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'''कमाल अमरोही''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kamal Amrohi'', जन्म: 17 जनवरी 1918 - मृत्यु: 11 फ़रवरी, 1993) महल, पाकीज़ा और रज़िया सुल्तान जैसी भव्य कलात्मक फ़िल्मों को परदे पर काव्य की रचना करने वाले निर्माता-निर्देशक थे। कमाल अमरोही ने बेहतरीन गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक तथा निर्माता एवं निर्देशक के रूप में भारतीय सिनेमा पर अपनी अमिट छाप छोड़ी और उसे एक दिशा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पाकीज़ा उनकी ज़िंदगी का ड्रीम प्रोजेक्ट थी। अपने फ़िल्मी जीवन के आखिरी दौर में वह 'अंतिम मुग़ल' नाम से फ़िल्म बनाना चाहते थे, लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया।
'''कमाल अमरोही''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kamal Amrohi'', जन्म: [[17 जनवरी]], [[1918]] - मृत्यु: [[11 फ़रवरी]], [[1993]]) महल, पाकीज़ा और रज़िया सुल्तान जैसी भव्य कलात्मक फ़िल्मों को परदे पर काव्य की रचना करने वाले निर्माता-निर्देशक थे। कमाल अमरोही ने बेहतरीन गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक तथा निर्माता एवं निर्देशक के रूप में भारतीय सिनेमा पर अपनी अमिट छाप छोड़ी और उसे एक दिशा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पाकीज़ा उनकी ज़िंदगी का ड्रीम प्रोजेक्ट थी। अपने फ़िल्मी जीवन के आखिरी दौर में वह 'अंतिम मुग़ल' नाम से फ़िल्म बनाना चाहते थे, लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया।
==परिचय==
==परिचय==
कमाल अमरोही का मूल नाम 'सैयद आमिर हैदर' था। [[17 जनवरी]] [[1918]] को [[उत्तर प्रदेश]] के [[अमरोहा]] के जमींदार [[परिवार]] में जन्मे कमाल अमरोही के [[मुम्बई]] तक पहुँचने और फिर सफलता का इतिहास रचने की कहानी किसी फ़िल्मी कहानी की भाँति है। बचपन में अपनी शरारतों से वह पूरे गाँव को परेशान करते थे। एक बार अपनी अम्मी के डाँटने पर उन्होंने वादा किया कि वह एक दिन मशहूर होंगे और उनके पल्लू को [[चाँदी]] के सिक्कों से भर देंगे। उनकी शरारतों से तंग होकर एक दिन उनके बड़े भाई ने उन्हें गुस्से में थप्पड़ रसीद कर दिया तो कमाल अमरोही नाराज़गी में घर से भागकर [[लाहौर]] पहुँच गए।
कमाल अमरोही का मूल नाम 'सैयद आमिर हैदर' था। [[17 जनवरी]] [[1918]] को [[उत्तर प्रदेश]] के [[अमरोहा]] के ज़मींदार [[परिवार]] में जन्मे कमाल अमरोही के [[मुम्बई]] तक पहुँचने और फिर सफलता का इतिहास रचने की कहानी किसी फ़िल्मी कहानी की भाँति है। बचपन में अपनी शरारतों से वह पूरे गाँव को परेशान करते थे। एक बार अपनी अम्मी के डाँटने पर उन्होंने वादा किया कि वह एक दिन मशहूर होंगे और उनके पल्लू को [[चाँदी]] के सिक्कों से भर देंगे। उनकी शरारतों से तंग होकर एक दिन उनके बड़े भाई ने उन्हें गुस्से में थप्पड़ रसीद कर दिया तो कमाल अमरोही नाराज़गी में घर से भागकर [[लाहौर]] पहुँच गए।


कमाल अमरोही के लिए लाहौर उनके जीवन की दिशा बदलने वाला साबित हुआ। वहाँ उन्होंने 'प्राच्य भाषाओं' में मास्टर की डिग्री हासिल की और फिर एक [[उर्दू]] [[समाचार पत्र]] में मात्र 18 [[वर्ष]] की आयु में ही नियमित रूप से स्तम्भ लिखने लगे। उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए अख़बार के सम्पादक ने उनका वेतन बढाकर 300 रुपए मासिक कर दिया, जो उस समय क़ाफी बड़ी रकम थी।
कमाल अमरोही के लिए लाहौर उनके जीवन की दिशा बदलने वाला साबित हुआ। वहाँ उन्होंने 'प्राच्य भाषाओं' में मास्टर की डिग्री हासिल की और फिर एक [[उर्दू]] [[समाचार पत्र]] में मात्र 18 [[वर्ष]] की आयु में ही नियमित रूप से स्तम्भ लिखने लगे। उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए अख़बार के सम्पादक ने उनका वेतन बढाकर 300 रुपए मासिक कर दिया, जो उस समय क़ाफी बड़ी रकम थी।
==कलकत्ता में==
==कलकत्ता में==
अख़बार में कुछ समय तक काम करने के बाद वह [[कलकत्ता]] चले गए और फिर वहाँ से [[मुम्बई]] आ गए। लाहौर में उनकी मुलाक़ात प्रसिद्ध [[कुन्दनलाल सहगल|गायक, अभिनेता कुन्दनलाल सहगल]] से हुई थी, जो उनकी प्रतिभा को पहचानकर उन्हें फ़िल्मों में काम करने के लिए 'मिनर्वा मूवीटोन' के मालिक निर्माता-निर्देशक [[सोहराब मोदी]] के पास ले गये।
अख़बार में कुछ समय तक काम करने के बाद वह [[कलकत्ता]] चले गए और फिर वहाँ से [[मुम्बई]] आ गए। लाहौर में उनकी मुलाक़ात प्रसिद्ध [[कुन्दनलाल सहगल|गायक, अभिनेता कुन्दनलाल सहगल]] से हुई थी, जो उनकी प्रतिभा को पहचानकर उन्हें फ़िल्मों में काम करने के लिए 'मिनर्वा मूवीटोन' के मालिक निर्माता-निर्देशक [[सोहराब मोदी]] के पास ले गये। इसी समय उनकी एक लघु कथा ‘सपनों का महल’ से निर्माता-निर्देशक और कहानीकार '[[ख़्वाजा अहमद अब्बास]]' प्रभावित हुए।
 
इसी समय उनकी एक लघु कथा ‘सपनों का महल’ से निर्माता-निर्देशक और कहानीकार 'ख्वाजा अहमद अब्बास' प्रभावित हुए।
==वैवाहिक जीवन==
==वैवाहिक जीवन==
कमाल अमरोही ने तीन शादियां कीं। उनकी पहली बीवी का नाम 'बानो' था, जो [[नर्गिस]] की मां जद्दनबाई की नौकरानी थी। बानो की अस्थमा से मौत होने के बाद उन्होंने 'महमूदी' से निकाह किया। कमाल अमरोही ने तीसरी [[शादी]] [[अभिनेत्री]] [[मीना कुमारी]] से की जो उनसे उम्र में लगभग पंद्रह [[साल]] छोटी थीं। दोनों की मुलाकात एक फ़िल्म के सेट पर हुई थी और उनके बीच प्यार हो गया। उस समय कमाल अमरोही 34 साल के थे जबकि मीना कुमारी की उम्र 19 साल थी। [[1952]] में दोनों ने विवाह कर लिया लेकिन यह संबंध ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया और उनका अलगाव हो गया। मीना कुमारी के प्रति कमाल अमरोही का प्रेम शायद आखिर तक बरकरार रहा तभी तो उन्हें मौत के बाद क़ब्रिस्तान में मीना कुमारी की क़ब्र के बगल में दफनाया गया।  
कमाल अमरोही ने तीन शादियां कीं। उनकी पहली बीवी का नाम 'बानो' था, जो [[नर्गिस]] की माँ जद्दनबाई की नौकरानी थी। बानो की अस्थमा से मौत होने के बाद उन्होंने 'महमूदी' से निकाह किया। कमाल अमरोही ने तीसरी [[शादी]] [[अभिनेत्री]] [[मीना कुमारी]] से की जो उनसे उम्र में लगभग पंद्रह [[साल]] छोटी थीं। दोनों की मुलाकात एक फ़िल्म के सेट पर हुई थी और उनके बीच प्यार हो गया। उस समय कमाल अमरोही 34 साल के थे जबकि मीना कुमारी की उम्र 19 साल थी। [[1952]] में दोनों ने विवाह कर लिया लेकिन यह संबंध ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया और उनका अलगाव हो गया। मीना कुमारी के प्रति कमाल अमरोही का प्रेम शायद आखिर तक बरकरार रहा तभी तो उन्हें मौत के बाद क़ब्रिस्तान में मीना कुमारी की क़ब्र के बगल में दफनाया गया।  
==सवांद और गीतकार==
==सवांद और गीतकार==
कमाल अमरोही को पता चला कि [[सोहराब मोदी]] को एक कहानी की तलाश है। उनकी कहानी पर आधारित फ़िल्म ‘पुकार’ (1939) सुपर हिट रही। '[[नसीम बानो]]' और 'चंद्रमोहन' अभिनीत इस फ़िल्म के लिए उन्होंने चार गीत लिखे-  
कमाल अमरोही को पता चला कि [[सोहराब मोदी]] को एक कहानी की तलाश है। उनकी कहानी पर आधारित फ़िल्म ‘पुकार’ (1939) सुपर हिट रही। '[[नसीम बानो]]' और 'चंद्रमोहन' अभिनीत इस फ़िल्म के लिए उन्होंने चार गीत लिखे-  
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#गीत सुनो वाह गीत सैयां..,  
#गीत सुनो वाह गीत सैयां..,  
#काहे को मोहे छेड़े रे बेईमनवा..  
#काहे को मोहे छेड़े रे बेईमनवा..  
इसके बाद तो फ़िल्मों के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखने का उनका सिलसिला चल पड़ा और उन्होंने जेलर (1938), मैं हारी (1940), भरोसा (1940), मज़ाक (1943), फूल (1945), शाहजहां (1946), महल (1949), दायरा (1953), दिल अपना और प्रीत पराई (1960), [[मुग़ले आजम]] (1960), पाकीज़ा (1971), शंकर हुसैन (1977) और रज़िया सुल्तान (1983), भरोसा (1940) जैसी फ़िल्मों के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखने का काम किया।
इसके बाद तो फ़िल्मों के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखने का उनका सिलसिला चल पड़ा और उन्होंने जेलर ([[1938]]), मैं हारी ([[1940]]), भरोसा ([[1940]]), मज़ाक ([[1943]]), फूल ([[1945]]), शाहजहां ([[1946]]), महल ([[1949]]), दायरा ([[1953]]), दिल अपना और प्रीत पराई ([[1960]]), [[मुग़ले आजम]] ([[1960]]), पाकीज़ा ([[1971]]), शंकर हुसैन ([[1977]]) और रज़िया सुल्तान ([[1983]]), भरोसा ([[1940]]) जैसी फ़िल्मों के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखने का काम किया।


कमाल अमरोही ने बेहद चुनिंदा फ़िल्मों के लिए काम किया लेकिन जो भी काम किया पूरी तबीयत और जुनून के साथ किया। उनके काम पर उनके व्यक्तित्व की छाप रहती थी। यही वजह है कि फ़िल्में बनाने की उनकी रफ़्तार काफ़ी धीमी रहती थी और उन्हें इसके लिए आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ता था।
कमाल अमरोही ने बेहद चुनिंदा फ़िल्मों के लिए काम किया लेकिन जो भी काम किया पूरी तबीयत और जुनून के साथ किया। उनके काम पर उनके व्यक्तित्व की छाप रहती थी। यही वजह है कि फ़िल्में बनाने की उनकी रफ़्तार काफ़ी धीमी रहती थी और उन्हें इसके लिए आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ता था।
==महल (फ़िल्म)==
==महल (फ़िल्म)==
निर्माता [[अशोक कुमार]] की फ़िल्म 'महल' कमाल अमरोही के कैरियर का महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। इस फ़िल्म के निर्देशन का जिम्मा उन्हें सौंपा गया। रहस्य और रोमांस के ताने-बाने से बुनी मधुर गीत-संगीत और ध्वनि के कल्पनामय इस्तेमाल से बनी यह फ़िल्म सुपरहिट रही और इसी के साथ बॉलीवुड में हॉरर और सस्पेंस फ़िल्मों के निर्माण का सिलसिला चल पड़ा। फ़िल्म की जबरदस्त कामयाबी ने नायिका [[मधुबाला]] और गायिका [[लता मंगेशकर]] को फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया।
निर्माता [[अशोक कुमार]] की फ़िल्म 'महल' कमाल अमरोही के कैरियर का महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। इस फ़िल्म के निर्देशन का जिम्मा उन्हें सौंपा गया। रहस्य और रोमांस के ताने-बाने से बुनी मधुर गीत-संगीत और ध्वनि के कल्पनामय इस्तेमाल से बनी यह फ़िल्म सुपरहिट रही और इसी के साथ बॉलीवुड में हॉरर और सस्पेंस फ़िल्मों के निर्माण का सिलसिला चल पड़ा। फ़िल्म की जबरदस्त कामयाबी ने नायिका [[मधुबाला]] और गायिका [[लता मंगेशकर]] को फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया।
==कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना==
==कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना==
महल फ़िल्म की कामयाबी के बाद कमाल अमरोही ने 1953 में 'कमाल पिक्चर्स' और 1958 में [[कमालिस्तान स्टूडियो]] की स्थापना की। कमाल पिक्चर्स के बैनर तले उन्होंने अभिनेत्री पत्नी मीना कुमारी को लेकर 'दायरा' फ़िल्म का निर्माण किया लेकिन [[भारत]] की कला फ़िल्मों में मानी जाने वाली यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं चल पाई। इसी दौरान निर्माता-निर्देशक [[के.आसिफ]] अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म [[मुग़ल-ए-आजम]] के निर्माण में व्यस्त थे। इस फ़िल्म के लिए वजाहत मिर्जा संवाद लिख रहे थे लेकिन आसिफ को लगा कि एक ऐसे संवाद लेखक की जरूरत है जिसके लिखे डायलॉग दर्शकों के दिमाग से बरसों बरस नहीं निकल पाएं और इसके लिए उन्हें कमाल अमरोही से ज्यादा उपयुक्त व्यक्ति कोई नहीं लगा। उन्होंने उन्हें अपने चार संवाद लेखकों में शामिल कर लिया। उनके [[उर्दू भाषा]] में लिखे डायलॉग इतने मशहूर हुए कि उस दौरान प्रेमी और प्रेमिकाएं प्रेमपत्रों में मुग़ले आजम के संवादों के माध्यम से अपनी मोहब्बत का इजहार करने लगे थे। इस फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का फ़िल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।
महल फ़िल्म की कामयाबी के बाद कमाल अमरोही ने 1953 में 'कमाल पिक्चर्स' और 1958 में [[कमालिस्तान स्टूडियो]] की स्थापना की। कमाल पिक्चर्स के बैनर तले उन्होंने अभिनेत्री पत्नी मीना कुमारी को लेकर 'दायरा' फ़िल्म का निर्माण किया लेकिन [[भारत]] की कला फ़िल्मों में मानी जाने वाली यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं चल पाई। इसी दौरान निर्माता-निर्देशक [[के.आसिफ]] अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म [[मुग़ल-ए-आजम]] के निर्माण में व्यस्त थे। इस फ़िल्म के लिए वजाहत मिर्जा संवाद लिख रहे थे लेकिन आसिफ को लगा कि एक ऐसे संवाद लेखक की ज़रूरत है जिसके लिखे डायलॉग दर्शकों के दिमाग से बरसों बरस नहीं निकल पाएं और इसके लिए उन्हें कमाल अमरोही से ज्यादा उपयुक्त व्यक्ति कोई नहीं लगा। उन्होंने उन्हें अपने चार संवाद लेखकों में शामिल कर लिया। उनके [[उर्दू भाषा]] में लिखे डायलॉग इतने मशहूर हुए कि उस दौरान प्रेमी और प्रेमिकाएं प्रेमपत्रों में मुग़ले आजम के संवादों के माध्यम से अपनी मोहब्बत का इजहार करने लगे थे। इस फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का फ़िल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।
==पाकीज़ा (फ़िल्म)==
==पाकीज़ा (फ़िल्म)==
पाकीज़ा कमाल अमरोही का ड्रीम प्रोजेक्ट थी जिस पर उन्होंने [[1958]] में काम करना शुरू किया था। उस समय यह ब्लैक एंड व्हाइट में बनने वाली थी। कुछ समय बाद जब [[भारत]] में सिनेमास्कोप का प्रचलन शुरू हो गया तो उन्होंने [[1961]] में इसे सिनेमास्कोप रूप में बनाना शुरू किया लेकिन कमाल अमरोही का अपनी तीसरी पत्नी मीना कुमारी से अलगाव हो जाने के कारण फ़िल्म का निर्माण 1961-69 तक बंद रहा। बाद में किसी तरह उन्होंने मीना कुमारी को फ़िल्म में काम करने के लिए राज़ी कर लिया और आखिरकार 1971 में जाकर यह फ़िल्म पूरी हुई तथा फरवरी 1972 को रिलीज हुई।
पाकीज़ा कमाल अमरोही का ड्रीम प्रोजेक्ट थी जिस पर उन्होंने [[1958]] में काम करना शुरू किया था। उस समय यह ब्लैक एंड व्हाइट में बनने वाली थी। कुछ समय बाद जब [[भारत]] में सिनेमास्कोप का प्रचलन शुरू हो गया तो उन्होंने [[1961]] में इसे सिनेमास्कोप रूप में बनाना शुरू किया लेकिन कमाल अमरोही का अपनी तीसरी पत्नी मीना कुमारी से अलगाव हो जाने के कारण फ़िल्म का निर्माण 1961-69 तक बंद रहा। बाद में किसी तरह उन्होंने मीना कुमारी को फ़िल्म में काम करने के लिए राज़ी कर लिया और आखिरकार 1971 में जाकर यह फ़िल्म पूरी हुई तथा फरवरी 1972 को रिलीज हुई।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.imdb.com/name/nm0025399/  कमाल अमरोही]
*[http://www.imdb.com/name/nm0025399/  कमाल अमरोही]
*[http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%95-%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AC/%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%95-%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AC-%E0%A4%B8%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%BE-%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A5%8B-%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%A8-%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%86-1090211048_1.htm  कमाल अमरोही : इक ख्वाब-सा देखा था जो पूरा न हुआ]
*[http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%95-%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AC/%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%95-%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AC-%E0%A4%B8%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%BE-%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A5%8B-%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%A8-%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%86-1090211048_1.htm  कमाल अमरोही : इक ख्वाब-सा देखा था जो पूरा न हुआ]
*[http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8201.html पाकीज़ा थी कमाल अमरोही की ड्रीम प्रोजेक्ट]
*[http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8201.html पाकीज़ा थी कमाल अमरोही की ड्रीम प्रोजेक्ट]
==संबंधित लेख==
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05:28, 11 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

कमाल अमरोही
कमाल अमरोही
कमाल अमरोही
पूरा नाम सैयद आमिर हैदर कमाल अमरोही
प्रसिद्ध नाम कमाल अमरोही
जन्म 17 जनवरी, 1918
जन्म भूमि अमरोहा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 11 फरवरी, 1993
पति/पत्नी तीन (बानो, महमूदी, मीना कुमारी)
संतान शानदार, ताज़दार और रुख़सार
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक तथा निर्माता एवं निर्देशक
मुख्य फ़िल्में 'महल', 'पाकीज़ा' और 'रज़िया सुल्तान' आदि।
पुरस्कार-उपाधि फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संवाद पुरस्कार: मुग़ल-ए-आजम
विशेष योगदान कमाल अमरोही ने 1953 में 'कमाल पिक्चर्स' और 1958 में कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना की।
नागरिकता भारतीय

कमाल अमरोही (अंग्रेज़ी: Kamal Amrohi, जन्म: 17 जनवरी, 1918 - मृत्यु: 11 फ़रवरी, 1993) महल, पाकीज़ा और रज़िया सुल्तान जैसी भव्य कलात्मक फ़िल्मों को परदे पर काव्य की रचना करने वाले निर्माता-निर्देशक थे। कमाल अमरोही ने बेहतरीन गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक तथा निर्माता एवं निर्देशक के रूप में भारतीय सिनेमा पर अपनी अमिट छाप छोड़ी और उसे एक दिशा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पाकीज़ा उनकी ज़िंदगी का ड्रीम प्रोजेक्ट थी। अपने फ़िल्मी जीवन के आखिरी दौर में वह 'अंतिम मुग़ल' नाम से फ़िल्म बनाना चाहते थे, लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया।

परिचय

कमाल अमरोही का मूल नाम 'सैयद आमिर हैदर' था। 17 जनवरी 1918 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा के ज़मींदार परिवार में जन्मे कमाल अमरोही के मुम्बई तक पहुँचने और फिर सफलता का इतिहास रचने की कहानी किसी फ़िल्मी कहानी की भाँति है। बचपन में अपनी शरारतों से वह पूरे गाँव को परेशान करते थे। एक बार अपनी अम्मी के डाँटने पर उन्होंने वादा किया कि वह एक दिन मशहूर होंगे और उनके पल्लू को चाँदी के सिक्कों से भर देंगे। उनकी शरारतों से तंग होकर एक दिन उनके बड़े भाई ने उन्हें गुस्से में थप्पड़ रसीद कर दिया तो कमाल अमरोही नाराज़गी में घर से भागकर लाहौर पहुँच गए।

कमाल अमरोही के लिए लाहौर उनके जीवन की दिशा बदलने वाला साबित हुआ। वहाँ उन्होंने 'प्राच्य भाषाओं' में मास्टर की डिग्री हासिल की और फिर एक उर्दू समाचार पत्र में मात्र 18 वर्ष की आयु में ही नियमित रूप से स्तम्भ लिखने लगे। उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए अख़बार के सम्पादक ने उनका वेतन बढाकर 300 रुपए मासिक कर दिया, जो उस समय क़ाफी बड़ी रकम थी।

कलकत्ता में

अख़बार में कुछ समय तक काम करने के बाद वह कलकत्ता चले गए और फिर वहाँ से मुम्बई आ गए। लाहौर में उनकी मुलाक़ात प्रसिद्ध गायक, अभिनेता कुन्दनलाल सहगल से हुई थी, जो उनकी प्रतिभा को पहचानकर उन्हें फ़िल्मों में काम करने के लिए 'मिनर्वा मूवीटोन' के मालिक निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी के पास ले गये। इसी समय उनकी एक लघु कथा ‘सपनों का महल’ से निर्माता-निर्देशक और कहानीकार 'ख़्वाजा अहमद अब्बास' प्रभावित हुए।

वैवाहिक जीवन

कमाल अमरोही ने तीन शादियां कीं। उनकी पहली बीवी का नाम 'बानो' था, जो नर्गिस की माँ जद्दनबाई की नौकरानी थी। बानो की अस्थमा से मौत होने के बाद उन्होंने 'महमूदी' से निकाह किया। कमाल अमरोही ने तीसरी शादी अभिनेत्री मीना कुमारी से की जो उनसे उम्र में लगभग पंद्रह साल छोटी थीं। दोनों की मुलाकात एक फ़िल्म के सेट पर हुई थी और उनके बीच प्यार हो गया। उस समय कमाल अमरोही 34 साल के थे जबकि मीना कुमारी की उम्र 19 साल थी। 1952 में दोनों ने विवाह कर लिया लेकिन यह संबंध ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया और उनका अलगाव हो गया। मीना कुमारी के प्रति कमाल अमरोही का प्रेम शायद आखिर तक बरकरार रहा तभी तो उन्हें मौत के बाद क़ब्रिस्तान में मीना कुमारी की क़ब्र के बगल में दफनाया गया।

सवांद और गीतकार

कमाल अमरोही को पता चला कि सोहराब मोदी को एक कहानी की तलाश है। उनकी कहानी पर आधारित फ़िल्म ‘पुकार’ (1939) सुपर हिट रही। 'नसीम बानो' और 'चंद्रमोहन' अभिनीत इस फ़िल्म के लिए उन्होंने चार गीत लिखे-

  1. धोया महोबे घाट हे हो धोबिया रे..,
  2. दिल में तू आँखों में तू मेनका..,
  3. गीत सुनो वाह गीत सैयां..,
  4. काहे को मोहे छेड़े रे बेईमनवा..

इसके बाद तो फ़िल्मों के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखने का उनका सिलसिला चल पड़ा और उन्होंने जेलर (1938), मैं हारी (1940), भरोसा (1940), मज़ाक (1943), फूल (1945), शाहजहां (1946), महल (1949), दायरा (1953), दिल अपना और प्रीत पराई (1960), मुग़ले आजम (1960), पाकीज़ा (1971), शंकर हुसैन (1977) और रज़िया सुल्तान (1983), भरोसा (1940) जैसी फ़िल्मों के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखने का काम किया।

कमाल अमरोही ने बेहद चुनिंदा फ़िल्मों के लिए काम किया लेकिन जो भी काम किया पूरी तबीयत और जुनून के साथ किया। उनके काम पर उनके व्यक्तित्व की छाप रहती थी। यही वजह है कि फ़िल्में बनाने की उनकी रफ़्तार काफ़ी धीमी रहती थी और उन्हें इसके लिए आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ता था।

महल (फ़िल्म)

निर्माता अशोक कुमार की फ़िल्म 'महल' कमाल अमरोही के कैरियर का महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। इस फ़िल्म के निर्देशन का जिम्मा उन्हें सौंपा गया। रहस्य और रोमांस के ताने-बाने से बुनी मधुर गीत-संगीत और ध्वनि के कल्पनामय इस्तेमाल से बनी यह फ़िल्म सुपरहिट रही और इसी के साथ बॉलीवुड में हॉरर और सस्पेंस फ़िल्मों के निर्माण का सिलसिला चल पड़ा। फ़िल्म की जबरदस्त कामयाबी ने नायिका मधुबाला और गायिका लता मंगेशकर को फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया।

कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना

महल फ़िल्म की कामयाबी के बाद कमाल अमरोही ने 1953 में 'कमाल पिक्चर्स' और 1958 में कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना की। कमाल पिक्चर्स के बैनर तले उन्होंने अभिनेत्री पत्नी मीना कुमारी को लेकर 'दायरा' फ़िल्म का निर्माण किया लेकिन भारत की कला फ़िल्मों में मानी जाने वाली यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं चल पाई। इसी दौरान निर्माता-निर्देशक के.आसिफ अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म मुग़ल-ए-आजम के निर्माण में व्यस्त थे। इस फ़िल्म के लिए वजाहत मिर्जा संवाद लिख रहे थे लेकिन आसिफ को लगा कि एक ऐसे संवाद लेखक की ज़रूरत है जिसके लिखे डायलॉग दर्शकों के दिमाग से बरसों बरस नहीं निकल पाएं और इसके लिए उन्हें कमाल अमरोही से ज्यादा उपयुक्त व्यक्ति कोई नहीं लगा। उन्होंने उन्हें अपने चार संवाद लेखकों में शामिल कर लिया। उनके उर्दू भाषा में लिखे डायलॉग इतने मशहूर हुए कि उस दौरान प्रेमी और प्रेमिकाएं प्रेमपत्रों में मुग़ले आजम के संवादों के माध्यम से अपनी मोहब्बत का इजहार करने लगे थे। इस फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का फ़िल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।

पाकीज़ा (फ़िल्म)

पाकीज़ा कमाल अमरोही का ड्रीम प्रोजेक्ट थी जिस पर उन्होंने 1958 में काम करना शुरू किया था। उस समय यह ब्लैक एंड व्हाइट में बनने वाली थी। कुछ समय बाद जब भारत में सिनेमास्कोप का प्रचलन शुरू हो गया तो उन्होंने 1961 में इसे सिनेमास्कोप रूप में बनाना शुरू किया लेकिन कमाल अमरोही का अपनी तीसरी पत्नी मीना कुमारी से अलगाव हो जाने के कारण फ़िल्म का निर्माण 1961-69 तक बंद रहा। बाद में किसी तरह उन्होंने मीना कुमारी को फ़िल्म में काम करने के लिए राज़ी कर लिया और आखिरकार 1971 में जाकर यह फ़िल्म पूरी हुई तथा फरवरी 1972 को रिलीज हुई।

बेहतरीन संवाद, गीत-संगीत, दृश्यांकन और अभिनय से सजी इस फ़िल्म ने रिकार्डतोड़ कामयाबी हासिल की और आज यह फ़िल्म इतिहास की क्लासिक फ़िल्मों में गिनी जाती है। उन्होंने इस फ़िल्म के लिए एक गीत मौसम है आशिकाना.. भी लिखा था। जो बेहद मकबूल हुआ था। इस फ़िल्म के बाद कमाल अमरोही का फ़िल्मों से कुछ समय तक नाता टूटा रहा। 1983 में उन्होंने फिर फ़िल्म इंडस्ट्री का रुख़ किया और रज़िया सुल्तान फ़िल्म से अपनी निर्देशन क्षमता का लोहा मनवाया।

निधन

अपने कमाल से दर्शकों को बांध देने वाली यह अजीम शख़्सियत 11 फरवरी 1993 को इस दुनिया को अलविदा कह गयी।

फ़िल्में

कमाल अमरोही की फ़िल्में [1]
क्रमांक सन फ़िल्म कार्य
1. 1938 जेलर कहानी
2. 1939 पुकार लेखन
3. 1940 मैं हारी संवाद
4. 1940 भरोसा
5. 1943 मज़ाक संवाद
6. 1945 फूल संवाद
7. 1946 शाहजहाँ
8. 1949 महल निर्देशन
9. 1953 दायरा लेखन, निर्देशन
10. 1960 मुग़ले आजम संवाद
11. 1972 पाकीज़ा लेखन, निर्देशन
12. 1977 शंकर हुसैन संवाद
13. 1979 मजनूं निर्देशन
14. 1983 रज़िया सुल्तान लेखन, निर्देशन


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Kamal Amrohi (अंग्रेज़ी)। । अभिगमन तिथि: 21 मार्च, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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