"ख़ून फिर ख़ून है -साहिर लुधियानवी": अवतरणों में अंतर
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जंग तो ख़ुद हीं एक मअसला है | जंग तो ख़ुद हीं एक मअसला है | ||
जंग क्या मअसलों का हल देगी | जंग क्या मअसलों का हल देगी | ||
आग और | आग और ख़ून आज बख़्शेगी | ||
भूख और अहतयाज कल देगी | भूख और अहतयाज कल देगी | ||
बरतरी के सुबूत की ख़ातिर | बरतरी के सुबूत की ख़ातिर | ||
खूँ बहाना हीं क्या | खूँ बहाना हीं क्या ज़रूरी है | ||
घर की तारीकियाँ मिटाने को | घर की तारीकियाँ मिटाने को | ||
घर जलाना हीं क्या | घर जलाना हीं क्या ज़रूरी है | ||
टैंक आगे बढें कि पीछे हटें | टैंक आगे बढें कि पीछे हटें | ||
कोख धरती की बाँझ होती है | कोख धरती की बाँझ होती है | ||
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग | फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग | ||
ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है | |||
इसलिए ऐ शरीफ इंसानों | इसलिए ऐ शरीफ इंसानों |
10:47, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
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ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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