रेज़ांग ला दिवस

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रेज़ांग ला दिवस
रेज़ांग ला युद्ध स्मारक
रेज़ांग ला युद्ध स्मारक
देश भारत
तिथि 18 नवम्बर
विशेष 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी के मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में तीन कमीशन अधिकारियों समेत 124 जवानों ने 1300 से अधिक चीनियों से लोहा लिया।
संबंधित लेख मेजर शैतान सिंह]]
अन्य जानकारी रेज़ांग ला जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में चुशुल घाटी में एक पहाड़ी दर्रा है। 1962 के युद्ध में 13 कुमाऊं दस्ते का यह अंतिम मोर्चा था। इसीलिए इसे रेज़ांग ला युद्ध के नाम से जाना जाता है।

रेज़ांग ला दिवस (अंग्रेज़ी: Rezang La Day) भारत में प्रत्येक वर्ष 18 नवम्बर को मनाया जाता है। 18 नवंबर 1962 के दिन भारतीय जवानों ने रेज़ांग ला की शौर्य गाथा लिखी थी। उस ऐतिहासिक दिन को 59 साल (2021) हो गए हैं। लेह-लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर अहीरवाल के वीरों ने ऐसी अमर गाथा लिखी, जो आज भी युवाओं के जेहन में देशभक्ति की भावना पैदा करती है। लद्दाख की बर्फीली चोटी पर स्थित रेज़ांग ला पोस्ट पर हुए युद्ध की गौरवगाथा विश्व के युद्ध इतिहास में अद्वितीय है। इस युद्ध में हरियाणा के रेवाड़ी के रहने वाले दो सगे भाई एक ही दिन एक बंकर में शहीद हुए थे। रेज़ांग ला जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में चुशुल घाटी में एक पहाड़ी दर्रा है। 1962 के युद्ध में 13 कुमाऊं दस्ते का यह अंतिम मोर्चा था। इसीलिए इसे रेज़ांग ला युद्ध के नाम से जाना जाता है।

सैनिकों की शहादत

जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली... देशभक्ति से ओतप्रोत यह गीत लता मंगेशकर द्वारा रेज़ांग ला के शहीदों को ही समर्पित है। इसकी हर एक पंक्ति रेवाड़ी और अहीरवाल क्षेत्र के उन रणबांकुरों की शौर्य गाथा कहती है, जिन्होंने रेजागं ला युद्ध के वक्त 1962 में दीवाली के दिन चीन के साथ मुकाबला करके सबसे ऊंची चोटी पर शहादत की अमर गाथा लिखी। युद्ध में एक ही कंपनी के 114 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। रेवाड़ी में रेज़ांगला शौर्य स्मारक पर इन वीरों के नाम सम्मान के साथ अंकित हैं।[1]

सैनिक संख्या

मेजर शैतान सिंह

18 नवंबर, 1962 को लेह-लद्दाख की दुर्गम और बर्फीली पहाड़ियों पर 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी के मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में तीन कमीशन अधिकारियों समेत 124 जवानों ने 1300 से अधिक चीनियों से लोहा लिया। युद्ध में चार्ली कंपनी के 124 में से 114 जवान शहीद हो गए थे। इतिहास के पन्नों पर यह लड़ाई इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि मैदानी और रेगिस्तानी इलाके के वीरों ने बर्फ से ढके पहाड़ों पर लड़ने के अभ्यस्त चीनियों से लोहा लिया।

नतमस्तक चीनी सैनिक

वीरों का पराक्रम और साहस देखकर चीनी सैनिक भी नतमस्तक हो गए थे। उन्होंने युद्ध स्थल पर एक प्लास्टिक की पट्टी पर ‘ब्रेव’ लिखकर इन सैनिकों के शवों के पास सम्मानपूर्वक रखा और वहीं सम्मान के प्रतीक रूप में धरती पर संगीन गाड़ते हुए उस पर टोपी लटकाकर चले गए थे।[1]

शहीद हुए सगे भाई

यु्द्ध में रेवाड़ी जिले के दो सगे भाइयों- नायक सिंहराम और सिपाही कंवर सिंह यादव का भी जिक्र आता है, जो एक साथ एक ही बंकर में शहीद हुए। तीन माह बाद उनके और 96 अन्य शवों को इसी क्षेत्र के जवान हरिसिंह ने जब मुखाग्नि दी तो उसका दिल दहल उठा था। मुखाग्नि देकर वह भी वहीं गिर पड़े थे।

रेज़ांगला स्मारक

13 कुमाऊं के 120 जवान दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र यानी रेवाड़ी, गुरुग्राम, नारनौल और महेंद्रगढ़ जिलों के थे। रेवाड़ी में रेज़ांग ला के वीरों की याद में स्मारक बनाया गया है, जिस पर इस युद्ध में शहादत देने वाले जवानों के नाम भी अंकित हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 रेजांगला डे विशेष (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 18 नवंबर, 2021।

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