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'''नादिरा''' अथवा '''फ़रहत एज़ेकेल नादिरा''' ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]: ''Nadira'' अथवा ''Farhat Ezekiel Nadira'') (जन्म: [[5 दिसंबर]], [[1932]], इज़राइल; मृत्यु: [[9 फ़रवरी]], [[2006]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों की ख्यातिप्राप्त और सुन्दर अभिनेत्रियों में से एक थीं। फ़िल्मी परदे पर नादिरा आत्मविश्वास से भरपूर नजर आती थीं। वे अपने किरदार में पूरी तरह से समा जाती थीं। साठ से भी अधिक फ़िल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय की छाप छोडऩे वालीं नादिरा [[दिलीप कुमार]], [[राजकपूर]], [[मीना कुमारी]], [[राजकुमार]] और [[अमिताभ बच्चन]] आदि अनेक कलाकारों की फ़िल्मों में सिर्फ सहायक ही नहीं, बल्कि विशिष्ट भी बन जाती थीं। अभिनेत्री नादिरा अपने समय से कहीं आगे थीं। लाजवाब ख़ूबसूरती और शाहाना अंदाज़की शख़्सियत रखने के बावजूद उन्होंने उस दौर में खलनायिका बनना पसंद किया था, जबकि अन्य नायिकाएँ इस तरह की भूमिकाएँ करने से घबराती थीं।
'''नादिरा''' अथवा '''फ़रहत एज़ेकेल नादिरा''' ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]: ''Nadira'' अथवा ''Farhat Ezekiel Nadira'') (जन्म: [[5 दिसंबर]], [[1932]], इज़राइल; मृत्यु: [[9 फ़रवरी]], [[2006]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों की ख्यातिप्राप्त और सुन्दर अभिनेत्रियों में से एक थीं। फ़िल्मी परदे पर नादिरा आत्मविश्वास से भरपूर नजर आती थीं। वे अपने किरदार में पूरी तरह से समा जाती थीं। साठ से भी अधिक फ़िल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय की छाप छोडऩे वालीं नादिरा [[दिलीप कुमार]], [[राजकपूर]], [[मीना कुमारी]], [[राजकुमार]] और [[अमिताभ बच्चन]] आदि अनेक कलाकारों की फ़िल्मों में सिर्फ सहायक ही नहीं, बल्कि विशिष्ट भी बन जाती थीं। अभिनेत्नी नादिरा अपने समय से कहीं आगे थीं। लाजवाब ख़ूबसूरती और शाहाना अंदाज की शख़्सियत रखने के बावजूद उन्होंने उस दौर में खलनायिका बनना पसंद किया था, जबकि अन्य नायिकाएँ इस तरह की भूमिकाएँ करने से घबराती थीं।
==जन्म तथा परवरिश==
==जन्म तथा परवरिश==
नादिरा का जन्म [[5 दिसम्बर]], 1932 को इज़राइल में एक बगदादी यहूदी परिवार में हुआ था। उनकी परवरिश एक लड़के के समान हुई थी। वह अपनी गली में वहाँ के लड़कों के साथ फुटबॉल खेला करती थीं। [[गिल्ली डंडा]] खेलना भी उन्हें बहुत पसन्द था। उनके स्वभाव में लड़कों सी शरारत और हुड़दंगपन पूरी उम्र बना रहा। वह महिला मित्रों से ज़्यादा खुशी, पुरुष जमावड़े में गपशप करके हासिल करती थी।
नादिरा का जन्म [[5 दिसम्बर]], 1932 को इज़राइल में एक बगदादी [[यहूदी]] परिवार में हुआ था। उनकी परवरिश एक लड़के के समान हुई थी। वह अपनी गली में वहाँ के लड़कों के साथ फुटबॉल खेला करती थीं। [[गिल्ली डंडा]] खेलना भी उन्हें बहुत पसन्द था। उनके स्वभाव में लड़कों सी शरारत और हुड़दंगपन पूरी उम्र बना रहा। वह महिला मित्रों से ज़्यादा खुशी, पुरुष जमावड़े में गपशप करके हासिल करती थी।
==फ़िल्मी शुरुआत==
==फ़िल्मी शुरुआत==
हिन्दी दर्शकों में प्रसिद्धि पा चुकीं नादिरा ने अपने पाँच दशक लंबे फ़िल्मी सफर में अनेकों फ़िल्मों में काम किया, जिनमें उन्होंने नायिका, खलनायिका की भूमिका करने के साथ चरित्न भूमिकाएँ भी निभाईं। उनके अभिनय कैरियर की शुरुआत महबूब ख़ान की सन [[1952]] में निर्मित फ़िल्म 'आन' से हुई, जिसमें उन्होंने एक बिगडैल राजकुमारी की भूमिका निभाई थी। उन्होंने उस समय की सहमी हुई नायिकाओं के विपरीत एक बोल्ड दृश्य भी दिया। इस फ़िल्म में [[दिलीप कुमार]] उनके नायक थे। इसके बाद उन्होंने 'श्री 420' ([[1956]]), 'दिल अपना और प्रीत पराई' ([[1960]]), 'पाकीजा' ([[1971]]), 'अमर अकबर एंथनी' ([[1977]]) आदि फ़िल्मों में काम किया, जिनमें उन्होंने अधिकतर ऐसी महिला की भूमिका निभाई, जो नायक को अपनी अदाओं से जाल में फंसाने की कोशिश करती है।  
हिन्दी दर्शकों में प्रसिद्धि पा चुकीं नादिरा ने अपने पाँच दशक लंबे फ़िल्मी सफर में अनेकों फ़िल्मों में काम किया, जिनमें उन्होंने नायिका, खलनायिका की भूमिका करने के साथ चरित्र भूमिकाएँ भी निभाईं। उनके अभिनय कैरियर की शुरुआत महबूब ख़ान की सन [[1952]] में निर्मित फ़िल्म 'आन' से हुई, जिसमें उन्होंने एक बिगडैल राजकुमारी की भूमिका निभाई थी। उन्होंने उस समय की सहमी हुई नायिकाओं के विपरीत एक बोल्ड दृश्य भी दिया। इस फ़िल्म में [[दिलीप कुमार]] उनके नायक थे।
 
इस फ़िल्म में नादिरा द्वारा निभाए गए राजकुमारी राजश्री के रोल के लिए उनसे पहले [[नर्गिस]] को चुना गया था, लेकिन किस्मत कुछ और ही लिख रही थी। महबूब ख़ान इस फ़िल्म को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते थे। उन्होंने नर्गिस को तारीख़ देने के लिए कहा, किंतु नर्गिस ने अपनी दुविधा जता दी कि उन्होंने [[राजकपूर]] की फ़िल्म 'आवारा' साइन कर ली है। महबूब ख़ान जानते थे कि नर्गिस कभी भी राजकपूर की बात नहीं टाल सकतीं। महबूब ख़ान नर्गिस को अपनी फ़िल्म में न लेने की तकलीफ छिपा गए, लेकिन उनकी पत्नी सरदार अख्तर ने तय किया कि वह नर्गिस का कोई विकल्प खड़ा करेंगी। बहुत सोचने के बाद उनकी नजर 'फरहत' (नादिरा) पर टिक गई। उनके नाम पर महबूब भी सहमत हो गए। अपनी फ़िल्म 'आन' में रोल देकर उनकी अलग तरह की सुंदरता को दुनिया के सामने लाने का मन बनाया। उनसे बात की और तय हुआ कि वही 'आन' में दिलीप कुमार के अपोजिट हिरोइन होंगी। फरहत को तब इस फ़िल्म में मशहूर हीरो दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिल रहा था, वे सुहाने ख्वाब देखने लगीं। फरहत को नया नाम दिया गया 'नादिरा', जो 'आन' के रिलीज होते ही रातोंरात स्टार श्रेणी में आ गया।
==प्रसिद्ध कलाकारों के साथ कार्य==
यह अभिनेत्री नादिरा की कामयाबी ही मानी जाएगी कि उन्हें हर बड़े हीरो के साथ काम करने का अवसर मिला। उस समय की तिकड़ी भी उनकी उपेक्षा नहीं कर सकी। नादिरा [[दिलीप कुमार]] के साथ 'आन में' आई और [[देव आनंद]] के साथ 'पॉकेटमार' में। [[राजकपूर]] ने उन्हें फ़िल्म 'श्री 420' में 'माया' का अलग अंदाज़वाली भूमिका दी। [[अशोक कुमार]] के साथ 'नगमा', [[शम्मी कपूर]] के साथ 'सिपहसालर', [[प्रदीप कुमार]] के साथ 'पुलिस' और [[भारत भूषण]] के साथ 'ग्यारह हजार लड़कियाँ' आई।
====गायकी====
[[चित्र:Nadira-1.jpg|thumb|200px|अभिनेत्री नादिरा]]
सन [[1954]] में गायक-अभिनेता [[तलत महमूद]] के साथ दो फ़िल्मों 'डाक बाबू' और 'वारिस' में भी काम किया। ये फ़िल्में कामयाब रहीं। विशेष बात यह थी कि इन फ़िल्मों में नादिरा ने [[तलत महमूद]] के साथ कई गीत भी गाए और अपनी आवाज़ से लोगों को दीवाना बनाया। इस तरह नादिरा ने तीस सालों तक फ़िल्मों में लगातार काम किया। पूरे कैरियर में नादिरा ने कुछ और अभिनेताओं के साथ भी काम किया, उनमें मोतीलाल, आगा, अनवर हुसैन, [[पी. जयराज|जयराज]], [[बलराज साहनी]], [[उत्पल दत्त]], दलजीत, [[धर्मेन्द्र]], [[राजेश खन्ना]], विनोद खन्ना, [[मिथुन चक्रवर्ती]] और ऋषि कपूर आदि उल्लेखनीय हैं।
 
इसके बाद उन्होंने 'श्री 420' ([[1956]]), 'दिल अपना और प्रीत पराई' ([[1960]]), 'पाकीज़ा' ([[1971]]), 'अमर अकबर एंथनी' ([[1977]]) आदि फ़िल्मों में काम किया, जिनमें उन्होंने अधिकतर ऐसी महिला की भूमिका निभाई, जो नायक को अपनी अदाओं से जाल में फंसाने की कोशिश करती है।
====चरित्र अभिनय====
यद्यपि अभिनेत्री नादिरा ने ज़्यादातर फ़िल्मों में खलनायिका की ही भूमिकाएँ निभाई थीं, लेकिन समय के साथ उन्होंने खुद को चरित्र अभिनेत्री के रूप में भी ढाल लिया था। बावजूद इसके उनका कद फ़िल्म की किसी मुख्य हिरोइन से कम नहीं होता था। उन्होंने इस्माइल मर्चेट की एक [[अंग्रेज़ी]] फ़िल्म 'काटन मैरी' ([[1999]]) में भी काम किया था।
====विवाह====
नादिरा ने दो [[विवाह]] किये थे, लेकिन दोनों ही बार वह वैवाहिक सुख से वंचित रहीं। उनका प्रथम [[विवाह]] [[उर्दू भाषा|उर्दू]] शायर, गीतकार और फ़िल्म निर्माता नक्शब से हुआ था। इस दाम्पत्य की बड़ी ही दु:खद परिणति हुई। तब नादिरा ने दूसरा विवाह एक विवाहित व्यक्ति से किया। किंतु ये रिश्ता भी मात्र एक सप्ताह ही चल पाया।
==प्रमुख फ़िल्में==
==प्रमुख फ़िल्में==
*आन
{| width="60%" class="bharattable-pink"
*श्री 420
|+नादिरा की प्रमुख फ़िल्में
*दिल अपना और प्रीत पराई
|-
*पाकीज़ा
! वर्ष
*जूली
! फ़िल्म
*सागर
! वर्ष
*तमन्ना
! फ़िल्म
[[चित्र:Nadira-2.jpg|thumb|left|नादिरा]]
|-
==अंतिम फ़िल्म==
|1954
शाहरुख खान और ऐश्वर्या राय अभिनीत फ़िल्म, जोश नादिरा की अंतिम फ़िल्म थी। फ़िल्म जूली के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला। इस फ़िल्म में उन्होंने नायिका जूली की माँ मार्गरेट का किरदार निभाया।
|वारिस
==मृत्यु==
|1971
जीवन के अंतिम तीन वर्षो में तो नादिरा ने खुद को घर में कैद सा कर लिया और जमकर शराब पीने लगीं, जिसकी वजह से नादिरा को कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया। नादिरा [[मुम्बई]] के ताड़देव में अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ 9 फ़रवरी 2006 को 74 वर्ष की उम्र में उनका मृत्यु हो गया।  
| कहीं आर कहीं पार
|-
|1954
| डाक बाबू
|1973
| हंसते जख्म
|-
|1955
| रफ्तार
|1973
| प्यार का रिश्ता
|-
|1955
| जलन
|1975
| जूली
|-
|1956
| समुद्री डाकू
|1975
| धर्मात्मा
|-
|1956
| पॉकेटमार
|1977
| आशिक हूँ बहारों का
|-
|1963
| मेरी सूरत तेरी आँखें
|1979
| बिन फेरे हम तेरे
|-
|1966
| सपनों का सौदागर
|1979
| दुनिया मेरी जेब में
|-
|-
|1969
| तलाश
|1980
| चालबाज
|-
|1969
| जहाँ प्यार मिले
|1982
| रास्ते प्यार के
|-
|1969
| इंसाफ का मंदिर
|1985
| सागर
|-
|1970
| सफर
|1992
| महबूबा
|-
| 1952
| आन
| 1997
| तमन्ना
|}
====अंतिम फ़िल्म====
[[शाहरुख ख़ान]] और [[ऐश्वर्या राय]] अभिनीत फ़िल्म 'जोश' नादिरा की अंतिम फ़िल्म थी। फ़िल्म 'जूली' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का 'फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार' भी मिला था। इस फ़िल्म में उन्होंने नायिका 'जूली' की माँ मार्गरेट का किरदार निभाया था।
==निधन==
नादिरा के अधिकांश रिश्तेदारों के इज़रायल चले के जाने के कारण वे जीवन के अंतिम दिनों में अकेली रह गई थीं। अंतिम तीन वर्षो में तो उन्होंने खुद को घर में कैद-सा कर लिया। वे बहुत ज़्यादा शराब पीने लगी थी। शरीर की कमज़ोरी के कारण उन्हें कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया। उन्हें [[मुम्बई]] के ताड़देव में अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ [[9 फ़रवरी]], [[2006]] 74 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।
   
   
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06:40, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

नादिरा एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- नादिरा (बहुविकल्पी)
नादिरा
नादिरा
नादिरा
पूरा नाम फ़रहत एज़ेकेल नादिरा
प्रसिद्ध नाम नादिरा
जन्म 5 दिसंबर, 1932
जन्म भूमि इज़राइल
मृत्यु 9 फ़रवरी, 2006
मृत्यु स्थान मुंबई
कर्म भूमि मुंबई
कर्म-क्षेत्र अभिनेत्री
मुख्य फ़िल्में 'आन', 'श्री 420', 'दिल अपना और प्रीत पराई', 'पाकीज़ा', 'जूली', 'सागर', 'तमन्ना', 'इंसाफ का मंदिर', 'पॉकेटमार', 'तलाश', 'धर्मात्मा' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार'
प्रसिद्धि खलनायिका
नागरिकता भारतीय
अंतिम फ़िल्म जोश
अन्य जानकारी नादिरा ने अपने दौर की फ़िल्मों में खलनायिका बनना पसंद किया था, जबकि अन्य नायिकाएँ इस तरह की भूमिकाएँ करने से घबराती थीं।

नादिरा अथवा फ़रहत एज़ेकेल नादिरा (अंग्रेज़ी: Nadira अथवा Farhat Ezekiel Nadira) (जन्म: 5 दिसंबर, 1932, इज़राइल; मृत्यु: 9 फ़रवरी, 2006) हिन्दी फ़िल्मों की ख्यातिप्राप्त और सुन्दर अभिनेत्रियों में से एक थीं। फ़िल्मी परदे पर नादिरा आत्मविश्वास से भरपूर नजर आती थीं। वे अपने किरदार में पूरी तरह से समा जाती थीं। साठ से भी अधिक फ़िल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय की छाप छोडऩे वालीं नादिरा दिलीप कुमार, राजकपूर, मीना कुमारी, राजकुमार और अमिताभ बच्चन आदि अनेक कलाकारों की फ़िल्मों में सिर्फ सहायक ही नहीं, बल्कि विशिष्ट भी बन जाती थीं। अभिनेत्री नादिरा अपने समय से कहीं आगे थीं। लाजवाब ख़ूबसूरती और शाहाना अंदाज़की शख़्सियत रखने के बावजूद उन्होंने उस दौर में खलनायिका बनना पसंद किया था, जबकि अन्य नायिकाएँ इस तरह की भूमिकाएँ करने से घबराती थीं।

जन्म तथा परवरिश

नादिरा का जन्म 5 दिसम्बर, 1932 को इज़राइल में एक बगदादी यहूदी परिवार में हुआ था। उनकी परवरिश एक लड़के के समान हुई थी। वह अपनी गली में वहाँ के लड़कों के साथ फुटबॉल खेला करती थीं। गिल्ली डंडा खेलना भी उन्हें बहुत पसन्द था। उनके स्वभाव में लड़कों सी शरारत और हुड़दंगपन पूरी उम्र बना रहा। वह महिला मित्रों से ज़्यादा खुशी, पुरुष जमावड़े में गपशप करके हासिल करती थी।

फ़िल्मी शुरुआत

हिन्दी दर्शकों में प्रसिद्धि पा चुकीं नादिरा ने अपने पाँच दशक लंबे फ़िल्मी सफर में अनेकों फ़िल्मों में काम किया, जिनमें उन्होंने नायिका, खलनायिका की भूमिका करने के साथ चरित्र भूमिकाएँ भी निभाईं। उनके अभिनय कैरियर की शुरुआत महबूब ख़ान की सन 1952 में निर्मित फ़िल्म 'आन' से हुई, जिसमें उन्होंने एक बिगडैल राजकुमारी की भूमिका निभाई थी। उन्होंने उस समय की सहमी हुई नायिकाओं के विपरीत एक बोल्ड दृश्य भी दिया। इस फ़िल्म में दिलीप कुमार उनके नायक थे।

इस फ़िल्म में नादिरा द्वारा निभाए गए राजकुमारी राजश्री के रोल के लिए उनसे पहले नर्गिस को चुना गया था, लेकिन किस्मत कुछ और ही लिख रही थी। महबूब ख़ान इस फ़िल्म को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते थे। उन्होंने नर्गिस को तारीख़ देने के लिए कहा, किंतु नर्गिस ने अपनी दुविधा जता दी कि उन्होंने राजकपूर की फ़िल्म 'आवारा' साइन कर ली है। महबूब ख़ान जानते थे कि नर्गिस कभी भी राजकपूर की बात नहीं टाल सकतीं। महबूब ख़ान नर्गिस को अपनी फ़िल्म में न लेने की तकलीफ छिपा गए, लेकिन उनकी पत्नी सरदार अख्तर ने तय किया कि वह नर्गिस का कोई विकल्प खड़ा करेंगी। बहुत सोचने के बाद उनकी नजर 'फरहत' (नादिरा) पर टिक गई। उनके नाम पर महबूब भी सहमत हो गए। अपनी फ़िल्म 'आन' में रोल देकर उनकी अलग तरह की सुंदरता को दुनिया के सामने लाने का मन बनाया। उनसे बात की और तय हुआ कि वही 'आन' में दिलीप कुमार के अपोजिट हिरोइन होंगी। फरहत को तब इस फ़िल्म में मशहूर हीरो दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिल रहा था, वे सुहाने ख्वाब देखने लगीं। फरहत को नया नाम दिया गया 'नादिरा', जो 'आन' के रिलीज होते ही रातोंरात स्टार श्रेणी में आ गया।

प्रसिद्ध कलाकारों के साथ कार्य

यह अभिनेत्री नादिरा की कामयाबी ही मानी जाएगी कि उन्हें हर बड़े हीरो के साथ काम करने का अवसर मिला। उस समय की तिकड़ी भी उनकी उपेक्षा नहीं कर सकी। नादिरा दिलीप कुमार के साथ 'आन में' आई और देव आनंद के साथ 'पॉकेटमार' में। राजकपूर ने उन्हें फ़िल्म 'श्री 420' में 'माया' का अलग अंदाज़वाली भूमिका दी। अशोक कुमार के साथ 'नगमा', शम्मी कपूर के साथ 'सिपहसालर', प्रदीप कुमार के साथ 'पुलिस' और भारत भूषण के साथ 'ग्यारह हजार लड़कियाँ' आई।

गायकी

अभिनेत्री नादिरा

सन 1954 में गायक-अभिनेता तलत महमूद के साथ दो फ़िल्मों 'डाक बाबू' और 'वारिस' में भी काम किया। ये फ़िल्में कामयाब रहीं। विशेष बात यह थी कि इन फ़िल्मों में नादिरा ने तलत महमूद के साथ कई गीत भी गाए और अपनी आवाज़ से लोगों को दीवाना बनाया। इस तरह नादिरा ने तीस सालों तक फ़िल्मों में लगातार काम किया। पूरे कैरियर में नादिरा ने कुछ और अभिनेताओं के साथ भी काम किया, उनमें मोतीलाल, आगा, अनवर हुसैन, जयराज, बलराज साहनी, उत्पल दत्त, दलजीत, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती और ऋषि कपूर आदि उल्लेखनीय हैं।

इसके बाद उन्होंने 'श्री 420' (1956), 'दिल अपना और प्रीत पराई' (1960), 'पाकीज़ा' (1971), 'अमर अकबर एंथनी' (1977) आदि फ़िल्मों में काम किया, जिनमें उन्होंने अधिकतर ऐसी महिला की भूमिका निभाई, जो नायक को अपनी अदाओं से जाल में फंसाने की कोशिश करती है।

चरित्र अभिनय

यद्यपि अभिनेत्री नादिरा ने ज़्यादातर फ़िल्मों में खलनायिका की ही भूमिकाएँ निभाई थीं, लेकिन समय के साथ उन्होंने खुद को चरित्र अभिनेत्री के रूप में भी ढाल लिया था। बावजूद इसके उनका कद फ़िल्म की किसी मुख्य हिरोइन से कम नहीं होता था। उन्होंने इस्माइल मर्चेट की एक अंग्रेज़ी फ़िल्म 'काटन मैरी' (1999) में भी काम किया था।

विवाह

नादिरा ने दो विवाह किये थे, लेकिन दोनों ही बार वह वैवाहिक सुख से वंचित रहीं। उनका प्रथम विवाह उर्दू शायर, गीतकार और फ़िल्म निर्माता नक्शब से हुआ था। इस दाम्पत्य की बड़ी ही दु:खद परिणति हुई। तब नादिरा ने दूसरा विवाह एक विवाहित व्यक्ति से किया। किंतु ये रिश्ता भी मात्र एक सप्ताह ही चल पाया।

प्रमुख फ़िल्में

नादिरा की प्रमुख फ़िल्में
वर्ष फ़िल्म वर्ष फ़िल्म
1954 वारिस 1971 कहीं आर कहीं पार
1954 डाक बाबू 1973 हंसते जख्म
1955 रफ्तार 1973 प्यार का रिश्ता
1955 जलन 1975 जूली
1956 समुद्री डाकू 1975 धर्मात्मा
1956 पॉकेटमार 1977 आशिक हूँ बहारों का
1963 मेरी सूरत तेरी आँखें 1979 बिन फेरे हम तेरे
1966 सपनों का सौदागर 1979 दुनिया मेरी जेब में
1969 तलाश 1980 चालबाज
1969 जहाँ प्यार मिले 1982 रास्ते प्यार के
1969 इंसाफ का मंदिर 1985 सागर
1970 सफर 1992 महबूबा
1952 आन 1997 तमन्ना

अंतिम फ़िल्म

शाहरुख ख़ान और ऐश्वर्या राय अभिनीत फ़िल्म 'जोश' नादिरा की अंतिम फ़िल्म थी। फ़िल्म 'जूली' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का 'फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार' भी मिला था। इस फ़िल्म में उन्होंने नायिका 'जूली' की माँ मार्गरेट का किरदार निभाया था।

निधन

नादिरा के अधिकांश रिश्तेदारों के इज़रायल चले के जाने के कारण वे जीवन के अंतिम दिनों में अकेली रह गई थीं। अंतिम तीन वर्षो में तो उन्होंने खुद को घर में कैद-सा कर लिया। वे बहुत ज़्यादा शराब पीने लगी थी। शरीर की कमज़ोरी के कारण उन्हें कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया। उन्हें मुम्बई के ताड़देव में अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ 9 फ़रवरी, 2006 74 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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