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'''बारहवीं रात''' प्रसिद्ध [[हिन्दी]] साहित्यकार [[रांगेय राघव]] द्वारा अनुवादित एक नाटक है। यह शेक्सपियर के एक नाटक का ही हिन्दी अनुवाद है। 'बारहवीं रात' नाटक का प्रकाशन 'राजपाल एंड संस' द्वारा किया गया था। साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया है, जो इस सीरीज में पाठको को उपलब्ध कराये गये हैं। 'बारहवीं रात' शेक्सपियर एक सुखान्त नाटक है। इसका लेखन-काल अन्तस्साक्ष्य और बहिस्साक्ष्य की परीक्षा के बाद लगभग 1601 ई. माना जाता है। इस नाटक में दो कथाएँ हैं- एक प्रेम की तथा दूसरी हास्य।  
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==भूमिका==
==भूमिका==
'बारहवीं रात' शेक्सपियर का एक सुखान्त नाटक है। नाटक में दो कथाएँ हैं, एक की कथा प्रेम पर आधारित है तथा दूसरी की हास्य पर। प्रथम का स्त्रोत इन ग्रन्थों से माना जाता है- एपोलोनियस और सिल्ला; बैण्डेलो के उपन्यास के संग्रह में इसका प्रारम्भिक रूप माना जाता है। बैण्डेलो की इतालवी भाषा की रचना से यह कुछ परिवर्तन के साथ बैलेफोरेस्ट द्वारा फ्रेंच में उतर आई। किन्तु इसकी हास्य कथा शेक्सपियर की अपनी ही है। वह मौलिक है। इन हास्य पात्रों का सृजन कवि की अपनी प्रतिभा का परिणाम है। नाटक 'बारहवीं रात' एक दूसरा नाम भी है- 'जैसी तुम्हारी इच्छा हो'।<ref name="ab">{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=4870 |title=बारहवीं रात|accessmonthday=31 जनवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
'बारहवीं रात' शेक्सपियर का एक सुखान्त नाटक है। नाटक में दो कथाएँ हैं, एक की कथा प्रेम पर आधारित है तथा दूसरी की हास्य पर। प्रथम का स्त्रोत इन ग्रन्थों से माना जाता है- एपोलोनियस और सिल्ला; बैण्डेलो के उपन्यास के संग्रह में इसका प्रारम्भिक रूप माना जाता है। बैण्डेलो की इतालवी भाषा की रचना से यह कुछ परिवर्तन के साथ बैलेफोरेस्ट द्वारा फ्रेंच में उतर आई। किन्तु इसकी हास्य कथा शेक्सपियर की अपनी ही है। वह मौलिक है। इन हास्य पात्रों का सृजन कवि की अपनी प्रतिभा का परिणाम है। नाटक 'बारहवीं रात' एक दूसरा नाम भी है- 'जैसी तुम्हारी इच्छा हो'।<ref name="ab">{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=4870 |title=बारहवीं रात|accessmonthday=31 जनवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
====कथानक====
====कथानक====
उन दिनों के हल्की चीज़ों को देखने के शौकी़न दर्शकों के लिए यह नाम काफ़ी दिलचस्प था। बड़े दिन यानी क्रिसमस के बारह दिन बाद, अर्थात [[6 जनवरी]] को [[इंग्लैण्ड]] में एक उत्सव हुआ करता था, जो [[क्रिसमस]] के बाद काफ़ी महत्त्व रखता था। उस दिन कई खेल भी होते थे। सब मित्र और परिवार के लोग इकट्ठे होते थे और केक काटा जाता था। उसे बाँटने पर जिस पुरुष और स्त्री के केक के टुकड़ों में मटर और सेम पाए जाते थे, उन्हें उस दिन राजा और रानी मान लिया जाता था। इस नाटक में भी तीन पति और पत्नियाँ बनती हैं। शायद इसीलिए इसका नाम 'बारहवीं रात' रखा गया है। दूसरा नाम 'जैसा तुम चाहो' से बहुत मिलता है या इसका अर्थ है कि न यह पूरी तरह सुखान्त नाटक है, न रोमान्स ही है। न दुःखान्त ही है, न है मास्क। वही मान लो, जैसी तुम्हारी इच्छा हो।
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1607 ई. में 'जैसी तुम्हारी इच्छा हो' नाम से मार्स्टन की भी एक कॉमेडी छपी थी। नाटक का स्थान इलिरिया है, जो एक काल्पनिक स्थान है। वैसे ही जैसे शेक्सपियर के एक अन्य नाटक 'द विन्टर्ज़ टेल' का स्थान 'बोहीमिया' है।
1607 ई. में 'जैसी तुम्हारी इच्छा हो' नाम से मार्स्टन की भी एक कॉमेडी छपी थी। नाटक का स्थान इलिरिया है, जो एक काल्पनिक स्थान है। वैसे ही जैसे शेक्सपियर के एक अन्य नाटक 'द विन्टर्ज़ टेल' का स्थान 'बोहीमिया' है।
==रांगेय राघव के अनुसार==
==रांगेय राघव के अनुसार==

07:49, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

बारहवीं रात -रांगेय राघव
'बारहवीं रात' का आवरण पृष्ठ
'बारहवीं रात' का आवरण पृष्ठ
लेखक शेक्सपियर
अनुवादक रांगेय राघव
प्रकाशक राजपाल एंड संस
ISBN 81-7028-174-1
देश भारत
पृष्ठ: 112
भाषा हिन्दी
प्रकार नाटक

बारहवीं रात प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रांगेय राघव द्वारा अनुवादित एक नाटक है। यह शेक्सपियर के एक नाटक का ही हिन्दी अनुवाद है। 'बारहवीं रात' नाटक का प्रकाशन 'राजपाल एंड संस' द्वारा किया गया था। साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया है, जो इस सीरीज में पाठको को उपलब्ध कराये गये हैं। 'बारहवीं रात' शेक्सपियर एक सुखान्त नाटक है। इसका लेखन-काल अन्तस्साक्ष्य और बहिस्साक्ष्य की परीक्षा के बाद लगभग 1601 ई. माना जाता है। इस नाटक में दो कथाएँ हैं- एक प्रेम की तथा दूसरी हास्य।

भूमिका

'बारहवीं रात' शेक्सपियर का एक सुखान्त नाटक है। नाटक में दो कथाएँ हैं, एक की कथा प्रेम पर आधारित है तथा दूसरी की हास्य पर। प्रथम का स्त्रोत इन ग्रन्थों से माना जाता है- एपोलोनियस और सिल्ला; बैण्डेलो के उपन्यास के संग्रह में इसका प्रारम्भिक रूप माना जाता है। बैण्डेलो की इतालवी भाषा की रचना से यह कुछ परिवर्तन के साथ बैलेफोरेस्ट द्वारा फ्रेंच में उतर आई। किन्तु इसकी हास्य कथा शेक्सपियर की अपनी ही है। वह मौलिक है। इन हास्य पात्रों का सृजन कवि की अपनी प्रतिभा का परिणाम है। नाटक 'बारहवीं रात' एक दूसरा नाम भी है- 'जैसी तुम्हारी इच्छा हो'।[1]

कथानक

उन दिनों के हल्की चीज़ों को देखने के शौकी़न दर्शकों के लिए यह नाम काफ़ी दिलचस्प था। बड़े दिन यानी क्रिसमस के बारह दिन बाद, अर्थात् 6 जनवरी को इंग्लैण्ड में एक उत्सव हुआ करता था, जो क्रिसमस के बाद काफ़ी महत्त्व रखता था। उस दिन कई खेल भी होते थे। सब मित्र और परिवार के लोग इकट्ठे होते थे और केक काटा जाता था। उसे बाँटने पर जिस पुरुष और स्त्री के केक के टुकड़ों में मटर और सेम पाए जाते थे, उन्हें उस दिन राजा और रानी मान लिया जाता था। इस नाटक में भी तीन पति और पत्नियाँ बनती हैं। शायद इसीलिए इसका नाम 'बारहवीं रात' रखा गया है। दूसरा नाम 'जैसा तुम चाहो' से बहुत मिलता है या इसका अर्थ है कि न यह पूरी तरह सुखान्त नाटक है, न रोमान्स ही है। न दुःखान्त ही है, न है मास्क। वही मान लो, जैसी तुम्हारी इच्छा हो। 1607 ई. में 'जैसी तुम्हारी इच्छा हो' नाम से मार्स्टन की भी एक कॉमेडी छपी थी। नाटक का स्थान इलिरिया है, जो एक काल्पनिक स्थान है। वैसे ही जैसे शेक्सपियर के एक अन्य नाटक 'द विन्टर्ज़ टेल' का स्थान 'बोहीमिया' है।

रांगेय राघव के अनुसार

नाटक 'बारहवीं रात' में चरित्र-चित्रण के दृष्टिकोण से इसमें वायोला, मालवोलियो और सर टोबी, ये तीन पात्र ऐसे हैं, जिनकी याद रह जाती है। विदूषक का पार्ट कोई विशेष नहीं है। किन्तु सम्पूर्ण दृष्टि से, व्यक्तिगत रूप से मुझे यह नाटक गहरा नहीं लगा, क्योंकि वायोला का अन्तर्द्वन्द्व जो इस कथा का प्राण है, मुखर नहीं हो सका है। कट्टर विशुद्धतावाद का आन्दोलन उन दिनों शेक्सपियर के आक्रमण का विषय बना है। मालवोलिया एक विशुद्धतावादी पात्र है, जिसमें ढोंग और अहंकार को दिखाया गया है। विशुद्धतावादी आन्दोलन नाटक-घरों और आन्दोलन के साधनों पर सीधा प्रहार कर रहा था। शेक्सपियर के युग का अन्त इन्हीं कट्टरपन्थी ईसाईयों के विकास में हुआ था, जिन्होंने नाटक को काफ़ी क्षति पहुँचाई थी। किन्तु इस नाटक के अतिरिक्त शेक्सपियर में अन्यत्र इन लोगों पर ऐसे प्रहार नहीं मिलते, वैसे शेक्सपियर में इनके प्रति कोई बुरी कट्टर भावना नहीं थी। वह केवल दिल्लगी करता है, सहिष्णुता से काम लेता है। किन्तु वैसे यह भी निश्चय से नहीं कहा जा सकता। शेक्सपियर तो जैसा पात्र होता है, उसके अनुरूप ही उससे बात कराता है और इसीलिए उसकी कला इतनी गहरी उतर गई है, क्योंकि वह तो मानव-स्वभाव का पारखी है। सर ऐण्ड्रू भी अनेक बातें कहता है, पर वह सब उसी का चरित्र है, शेक्सपियर का अपना कोई मत वहाँ नहीं है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 बारहवीं रात (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 31 जनवरी, 2013।

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