"मदनाष्टक": अवतरणों में अंतर

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13:25, 8 मई 2015 के समय का अवतरण

मदनाष्टक रहीम की एक कृति है। यह संस्कृत और हिन्दी खड़ी बोली की मिश्रित शैली में रचित है। इसका वर्ण्य-विषय भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला है।[1]

  • इस कृति में मालिनी छन्द का प्रयोग किया गया है।
  • मदनाष्टक के कई पाठ प्रकाशित हुए हैं। 'सम्मेलन पत्रिका' में प्रकाशित पाठ अधिक प्रामणिक माना जाता है।
रहीम का मटनाष्टक

शरद-निशि निशीथे चाँद की रोशनाई ।
सघन वन निकुंजे वंशी बजाई ।।
रति, पति, सुत, निद्रा, साइयाँ छोड़ भागी ।
मदन-शिरसि भूय: क्‍या बला आन लागी ।।1।।

कलित ललित माला या जवाहिर जड़ा था ।
चपल चखन वाला चाँदनी में खड़ा था ।।
कटि-तट बिच मेला पीत सेला नवेला ।
अलि बन अलबेला यार मेरा अकेला ।।2।।

दृग छकित छबीली छैलरा की छरी थी ।
मणि जटित रसीली माधुरी मूँदरी थी ।।
अमल कमल ऐसा खूब से खूब देखा ।
कहि सकत न जैसा श्‍याम का हस्‍त देखा ।।3।।

कठिन कुटिल कारी देख दिलदार जुलफे ।
अलि कलित बिहारी आपने जी की कुलफें ।।
सकल शशिकला को रोशनी-हीन लेखौं ।
अहह! ब्रजलला को किस तरह फेर देखौं ।।4।।

ज़रद बसन-वाला गुल चमन देखता था ।
झुक झुक मतवाला गावता रेखता था ।।
श्रुति युग चपला से कुण्‍डलें झूमते थे ।
नयन कर तमाशे मस्‍त ह्वै घूमते थे ।।5।।

तरल तरनि सी हैं तीर सी नोकदारैं ।
अमल कमल सी हैं दीर्घ हैं दिल बिदारैं ।।
मधुर मधुप हेरैं माल मस्‍ती न राखें ।
विलसति मन मेरे सुंदरी श्‍याम आँखें ।।6।।

भुजंग जुग किधौं हैं काम कमनैत सोहैं ।
नटवर! तव मोहैं बाँकुरी मान भौंहें ।।
सुनु सखि! मृदु बानी बेदुरुस्‍ती अकिल में ।
सरल सरल सानी कै गई सार दिल में ।।7।।

पकरि परम प्‍यारे साँवरे को मिलाओ ।
असल समृत प्‍याला क्‍यों न मुझको पिलाओ ।।
इति वदति पठानी मनमथांगी विरागी ।
मदन शिरसि भूय; क्‍या बला आन लागी ।।8।।

फलित ललित माला वा जवाहिर जड़ा था ।
चपल चखन वाला चान्दनी में खड़ा था ।।
कटि तट बिच मेला पीत सेला नवेला।
अली, बन अलबेला यार मेरा अकेला ।।9।।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एक मुग़ल जो कृष्ण भक्त था (हिन्दी) स्पीकिंगट्री.इन। अभिगमन तिथि: 08 मई, 2015।
  2. मदनाष्टक - रहीम (हिन्दी) कविता कोश। अभिगमन तिथि: 08 मई, 2015।

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