"मणिपुरी भाषा": अवतरणों में अंतर
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स्थानीय स्तर पर मैतिलोन (मेइतेई + लोन भाषा), मुख्यतः पूर्वोत्तर [[भारत]] के लिए [[मणिपुर]] राज्य में बोली जाने वाली भाषा है। यह [[असम]], [[मिज़ोरम]], [[त्रिपुरा]], [[बांग्लादेश]] और [[म्यांमार]] में भी बोली जाती है। इसे बोलने वाले लगभग 11 लाख 80 हज़ार हैं, लेकिन मणिपुरी बोलने वालों की वास्तविक संख्या इससे काफ़ी अधिक है, क्योंकि यह राज्य में विभिन्न मातृभाषा वाले 29 विभिन्न जातीय समूहों के बीच संचार का एकमात्र माध्यम है। राज्य की 60% जनता मणिपुरी बोलती है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल की जाने वाली यह पहली तिब्बती–बर्मी भाषा है। राज्य में आज भी शिक्षा का माध्यम यही भाषा है। | स्थानीय स्तर पर मैतिलोन (मेइतेई + लोन भाषा), मुख्यतः पूर्वोत्तर [[भारत]] के लिए [[मणिपुर]] राज्य में बोली जाने वाली भाषा है। यह [[असम]], [[मिज़ोरम]], [[त्रिपुरा]], [[बांग्लादेश]] और [[म्यांमार]] में भी बोली जाती है। इसे बोलने वाले लगभग 11 लाख 80 हज़ार हैं, लेकिन मणिपुरी बोलने वालों की वास्तविक संख्या इससे काफ़ी अधिक है, क्योंकि यह राज्य में विभिन्न मातृभाषा वाले 29 विभिन्न जातीय समूहों के बीच संचार का एकमात्र माध्यम है। राज्य की 60% जनता मणिपुरी बोलती है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल की जाने वाली यह पहली तिब्बती–बर्मी भाषा है। राज्य में आज भी शिक्षा का माध्यम यही भाषा है। | ||
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भाषाशास्त्री मणिपुरी को कुकी-चिन, कुकी और कुकी नागा की मेइतेई शाखा के समान तिब्बत–बर्मी भाषाओं के भिन्न उपपरिवार में रखते हैं। एक अन्य विचार यह है कि राज्य की भाषा मेइतेई, कचिन और कुकी नागा के साथ | भाषाशास्त्री मणिपुरी को कुकी-चिन, कुकी और कुकी नागा की मेइतेई शाखा के समान तिब्बत–बर्मी भाषाओं के भिन्न उपपरिवार में रखते हैं। एक अन्य विचार यह है कि राज्य की भाषा मेइतेई, [[कचिन जाति|कचिन]] और कुकी नागा के साथ महत्त्वपूर्ण सम्पर्क बिन्दु प्रदर्शित करती है। हालाँकि कुकी नागा के साथ निकटता अधिक परिलक्षित होती है। मणिपुरी भाषा को तिब्बत–बर्मी की मिकिर–मेइतेई उपशाखा का एक हिस्सा माना जाता है, जहाँ मिकिर और मेइतेई लोन भाषाओं को नागा और कुकी–चिहृन शाखा से सम्बद्ध माना जाता है। मणिपुरी भाषा के व्याकरण की विशेषताएँ तिब्बती–बर्मी भाषा परिवारों के अनुरूप है। प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने मणिपुरी को कुकी-चिन वर्ग की सबसे प्रधान भाषा माना है। प्रोफेसर जैन के मतानुसार, " कुकी-चिन वर्ग की भाषाएँ मुख्य रूप से मणिपुर एवं मिज़ोरम में बोली जाती हैं। मणिपुरी/मीतैलोन/मैतेई मणिपुर की प्रधान भाषा है। यह मैतेई जनजाति के लोगों के द्वारा बोली जाती है। मणिपुर की 60 प्रतिशत जनसंख्या मणिपुरी का व्यवहार करती है। जिस प्रकार नागालैण्ड में “नगामीज़” राज्य के लोगों के बीच सम्पर्क भाषा की भूमिका का निर्वाह कर रही है उसी प्रकार मणिपुर में मणिपुरी सम्पर्क भाषा की भूमिका निबाह रही है।"। | ||
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कुछ व्युत्पत्तिजन्य समान विशेषताएँ इस प्रकार से हैं–इसमें लिंगभेद का अभाव है; क्रिया को वाक्य के अन्त में लगाया जाता है; कर्ता या कर्म जैसे कोई व्याकरण सम्बन्ध नहीं हैं। मणिपुरी भाषा में एक व्यापक क्रिया रूप विधान और प्रत्यय है। सीमित मात्रा में उपसर्ग भी हैं। विभिन्न सूचक चिह्न लगाकर भिन्न शब्द वर्ग का निर्माण होता है। इस भाषा की अपनी लिपि है, जिसे स्थानीय लोग मेइतेई माएक कहते हैं। | कुछ व्युत्पत्तिजन्य समान विशेषताएँ इस प्रकार से हैं–इसमें लिंगभेद का अभाव है; क्रिया को वाक्य के अन्त में लगाया जाता है; कर्ता या कर्म जैसे कोई व्याकरण सम्बन्ध नहीं हैं। मणिपुरी भाषा में एक व्यापक क्रिया रूप विधान और प्रत्यय है। सीमित मात्रा में उपसर्ग भी हैं। विभिन्न सूचक चिह्न लगाकर भिन्न शब्द वर्ग का निर्माण होता है। इस भाषा की अपनी लिपि है, जिसे स्थानीय लोग मेइतेई माएक कहते हैं। | ||
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वर्तमान मणिपुरी भाषा विभिन्न समूहों से विकसित हुई है। अंगोम, चैंगलेई, खाबा, खुमान, लुवांग, मोइरांग और निंगथाउजा। इन भिन्न समूहों को 14वीं शताब्दी में निंगथाउजा कुल के राजवंश के संस्थापक नोंग्दा लाइरेन पाखांग्बा द्वारा राज्य निर्माण की प्रक्रिया के दौरान मेइतेई में मिला दिया गया। इस भाषा में प्रचुर मात्रा में उकेक–स्वा 'पक्षी' पांब–काइ 'बाघ' सिउ–ले 'ईश्वर' जैसे अर्थगत पुनर्द्विगुणन वाले शब्द इसे प्रदर्शित करते हैं। प्रत्येक वाक्यखण्ड में एक स्वरूप एक कुल और दूसरा किसी अन्य कुल से सम्बन्धित हैं उदाहरणार्थ, उकेक मेइतेई कुल का है और स्वा मोइरांग कुल का है। | वर्तमान मणिपुरी भाषा विभिन्न समूहों से विकसित हुई है। अंगोम, चैंगलेई, खाबा, खुमान, लुवांग, मोइरांग और निंगथाउजा। इन भिन्न समूहों को 14वीं शताब्दी में निंगथाउजा कुल के राजवंश के संस्थापक नोंग्दा लाइरेन पाखांग्बा द्वारा राज्य निर्माण की प्रक्रिया के दौरान मेइतेई में मिला दिया गया। इस भाषा में प्रचुर मात्रा में उकेक–स्वा 'पक्षी' पांब–काइ 'बाघ' सिउ–ले 'ईश्वर' जैसे अर्थगत पुनर्द्विगुणन वाले शब्द इसे प्रदर्शित करते हैं। प्रत्येक वाक्यखण्ड में एक स्वरूप एक कुल और दूसरा किसी अन्य कुल से सम्बन्धित हैं उदाहरणार्थ, उकेक मेइतेई कुल का है और स्वा मोइरांग कुल का है। | ||
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07:11, 11 जून 2014 के समय का अवतरण
स्थानीय स्तर पर मैतिलोन (मेइतेई + लोन भाषा), मुख्यतः पूर्वोत्तर भारत के लिए मणिपुर राज्य में बोली जाने वाली भाषा है। यह असम, मिज़ोरम, त्रिपुरा, बांग्लादेश और म्यांमार में भी बोली जाती है। इसे बोलने वाले लगभग 11 लाख 80 हज़ार हैं, लेकिन मणिपुरी बोलने वालों की वास्तविक संख्या इससे काफ़ी अधिक है, क्योंकि यह राज्य में विभिन्न मातृभाषा वाले 29 विभिन्न जातीय समूहों के बीच संचार का एकमात्र माध्यम है। राज्य की 60% जनता मणिपुरी बोलती है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल की जाने वाली यह पहली तिब्बती–बर्मी भाषा है। राज्य में आज भी शिक्षा का माध्यम यही भाषा है।
बोलियाँ
मणिपुरी की चार ज्ञात बोलियाँ हैं:-
- अंद्रो,
- फाएंग,
- सेंगमै और
- क्वाथा।
भाषाशास्त्री मणिपुरी को कुकी-चिन, कुकी और कुकी नागा की मेइतेई शाखा के समान तिब्बत–बर्मी भाषाओं के भिन्न उपपरिवार में रखते हैं। एक अन्य विचार यह है कि राज्य की भाषा मेइतेई, कचिन और कुकी नागा के साथ महत्त्वपूर्ण सम्पर्क बिन्दु प्रदर्शित करती है। हालाँकि कुकी नागा के साथ निकटता अधिक परिलक्षित होती है। मणिपुरी भाषा को तिब्बत–बर्मी की मिकिर–मेइतेई उपशाखा का एक हिस्सा माना जाता है, जहाँ मिकिर और मेइतेई लोन भाषाओं को नागा और कुकी–चिहृन शाखा से सम्बद्ध माना जाता है। मणिपुरी भाषा के व्याकरण की विशेषताएँ तिब्बती–बर्मी भाषा परिवारों के अनुरूप है। प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने मणिपुरी को कुकी-चिन वर्ग की सबसे प्रधान भाषा माना है। प्रोफेसर जैन के मतानुसार, " कुकी-चिन वर्ग की भाषाएँ मुख्य रूप से मणिपुर एवं मिज़ोरम में बोली जाती हैं। मणिपुरी/मीतैलोन/मैतेई मणिपुर की प्रधान भाषा है। यह मैतेई जनजाति के लोगों के द्वारा बोली जाती है। मणिपुर की 60 प्रतिशत जनसंख्या मणिपुरी का व्यवहार करती है। जिस प्रकार नागालैण्ड में “नगामीज़” राज्य के लोगों के बीच सम्पर्क भाषा की भूमिका का निर्वाह कर रही है उसी प्रकार मणिपुर में मणिपुरी सम्पर्क भाषा की भूमिका निबाह रही है।"।
विशेषताएँ
कुछ व्युत्पत्तिजन्य समान विशेषताएँ इस प्रकार से हैं–इसमें लिंगभेद का अभाव है; क्रिया को वाक्य के अन्त में लगाया जाता है; कर्ता या कर्म जैसे कोई व्याकरण सम्बन्ध नहीं हैं। मणिपुरी भाषा में एक व्यापक क्रिया रूप विधान और प्रत्यय है। सीमित मात्रा में उपसर्ग भी हैं। विभिन्न सूचक चिह्न लगाकर भिन्न शब्द वर्ग का निर्माण होता है। इस भाषा की अपनी लिपि है, जिसे स्थानीय लोग मेइतेई माएक कहते हैं।
विकास
वर्तमान मणिपुरी भाषा विभिन्न समूहों से विकसित हुई है। अंगोम, चैंगलेई, खाबा, खुमान, लुवांग, मोइरांग और निंगथाउजा। इन भिन्न समूहों को 14वीं शताब्दी में निंगथाउजा कुल के राजवंश के संस्थापक नोंग्दा लाइरेन पाखांग्बा द्वारा राज्य निर्माण की प्रक्रिया के दौरान मेइतेई में मिला दिया गया। इस भाषा में प्रचुर मात्रा में उकेक–स्वा 'पक्षी' पांब–काइ 'बाघ' सिउ–ले 'ईश्वर' जैसे अर्थगत पुनर्द्विगुणन वाले शब्द इसे प्रदर्शित करते हैं। प्रत्येक वाक्यखण्ड में एक स्वरूप एक कुल और दूसरा किसी अन्य कुल से सम्बन्धित हैं उदाहरणार्थ, उकेक मेइतेई कुल का है और स्वा मोइरांग कुल का है।
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