"माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय": अवतरणों में अंतर
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|विवरण=[[पत्रकारिता]] के उन्नयन को सप्रे संग्रहालय के उद्देश्य को अधिक अर्थवान और आधुनिक स्वरूप प्रदान करने के लिए सन् 2006 में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के सहयोग से विज्ञान संचार अभिलेखागार की स्थापना की गई। | |||
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'''माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान''' [[मध्य प्रदेश]] की राजधानी [[भोपाल]] में स्थित है। इसे '''सप्रे संग्रहालय''' भी कहा जाता है। | '''माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान''' [[मध्य प्रदेश]] की राजधानी [[भोपाल]] में स्थित है। इसे '''सप्रे संग्रहालय''' भी कहा जाता है। | ||
==स्थापना== | ==स्थापना== | ||
[[पत्रकारिता]] के उन्नयन को सप्रे संग्रहालय के उद्देश्य को अधिक अर्थवान और आधुनिक स्वरूप प्रदान करने के लिए सन् 2006 में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के सहयोग से विज्ञान संचार अभिलेखागार की स्थापना की गई। मीडिया में विज्ञान विषयों के लोकप्रिय लेखन का प्रशिक्षण और प्रोत्साहन देने, समाज में वैज्ञानिक चेतना का वातावरण बनाने, मीडिया कर्मियों और विज्ञान लेखकों को संदर्भ सामग्री उपलब्ध कराने तथा विज्ञान लेखन के कौशल को निखारने की दिशा में विज्ञान संचार अभिलेखागार कार्य कर रहा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विषयों के विशेषज्ञों की सेवाएं इस कार्य के लिए ली गई हैं। | [[पत्रकारिता]] के उन्नयन को सप्रे संग्रहालय के उद्देश्य को अधिक अर्थवान और आधुनिक स्वरूप प्रदान करने के लिए सन् 2006 में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के सहयोग से विज्ञान संचार अभिलेखागार की स्थापना की गई। मीडिया में विज्ञान विषयों के लोकप्रिय लेखन का प्रशिक्षण और प्रोत्साहन देने, समाज में वैज्ञानिक चेतना का वातावरण बनाने, मीडिया कर्मियों और विज्ञान लेखकों को संदर्भ सामग्री उपलब्ध कराने तथा विज्ञान लेखन के कौशल को निखारने की दिशा में विज्ञान संचार अभिलेखागार कार्य कर रहा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विषयों के विशेषज्ञों की सेवाएं इस कार्य के लिए ली गई हैं। सन् 1984 में रानी कमलापति महल के पुराने बुर्ज से सप्रे संग्रहालय की यात्रा आरंभ हुई। स्थान की कमी पड़ने लगी तब, सन 1987 में आचार्य नरेन्द्रदेव पुस्तकालय भवन के ऊपर नगरपालिक निगम भोपाल ने एक मंजिल का निर्माण कर 3000 वर्गफुट स्थान उपलब्ध कराया। यह जगह भी कम पड़ी तब 19 जून, 1996 को सप्रे संग्रहालय अपने भवन में स्थानांतरित हुआ। अब संग्रहालय के पास 11000 वर्गफुट स्थान उपलब्ध है। | ||
==पृष्ठभूमि== | ==पृष्ठभूमि== | ||
वर्ष 1982-83 में मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के लिये 'मध्यप्रदेश में पत्रकारिता का इतिहास ' पुस्तक की [[पाण्डुलिपि]] तैयार करते हुए संदर्भ सामग्री जुटाने के लिये प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर जाना हुआ। तभी इस संकट का एहसास हुआ कि अनेक विद्यानुरागी परिवारों के पास समाचारपत्रों-पत्रिकाओं, अन्य दस्तावेजों और ग्रंथों का दुर्लभ संग्रह है और जर्जर पृष्ठों में संचित यह राष्ट्रीय बौद्धिक धरोहर नष्ट हो सकती हैं पं. रामेश्वर गुरू (जबलपुर) ने यह प्रेरणा दी कि इस सामग्री को एक छत के नीचे संकलित और संरक्षित करने की | वर्ष 1982-83 में मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के लिये 'मध्यप्रदेश में पत्रकारिता का इतिहास' पुस्तक की [[पाण्डुलिपि]] तैयार करते हुए संदर्भ सामग्री जुटाने के लिये प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर जाना हुआ। तभी इस संकट का एहसास हुआ कि अनेक विद्यानुरागी परिवारों के पास समाचारपत्रों-पत्रिकाओं, अन्य दस्तावेजों और ग्रंथों का दुर्लभ संग्रह है और जर्जर पृष्ठों में संचित यह राष्ट्रीय बौद्धिक धरोहर नष्ट हो सकती हैं पं. रामेश्वर गुरू (जबलपुर) ने यह प्रेरणा दी कि इस सामग्री को एक छत के नीचे संकलित और संरक्षित करने की ज़रूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिये यह ज्ञान कोश बचाया जा सके। एक वर्ष तक इस दिशा में प्रयास करने के उत्साहवर्धक नतीजे सामने आए। [[19 जून]] [[1984]] को माधवराव सप्रे समाचारपत्र संग्रहालय का मिशन प्रारंभ हुआ। | ||
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पुराने [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] और [[पत्रिका|पत्रिकाओं]] की इबारतों में इतिहास को रूबरू देखने का रोमांच अनुभव किया जा सकता है। [[भारत]] में पत्रकारिता का उद्भव और विकास नवजागरण के साथ-साथ हुआ है। राजनीतिक, सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक आदि विविध विषय क्षेत्रों की महत्वपूर्ण घटनाओं, उनकी पृष्ठभूमि और उनके फलितार्थों के प्रामाणिक स्रोत समसामयिक अखबारों के पृष्ठों में उपलब्ध है। | पुराने [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] और [[पत्रिका|पत्रिकाओं]] की इबारतों में इतिहास को रूबरू देखने का रोमांच अनुभव किया जा सकता है। [[भारत]] में पत्रकारिता का उद्भव और विकास नवजागरण के साथ-साथ हुआ है। राजनीतिक, सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक आदि विविध विषय क्षेत्रों की महत्वपूर्ण घटनाओं, उनकी पृष्ठभूमि और उनके फलितार्थों के प्रामाणिक स्रोत समसामयिक अखबारों के पृष्ठों में उपलब्ध है। | ||
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माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय
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विवरण | पत्रकारिता के उन्नयन को सप्रे संग्रहालय के उद्देश्य को अधिक अर्थवान और आधुनिक स्वरूप प्रदान करने के लिए सन् 2006 में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के सहयोग से विज्ञान संचार अभिलेखागार की स्थापना की गई। |
राज्य | मध्य प्रदेश |
नगर | भोपाल |
स्थापना | 19 जून, 1984 |
संबंधित लेख | माधवराव सप्रे |
अन्य जानकारी | इस संग्रहालय में पुराने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की इबारतों में इतिहास को रूबरू देखने का रोमांच अनुभव किया जा सकता है। |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित है। इसे सप्रे संग्रहालय भी कहा जाता है।
स्थापना
पत्रकारिता के उन्नयन को सप्रे संग्रहालय के उद्देश्य को अधिक अर्थवान और आधुनिक स्वरूप प्रदान करने के लिए सन् 2006 में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के सहयोग से विज्ञान संचार अभिलेखागार की स्थापना की गई। मीडिया में विज्ञान विषयों के लोकप्रिय लेखन का प्रशिक्षण और प्रोत्साहन देने, समाज में वैज्ञानिक चेतना का वातावरण बनाने, मीडिया कर्मियों और विज्ञान लेखकों को संदर्भ सामग्री उपलब्ध कराने तथा विज्ञान लेखन के कौशल को निखारने की दिशा में विज्ञान संचार अभिलेखागार कार्य कर रहा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विषयों के विशेषज्ञों की सेवाएं इस कार्य के लिए ली गई हैं। सन् 1984 में रानी कमलापति महल के पुराने बुर्ज से सप्रे संग्रहालय की यात्रा आरंभ हुई। स्थान की कमी पड़ने लगी तब, सन 1987 में आचार्य नरेन्द्रदेव पुस्तकालय भवन के ऊपर नगरपालिक निगम भोपाल ने एक मंजिल का निर्माण कर 3000 वर्गफुट स्थान उपलब्ध कराया। यह जगह भी कम पड़ी तब 19 जून, 1996 को सप्रे संग्रहालय अपने भवन में स्थानांतरित हुआ। अब संग्रहालय के पास 11000 वर्गफुट स्थान उपलब्ध है।
पृष्ठभूमि
वर्ष 1982-83 में मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के लिये 'मध्यप्रदेश में पत्रकारिता का इतिहास' पुस्तक की पाण्डुलिपि तैयार करते हुए संदर्भ सामग्री जुटाने के लिये प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर जाना हुआ। तभी इस संकट का एहसास हुआ कि अनेक विद्यानुरागी परिवारों के पास समाचारपत्रों-पत्रिकाओं, अन्य दस्तावेजों और ग्रंथों का दुर्लभ संग्रह है और जर्जर पृष्ठों में संचित यह राष्ट्रीय बौद्धिक धरोहर नष्ट हो सकती हैं पं. रामेश्वर गुरू (जबलपुर) ने यह प्रेरणा दी कि इस सामग्री को एक छत के नीचे संकलित और संरक्षित करने की ज़रूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिये यह ज्ञान कोश बचाया जा सके। एक वर्ष तक इस दिशा में प्रयास करने के उत्साहवर्धक नतीजे सामने आए। 19 जून 1984 को माधवराव सप्रे समाचारपत्र संग्रहालय का मिशन प्रारंभ हुआ।
महत्व
पुराने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की इबारतों में इतिहास को रूबरू देखने का रोमांच अनुभव किया जा सकता है। भारत में पत्रकारिता का उद्भव और विकास नवजागरण के साथ-साथ हुआ है। राजनीतिक, सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक आदि विविध विषय क्षेत्रों की महत्वपूर्ण घटनाओं, उनकी पृष्ठभूमि और उनके फलितार्थों के प्रामाणिक स्रोत समसामयिक अखबारों के पृष्ठों में उपलब्ध है।
ज्ञान कोश
विगत 25 वर्षों में सप्रे संग्रहालय में 19846 शीर्षक समाचार पत्र और पत्रिकाएं, 28048 संदर्भग्रंथ, 1467 अन्य दस्तावेज, 284 लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकारों-पत्रकारों-राजनेताओं के 3500 पत्र, 163 गजेटियर, 179 अभिनंदन ग्रंथ, 282 शब्दकोश, 467 रिपोर्ट और 653 पाण्डुलिपियां संग्रहीत की जा चुकी हैं। शोध संदर्भ के लिए महत्वपूर्ण यह सामग्री 25 लाख पृष्ठों से अधिक है। संचित सामग्री में हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, मराठी, गुजराती भाषाओं की सामग्री बहुतायत में है।
अधिमान्यता
सप्रे संग्रहालय को निम्नलिखित चार विश्वविद्यालयों ने शोध केन्द्र के रूप में मान्यता प्रदान की है-
- बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल
- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल
- रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर
- कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर
सुविधाएँ
- सप्रे संग्रहालय में संचित सामग्री का सन्दर्भ लाभ उठाते हुए 600 से अधिक शोधार्थियों ने डी.लिट्., पीएच.डी. और एम.फिल. उपाधियों के लिये थीसिस पूरी की है। लाभान्वितों में देश-विदेश के शोध छात्र सम्मिलित हैं।
- राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सहयोग से सप्रे संग्रहालय में 'विज्ञान संचार अभिलेखागार' की स्थापना की गई है।
- सप्रे संग्रहालय में जर्जर पाण्डुलिपियों और अन्य सन्दर्भ सामग्री के संरक्षण के लिये माइक्रोफिल्मिंग, डिजिटाइजेशन, लेमिनेशन आदि प्रविधियां अपनाई जा रही हैं।
उपलब्धियाँ
- सप्रे संग्रहालय ने लगभग डेढ़ दशक तक भारतीय पत्रकारिता कोश लिपिबद्ध करने की महत्वाकांक्षी परियोजना पर कार्य किया।
- दो खंडों में श्री विजयदत्त श्रीधर ने भारतीय पत्रकारिता कोश तैयार किया है।
- भारतीय पत्रकारिता कोश के प्रथम खंड में सन 1780 से 1900 तथा दूसरे खंड में सन 1901 से 1947 तक की भारतीय पत्रकारिता का इतिवृत्त दर्ज है।
- भारत में सभी भाषाओं के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का प्रामाणिक वृत्तांत लिपिबद्ध करने के साथ-साथ सन 1947 तक के भारत के पूरे भूगोल को भी इसमें समाहित किया गया है।
- सप्रे संग्रहालय के विपुल संदर्भ-संग्रह के अलावा राष्ट्रीय पुस्तकालय कोलकाता, बंगीय साहित्य परिषद कोलकाता और राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली से भी तथ्य जुटाये गये।
- अधिकांश सामग्री प्राथमिक स्रोत पर आधारित है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सप्रे संग्रहालय (हिंदी) आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 24 अप्रॅल, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख