"पुरातत्वीय संग्रहालय, अमरावती": अवतरणों में अंतर
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'''पुरातत्वीय संग्रहालय, अमरावती''' (अक्षांश 160°34' उत्तर, देशांतर 800°17' पूर्व) [[गुंटूर]] शहर के रेलवे स्टेशन से 35 कि.मी. उत्तर की दूरी पर [[कृष्णा नदी]] के दाहिने तट पर स्थित है। यह एक तीर्थस्थान भी है जिसे अमरेश्वरम के नाम से जाना जाता है। अमरावती कला-शैली भारतीय कला के इतिहास में एक प्रमुख स्थान रखती है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इसके उदय के साथ [[अमरावती]] का इतिहास मूर्तिकला की इसकी विशाल सम्पदा के साथ प्रारंभ होता है जिसमें कभी यहां स्थित बौद्धों के आलीशान स्मारक महाचैत्य की शोभा बढ़ार्इ थी जिसका इतिहास डेढ़ सहस्त्राब्दि पुराना है। | {{सूचना बक्सा संग्रहालय | ||
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'''पुरातत्वीय संग्रहालय, अमरावती''' (अक्षांश 160°34' उत्तर, देशांतर 800°17' पूर्व) [[गुंटूर]] शहर के रेलवे स्टेशन से 35 कि.मी. उत्तर की दूरी पर [[कृष्णा नदी]] के दाहिने तट पर स्थित है। यह एक तीर्थस्थान भी है जिसे अमरेश्वरम के नाम से जाना जाता है। [[अमरावती मूर्तिकला|अमरावती कला-शैली]] भारतीय कला के इतिहास में एक प्रमुख स्थान रखती है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इसके उदय के साथ [[अमरावती]] का इतिहास मूर्तिकला की इसकी विशाल सम्पदा के साथ प्रारंभ होता है जिसमें कभी यहां स्थित बौद्धों के आलीशान स्मारक महाचैत्य की शोभा बढ़ार्इ थी जिसका इतिहास डेढ़ सहस्त्राब्दि पुराना है। | |||
==विशेषताएँ== | ==विशेषताएँ== | ||
* मुख्य दीर्घा में अमरावती की कला-परंपराओं के चुनिंदा उदाहरण प्रदर्शित किए गए हैं। कमल और पूर्णकुंभ मूलभाव अमरावती कला की विशिष्टता है जो संपन्नता और समृद्धि को अभिव्यक्त करते हैं। | * मुख्य दीर्घा में अमरावती की कला-परंपराओं के चुनिंदा उदाहरण प्रदर्शित किए गए हैं। कमल और पूर्णकुंभ मूलभाव अमरावती कला की विशिष्टता है जो संपन्नता और समृद्धि को अभिव्यक्त करते हैं। | ||
* नक्काशी में स्तूपों को दर्शाने वाले दो ढोलाकार पटिए संरचना का उचित चित्र प्रस्तुत करते हैं। प्रारंभिक अवधि के दौरान [[बुद्ध]] को इन पट्टियों में एक स्थान पर बोधि वृक्ष के नीचे एक सिंहासन पर गद्देदार आसन पर '[[स्वस्तिक|स्वास्तिक]]' चिह्न के आकार (वज्रासन) में प्रतीकात्मक रूप से बैठा हुआ दिखाया गया है और एक अन्य स्थान पर लपटें निकलते हुए खंभे (अग्नि स्कंद) के नीचे बैठा दिखाया गया है। | * नक्काशी में स्तूपों को दर्शाने वाले दो ढोलाकार पटिए संरचना का उचित चित्र प्रस्तुत करते हैं। प्रारंभिक अवधि के दौरान [[बुद्ध]] को इन पट्टियों में एक स्थान पर बोधि वृक्ष के नीचे एक सिंहासन पर गद्देदार आसन पर '[[स्वस्तिक|स्वास्तिक]]' चिह्न के आकार (वज्रासन) में प्रतीकात्मक रूप से बैठा हुआ दिखाया गया है और एक अन्य स्थान पर लपटें निकलते हुए खंभे (अग्नि स्कंद) के नीचे बैठा दिखाया गया है। | ||
* गुंबद के ऊपर निचली नक्काशी में जातक दर्शाए गए हैं। गुम्मादिदुर्रू से प्राप्त खड़ी अवस्था वाली बुद्ध प्रतिमा आठवीं ईसवी शताब्दी की है। | * गुंबद के ऊपर निचली नक्काशी में जातक दर्शाए गए हैं। गुम्मादिदुर्रू से प्राप्त खड़ी अवस्था वाली बुद्ध प्रतिमा आठवीं ईसवी शताब्दी की है। | ||
* द्वितीय दीर्घा में | * द्वितीय दीर्घा में महापुरुष लक्षणों के साथ महामानव के रूप में बुद्ध की जीवंत आकार की खड़ी मुद्रा वाली प्रतिमा देखी जा सकती है। एक अर्गला के ऊपर गोलाकार पट्टी में बुद्ध के पिता राजा [[शुद्धोदन]] द्वारा बुद्ध के समक्ष राहुल को प्रस्तुत किए जाने के प्रकरण को दर्शाया गया है जो वर्णन, रचना और उत्कीर्णन की दृष्टि से एक अन्य अद्भुत रचना है। | ||
* स्तूप पूजन को दर्शाने वाली कुछ ढोलाकार पट्टियों तथा गुंबजाकार पटियों के अलावा, त्रिरत्न, पशुओं की पंक्तियां और लघु पुरावस्तुएं जैसे सिक्के और मनके महत्वपूर्ण हैं। | * स्तूप पूजन को दर्शाने वाली कुछ ढोलाकार पट्टियों तथा गुंबजाकार पटियों के अलावा, त्रिरत्न, पशुओं की पंक्तियां और लघु पुरावस्तुएं जैसे सिक्के और मनके महत्वपूर्ण हैं। | ||
* तृतीय दीर्घा में प्रदर्शित मूर्तियों में भरहुत परंपरा की एक यक्षी, प्रस्तर पट्ट जिसमें पट्टियों पर नाम लिखे हैं, और [[अशोक]] का एक खण्डमय स्तंभ-लेख सहित द्वितीय शताब्दी ई.पू. की कुछ मूर्तियां शामिल हैं। * अल्लुरू से प्राप्त बुद्ध की प्रतिमाएं, लिंगराज पल्ली से प्राप्त धम्म चक्र, [[बोधिसत्त्व]], बौद्धमत के रत्नों को दर्शाने वाला एक गुम्बजाकार पटिया अर्थात् भक्तों द्वारा पूज्य किए जाने वाले बोधि वृक्ष, धर्म चक्र और [[स्तूप]] द्वारा निरूपित एक पट्टी में बुद्ध, धम्म और संघ उल्लेखनीय हैं। केन्द्रीय प्रदर्शन-मंजूषा में आपस में लिपटा जोड़ा सातवाहन काल के उत्साह और जीवंतता से परिपूर्ण अमरावती कला का सर्वोत्कृष्ट नमूना है। | * तृतीय दीर्घा में प्रदर्शित मूर्तियों में भरहुत परंपरा की एक यक्षी, प्रस्तर पट्ट जिसमें पट्टियों पर नाम लिखे हैं, और [[अशोक]] का एक खण्डमय स्तंभ-लेख सहित द्वितीय शताब्दी ई.पू. की कुछ मूर्तियां शामिल हैं। * अल्लुरू से प्राप्त बुद्ध की प्रतिमाएं, लिंगराज पल्ली से प्राप्त धम्म चक्र, [[बोधिसत्त्व]], बौद्धमत के रत्नों को दर्शाने वाला एक गुम्बजाकार पटिया अर्थात् भक्तों द्वारा पूज्य किए जाने वाले बोधि वृक्ष, धर्म चक्र और [[स्तूप]] द्वारा निरूपित एक पट्टी में बुद्ध, धम्म और संघ उल्लेखनीय हैं। केन्द्रीय प्रदर्शन-मंजूषा में आपस में लिपटा जोड़ा सातवाहन काल के उत्साह और जीवंतता से परिपूर्ण अमरावती कला का सर्वोत्कृष्ट नमूना है। | ||
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* हार ले जाते हुए यक्षगणों के बीच पूर्वस्वरूप के [[गणेश]] और उनकी पत्नी, प्रारंभिक काल में [[लक्ष्मी]] तथा मुंडेर के वितान पर विवाद करते राजकुमारों द्वारा भगवान बुद्ध के स्मृति चिह्नों का बंटवारा दर्शाने वाली पट्टिका कुछ उल्लेखनीय कलाकृतियां हैं।<ref>{{cite web |url=http://asi.nic.in/asi_museums_amravati_hn.asp|title=संग्रहालय - अमरावती |accessmonthday=5 जनवरी |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण |language=हिन्दी }}</ref> | * हार ले जाते हुए यक्षगणों के बीच पूर्वस्वरूप के [[गणेश]] और उनकी पत्नी, प्रारंभिक काल में [[लक्ष्मी]] तथा मुंडेर के वितान पर विवाद करते राजकुमारों द्वारा भगवान बुद्ध के स्मृति चिह्नों का बंटवारा दर्शाने वाली पट्टिका कुछ उल्लेखनीय कलाकृतियां हैं।<ref>{{cite web |url=http://asi.nic.in/asi_museums_amravati_hn.asp|title=संग्रहालय - अमरावती |accessmonthday=5 जनवरी |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण |language=हिन्दी }}</ref> | ||
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07:31, 3 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
पुरातत्वीय संग्रहालय, अमरावती
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विवरण | अमरावती संग्रहालय गुंटूर ज़िले में स्थित है। |
राज्य | आन्ध्र प्रदेश |
नगर | अमरावती |
भौगोलिक स्थिति | अक्षांश 160°34' उत्तर, देशांतर 800°17' पूर्व |
खुलने का समय | सुबह 10 बजे से शाम 5.00 बजे तक |
अवकाश | शुक्रवार |
अन्य जानकारी | सातवाहन काल का पूर्ण आकार वाला अलंकृत वृषभ (नंदीश्वर) स्थानीय अमरेश्वर मंदिर से प्राप्त की गई आकर्षक कलाकृति है। |
अद्यतन | 16:47, 5 जनवरी 2015 (IST)
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पुरातत्वीय संग्रहालय, अमरावती (अक्षांश 160°34' उत्तर, देशांतर 800°17' पूर्व) गुंटूर शहर के रेलवे स्टेशन से 35 कि.मी. उत्तर की दूरी पर कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित है। यह एक तीर्थस्थान भी है जिसे अमरेश्वरम के नाम से जाना जाता है। अमरावती कला-शैली भारतीय कला के इतिहास में एक प्रमुख स्थान रखती है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इसके उदय के साथ अमरावती का इतिहास मूर्तिकला की इसकी विशाल सम्पदा के साथ प्रारंभ होता है जिसमें कभी यहां स्थित बौद्धों के आलीशान स्मारक महाचैत्य की शोभा बढ़ार्इ थी जिसका इतिहास डेढ़ सहस्त्राब्दि पुराना है।
विशेषताएँ
- मुख्य दीर्घा में अमरावती की कला-परंपराओं के चुनिंदा उदाहरण प्रदर्शित किए गए हैं। कमल और पूर्णकुंभ मूलभाव अमरावती कला की विशिष्टता है जो संपन्नता और समृद्धि को अभिव्यक्त करते हैं।
- नक्काशी में स्तूपों को दर्शाने वाले दो ढोलाकार पटिए संरचना का उचित चित्र प्रस्तुत करते हैं। प्रारंभिक अवधि के दौरान बुद्ध को इन पट्टियों में एक स्थान पर बोधि वृक्ष के नीचे एक सिंहासन पर गद्देदार आसन पर 'स्वास्तिक' चिह्न के आकार (वज्रासन) में प्रतीकात्मक रूप से बैठा हुआ दिखाया गया है और एक अन्य स्थान पर लपटें निकलते हुए खंभे (अग्नि स्कंद) के नीचे बैठा दिखाया गया है।
- गुंबद के ऊपर निचली नक्काशी में जातक दर्शाए गए हैं। गुम्मादिदुर्रू से प्राप्त खड़ी अवस्था वाली बुद्ध प्रतिमा आठवीं ईसवी शताब्दी की है।
- द्वितीय दीर्घा में महापुरुष लक्षणों के साथ महामानव के रूप में बुद्ध की जीवंत आकार की खड़ी मुद्रा वाली प्रतिमा देखी जा सकती है। एक अर्गला के ऊपर गोलाकार पट्टी में बुद्ध के पिता राजा शुद्धोदन द्वारा बुद्ध के समक्ष राहुल को प्रस्तुत किए जाने के प्रकरण को दर्शाया गया है जो वर्णन, रचना और उत्कीर्णन की दृष्टि से एक अन्य अद्भुत रचना है।
- स्तूप पूजन को दर्शाने वाली कुछ ढोलाकार पट्टियों तथा गुंबजाकार पटियों के अलावा, त्रिरत्न, पशुओं की पंक्तियां और लघु पुरावस्तुएं जैसे सिक्के और मनके महत्वपूर्ण हैं।
- तृतीय दीर्घा में प्रदर्शित मूर्तियों में भरहुत परंपरा की एक यक्षी, प्रस्तर पट्ट जिसमें पट्टियों पर नाम लिखे हैं, और अशोक का एक खण्डमय स्तंभ-लेख सहित द्वितीय शताब्दी ई.पू. की कुछ मूर्तियां शामिल हैं। * अल्लुरू से प्राप्त बुद्ध की प्रतिमाएं, लिंगराज पल्ली से प्राप्त धम्म चक्र, बोधिसत्त्व, बौद्धमत के रत्नों को दर्शाने वाला एक गुम्बजाकार पटिया अर्थात् भक्तों द्वारा पूज्य किए जाने वाले बोधि वृक्ष, धर्म चक्र और स्तूप द्वारा निरूपित एक पट्टी में बुद्ध, धम्म और संघ उल्लेखनीय हैं। केन्द्रीय प्रदर्शन-मंजूषा में आपस में लिपटा जोड़ा सातवाहन काल के उत्साह और जीवंतता से परिपूर्ण अमरावती कला का सर्वोत्कृष्ट नमूना है।
- सातवाहन काल का पूर्ण आकार वाला अलंकृत वृषभ (नंदीश्वर) स्थानीय अमरेश्वर मंदिर से प्राप्त की गई आकर्षक कलाकृति है। हार तथा वितान-शिला के वाहक, वज्रायन काल की प्रतिमाएं, और मध्य-युग के एक जैन तीर्थंकर की प्रतिमा इस दीर्घा में अत्यधिक रोचक वस्तुएं हैं।
- प्रांगण में, स्तूप के मॉडल और एक पुन:निर्मित मुंडेर के अलावा, गौतम सिद्धार्थ का अपने महल से प्रस्थान, उनके घोड़े कंधक की वापसी, अजातशत्रु के शाही हाथी नलगिरी का प्रकरण, महिला भक्तों द्वारा बुद्ध (चरण) की पूजा, मांधाता, चद्धंता, वेस्संतारा और लोसका की जातक पट्टियां यहां मौजूद कुछ आकर्षक पट्टियां हैं।
- हार ले जाते हुए यक्षगणों के बीच पूर्वस्वरूप के गणेश और उनकी पत्नी, प्रारंभिक काल में लक्ष्मी तथा मुंडेर के वितान पर विवाद करते राजकुमारों द्वारा भगवान बुद्ध के स्मृति चिह्नों का बंटवारा दर्शाने वाली पट्टिका कुछ उल्लेखनीय कलाकृतियां हैं।[1]
महत्त्वपूर्ण जानकारी
- खुलने का समय
सुबह 10 बजे से शाम 5.00 बजे तक
- बंद रहने का दिन
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संग्रहालय - अमरावती (हिन्दी) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण। अभिगमन तिथि: 5 जनवरी, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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