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'''शान्तिनाथ''' [[जैन धर्म]] के सोलहवें [[तीर्थंकर]] थे। शान्तिनाथ जी का जन्म [[हस्तिनापुर]] के [[इक्ष्वाकु वंश]] के राजा विश्वसेन की धर्मपत्नी अचीरा के गर्भ से [[ज्येष्ठ मास]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[त्रयोदशी]] तिथि को [[भरणी नक्षत्र]] में हुआ था। जैन अनुयायियों के अनुसार भगवान शान्तिनाथ [[अवतार|अवतारी]] पुरुष थे। उनके जन्म से ही चारों ओर शान्ति का राज्य स्थापित हो गया था और वे शान्ति, [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]], करुणा के | '''शान्तिनाथ''' [[जैन धर्म]] के सोलहवें [[तीर्थंकर]] थे। शान्तिनाथ जी का जन्म [[हस्तिनापुर]] के [[इक्ष्वाकु वंश]] के राजा विश्वसेन की धर्मपत्नी अचीरा के गर्भ से [[ज्येष्ठ मास]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[त्रयोदशी]] तिथि को [[भरणी नक्षत्र]] में हुआ था। जैन अनुयायियों के अनुसार भगवान शान्तिनाथ [[अवतार|अवतारी]] पुरुष थे। उनके जन्म से ही चारों ओर शान्ति का राज्य स्थापित हो गया था और वे शान्ति, [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]], करुणा के स्वरूप और अनुशासनप्रिय थे। | ||
*शान्तिनाथ के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न मृग था। | *शान्तिनाथ के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न मृग था। | ||
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*जैनियों के मतानुसार शान्तिनाथ के गणधरों की कुल संख्या 62 थी, जिनमें चक्रायुध स्वामी इनके प्रथम गणधर माने गये हैं। | *जैनियों के मतानुसार शान्तिनाथ के गणधरों की कुल संख्या 62 थी, जिनमें चक्रायुध स्वामी इनके प्रथम गणधर माने गये हैं। | ||
*शान्तिनाथ ने हस्तिनापुर में ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की [[चतुर्दशी]] को दीक्षा की प्राप्ति की थी। | *शान्तिनाथ ने हस्तिनापुर में ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की [[चतुर्दशी]] को दीक्षा की प्राप्ति की थी। | ||
*दीक्षा प्राप्ति के | *दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् एक वर्ष तक कठिन तप करने के बाद हस्तिनापुर में ही 'नंदी वृक्ष' के नीचे [[पौष मास]] के शुक्ल पक्ष की [[नवमी]] को शान्तिनाथ को '[[कैवल्य ज्ञान]]' की प्राप्ति हुई। | ||
*कई वर्षों तक [[सत्य]] और अहिंसा के मार्ग पर चलने के बाद ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को [[सम्मेद शिखर]] पर शान्तिनाथ ने [[निर्वाण]] प्राप्त किया।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Shantinath|title=श्री शांतिनाथ जी|accessmonthday=27 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | *कई वर्षों तक [[सत्य]] और अहिंसा के मार्ग पर चलने के बाद ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को [[सम्मेद शिखर]] पर शान्तिनाथ ने [[निर्वाण]] प्राप्त किया।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Shantinath|title=श्री शांतिनाथ जी|accessmonthday=27 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
07:31, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
शान्तिनाथ जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर थे। शान्तिनाथ जी का जन्म हस्तिनापुर के इक्ष्वाकु वंश के राजा विश्वसेन की धर्मपत्नी अचीरा के गर्भ से ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भरणी नक्षत्र में हुआ था। जैन अनुयायियों के अनुसार भगवान शान्तिनाथ अवतारी पुरुष थे। उनके जन्म से ही चारों ओर शान्ति का राज्य स्थापित हो गया था और वे शान्ति, अहिंसा, करुणा के स्वरूप और अनुशासनप्रिय थे।
- शान्तिनाथ के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न मृग था।
- इनके यक्ष का नाम गरूड़ और यक्षिणी का नाम निर्वाणा देवी था।
- जैनियों के मतानुसार शान्तिनाथ के गणधरों की कुल संख्या 62 थी, जिनमें चक्रायुध स्वामी इनके प्रथम गणधर माने गये हैं।
- शान्तिनाथ ने हस्तिनापुर में ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को दीक्षा की प्राप्ति की थी।
- दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् एक वर्ष तक कठिन तप करने के बाद हस्तिनापुर में ही 'नंदी वृक्ष' के नीचे पौष मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को शान्तिनाथ को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई।
- कई वर्षों तक सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के बाद ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को सम्मेद शिखर पर शान्तिनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री शांतिनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।
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