"राजस्थान दिवस": अवतरणों में अंतर
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'''राजस्थान दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rajasthan Diwas'') अथवा '''राजस्थान स्थापना दिवस''' प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को मनाया जाता है। [[30 मार्च]], [[1949]] में [[जोधपुर]], [[जयपुर]], [[जैसलमेर]] और [[बीकानेर]] रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। यही [[राजस्थान]] की स्थापना का दिन माना जाता है। | '''राजस्थान दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rajasthan Diwas'') अथवा '''राजस्थान स्थापना दिवस''' प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को मनाया जाता है। [[30 मार्च]], [[1949]] में [[जोधपुर]], [[जयपुर]], [[जैसलमेर]] और [[बीकानेर]] रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। यही [[राजस्थान]] की स्थापना का दिन माना जाता है। | ||
==राजस्थान की स्थापना== | ==राजस्थान की स्थापना== | ||
राजस्थान शब्द का अर्थ है- ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां [[गुर्जर]], [[राजपूत]], [[मौर्य]], [[जाट]] आदि ने पहले राज किया था। ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आज़ाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की | राजस्थान शब्द का अर्थ है- ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां [[गुर्जर]], [[राजपूत]], [[मौर्य]], [[जाट]] आदि ने पहले राज किया था। ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आज़ाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की कार्रवाई शुरू की, तभी लग गया था कि आज़ाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और [[राजपूताना]] के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। आज़ादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गयी थी, उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नजरिये से देखें तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी। [[चित्र:2015-Rajasthan-Diwas-3.jpg|thumb|300px|left|राजस्थान दिवस समारोह 2015, [[जयपुर]]]] इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का क़ब्ज़ा था। इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतों का विलय होना यानि एकीकरण कर ‘राजस्थान’ नामक प्रांत बनाया जाना था। सत्ता की होड़ के चलते यह बड़ा ही दूभर लग रहा था क्योंकि इन देशी रियासतों के शासक अपनी रियासतों के स्वतंत्र भारत में विलय को दूसरी प्राथमिकता के रूप में देख रहे थे। उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को ‘स्वतंत्र राज्य’ का दर्जा दे दिया जाए। करीब एक दशक की ऊहापोह के बीच [[18 मार्च]] 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में [[1 नवंबर]] [[1956]] को पूरी हुई। इसमें [[भारत सरकार]] के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री [[सरदार पटेल|सरदार वल्लभ भाई पटेल]] और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरूप का निर्माण हो सका।<ref>{{cite web |url=http://onlinepali.com/tag/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B8 |title=राजस्थान मना रहा अपना 65वां स्थापना दिवस |accessmonthday=30 मार्च |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ऑनलाइन पाली डॉट कॉम |language=हिन्दी }}</ref> | ||
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# [[1 नवंबर]], [[1956]] को [[आबू]], [[देलवाड़ा]] तहसील का भी राजस्थान में विलय हुआ, [[मध्य प्रदेश]] में शामिल सुनेल टप्पा का भी विलय हुआ। | # [[1 नवंबर]], [[1956]] को [[आबू]], [[देलवाड़ा]] तहसील का भी राजस्थान में विलय हुआ, [[मध्य प्रदेश]] में शामिल सुनेल टप्पा का भी विलय हुआ। | ||
==गौरवशाली इतिहास== | ==गौरवशाली इतिहास== | ||
<blockquote>[[इंग्लैण्ड]] के विख्यात कवि किप्लिंग ने लिखा था, 'दुनिया में अगर कोई ऐसा स्थान है, जहां वीरों की हड्डियां मार्ग की धूल बनी हैं तो वह राजस्थान कहा जा सकता है।' </blockquote> वीर तो वीर, वीरांगनाएं भी अपनी माटी के लिए कुर्बानी देने में नहीं झिझकीं। शौर्य और साहस ही नहीं बल्कि हमारी धरती के सपूतों ने हर क्षेत्र में कमाल दिखाकर देश-दुनिया में राजस्थान के नाम को चांद-तारों सा चमका दिया। राजस्थान की धरती पर रणबांकुरों ने जन्म लिया है। यहां वीरांगनाओं ने भी अपने त्याग और बलिदान से मातृभूमि को सींचा है। यहां धरती का वीर योद्धा कहे जाने वाले [[पृथ्वीराज चौहान]] ने जन्म लिया, जिन्होंने [[तराइन का प्रथम युद्ध|तराइन के प्रथम युद्ध]] में [[मुहम्मद ग़ोरी]] को पराजित किया। कहा जाता है कि ग़ोरी ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था जिसमें 17 बार उसे पराजय का सामना करना पड़ा था। जोधपुर के राजा जसवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी ने तो हाथों से [[औरंगजेब]] के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था। [[राणा सांगा]] ने सौ से भी ज्यादा युद्ध लड़कर साहस का परिचय दिया था। [[पन्ना धाय]] के बलिदान के साथ बुलन्दा (पाली) के ठाकुर मोहकम सिंह की [[रानी बाघेली]] का बलिदान भी अमर है। जोधपुर के राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब से बचाने के लिए वे उन्हें अपनी नवजात राजकुमारी की जगह छुपाकर लाई थीं।<ref>{{cite web |url=http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/rajasthan/rajasthan-diwas-2015-special-970409.html |title=राजस्थान दिवस: वीरगाथाओं से होता है गर्व का एहसास |accessmonthday=30 मार्च |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=राजस्थान पत्रिका |language=हिन्दी }}</ref> | <blockquote>[[इंग्लैण्ड]] के विख्यात कवि किप्लिंग ने लिखा था, 'दुनिया में अगर कोई ऐसा स्थान है, जहां वीरों की हड्डियां मार्ग की धूल बनी हैं तो वह राजस्थान कहा जा सकता है।' </blockquote> [[चित्र:2015-Rajasthan-Diwas-2.jpg|thumb|left|300px|राजस्थान दिवस समारोह 2015, [[जयपुर]]]] वीर तो वीर, वीरांगनाएं भी अपनी माटी के लिए कुर्बानी देने में नहीं झिझकीं। शौर्य और साहस ही नहीं बल्कि हमारी धरती के सपूतों ने हर क्षेत्र में कमाल दिखाकर देश-दुनिया में राजस्थान के नाम को चांद-तारों सा चमका दिया। राजस्थान की धरती पर रणबांकुरों ने जन्म लिया है। यहां वीरांगनाओं ने भी अपने त्याग और बलिदान से मातृभूमि को सींचा है। यहां धरती का वीर योद्धा कहे जाने वाले [[पृथ्वीराज चौहान]] ने जन्म लिया, जिन्होंने [[तराइन का प्रथम युद्ध|तराइन के प्रथम युद्ध]] में [[मुहम्मद ग़ोरी]] को पराजित किया। कहा जाता है कि ग़ोरी ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था जिसमें 17 बार उसे पराजय का सामना करना पड़ा था। जोधपुर के राजा जसवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी ने तो हाथों से [[औरंगजेब]] के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था। [[राणा सांगा]] ने सौ से भी ज्यादा युद्ध लड़कर साहस का परिचय दिया था। [[पन्ना धाय]] के बलिदान के साथ बुलन्दा (पाली) के ठाकुर मोहकम सिंह की [[रानी बाघेली]] का बलिदान भी अमर है। जोधपुर के राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब से बचाने के लिए वे उन्हें अपनी नवजात राजकुमारी की जगह छुपाकर लाई थीं।<ref>{{cite web |url=http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/rajasthan/rajasthan-diwas-2015-special-970409.html |title=राजस्थान दिवस: वीरगाथाओं से होता है गर्व का एहसास |accessmonthday=30 मार्च |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=राजस्थान पत्रिका |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==कार्यक्रम एवं आयोजन== | ==कार्यक्रम एवं आयोजन== | ||
राजस्थान राज्य के स्थापना दिवस के अवसर पर [[30 मार्च]] की शाम को [[जयपुर]] स्थित जनपथ पर राजस्थान दिवस समारोह के तहत कई तरह के रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वर्ष 2015 में [[राजस्थान]] के [[राज्यपाल]] [[कल्याण सिंह]] इस समारोह के मुख्य अतिथि रहे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री [[वसुंधरा राजे सिंधिया]] भी उपस्थित रहीं। राजस्थान सरकार के प्रमुख पर्यटन शासन सचिव के अनुसार 100 मिनट के इस कार्यक्रम में राज्य के 7 सम्भागों की 7 अलग-अलग झांकियां निकाली गई। इनके अलावा लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुतियां, पुलिस के जवानों द्वारा मोटरसाईकिलों पर साहसिक स्टंट्स | [[चित्र:2015-Rajasthan-Diwas-4.jpg|thumb|300px|राजस्थान दिवस समारोह 2015, [[जयपुर]]]] | ||
राजस्थान राज्य के स्थापना दिवस के अवसर पर [[30 मार्च]] की शाम को [[जयपुर]] स्थित जनपथ पर राजस्थान दिवस समारोह के तहत कई तरह के रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वर्ष 2015 में [[राजस्थान]] के [[राज्यपाल]] [[कल्याण सिंह]] इस समारोह के मुख्य अतिथि रहे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री [[वसुंधरा राजे सिंधिया]] भी उपस्थित रहीं। राजस्थान सरकार के प्रमुख पर्यटन शासन सचिव के अनुसार 100 मिनट के इस कार्यक्रम में राज्य के 7 सम्भागों की 7 अलग-अलग झांकियां निकाली गई। इनके अलावा लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुतियां, पुलिस के जवानों द्वारा मोटरसाईकिलों पर साहसिक स्टंट्स कैरियर, 100 स्के ट्र्स और सिंक्रनाइज साउंड व लाइट शो भी आयोजित किए गये। इस दौरान पुलिस के घोड़ों और ऊंटों का एक जुलूस भी निकाला गया। समारोह का समापन डांस ग्रुप द्वारा [[वंदे मातरम्]] की प्रस्तुति के साथ हुआ। इसके पश्चात् बिगुल वादन और विधान सभा के सामने के गुम्बदों पर सिंक्रनाइज साउंड व लाइट शो आयोजित किया गया। गौरतलब है कि पूर्व में राजस्थान दिवस समारोह के तहत सात दिवसीय व्यापक कार्यक्रम प्रस्तावित थे, लेकिन कुछ दिनों पूर्व हुई बेमौसम की बारिश से राज्यभर में फसलों को हुए भारी नुकसान को देखते हुए यह समारोह सिर्फ एक दिन का ही कर दिया गया। | |||
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13:55, 9 मई 2021 के समय का अवतरण
राजस्थान दिवस
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विवरण | 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। |
तिथि | 30 मार्च |
राजस्थान की स्थापना | 18 मार्च, 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में 1 नवंबर, 1956 को पूरी हुई। इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। |
संबंधित लेख | राजस्थान, राजस्थान का इतिहास, रानी बाघेली, पन्ना धाय, तराइन का प्रथम युद्ध, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, राणा सांगा |
अन्य जानकारी | राजस्थान शब्द का अर्थ है- ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि ने पहले राज किया था। |
राजस्थान दिवस (अंग्रेज़ी: Rajasthan Diwas) अथवा राजस्थान स्थापना दिवस प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को मनाया जाता है। 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है।
राजस्थान की स्थापना
राजस्थान शब्द का अर्थ है- ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि ने पहले राज किया था। ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आज़ाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की कार्रवाई शुरू की, तभी लग गया था कि आज़ाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। आज़ादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गयी थी, उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नजरिये से देखें तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी।
इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का क़ब्ज़ा था। इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतों का विलय होना यानि एकीकरण कर ‘राजस्थान’ नामक प्रांत बनाया जाना था। सत्ता की होड़ के चलते यह बड़ा ही दूभर लग रहा था क्योंकि इन देशी रियासतों के शासक अपनी रियासतों के स्वतंत्र भारत में विलय को दूसरी प्राथमिकता के रूप में देख रहे थे। उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को ‘स्वतंत्र राज्य’ का दर्जा दे दिया जाए। करीब एक दशक की ऊहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में 1 नवंबर 1956 को पूरी हुई। इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरूप का निर्माण हो सका।[1]
सात चरणों में बना राजस्थान
- 18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों का विलय होकर 'मत्स्य संघ' बना। धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह राजप्रमुख व अलवर राजधानी बनी।
- 25 मार्च, 1948 को कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़ व शाहपुरा का विलय होकर राजस्थान संघ बना।
- 18 अप्रॅल, 1948 को उदयपुर रियासत का विलय। नया नाम 'संयुक्त राजस्थान संघ' रखा गया। उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह राजप्रमुख बने।
- 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है।
- 15 अप्रॅल, 1949 को 'मत्स्य संघ' का वृहत्तर राजस्थान संघ में विलय हो गया।
- 26 जनवरी, 1950 को सिरोही रियासत को भी वृहत्तर राजस्थान संघ में मिलाया गया।
- 1 नवंबर, 1956 को आबू, देलवाड़ा तहसील का भी राजस्थान में विलय हुआ, मध्य प्रदेश में शामिल सुनेल टप्पा का भी विलय हुआ।
गौरवशाली इतिहास
इंग्लैण्ड के विख्यात कवि किप्लिंग ने लिखा था, 'दुनिया में अगर कोई ऐसा स्थान है, जहां वीरों की हड्डियां मार्ग की धूल बनी हैं तो वह राजस्थान कहा जा सकता है।'
वीर तो वीर, वीरांगनाएं भी अपनी माटी के लिए कुर्बानी देने में नहीं झिझकीं। शौर्य और साहस ही नहीं बल्कि हमारी धरती के सपूतों ने हर क्षेत्र में कमाल दिखाकर देश-दुनिया में राजस्थान के नाम को चांद-तारों सा चमका दिया। राजस्थान की धरती पर रणबांकुरों ने जन्म लिया है। यहां वीरांगनाओं ने भी अपने त्याग और बलिदान से मातृभूमि को सींचा है। यहां धरती का वीर योद्धा कहे जाने वाले पृथ्वीराज चौहान ने जन्म लिया, जिन्होंने तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद ग़ोरी को पराजित किया। कहा जाता है कि ग़ोरी ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था जिसमें 17 बार उसे पराजय का सामना करना पड़ा था। जोधपुर के राजा जसवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी ने तो हाथों से औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था। राणा सांगा ने सौ से भी ज्यादा युद्ध लड़कर साहस का परिचय दिया था। पन्ना धाय के बलिदान के साथ बुलन्दा (पाली) के ठाकुर मोहकम सिंह की रानी बाघेली का बलिदान भी अमर है। जोधपुर के राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब से बचाने के लिए वे उन्हें अपनी नवजात राजकुमारी की जगह छुपाकर लाई थीं।[2]
कार्यक्रम एवं आयोजन
राजस्थान राज्य के स्थापना दिवस के अवसर पर 30 मार्च की शाम को जयपुर स्थित जनपथ पर राजस्थान दिवस समारोह के तहत कई तरह के रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वर्ष 2015 में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह इस समारोह के मुख्य अतिथि रहे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भी उपस्थित रहीं। राजस्थान सरकार के प्रमुख पर्यटन शासन सचिव के अनुसार 100 मिनट के इस कार्यक्रम में राज्य के 7 सम्भागों की 7 अलग-अलग झांकियां निकाली गई। इनके अलावा लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुतियां, पुलिस के जवानों द्वारा मोटरसाईकिलों पर साहसिक स्टंट्स कैरियर, 100 स्के ट्र्स और सिंक्रनाइज साउंड व लाइट शो भी आयोजित किए गये। इस दौरान पुलिस के घोड़ों और ऊंटों का एक जुलूस भी निकाला गया। समारोह का समापन डांस ग्रुप द्वारा वंदे मातरम् की प्रस्तुति के साथ हुआ। इसके पश्चात् बिगुल वादन और विधान सभा के सामने के गुम्बदों पर सिंक्रनाइज साउंड व लाइट शो आयोजित किया गया। गौरतलब है कि पूर्व में राजस्थान दिवस समारोह के तहत सात दिवसीय व्यापक कार्यक्रम प्रस्तावित थे, लेकिन कुछ दिनों पूर्व हुई बेमौसम की बारिश से राज्यभर में फसलों को हुए भारी नुकसान को देखते हुए यह समारोह सिर्फ एक दिन का ही कर दिया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राजस्थान मना रहा अपना 65वां स्थापना दिवस (हिन्दी) ऑनलाइन पाली डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2015।
- ↑ राजस्थान दिवस: वीरगाथाओं से होता है गर्व का एहसास (हिन्दी) राजस्थान पत्रिका। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख