"मुमताज़ (अभिनेत्री)": अवतरणों में अंतर
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'''मुमताज़''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mumtaz'', जन्म: 31 जुलाई, 1947) हिन्दी फ़िल्मों की एक प्रसिद्ध [[अभिनेत्री]] हैं। ‘आपकी | {{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=मुमताज़|लेख का नाम=मुमताज़}} | ||
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'''मुमताज़''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mumtaz'', जन्म: [[31 जुलाई]], [[1947]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों की एक प्रसिद्ध [[अभिनेत्री]] हैं। चुलबुली, हंसमुख और नटखट मुमताज़ जिस ज़माने में फ़िल्मी पर्दे पर अपने अभिनय का जादू बिखरेती थीं, उस समय उनकी अदाकारी के सभी कायल थे। बॉलीवुड में जब मुमताज़ का आगाज हुआ, उस समय अभिनेत्री का मतलब शर्मिली, सौम्य और शांत किरदार वाली महिला होती थी; लेकिन मुमताज़ ने अपनी नटखट अदाओं और चुलबुले अंदाज़ से अभिनेत्री होने के सारे मायने ही बदल दिए। ‘आपकी क़सम’, ‘रोटी’, ‘अपना देश’, 'खिलौना' और ‘सच्चा झूठा’ मुमताज़ की यादगार फ़िल्में हैं। मुमताज़ ने 12 [[साल]] की उम्र में [[बॉलीवुड]] में कदम रख दिया था। | |||
[[चित्र:Mumtaz-03.jpg|thumb|left|मुमताज़]] | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
मुमताज़ का जन्म [[31 जुलाई]], [[1947]] को मध्यमवर्गीय मुस्लिम [[परिवार]] में हुआ। अपनी छोटी बहन मलिका के साथ वे | मुमताज़ का जन्म [[31 जुलाई]], [[1947]] को मध्यमवर्गीय [[मुस्लिम]] [[परिवार]] में हुआ। अपनी छोटी बहन मलिका के साथ वे रोज़ाना स्टुडियो-दर-स्टुडियो भटकती और जैसा चाहे वैसा छोटा-मोटा रोल माँगती थी। उनकी माँ नाज़ और चाची नीलोफ़र पहले से फ़िल्मों में मौजूद थीं। लेकिन दोनों जूनियर आर्टिस्ट होने के नाते अपनी बेटियों की सिफारिश करने की पोजीशन में नहीं थीं। लेकिन मुमताज़ हर हाल में फ़िल्म अभिनेत्री बनना चाहती थीं। जूनियर आर्टिस्ट के बतौर एक बार कैमरे से सामना हो जाए, तो बाद में वे सब देख लेगी, जैसे उसके तेवर थे। जब वे निर्माता-निर्देशक से काम माँगती, तो बदले में जवाब मिलता- 'आईने में अपनी सूरत देखी है। पकोड़े जैसी नाक है।' ऐसी कठोर बातें सुनकर मुमताज़ मन मसोसकर रह जातीं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।<ref name="वेबदुनिया">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/entertainment-film-articles/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%9C-%E0%A4%B9%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-1120414027_1.htm |title=मुमताज़ : हजारों शाहजहाँ वाली! |accessmonthday=17 नवम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया हिन्दी |language=हिन्दी }} </ref> | ||
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जूनियर आर्टिस्ट से स्टार बनने का सपना अपने मन में संजोकर रखा था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया। सत्तर के दशक में उन्होंने स्टार हैसियत प्राप्त कर ली। उस दौर के नामी सितारे जो कभी | मुमताज़ ने जूनियर आर्टिस्ट से स्टार बनने का सपना अपने मन में संजोकर रखा था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया। सत्तर के दशक में उन्होंने स्टार की हैसियत प्राप्त कर ली। उस दौर के नामी सितारे जो कभी मुमताज़ के साथ काम नहीं करना चाहते थे वे भी उनके साथ काम करने के लिए लालायित रहने लगे थे। ऐसे सितारों में [[शम्मी कपूर]], [[देवानंद]], [[संजीव कुमार]], [[जितेन्द्र]] और [[शशि कपूर]] के नाम उल्लेखनीय हैं। | ||
====मुमताज़ और दारासिंह==== | ====मुमताज़ और दारासिंह==== | ||
साठ के दशक में [[हिन्दी सिनेमा]] में दो ट्रेंड एक साथ चले थे। पहला ट्रेंड था चम्बल की घाटी में जितने भी दस्यु सम्राट और दस्यु सुंदरियाँ हुईं, उनके जीवन को आधार | [[चित्र:Dara-mumtaz.jpg|thumb|left|[[दारासिंह]] के साथ मुमताज़]] | ||
साठ के दशक में [[हिन्दी सिनेमा]] में दो ट्रेंड एक साथ चले थे। पहला ट्रेंड था चम्बल की घाटी में जितने भी दस्यु सम्राट और दस्यु सुंदरियाँ हुईं, उनके जीवन को आधार बनाकर फ़िल्में बनाना। डाकुओं को लेकर धड़ाधड़ पटकथाएँ लिखी गईं। फ़िल्मों का नायक जब डकैत हो, तो फ़िल्मों में तीन सफल फार्मूले एक साथ शामिल हो जाते हैं। जैसे- सुरा-सुंदरी-वायलेंस विद एक्शन। दर्शक को और क्या चाहिए। सेंसर बोर्ड भी पटकथा के ताने-बाने को देखकर आँख मींच लिया करता था। दूसरा ट्रेंड चला कुश्ती और अखाड़े का। [[दारासिंह]] जैसे पहलवानों को लेकर अनेक फ़िल्म निर्माताओं ने ढेरों कुश्ती पर आधारित फ़िल्में बनाईं। इन फ़िल्मों में हिरोइन तो बस शो-पीस की तरह रखी जाती थीं। नामी हिरोइन भला ऐसी फ़िल्म में क्यों काम करने लगीं। बिल्ली के भाग्य से कई छींके एक साथ टूटे और मुमताज़ के आँचल में आ गिरे। मुमताज़ ने [[दारासिंह]] जैसे पहलवान के साथ 16 फ़िल्में की और ज्यादातर बॉक्स ऑफिस पर सफल भी रही। भारी भरकम, ऊँचे पूरे कद्दावार कद काठी के दारासिंह अपने सामने बौने आकार वाली मुमताज़ से जब प्यार का कोई डॉयलाग बोलते थे, तो दर्शक हँस-हँसकर लोटपोट हो जाया करते थे। वह रोमांटिक सीन ठेठ कॉमेडी में बदल जाता था। इस बेमेले जोड़ी ने गीत-संगीत से सजी सँवरी फ़िल्मों से दस साल तक दर्शकों का मनोरजंन किया।<ref name="वेबदुनिया"/> | |||
दूसरा ट्रेंड चला कुश्ती और अखाड़े का। | |||
====मुमताज़ और राजेश खन्ना==== | ====मुमताज़ और राजेश खन्ना==== | ||
दारासिंह के अखाड़े से बाहर निकलकर | [[चित्र:Rajesh-khanna-mumtaz-ap-ki-kasam.jpg|thumb|250px|[[राजेश खन्ना]] के साथ मुमताज, फ़िल्म 'आप की कसम']] | ||
दारासिंह के अखाड़े से बाहर निकलकर मुमताज़ की जोड़ी [[राजेश खन्ना]] के साथ जमीं। उन दिनों राजेश भी सफलता की राह पर आगे बढ़ रहे थे। फ़िल्म 'दो रास्ते' में बिंदिया ऐसी चमकी और मुमताज़ के हाथों की चूड़ियाँ ऐसी खनकी कि बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नये रिकार्ड बन गए। [[1969]] से [[1974|74]] तक इन दो कलाकारों ने 'सच्चा झूठा', 'अपना देश', 'दुश्मन', 'बंधन' और 'रोटी' जैसी सफल फ़िल्में दी। सुपरस्टार राजेश खन्ना के लगातार मुमताज़ के साथ काम करने के बाद मुमताज़ की माँग बहुत बढ़ गई। [[शशि कपूर]] ने एक बार मुमताज़ का नाम सुनकर फ़िल्म छोड़ दी थी, वे ही अपनी फ़िल्म 'चोर मचाए शोर' ([[1974]]) में मुमताज़ को नायिका बनाने पर ज़ोर देने लगे। ऐसा ही कुछ [[दिलीप कुमार]] ने किया। उन्होंने 'राम और श्याम' ([[1967]]) फ़िल्म में दो नायिकाओं में से एक का चयन मुमताज़ को लेकर किया। [[वी. शांताराम]] की फ़िल्म 'बूँद जो बन गई मोती' में अपनी बेटी की जगह मुमताज़ को प्राथमिकता दी।<ref name="वेबदुनिया"/> | |||
==मुमताज़ की लोकप्रियता== | ==मुमताज़ की लोकप्रियता== | ||
मुमताज़ की सफलता का ग्राफ़ दिनों दिन बढ़ने लगा। फ़िल्मकार विजय आनंद ने फ़िल्म 'तेरे मेरे सपने', राज खोसला ने 'प्रेम कहानी' और जे. ओमप्रकाश ने 'आपकी क़सम' में मुमताज़ को हिरोइन बनाया। सफलता के पीछे सब भागते हैं। यही हाल मुमताज़ का हुआ। उसका पल्लू पकडने के लिए संजय खान (धड़कन), [[राजेंद्र कुमार]] (तांगे वाला), [[विश्वजीत चटर्जी|विश्वजीत]] (परदेसी, शरारत) और [[सुनील दत्त]] ने 'भाई-भाई' नामक फ़िल्में बनाईं। दस साल तक मुमताज़ ने बॉलीवुड के सितारों पर शासन किया। वे [[शर्मिला टैगोर]] के समकक्ष मानी गईं और उतना पैसा भी उन्हें दिया गया। [[देव आनंद]] की फ़िल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' मुमताज़ के कैरियर की चमकदार फ़िल्म है। | |||
==विवाह== | ==विवाह== | ||
सत्तर के दशक में अचानक कई नई | सत्तर के दशक में अचानक कई नई हिरोइनों की बाढ़ आ गई। मुमताज़ का भी स्टार बनने का सपना सच हो गया था। गुजरात मूल के लंदनवासी मयूर वाधवानी नामक व्यापारी से [[शादी]] कर [[ब्रिटेन]] जा बसी। शादी के पहले उनका नाम संजय खान, [[फ़िरोज़ ख़ान]], [[देव आनंद]] जैसे कुछ सितारों के साथ जोड़ा गया था, लेकिन अंत में मयूर पर उनका दिल आ गया। | ||
==प्रमुख फ़िल्में== | |||
{| width="70%" class="bharattable-pink" | |||
|+ मुमताज़ की प्रमुख फ़िल्में | |||
|- | |||
! वर्ष | |||
! फ़िल्म | |||
! वर्ष | |||
! फ़िल्म | |||
|- | |||
| 1975 | |||
| प्रेम कहानी | |||
| 1974 | |||
| आप की कसम | |||
|- | |||
| 1974 | |||
| चोर मचाये शोर | |||
| 1974 | |||
| रोटी | |||
|- | |||
| 1973 | |||
| प्यार का रिश्ता | |||
| 1973 | |||
| बंधे हाथ | |||
|- | |||
| 1973 | |||
| लोफ़र | |||
| 1973 | |||
| झील के उस पार | |||
|- | |||
| 1972 | |||
| ताँगेवाला | |||
| 1972 | |||
| अपना देश | |||
|- | |||
| 1972 | |||
| रूप तेरा मस्ताना | |||
| 1972 | |||
| अपराध | |||
|- | |||
| 1971 | |||
| चाहत | |||
| 1971 | |||
| एक नारी एक ब्रह्मचारी | |||
|- | |||
| 1971 | |||
| जवान मोहब्बत | |||
| 1971 | |||
| तेरे मेरे सपने | |||
|- | |||
| 1971 | |||
| दुश्मन | |||
| 1971 | |||
| कठपुतली | |||
|- | |||
| 1971 | |||
| हरे रामा हरे कृष्णा | |||
| 1970 | |||
| सच्चा झूठा | |||
|- | |||
| 1970 | |||
| खिलौना | |||
| 1970 | |||
| हिम्मत | |||
|- | |||
| 1970 | |||
| भाई भाई | |||
| 1970 | |||
| माँ और ममता | |||
|- | |||
| 1969 | |||
| बंधन | |||
| 1969 | |||
| जिगरी दोस्त | |||
|- | |||
| 1969 | |||
| दो रास्ते | |||
| 1968 | |||
| गौरी | |||
|- | |||
| 1968 | |||
|मेरे हमदम मेरे दोस्त | |||
| 1968 | |||
| ब्रह्मचारी | |||
|- | |||
| 1967 | |||
| बूँद जो बन गयी मोती | |||
| 1967 | |||
| [[राम और श्याम (1967 फ़िल्म)|राम और श्याम]] | |||
|- | |||
| 1967 | |||
| पत्थर के सनम | |||
| 1967 | |||
| चन्दन का पालना | |||
|- | |||
| 1967 | |||
| हमराज़ | |||
| 1966 | |||
| दादी माँ | |||
|- | |||
| 1966 | |||
| लड़का लड़की | |||
| 1966 | |||
| पति पत्नी | |||
|- | |||
| 1966 | |||
| सावन की घटा | |||
| 1966 | |||
| ये रात फिर ना आयेगी | |||
|- | |||
| 1966 | |||
| प्यार किये जा | |||
| 1966 | |||
| सूरज | |||
|- | |||
| 1965 | |||
| बेदाग़ | |||
| 1965 | |||
| सिकन्दर-ए-आज़म | |||
|- | |||
| 1965 | |||
| बहू बेटी | |||
| 1965 | |||
| खानदान | |||
|- | |||
| 1965 | |||
| मेरे सनम | |||
| 1963 | |||
| मुझे जीने दो | |||
|- | |||
| 1962 | |||
| मैं शादी करने चला | |||
| 1962 | |||
| डॉक्टर विद्या | |||
|} | |||
==कैंसर की बीमारी== | ==कैंसर की बीमारी== | ||
53 वर्ष की उम्र में | 53 वर्ष की उम्र में मुमताज़ को कैंसर हो गया। इस बीमारी से उन्होंने निजात पा ली, मगर थायराइड की जकड़न अभी मौजूद है। उनकी दो बेटियाँ हैं। अपनी बीमारी के दौरान उनके नजदीकी लोग उनसे दूर हो गए थे। ज़िंदगी का यह कड़वा घूँट उन्होंने धीरज रखकर पिया और ज़िंदगी का एक हिस्सा मानकर स्वीकार किया। एक साक्षात्कार में उनकी व्यथा कथा इस एक वाक्य से प्रकट होती है- 'कहने को उसके पास दस मकान है, मगर उनमें से घर एक भी नहीं है।'<ref name="वेबदुनिया"/> | ||
==दूसरी पारी में असफल== | ==दूसरी पारी में असफल== | ||
सन् 1990 में | सन् [[1990]] में फ़िल्मों में किस्मत आजमाने मुमताज़ अपनी दूसरी पारी में आई थीं। [[शत्रुघ्न सिन्हा]] के साथ फ़िल्म 'आँधियाँ' की, मगर नाकामयाबी मिली। मुमताज़ समझ गईं कि नई नायिकाओं से मुकाबला करना उनके लिए आसान नहीं है और उन्होंने अभिनय को अलविदा कहने में ही भलाई समझी। दूसरी पारी में असफलता के बावजूद मुमताज़ की सफलता चौंकाने वाली है। साधारण सूरत और बगैर गॉड फादर के उन्होंने सफलता का नमक अपने बल पर चखा और दूसरों को भी चखाया। | ||
==सम्मान और पुरस्कार== | |||
* फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री- खिलौना ([[1970]]) | |||
* फ़िल्मफेयर लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार (]]1996]]) | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[https://www.youtube.com/watch?v=ZUbdAwR7-lc मुमताज़ का फ़िल्मी सफ़र यू-ट्यूब पर देखें] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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05:34, 31 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
मुमताज़ | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- मुमताज़ |
मुमताज़ (अभिनेत्री)
| |
पूरा नाम | मुमताज़ |
जन्म | 31 जुलाई, 1947 |
जन्म भूमि | मुम्बई, भारत |
अभिभावक | अब्दुल सलीम अक्सारी और शदी हबीब आग़ा |
पति/पत्नी | मयूर वाधवानी |
संतान | दो (पुत्रियाँ) |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेत्री |
मुख्य फ़िल्में | ‘आपकी क़सम’, ‘रोटी’, ‘अपना देश’, 'खिलौना', 'हरे रामा हरे कृष्णा', ‘सच्चा झूठा’, राम और श्याम, मेला, तेरे मेरे सपने आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री- खिलौना (1970), फ़िल्मफेयर लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार (1996) |
नागरिकता | भारतीय |
अद्यतन | 14:38, 17 नवम्बर 2012 (IST)
|
मुमताज़ (अंग्रेज़ी: Mumtaz, जन्म: 31 जुलाई, 1947) हिन्दी फ़िल्मों की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं। चुलबुली, हंसमुख और नटखट मुमताज़ जिस ज़माने में फ़िल्मी पर्दे पर अपने अभिनय का जादू बिखरेती थीं, उस समय उनकी अदाकारी के सभी कायल थे। बॉलीवुड में जब मुमताज़ का आगाज हुआ, उस समय अभिनेत्री का मतलब शर्मिली, सौम्य और शांत किरदार वाली महिला होती थी; लेकिन मुमताज़ ने अपनी नटखट अदाओं और चुलबुले अंदाज़ से अभिनेत्री होने के सारे मायने ही बदल दिए। ‘आपकी क़सम’, ‘रोटी’, ‘अपना देश’, 'खिलौना' और ‘सच्चा झूठा’ मुमताज़ की यादगार फ़िल्में हैं। मुमताज़ ने 12 साल की उम्र में बॉलीवुड में कदम रख दिया था।
जीवन परिचय
मुमताज़ का जन्म 31 जुलाई, 1947 को मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ। अपनी छोटी बहन मलिका के साथ वे रोज़ाना स्टुडियो-दर-स्टुडियो भटकती और जैसा चाहे वैसा छोटा-मोटा रोल माँगती थी। उनकी माँ नाज़ और चाची नीलोफ़र पहले से फ़िल्मों में मौजूद थीं। लेकिन दोनों जूनियर आर्टिस्ट होने के नाते अपनी बेटियों की सिफारिश करने की पोजीशन में नहीं थीं। लेकिन मुमताज़ हर हाल में फ़िल्म अभिनेत्री बनना चाहती थीं। जूनियर आर्टिस्ट के बतौर एक बार कैमरे से सामना हो जाए, तो बाद में वे सब देख लेगी, जैसे उसके तेवर थे। जब वे निर्माता-निर्देशक से काम माँगती, तो बदले में जवाब मिलता- 'आईने में अपनी सूरत देखी है। पकोड़े जैसी नाक है।' ऐसी कठोर बातें सुनकर मुमताज़ मन मसोसकर रह जातीं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।[1]
मुमताज़ के नायक
मुमताज़ ने जूनियर आर्टिस्ट से स्टार बनने का सपना अपने मन में संजोकर रखा था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया। सत्तर के दशक में उन्होंने स्टार की हैसियत प्राप्त कर ली। उस दौर के नामी सितारे जो कभी मुमताज़ के साथ काम नहीं करना चाहते थे वे भी उनके साथ काम करने के लिए लालायित रहने लगे थे। ऐसे सितारों में शम्मी कपूर, देवानंद, संजीव कुमार, जितेन्द्र और शशि कपूर के नाम उल्लेखनीय हैं।
मुमताज़ और दारासिंह
साठ के दशक में हिन्दी सिनेमा में दो ट्रेंड एक साथ चले थे। पहला ट्रेंड था चम्बल की घाटी में जितने भी दस्यु सम्राट और दस्यु सुंदरियाँ हुईं, उनके जीवन को आधार बनाकर फ़िल्में बनाना। डाकुओं को लेकर धड़ाधड़ पटकथाएँ लिखी गईं। फ़िल्मों का नायक जब डकैत हो, तो फ़िल्मों में तीन सफल फार्मूले एक साथ शामिल हो जाते हैं। जैसे- सुरा-सुंदरी-वायलेंस विद एक्शन। दर्शक को और क्या चाहिए। सेंसर बोर्ड भी पटकथा के ताने-बाने को देखकर आँख मींच लिया करता था। दूसरा ट्रेंड चला कुश्ती और अखाड़े का। दारासिंह जैसे पहलवानों को लेकर अनेक फ़िल्म निर्माताओं ने ढेरों कुश्ती पर आधारित फ़िल्में बनाईं। इन फ़िल्मों में हिरोइन तो बस शो-पीस की तरह रखी जाती थीं। नामी हिरोइन भला ऐसी फ़िल्म में क्यों काम करने लगीं। बिल्ली के भाग्य से कई छींके एक साथ टूटे और मुमताज़ के आँचल में आ गिरे। मुमताज़ ने दारासिंह जैसे पहलवान के साथ 16 फ़िल्में की और ज्यादातर बॉक्स ऑफिस पर सफल भी रही। भारी भरकम, ऊँचे पूरे कद्दावार कद काठी के दारासिंह अपने सामने बौने आकार वाली मुमताज़ से जब प्यार का कोई डॉयलाग बोलते थे, तो दर्शक हँस-हँसकर लोटपोट हो जाया करते थे। वह रोमांटिक सीन ठेठ कॉमेडी में बदल जाता था। इस बेमेले जोड़ी ने गीत-संगीत से सजी सँवरी फ़िल्मों से दस साल तक दर्शकों का मनोरजंन किया।[1]
मुमताज़ और राजेश खन्ना
दारासिंह के अखाड़े से बाहर निकलकर मुमताज़ की जोड़ी राजेश खन्ना के साथ जमीं। उन दिनों राजेश भी सफलता की राह पर आगे बढ़ रहे थे। फ़िल्म 'दो रास्ते' में बिंदिया ऐसी चमकी और मुमताज़ के हाथों की चूड़ियाँ ऐसी खनकी कि बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नये रिकार्ड बन गए। 1969 से 74 तक इन दो कलाकारों ने 'सच्चा झूठा', 'अपना देश', 'दुश्मन', 'बंधन' और 'रोटी' जैसी सफल फ़िल्में दी। सुपरस्टार राजेश खन्ना के लगातार मुमताज़ के साथ काम करने के बाद मुमताज़ की माँग बहुत बढ़ गई। शशि कपूर ने एक बार मुमताज़ का नाम सुनकर फ़िल्म छोड़ दी थी, वे ही अपनी फ़िल्म 'चोर मचाए शोर' (1974) में मुमताज़ को नायिका बनाने पर ज़ोर देने लगे। ऐसा ही कुछ दिलीप कुमार ने किया। उन्होंने 'राम और श्याम' (1967) फ़िल्म में दो नायिकाओं में से एक का चयन मुमताज़ को लेकर किया। वी. शांताराम की फ़िल्म 'बूँद जो बन गई मोती' में अपनी बेटी की जगह मुमताज़ को प्राथमिकता दी।[1]
मुमताज़ की लोकप्रियता
मुमताज़ की सफलता का ग्राफ़ दिनों दिन बढ़ने लगा। फ़िल्मकार विजय आनंद ने फ़िल्म 'तेरे मेरे सपने', राज खोसला ने 'प्रेम कहानी' और जे. ओमप्रकाश ने 'आपकी क़सम' में मुमताज़ को हिरोइन बनाया। सफलता के पीछे सब भागते हैं। यही हाल मुमताज़ का हुआ। उसका पल्लू पकडने के लिए संजय खान (धड़कन), राजेंद्र कुमार (तांगे वाला), विश्वजीत (परदेसी, शरारत) और सुनील दत्त ने 'भाई-भाई' नामक फ़िल्में बनाईं। दस साल तक मुमताज़ ने बॉलीवुड के सितारों पर शासन किया। वे शर्मिला टैगोर के समकक्ष मानी गईं और उतना पैसा भी उन्हें दिया गया। देव आनंद की फ़िल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' मुमताज़ के कैरियर की चमकदार फ़िल्म है।
विवाह
सत्तर के दशक में अचानक कई नई हिरोइनों की बाढ़ आ गई। मुमताज़ का भी स्टार बनने का सपना सच हो गया था। गुजरात मूल के लंदनवासी मयूर वाधवानी नामक व्यापारी से शादी कर ब्रिटेन जा बसी। शादी के पहले उनका नाम संजय खान, फ़िरोज़ ख़ान, देव आनंद जैसे कुछ सितारों के साथ जोड़ा गया था, लेकिन अंत में मयूर पर उनका दिल आ गया।
प्रमुख फ़िल्में
वर्ष | फ़िल्म | वर्ष | फ़िल्म |
---|---|---|---|
1975 | प्रेम कहानी | 1974 | आप की कसम |
1974 | चोर मचाये शोर | 1974 | रोटी |
1973 | प्यार का रिश्ता | 1973 | बंधे हाथ |
1973 | लोफ़र | 1973 | झील के उस पार |
1972 | ताँगेवाला | 1972 | अपना देश |
1972 | रूप तेरा मस्ताना | 1972 | अपराध |
1971 | चाहत | 1971 | एक नारी एक ब्रह्मचारी |
1971 | जवान मोहब्बत | 1971 | तेरे मेरे सपने |
1971 | दुश्मन | 1971 | कठपुतली |
1971 | हरे रामा हरे कृष्णा | 1970 | सच्चा झूठा |
1970 | खिलौना | 1970 | हिम्मत |
1970 | भाई भाई | 1970 | माँ और ममता |
1969 | बंधन | 1969 | जिगरी दोस्त |
1969 | दो रास्ते | 1968 | गौरी |
1968 | मेरे हमदम मेरे दोस्त | 1968 | ब्रह्मचारी |
1967 | बूँद जो बन गयी मोती | 1967 | राम और श्याम |
1967 | पत्थर के सनम | 1967 | चन्दन का पालना |
1967 | हमराज़ | 1966 | दादी माँ |
1966 | लड़का लड़की | 1966 | पति पत्नी |
1966 | सावन की घटा | 1966 | ये रात फिर ना आयेगी |
1966 | प्यार किये जा | 1966 | सूरज |
1965 | बेदाग़ | 1965 | सिकन्दर-ए-आज़म |
1965 | बहू बेटी | 1965 | खानदान |
1965 | मेरे सनम | 1963 | मुझे जीने दो |
1962 | मैं शादी करने चला | 1962 | डॉक्टर विद्या |
कैंसर की बीमारी
53 वर्ष की उम्र में मुमताज़ को कैंसर हो गया। इस बीमारी से उन्होंने निजात पा ली, मगर थायराइड की जकड़न अभी मौजूद है। उनकी दो बेटियाँ हैं। अपनी बीमारी के दौरान उनके नजदीकी लोग उनसे दूर हो गए थे। ज़िंदगी का यह कड़वा घूँट उन्होंने धीरज रखकर पिया और ज़िंदगी का एक हिस्सा मानकर स्वीकार किया। एक साक्षात्कार में उनकी व्यथा कथा इस एक वाक्य से प्रकट होती है- 'कहने को उसके पास दस मकान है, मगर उनमें से घर एक भी नहीं है।'[1]
दूसरी पारी में असफल
सन् 1990 में फ़िल्मों में किस्मत आजमाने मुमताज़ अपनी दूसरी पारी में आई थीं। शत्रुघ्न सिन्हा के साथ फ़िल्म 'आँधियाँ' की, मगर नाकामयाबी मिली। मुमताज़ समझ गईं कि नई नायिकाओं से मुकाबला करना उनके लिए आसान नहीं है और उन्होंने अभिनय को अलविदा कहने में ही भलाई समझी। दूसरी पारी में असफलता के बावजूद मुमताज़ की सफलता चौंकाने वाली है। साधारण सूरत और बगैर गॉड फादर के उन्होंने सफलता का नमक अपने बल पर चखा और दूसरों को भी चखाया।
सम्मान और पुरस्कार
- फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री- खिलौना (1970)
- फ़िल्मफेयर लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार (]]1996]])
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 मुमताज़ : हजारों शाहजहाँ वाली! (हिन्दी) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 17 नवम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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