"मंजीत बावा": अवतरणों में अंतर
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'''मंजीत बावा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Manjit Bawa'', जन्म: [[1941]] - मृत्यु: [[29 दिसम्बर]], [[2008]]) प्रसिद्ध चित्रकार थे। मंजीत बावा सूफ़ी गायन और दर्शन में अपनी विशेष रुचि के लिए भी जाने जाते थे। मंजीत बावा पहले चित्रकार थे, जिन्होंने पश्चिमी कला में प्रभावी ग्रे और ब्राउन से हटकर [[लाल रंग|लाल]] और [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] जैसे [[रंग|रंगों]] को चुना। उनके चित्रों पर प्रकृति, सूफी रहस्यवाद और भारतीय धर्म का गहरा प्रभाव था। [[काली देवी|काली]] और [[शिव]] को वह देश का आइकॉन मानते थे, इसलिए उनके चित्रों में काली और शिव की मौजूदगी प्रमुखता से रही। मंजीत बावा, कला में नव आंदोलन का हिस्सा थे। रंगों की उनकी समझ अद्भुत थी। | '''मंजीत बावा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Manjit Bawa'', जन्म: [[1941]] - मृत्यु: [[29 दिसम्बर]], [[2008]]) प्रसिद्ध चित्रकार थे। मंजीत बावा सूफ़ी गायन और दर्शन में अपनी विशेष रुचि के लिए भी जाने जाते थे। मंजीत बावा पहले चित्रकार थे, जिन्होंने पश्चिमी कला में प्रभावी ग्रे और ब्राउन से हटकर [[लाल रंग|लाल]] और [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] जैसे [[रंग|रंगों]] को चुना। उनके चित्रों पर प्रकृति, सूफी रहस्यवाद और भारतीय धर्म का गहरा प्रभाव था। [[काली देवी|काली]] और [[शिव]] को वह देश का आइकॉन मानते थे, इसलिए उनके चित्रों में काली और शिव की मौजूदगी प्रमुखता से रही। मंजीत बावा, कला में नव आंदोलन का हिस्सा थे। रंगों की उनकी समझ अद्भुत थी। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
[[पंजाब]] के छोटे से कस्बे धूरी में [1941]] में पैदा हुए मंजीत बावा ने [[दिल्ली]] के स्कूल ऑफ आर्ट्स में ललित कला की तालीम हासिल की। यहाँ उन्हें सोमनाथ होरे, राकेश मेहरा, धनराज भगत और बीसी सान्याल जैसे शिक्षकों से प्रशिक्षण मिला। | [[पंजाब]] के छोटे से कस्बे धूरी में [[1941]] में पैदा हुए मंजीत बावा ने [[दिल्ली]] के स्कूल ऑफ आर्ट्स में ललित कला की तालीम हासिल की। यहाँ उन्हें सोमनाथ होरे, राकेश मेहरा, धनराज भगत और बीसी सान्याल जैसे शिक्षकों से प्रशिक्षण मिला। [[लंदन]] में [[1964]] में उन्होंने अपना करियर सिल्कस्क्रीन पेंटर के तौर पर शुरू किया था। वह पहले चित्रकार थे, जिन्होंने पाश्चात्य कला में बहुलता रखने वाले भूरे और धूसर रंगों का वर्चस्व खत्म करके उसकी जगह [[लाल रंग|लाल]] और [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] जैसे भारतीय रंगों को चुना। वह प्रकृति सूफी रहस्यवाद और भारतीय पौराणिक कथाओं से काफ़ी प्रभावित थे। मंजीत बावा की जीवनी लिखने वाली इना पुरी ने कहा कि वह [[आकाश]] को [[लाल रंग]] में उकेरना चाहते थे। उन्हें लाल रंग बेहद पसंद था। वह साहसिक चित्रकार थे, जिनमें लोकप्रिय प्रचलन से बेपरवाह होकर अपने प्रतिबद्धताओं पर आगे बढ़ने का साहस था। [[ललित कला अकादमी]] के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक वाजपेई ने बावा को याद करते हुए उन्हें प्रतिबद्धताओं वाला ऐसा शख्सियत बताया, जिसने युवा कलाकारों की मदद की। उन्होंने कहा कि वह हरफनमौला हस्ती थे। उन्होंने अपनी पेंटिंग में पशु और पक्षी को अक्सर उकेरा। इसके अतिरिक्त [[बाँसुरी]] भी उनकी पसंद रही। उन्होंने प्रसिद्ध बाँसुरी वादक [[पन्नालाल घोष]] से बाँसुरी वादन सीखा। उन्होंने [[हीर-रांझा]] की कथा की पात्र राँझा की भी तस्वीर बनाई। इसके अतिरिक्त उन्होंने कुत्तों से घिरे भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] की बाँसुरी बजाते हुए तस्वीर बनाई। उन्होंने अपनी पेंटिंग में भगवान श्रीकृष्ण को [[गाय|गायों]] से घिरा नहीं दिखाया।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/national-hindi-news/%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%B0-%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%A4-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%A8-108122900029_1.htm |title=मशहूर चित्रकार मंजीत बावा का निधन |accessmonthday=30 दिसम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया हिन्दी |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==भारतीय चित्रकला में योगदान== | |||
[[लंदन]] में [[1964]] में उन्होंने अपना करियर सिल्कस्क्रीन पेंटर के तौर पर शुरू किया था। वह पहले चित्रकार थे, जिन्होंने पाश्चात्य कला में बहुलता रखने वाले भूरे और धूसर रंगों का वर्चस्व खत्म करके उसकी जगह [[लाल रंग|लाल]] और [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] जैसे भारतीय रंगों को चुना। वह प्रकृति सूफी रहस्यवाद और भारतीय पौराणिक कथाओं से | पहले भी और आज भी [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] में ऐसे चित्रकार हैं जिन पर यूरोपीय कला का असर साफ देखा जा सकता है, लेकिन इनमें मंजीत बावा शामिल नहीं हैं। मंजीत बावा का भारतीय चित्रकला में बड़ा योगदान तो यह है कि उन्होंने अपने फॉर्म का ज्यादा कल्पनाशील ढंग से डिस्टार्शन किया। फिर मनोहारी रंगों का संवेदनशील इस्तेमाल किया और अपने आकारों के लिए [[यूरोप]] की ओर कभी टकटकी लगाकर देखने की कोशिश नहीं की, बल्कि उन्होंने [[महाभारत]], [[रामायण]], [[पुराण]] और सूफी कविता से अपने चित्रों की आत्मा को खोजा, चित्रित किया और हासिल किया। उनके चित्रों पर यदि सरसरी निगाह डाली जाए तो ये तीन-चार बातें आसानी देखी जा सकती हैं। उन्होंने कहीं कहा भी था कि कला में ताजगी और नयापन ज़रूरी है, अन्यथा वह कला अर्थहीन होगी। अलग होने का अर्थ यह है कि वह करने की कोशिश की है जो इसके पहले किसी ने नहीं किया हो। यह बिना झिझक कहा जा सकता है कि मंजीत बावा ने जो बात कही, उसे उन्होंने अपने खूबसूरत चित्रों में अभिव्यक्त किया है। | ||
====भारतीय रंगों का प्रयोग==== | |||
एक ऐसे समय में जब भारतीय चित्रकला में अधिकांश चित्रकार भूरे-धूसर रंगों की तरफ जा रहे थे और अपने को अमूर्तता में व्यक्त कर रहे थे, तब मंजीत बावा ने अपने लिए एक नई राह चुनी। उन्होंने अपने चित्रों के लिए ठेठ भारतीय चटख रंगों का चयन किया। उनके चित्रों में उन्होंने [[गुलाबी रंग|गुलाबी]], [[बैंगनी रंग|बैंगनी]], [[पीला रंग|पीले]], [[हरा रंग|हरे]], [[नीला रंग|नीले]] और [[लाल रंग]] का समावेश किया। मंजीत बावा उन कलाकारों में से थे, जिन्होंने देश के तमाम इलाकों में घूमकर भारतीय लोगों औऱ उनके [[रंग|रंगों]] की आत्मा को जाना-बूझा। वे [[हिमाचल प्रदेश]], [[गुजरात]] और [[राजस्थान]] खूब घूमे। भारतीय लोगों के सरल जीवन ने उन्हें आकर्षित किया। लोगों की सरलता-सहजता उनका दिल छूती थी और चटख रंग उन्हें खूब लुभाते थे। वे जहाँ जाते वहाँ पेपर बिछाकर उस जीवन को अपने ड्राइंग में धड़कता हुआ बना देते। | |||
====50 स्कैच रोज़==== | |||
जब वे [[दिल्ली]] में रहते हुए [[कला]] की शिक्षा ले रहे थे तब उनके गुरु थे सोमनाथ होर और बीसी सान्याल, लेकिन उन्होंने अपनी पहचान बनाई अबानी सेन की छत्रछाया में। श्री सेन ने उन्हें कहा था कि रोज पचास स्कैच बनाओ। मंजीत बावा रोज पचास स्कैच बनाते और उनके गुरु इनमें से अधिकांश को रिजेक्ट कर देते थे। जाहिर है यहीं से मंजीत बावा की स्कैच बनाने की रियाज शुरू हुई। उन्होंने अपने उन दिनों को याद करते हुए कहीं कहा भी था कि तब से मेरी लगातार काम करने की आदत पड़ गई। जब सब अमूर्त की ओर जा रहे थे मेरे गुरुओं ने मुझे आकृतिमूलकता का मर्म समझाया और उस ओर जाने के लिए प्रेरित किया। | |||
====गहरी आध्यात्मिकता==== | |||
वे आकृतिमूलकता की ओर आए तो सही लेकिन अपनी नितांत कल्पनाशील मौलिकता से उन्होंने नए फॉर्म्स खोजे, अपनी खास तरह की रंग योजना ईजाद की और मिथकीय संसार में अपने आकार ढूँढ़े। यही कारण है कि उनके चित्र संसार में ठेठ भारतीयता के रंग आकार देखे जा सकते हैं। वहाँ आपको [[हीर-राँझा]] भी मिलेंगे, [[कृष्ण]], गोवर्धन भी मिलेंगे, देवी भी मिलेंगी तथा कई मिथकीय और पौराणिक प्रसंग-संदर्भ भी। और सूफी संत भी मिलेंगे। इसके साथ ही उनके चित्रों में जितने जीव-जंतु मिलेंगे उतने शायद किसी अन्य भारतीय कलाकार में नहीं। उनकी माँ नहीं चाहती थीं कि वे कलाकार बनें। उनकी माँ कहती थीं कि कला के बल पर जीवन नहीं जिया जा सकता लेकिन ईश्वर में गहरी आस्था और विश्वास की बदौलत मंजीत बावा मानते थे कि रोजी-रोटी तो ईश्वर दे देगा बाकी चीजें वे खुद हासिल कर लेंगे। | |||
उनके मनोहारी कैनवास ये बताते हैं कि इस कलाकार ने यूरोपीय कला के असर से मुक्त होकर अपने लिए एक कठिन राह खोजी, बनाई और उस पर दृढ़ता से चलकर दिखाया। कुछ समय के लिए उनके चित्रों को लेकर विवाद भी हुआ था। उनके ही सहायक ने आरोप लगाया था कि मंजीत बावा के चित्र मैंने चित्रित किए हैं लेकिन वे इससे अविचलित रहे और अपनी गहरी आध्यात्मिकता से इससे बाहर निकल आए। <ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/hindi-literature/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%A4-%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%A4-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE-108122900079_1.htm |title=भारतीयता का अद्भुत चितेरा मनजीत बावा|accessmonthday=30 दिसम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया हिन्दी |language=हिन्दी }}</ref> | |||
==सम्मान और पुरस्कार== | |||
* 1980 में राष्ट्रीय पुरस्कार, [[ललित कला अकादमी]], [[नई दिल्ली]] | |||
* 2005-06 में [[राष्ट्रीय कालिदास सम्मान]] | |||
==निधन== | ==निधन== | ||
प्रसिद्ध चित्रकार मंजीत बावा का [[29 दिसम्बर]], [[2008]] [[सोमवार]] को दिल्ली में निधन हो गया। 67 वर्षीय बावा ब्रेन हैमरेज के बाद से | प्रसिद्ध चित्रकार मंजीत बावा का [[29 दिसम्बर]], [[2008]] [[सोमवार]] को दिल्ली में निधन हो गया। 67 वर्षीय बावा ब्रेन हैमरेज के बाद से क़रीब तीन साल से कोमा में रहे थे। बावा के परिजनों और मित्रों के अनुसार दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाक़े में स्थित अपने आवास पर सोमवार सुबह उन्होंने आखिरी सांस ली। मंजीत बावा के परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री है। उनकी पत्नी का कुछ वर्ष पहले ही निधन हो गया था। उनकी पेंटिंग्स के कद्रदान पूरी दुनिया में हैं। मंजीत बावा की एक पेंटिंग तो क़रीब एक करोड़ 73 लाख रुपये में बिकी थी।<ref>http://navbharattimes.indiatimes.com/yearendershow11/3907980.cms चित्रकार मंजीत बावा नहीं रहे (नवभारत टाइम्स)</ref> | ||
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10:50, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
मंजीत बावा
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पूरा नाम | मंजीत बावा |
अन्य नाम | बावा |
जन्म | 1941 |
जन्म भूमि | धूरी, पंजाब |
मृत्यु | 29 दिसम्बर, 2008 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
पुरस्कार-उपाधि | राष्ट्रीय कालिदास सम्मान, राष्ट्रीय पुरस्कार, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | मंजीत बावा पहले चित्रकार थे, जिन्होंने पश्चिमी कला में प्रभावी ग्रे और ब्राउन से हटकर लाल और बैंगनी जैसे रंगों को चुना। |
मंजीत बावा (अंग्रेज़ी: Manjit Bawa, जन्म: 1941 - मृत्यु: 29 दिसम्बर, 2008) प्रसिद्ध चित्रकार थे। मंजीत बावा सूफ़ी गायन और दर्शन में अपनी विशेष रुचि के लिए भी जाने जाते थे। मंजीत बावा पहले चित्रकार थे, जिन्होंने पश्चिमी कला में प्रभावी ग्रे और ब्राउन से हटकर लाल और बैंगनी जैसे रंगों को चुना। उनके चित्रों पर प्रकृति, सूफी रहस्यवाद और भारतीय धर्म का गहरा प्रभाव था। काली और शिव को वह देश का आइकॉन मानते थे, इसलिए उनके चित्रों में काली और शिव की मौजूदगी प्रमुखता से रही। मंजीत बावा, कला में नव आंदोलन का हिस्सा थे। रंगों की उनकी समझ अद्भुत थी।
जीवन परिचय
पंजाब के छोटे से कस्बे धूरी में 1941 में पैदा हुए मंजीत बावा ने दिल्ली के स्कूल ऑफ आर्ट्स में ललित कला की तालीम हासिल की। यहाँ उन्हें सोमनाथ होरे, राकेश मेहरा, धनराज भगत और बीसी सान्याल जैसे शिक्षकों से प्रशिक्षण मिला। लंदन में 1964 में उन्होंने अपना करियर सिल्कस्क्रीन पेंटर के तौर पर शुरू किया था। वह पहले चित्रकार थे, जिन्होंने पाश्चात्य कला में बहुलता रखने वाले भूरे और धूसर रंगों का वर्चस्व खत्म करके उसकी जगह लाल और बैंगनी जैसे भारतीय रंगों को चुना। वह प्रकृति सूफी रहस्यवाद और भारतीय पौराणिक कथाओं से काफ़ी प्रभावित थे। मंजीत बावा की जीवनी लिखने वाली इना पुरी ने कहा कि वह आकाश को लाल रंग में उकेरना चाहते थे। उन्हें लाल रंग बेहद पसंद था। वह साहसिक चित्रकार थे, जिनमें लोकप्रिय प्रचलन से बेपरवाह होकर अपने प्रतिबद्धताओं पर आगे बढ़ने का साहस था। ललित कला अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक वाजपेई ने बावा को याद करते हुए उन्हें प्रतिबद्धताओं वाला ऐसा शख्सियत बताया, जिसने युवा कलाकारों की मदद की। उन्होंने कहा कि वह हरफनमौला हस्ती थे। उन्होंने अपनी पेंटिंग में पशु और पक्षी को अक्सर उकेरा। इसके अतिरिक्त बाँसुरी भी उनकी पसंद रही। उन्होंने प्रसिद्ध बाँसुरी वादक पन्नालाल घोष से बाँसुरी वादन सीखा। उन्होंने हीर-रांझा की कथा की पात्र राँझा की भी तस्वीर बनाई। इसके अतिरिक्त उन्होंने कुत्तों से घिरे भगवान श्रीकृष्ण की बाँसुरी बजाते हुए तस्वीर बनाई। उन्होंने अपनी पेंटिंग में भगवान श्रीकृष्ण को गायों से घिरा नहीं दिखाया।[1]
भारतीय चित्रकला में योगदान
पहले भी और आज भी भारतीय चित्रकला में ऐसे चित्रकार हैं जिन पर यूरोपीय कला का असर साफ देखा जा सकता है, लेकिन इनमें मंजीत बावा शामिल नहीं हैं। मंजीत बावा का भारतीय चित्रकला में बड़ा योगदान तो यह है कि उन्होंने अपने फॉर्म का ज्यादा कल्पनाशील ढंग से डिस्टार्शन किया। फिर मनोहारी रंगों का संवेदनशील इस्तेमाल किया और अपने आकारों के लिए यूरोप की ओर कभी टकटकी लगाकर देखने की कोशिश नहीं की, बल्कि उन्होंने महाभारत, रामायण, पुराण और सूफी कविता से अपने चित्रों की आत्मा को खोजा, चित्रित किया और हासिल किया। उनके चित्रों पर यदि सरसरी निगाह डाली जाए तो ये तीन-चार बातें आसानी देखी जा सकती हैं। उन्होंने कहीं कहा भी था कि कला में ताजगी और नयापन ज़रूरी है, अन्यथा वह कला अर्थहीन होगी। अलग होने का अर्थ यह है कि वह करने की कोशिश की है जो इसके पहले किसी ने नहीं किया हो। यह बिना झिझक कहा जा सकता है कि मंजीत बावा ने जो बात कही, उसे उन्होंने अपने खूबसूरत चित्रों में अभिव्यक्त किया है।
भारतीय रंगों का प्रयोग
एक ऐसे समय में जब भारतीय चित्रकला में अधिकांश चित्रकार भूरे-धूसर रंगों की तरफ जा रहे थे और अपने को अमूर्तता में व्यक्त कर रहे थे, तब मंजीत बावा ने अपने लिए एक नई राह चुनी। उन्होंने अपने चित्रों के लिए ठेठ भारतीय चटख रंगों का चयन किया। उनके चित्रों में उन्होंने गुलाबी, बैंगनी, पीले, हरे, नीले और लाल रंग का समावेश किया। मंजीत बावा उन कलाकारों में से थे, जिन्होंने देश के तमाम इलाकों में घूमकर भारतीय लोगों औऱ उनके रंगों की आत्मा को जाना-बूझा। वे हिमाचल प्रदेश, गुजरात और राजस्थान खूब घूमे। भारतीय लोगों के सरल जीवन ने उन्हें आकर्षित किया। लोगों की सरलता-सहजता उनका दिल छूती थी और चटख रंग उन्हें खूब लुभाते थे। वे जहाँ जाते वहाँ पेपर बिछाकर उस जीवन को अपने ड्राइंग में धड़कता हुआ बना देते।
50 स्कैच रोज़
जब वे दिल्ली में रहते हुए कला की शिक्षा ले रहे थे तब उनके गुरु थे सोमनाथ होर और बीसी सान्याल, लेकिन उन्होंने अपनी पहचान बनाई अबानी सेन की छत्रछाया में। श्री सेन ने उन्हें कहा था कि रोज पचास स्कैच बनाओ। मंजीत बावा रोज पचास स्कैच बनाते और उनके गुरु इनमें से अधिकांश को रिजेक्ट कर देते थे। जाहिर है यहीं से मंजीत बावा की स्कैच बनाने की रियाज शुरू हुई। उन्होंने अपने उन दिनों को याद करते हुए कहीं कहा भी था कि तब से मेरी लगातार काम करने की आदत पड़ गई। जब सब अमूर्त की ओर जा रहे थे मेरे गुरुओं ने मुझे आकृतिमूलकता का मर्म समझाया और उस ओर जाने के लिए प्रेरित किया।
गहरी आध्यात्मिकता
वे आकृतिमूलकता की ओर आए तो सही लेकिन अपनी नितांत कल्पनाशील मौलिकता से उन्होंने नए फॉर्म्स खोजे, अपनी खास तरह की रंग योजना ईजाद की और मिथकीय संसार में अपने आकार ढूँढ़े। यही कारण है कि उनके चित्र संसार में ठेठ भारतीयता के रंग आकार देखे जा सकते हैं। वहाँ आपको हीर-राँझा भी मिलेंगे, कृष्ण, गोवर्धन भी मिलेंगे, देवी भी मिलेंगी तथा कई मिथकीय और पौराणिक प्रसंग-संदर्भ भी। और सूफी संत भी मिलेंगे। इसके साथ ही उनके चित्रों में जितने जीव-जंतु मिलेंगे उतने शायद किसी अन्य भारतीय कलाकार में नहीं। उनकी माँ नहीं चाहती थीं कि वे कलाकार बनें। उनकी माँ कहती थीं कि कला के बल पर जीवन नहीं जिया जा सकता लेकिन ईश्वर में गहरी आस्था और विश्वास की बदौलत मंजीत बावा मानते थे कि रोजी-रोटी तो ईश्वर दे देगा बाकी चीजें वे खुद हासिल कर लेंगे। उनके मनोहारी कैनवास ये बताते हैं कि इस कलाकार ने यूरोपीय कला के असर से मुक्त होकर अपने लिए एक कठिन राह खोजी, बनाई और उस पर दृढ़ता से चलकर दिखाया। कुछ समय के लिए उनके चित्रों को लेकर विवाद भी हुआ था। उनके ही सहायक ने आरोप लगाया था कि मंजीत बावा के चित्र मैंने चित्रित किए हैं लेकिन वे इससे अविचलित रहे और अपनी गहरी आध्यात्मिकता से इससे बाहर निकल आए। [2]
सम्मान और पुरस्कार
- 1980 में राष्ट्रीय पुरस्कार, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली
- 2005-06 में राष्ट्रीय कालिदास सम्मान
निधन
प्रसिद्ध चित्रकार मंजीत बावा का 29 दिसम्बर, 2008 सोमवार को दिल्ली में निधन हो गया। 67 वर्षीय बावा ब्रेन हैमरेज के बाद से क़रीब तीन साल से कोमा में रहे थे। बावा के परिजनों और मित्रों के अनुसार दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाक़े में स्थित अपने आवास पर सोमवार सुबह उन्होंने आखिरी सांस ली। मंजीत बावा के परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री है। उनकी पत्नी का कुछ वर्ष पहले ही निधन हो गया था। उनकी पेंटिंग्स के कद्रदान पूरी दुनिया में हैं। मंजीत बावा की एक पेंटिंग तो क़रीब एक करोड़ 73 लाख रुपये में बिकी थी।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मशहूर चित्रकार मंजीत बावा का निधन (हिन्दी) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 30 दिसम्बर, 2014।
- ↑ भारतीयता का अद्भुत चितेरा मनजीत बावा (हिन्दी) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 30 दिसम्बर, 2014।
- ↑ http://navbharattimes.indiatimes.com/yearendershow11/3907980.cms चित्रकार मंजीत बावा नहीं रहे (नवभारत टाइम्स)
बाहरी कड़ियाँ
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