महाभारत]] में भी गौ के अंग-प्रत्यंग में देवी-देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। | |||
[[चित्र:cows-mathura.jpg|250px|left|thumb|ब्रज की गौ]] | |||
==गौ-सेवा का संकल्प== | ==गौ-सेवा का संकल्प== | ||
*माना जाता है कि गायों का समूह जहां बैठकर आराम से सांस लेता है, उस स्थान की न केवल शोभा बढ़ती है, बल्कि वहां का सारा पाप नष्ट हो जाता है। | *माना जाता है कि गायों का समूह जहां बैठकर आराम से सांस लेता है, उस स्थान की न केवल शोभा बढ़ती है, बल्कि वहां का सारा पाप नष्ट हो जाता है। | ||
*तीर्थों में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप और हवन-यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य गौ को चारा या हरी घास खिलाने से प्राप्त हो जाता है। | *तीर्थों में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप और हवन-यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य गौ को चारा या हरी घास खिलाने से प्राप्त हो जाता है। | ||
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*जो मनुष्य गौर की श्रद्धापूर्वक पूजा-सेवा करते हैं, देवता उस पर सदैव प्रसन्न रहते हैं। | *जो मनुष्य गौर की श्रद्धापूर्वक पूजा-सेवा करते हैं, देवता उस पर सदैव प्रसन्न रहते हैं। | ||
*जिस घर में भोजन करने से पूर्व गौ-ग्रास निकाला जाता है, उस परिवार में अन्न-धन की कभी कमी नहीं होती है। | *जिस घर में भोजन करने से पूर्व गौ-ग्रास निकाला जाता है, उस परिवार में अन्न-धन की कभी कमी नहीं होती है। | ||
==गोबर और गोमूत्र के गुण== | ==गोबर और गोमूत्र के गुण== | ||
*गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जिसका मल-मूत्र न केवल गुणकारी, बल्कि पवित्र भी माना गया हैं। | *गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जिसका मल-मूत्र न केवल गुणकारी, बल्कि पवित्र भी माना गया हैं। | ||
*गोबर में [[महालक्ष्मी देवी|लक्ष्मी]] का वास होने से इसे 'गोवर' | *गोबर में [[महालक्ष्मी देवी|लक्ष्मी]] का वास होने से इसे 'गोवर' अर्थात् गौ का वरदान कहा जाना ज़्यादा उचित होगा। | ||
*गोबर से लीपे जाने पर ही भूमि यज्ञ के लिए उपयुक्त होती है। | *गोबर से लीपे जाने पर ही भूमि [[यज्ञ]] के लिए उपयुक्त होती है। | ||
*गोबर से बने उपलों का यज्ञशाला और रसोई घर, दोनों जगह प्रयोग होता है। | *गोबर से बने उपलों का यज्ञशाला और रसोई घर, दोनों जगह प्रयोग होता है। | ||
*गोबर के उपलों से बनी राख खेती के लिए अत्यंत गुणकारी सिद्ध होती है। | *गोबर के उपलों से बनी राख खेती के लिए अत्यंत गुणकारी सिद्ध होती है। | ||
*गोबर की खाद से फ़सल अच्छी होती है और सब्जी, फल, अनाज के प्राकृतिक तत्वों का संरक्षण भी होता है। | *गोबर की खाद से फ़सल अच्छी होती है और [[सब्जियाँ|सब्जी]], [[फल]], अनाज के प्राकृतिक तत्वों का संरक्षण भी होता है। | ||
*आयुर्वेद के अनुसार, गोबर हैजा और मलेरिया के कीटाणुओं को भी नष्ट करने की क्षमता रखता है। | *[[आयुर्वेद]] के अनुसार, गोबर हैजा और मलेरिया के कीटाणुओं को भी नष्ट करने की क्षमता रखता है। | ||
*आयुर्वेद में गौमूत्र अनेक असाध्य रोगों की चिकित्सा में उपयोगी माना गया है। | *आयुर्वेद में गौमूत्र अनेक असाध्य रोगों की चिकित्सा में उपयोगी माना गया है। | ||
*लिवर की बीमारियों की यह अमोघ औषधि है। पेट की बीमारियों, चर्म रोग, बवासीर, जुकाम, जोड़ों के दर्द, हृदय रोग की चिकित्सा में गोमूत्र ने आश्चर्यजनक लाभ दिया है। इसके विधिवत सेवन से मोटापा और कोलेस्ट्राल भी कम होते देखा गया है। | *लिवर की बीमारियों की यह अमोघ औषधि है। पेट की बीमारियों, चर्म रोग, [[बवासीर]], जुकाम, जोड़ों के दर्द, हृदय रोग की चिकित्सा में गोमूत्र ने आश्चर्यजनक लाभ दिया है। इसके विधिवत सेवन से मोटापा और कोलेस्ट्राल भी कम होते देखा गया है। | ||
*गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र से निर्मित पंचगण्य तन-मन और आत्मा को शुद्ध कर देता है। | *गाय के [[दूध]], [[दही]], [[घी]], गोबर और गोमूत्र से निर्मित पंचगण्य तन-मन और आत्मा को शुद्ध कर देता है। | ||
*तनाव और [[प्रदूषण]] से भरे इस वातावरण की शुद्धि में गाय की भूमिका समझ लेने के बाद हमें गो धन की रक्षा में पूरी तत्परता से जुट जाना चाहिए, क्योंकि तभी गोविंद-गोपाल की पूजा सार्थक होगी। | *तनाव और [[प्रदूषण]] से भरे इस वातावरण की शुद्धि में गाय की भूमिका समझ लेने के बाद हमें गो धन की रक्षा में पूरी तत्परता से जुट जाना चाहिए, क्योंकि तभी गोविंद-गोपाल की पूजा सार्थक होगी। | ||
*गोपाष्टमी के पर्व का मूल उद्देश्य है गो-संवर्धन की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट करना। अतएव इस त्योहार की प्रासंगिकता आज की युग में और बढ़ी है। | *गोपाष्टमी के पर्व का मूल उद्देश्य है गो-संवर्धन की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट करना। अतएव इस त्योहार की प्रासंगिकता आज की युग में और बढ़ी है। | ||
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07:43, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
गोपाष्टमी
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अनुयायी | हिंदू, भारतीय |
उद्देश्य | गो-संवर्धन की तरफ ध्यान आकृष्ट करना। |
प्रारम्भ | कृष्ण काल |
तिथि | कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी |
उत्सव | इस दिन गायों को नहलाकर नाना प्रकार से सजाया जाता है और मेंहदी के थापे तथा हल्दी रोली से पूजन कर उन्हें विभिन्न भोजन कराये जाते हैं। |
धार्मिक मान्यता | भविष्य पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, महाभारत में भी गौ के अंग-प्रत्यंग में देवी-देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। |
अन्य जानकारी | शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। |
गोपाष्टमी ब्रज में संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इन्द्र अहंकार रहित होकर भगवान की शरण में आये। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इनका नाम गोविन्द पड़ा। इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है। इस दिन प्रात: काल गौओं को स्नान कराएँ तथा गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ में जाएँ तो सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती हैं। गोपाष्टमी को सांयकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका अभिवादन और पंचोपचार पूजन करके कुछ भोजन कराएँ और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। उससे सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतवर्ष के प्राय: सभी भागों में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गोशालाओं तथा पिंजरा पोलो के लिए यह बड़े ही महत्त्व का उत्सव है। इस दिन गोशालाओं की संस्था को कुछ दान देना चाहिए। इस प्रकार से सारा दिन गो-चर्चा में ही लगना चाहिए। ऐसा करने से ही गो वंश की सच्ची उन्नति हो सकेगी, जिस पर हमारी उन्नति सोलह आने निर्भर है। गाय की रक्षा को हमारी रक्षा समझना चाहिए। इस दिन गायों को नहलाकर नाना प्रकार से सजाया जाता है और मेंहदी के थापे तथा हल्दी रोली से पूजन कर उन्हें विभिन्न भोजन कराये जाते हैं।
धार्मिक मान्यताएँ
- गौ या गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य है।
- शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं।
- हम गाय को 'गोमाता' कहकर संबोधित करते हैं। मान्यता है कि दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ पृथ्वी पर साक्षात देवी के समान हैं।
- सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है- 'सर्वे देवा: स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:।' गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है।
- मान्यता है कि जो मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है।
- संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में दिव्य शाक्तियां होने का वर्णन मिलता है।
- गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के अग्रभाग में आकाशचारी देवता, रंभाने की आवाज़ में प्रजापति और थनों में समुद्र प्रतिष्ठित हैं।
- मान्यता है कि गौ के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता है। यानी सनातन धर्म में गौ को दूध देने वाला एक निरा पशु न मानकर सदा से ही उसे देवताओं की प्रतिनिधि माना गया है।
गाय के अंगों में देवी-देवताओं का निवास
पद्म पुराण के अनुसार गाय के मुख में चारों वेदों का निवास हैं। उसके सींगों में भगवान शंकर और विष्णु सदा विराजमान रहते हैं। गाय के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सीगों के अग्र भाग में इन्द्र, दोनों कानों में अश्विनीकुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती, अपान (गुदा) में सारे तीर्थ, मूत्र-स्थान में गंगा जी, रोमकूपों में ऋषि गण, पृष्ठभाग में यमराज, दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम पार्श्व में महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं स्थित हैं। भविष्य पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, महाभारत में भी गौ के अंग-प्रत्यंग में देवी-देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।
गौ-सेवा का संकल्प
- माना जाता है कि गायों का समूह जहां बैठकर आराम से सांस लेता है, उस स्थान की न केवल शोभा बढ़ती है, बल्कि वहां का सारा पाप नष्ट हो जाता है।
- तीर्थों में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप और हवन-यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य गौ को चारा या हरी घास खिलाने से प्राप्त हो जाता है।
- गौ-सेवा से दुख-दुर्भाग्य दूर होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
- जो मनुष्य गौर की श्रद्धापूर्वक पूजा-सेवा करते हैं, देवता उस पर सदैव प्रसन्न रहते हैं।
- जिस घर में भोजन करने से पूर्व गौ-ग्रास निकाला जाता है, उस परिवार में अन्न-धन की कभी कमी नहीं होती है।
गोबर और गोमूत्र के गुण
- गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जिसका मल-मूत्र न केवल गुणकारी, बल्कि पवित्र भी माना गया हैं।
- गोबर में लक्ष्मी का वास होने से इसे 'गोवर' अर्थात् गौ का वरदान कहा जाना ज़्यादा उचित होगा।
- गोबर से लीपे जाने पर ही भूमि यज्ञ के लिए उपयुक्त होती है।
- गोबर से बने उपलों का यज्ञशाला और रसोई घर, दोनों जगह प्रयोग होता है।
- गोबर के उपलों से बनी राख खेती के लिए अत्यंत गुणकारी सिद्ध होती है।
- गोबर की खाद से फ़सल अच्छी होती है और सब्जी, फल, अनाज के प्राकृतिक तत्वों का संरक्षण भी होता है।
- आयुर्वेद के अनुसार, गोबर हैजा और मलेरिया के कीटाणुओं को भी नष्ट करने की क्षमता रखता है।
- आयुर्वेद में गौमूत्र अनेक असाध्य रोगों की चिकित्सा में उपयोगी माना गया है।
- लिवर की बीमारियों की यह अमोघ औषधि है। पेट की बीमारियों, चर्म रोग, बवासीर, जुकाम, जोड़ों के दर्द, हृदय रोग की चिकित्सा में गोमूत्र ने आश्चर्यजनक लाभ दिया है। इसके विधिवत सेवन से मोटापा और कोलेस्ट्राल भी कम होते देखा गया है।
- गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र से निर्मित पंचगण्य तन-मन और आत्मा को शुद्ध कर देता है।
- तनाव और प्रदूषण से भरे इस वातावरण की शुद्धि में गाय की भूमिका समझ लेने के बाद हमें गो धन की रक्षा में पूरी तत्परता से जुट जाना चाहिए, क्योंकि तभी गोविंद-गोपाल की पूजा सार्थक होगी।
- गोपाष्टमी के पर्व का मूल उद्देश्य है गो-संवर्धन की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट करना। अतएव इस त्योहार की प्रासंगिकता आज की युग में और बढ़ी है।
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