"वारकरी सम्प्रदाय": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "महत्वपूर्ण" to "महत्त्वपूर्ण")
No edit summary
 
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''वारकरी सम्प्रदाय''' का उद्भव [[दक्षिण भारत]] के '[[पंढरपुर]]' नामक स्थान पर [[विक्रम संवत]] की तेरहवीं शताब्दी में हुआ था। वारकरी का अर्थ है कि 'वारी' तथा 'करी' अर्थात 'परिक्रमा करने वाला'। इस सम्प्रदाय के प्रवर्तकों में [[संत ज्ञानेश्वर]] का स्थान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने 'ज्ञानेश्वरी' और 'अमृतानुभव' नाम के दो महत्त्वपूर्ण [[ग्रंथ|ग्रंथों]] की रचना कर वारकरी सम्प्रदाय के सिद्धांतों को स्पष्ट कर दिया था। इस सम्प्रदाय में 'पंचदेवों' की [[पूजा]] की जाती है।
'''वारकरी सम्प्रदाय''' का उद्भव [[दक्षिण भारत]] के '[[पंढरपुर]]' नामक स्थान पर [[विक्रम संवत]] की तेरहवीं शताब्दी में हुआ था। वारकरी का अर्थ है कि 'वारी' तथा 'करी' अर्थात 'परिक्रमा करने वाला'। इस सम्प्रदाय के प्रवर्तकों में [[संत ज्ञानेश्वर]] का स्थान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने '[[ज्ञानेश्वरी]]' और 'अमृतानुभव' नाम के दो महत्त्वपूर्ण [[ग्रंथ|ग्रंथों]] की रचना कर वारकरी सम्प्रदाय के सिद्धांतों को स्पष्ट कर दिया था। इस सम्प्रदाय में 'पंचदेवों' की [[पूजा]] की जाती है।
{{tocright}}
{{tocright}}
==संत पंरम्परा==
==संत पंरम्परा==
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
[[Category:हिन्दू सम्प्रदाय]]
[[Category:हिन्दू सम्प्रदाय]]
[[Category:हिन्दू धर्म]]
[[Category:हिन्दू धर्म]]
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

09:46, 30 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

वारकरी सम्प्रदाय का उद्भव दक्षिण भारत के 'पंढरपुर' नामक स्थान पर विक्रम संवत की तेरहवीं शताब्दी में हुआ था। वारकरी का अर्थ है कि 'वारी' तथा 'करी' अर्थात 'परिक्रमा करने वाला'। इस सम्प्रदाय के प्रवर्तकों में संत ज्ञानेश्वर का स्थान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने 'ज्ञानेश्वरी' और 'अमृतानुभव' नाम के दो महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना कर वारकरी सम्प्रदाय के सिद्धांतों को स्पष्ट कर दिया था। इस सम्प्रदाय में 'पंचदेवों' की पूजा की जाती है।

संत पंरम्परा

ऐसा माना जाता है कि ज्ञानेश्वर 'कश्मीरी शैव सम्प्रदाय' के 'शिवसूत्र' से प्रत्यक्षत: प्रभावित थे। उनकी योग-साधना का प्रभाव भी संत ज्ञानेश्वर पर पड़ा था। सम्भवत: इसी कारण उन्होंने शंकराचार्य के 'मायावाद' का खण्डन भी किया। ज्ञानेश्वर ने निराकार परमात्मा की भक्ति का प्रतिपादन अद्वैतवाद की भावना के अनुसार किया। उनके शिष्यों में संत नामदेव (संवत 1327-1407) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिनकी अनेक रचनाएँ हिन्दी भाषा में भी उपलब्ध हैं और जिन्होंने ज्ञानेश्वर की तीर्थ यात्राओं का वर्णन 'तीर्थावली' में किया है। इस सम्प्रदाय में संत एकनाथ (संवत 1590-1656) तथा संत तुकाराम (संवत 1666-1707) जैसे संत भी हुए हैं। इन्होंने संतों ने इस मत का प्रचार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। आगे चलकर यह सम्प्रदाय 'चैतन्य सम्प्रदाय', 'स्वरूप सम्प्रदाय', 'आनन्द सम्प्रदाय' तथा 'प्रकाश सम्प्रदाय' जैसी शाखाओं के माध्यम से अपने सिद्धान्तों का प्रचार करने लगा।

इष्टदेव

वारकरी सम्प्रदाय में 'पंचदेवों' की पूजा का विधान है, किन्तु इनके प्रधान इष्टदेव 'विट्ठल' भगवान हैं, जो श्रीकृष्ण के प्रतीक हैं। यद्यपि इस सम्प्रदाय में ब्रह्मा को निर्गुण मान गया है, किन्तु इसके अनुयायी भक्ति साधना को विशेष महत्व देते हैं। निर्गुण की अद्वैतभक्ति के लिए इसके अनुयायी ब्रह्मा के सगुण रूप को भी एक साधन मानते हैं।

पूजा विधान

'वारकरी' शब्द से तात्पर्य है कि 'वारी' तथा 'करी' अर्थात 'परिक्रमा करने वाला'। इस सम्प्रदाय के लोग पंढरपुर के मन्दिर में स्थापित विट्ठल भगवान की परिक्रमा करते हैं और संयमित जीवन व्यतीत करते हैं। वे भजन-कीर्तन, नाम-स्मरण तथा चिन्तन आदि में सदा लीन रहते हैं। वे नृत्य तथा गान करते हुए कभी-कभी भावावेश में भी आ जाते हैं। उन्होंने वर्णाश्रम धर्म के नियमों का बहिष्कार करते हुए प्रयत्ति मार्ग को मान्यता प्रदान की है। वे लोग सम्प्रदायिक परम्पराओं का भी विरोध करते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख