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हिन्दी सिनेमा जगत के युगपुरुष महबूब खान को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फिल्मों का तोहफा दिया। महबूब खान [मूल नाम रमजान खान] का जन्म 1906 में गुजरात के बिलमिरिया में हुआ था। वह युवावस्था में घर से भागकर मुंबई आ गए और एक स्टूडियों में काम करने लगे। भारतीय सिनेमा को आधुनिकतम तकनीकी से सँवारने में अग्रणी निर्माता-निर्देशक महबूब खान का अहं किरदार रहा है। महबूब खान हॉलीवुड के फिल्मों से बहुत अधिक प्रभावित थे और भारत में भी उच्च स्तर के चलचित्रों का निर्माण करने में जुटे रहते थे। उन्होंने अपने सिने कैरियर की शुरुआत 1927 में प्रदर्शित फिल्म अलीबाबा एंड फोर्टी थीफ्स से अभिनेता के रूप में की। इस फिल्म में उन्होंने चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभाई थी।
{{महबूब ख़ान संक्षिप्त परिचय}}
==अभिनेता==
{{महबूब ख़ान विषय सूची}}
 
'''महबूब रमज़ान ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mehboob Khan'', जन्म- [[9 सितम्बर]], [[1907]], बिलमिरिया, [[गुजरात]]; मृत्यु- [[28 मई]], [[1964]])<ref>[http://www.spicevienna.org/showPerson.php?p=929 Mehboob Profile]</ref> भारतीय सिनेमा इतिहास के अग्रणी निर्माता-निर्देशक थे। [[हिन्दी सिनेमा]] जगत् के युगपुरुष महबूब ख़ान को एक ऐसी शख़्सियत के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फ़िल्मों का तोहफा दिया। वह युवावस्था में घर से भागकर [[मुंबई]] आ गए और एक स्टूडियो में काम करने लगे। भारतीय सिनेमा को आधुनिकतम तकनीकी से सँवारने में अग्रणी निर्माता-निर्देशक महबूब ख़ान का अहम किरदार रहा है। महबूब ख़ान हॉलीवुड की फ़िल्मों से बहुत अधिक प्रभावित थे और [[भारत]] में भी उच्च स्तर के चलचित्रों का निर्माण करने में जुटे रहते थे।
बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा के लिए महबूब खान का अभिनेता के रुप में चयन किया गया था। लेकिन फिल्म निर्माण के समय आर्देशिर ईरानी ने महसूस किया कि फिल्म की सफलता के लिए नए कलाकार को मौका देने के बजाय किसी स्थापित अभिनेता को यह भूमिका देना सही रहेगा। बाद में उन्होंने महबूब खान की जगह मास्टर विट्ठल को इस फिल्म में काम करने का अवसर दिया। इसके बाद महबूब खान सागर मूवीटोन से जुड़ गए और कई फिल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में काम किया।  
==परिचय==
==निर्देशक==
{{main|महबूब ख़ान का परिचय}}
वर्ष 1935 में उन्हें जजमेंट आफ अल्लाह फिल्म के निर्देशन का मौका मिला। अरब और रोम के बीच युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फ़िल्म दर्शकों को काफी पसंद आई। महबूब खान को 1936 में मनमोहन और 1937 में जागीरदार फिल्म को निर्देशित करने का मौका मिला, लेकिन ये दोनों फिल्में टिकट खिड़की पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकीं।
महबूब ख़ान का जन्म [[9 सितम्बर]], सन [[1907]] को [[गुजरात]] के सूरत शहर के निकट एक छोटे-से [[गाँव]] में ग़रीब [[परिवार]] में हुआ था। शुरू से ही वह एक मेहनतकश इन्सान थे, इसीलिए उन्होंने अपने निर्माण संस्थान 'महबूब प्रोडक्शन' का चिन्ह 'हंसिया-हथौड़े' को दर्शाता हुआ रखा। जब वह [[1925]] के आसपास बम्बई नगरी (वर्तमान मुम्बई) में आये तो इंपीरियल कम्पनी ने उन्हें अपने यहाँ सहायक के रूप में रख लिया। कई वर्ष बाद उन्हें फ़िल्म 'बुलबुले बगदाद' में खलनायक का किरदार निभाना पड़ा।
 
==फ़िल्मी कॅरियर==
वर्ष 1937 में उनकी एक ही रास्ता प्रदर्शित हुई। सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म दर्शकों को काफी पसंद आई। इस फिल्म की सफलता के बाद वह निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। वर्ष 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण फिल्म इंडस्ट्री को काफी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा। इस दौरान सागर मूवीटोन की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो गई और वह बंद हो गई। इसके बाद महबूब खान अपने सहयोगियों के साथ नेशनल स्टूडियों चले गए। जहाँ उन्होंने औरत [1940], बहन [1941] और रोटी 1942 जैसी फिल्मों का निर्देशन किया।
{{main|महबूब ख़ान का फ़िल्मी कॅरियर}}
 
महबूब ख़ान ने अपने सिने कॅरियर की शुरुआत 1927 में प्रदर्शित फ़िल्म 'अलीबाबा एंड फोर्टी थीफ्स' से अभिनेता के रूप में की। इस फ़िल्म में उन्होंने चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभाई थी। बहुत कम लोगों को पता होगा कि [[भारत]] की पहली बोलती फ़िल्म [[आलम आरा]] के लिए महबूब ख़ान का अभिनेता के रूप में चयन किया गया था। लेकिन फ़िल्म निर्माण के समय आर्देशिर ईरानी ने महसूस किया कि फ़िल्म की सफलता के लिए नए कलाकार को मौक़ा देने के बजाय किसी स्थापित अभिनेता को यह भूमिका देना सही रहेगा। बाद में उन्होंने महबूब ख़ान की जगह मास्टर विट्ठल को इस फ़िल्म में काम करने का अवसर दिया। इसके बाद महबूब ख़ान सागर मूवीटोन से जुड़ गए और कई फ़िल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में काम किया।  
कुछ समय तक नेशनल स्टूडियों में काम करने के बाद महबूब खान को महसूस हुआ कि उनकी विचारधारा और कंपनी की विचारधारा में भिन्नता है। इसे देखते हुए उन्होंने नेशनल स्टूडियों को अलविदा कह दिया और महबूब खान प्रोडक्शन लिमिटेड की स्थापना की। इसके बैनर तले उन्होंने नजमा, तकदीर, और हूमायूं [1945] जैसी फिल्मों का निर्माण किया। वर्ष 1946 मे प्रदर्शित फिल्म अनमोल घड़ी महबूब खान की सुपरहिट फिल्मों में शुमार की जाती है।
 
इस फिल्म से जुड़ा रोचक तथ्य यह है कि महबूब खान फिल्म को संगीतमय बनाना चाहते थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने नूरजहां, सुरैय्या और अभिनेता सुरेन्द्र का चयन किया जो अभिनय के साथ ही गीत गाने में भी सक्षम थे। फिल्म की सफलता से महबूब खान का निर्णय सही साबित हुआ। नौशाद के संगीत से सजे आवाज दे कहां है..., आजा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे... और जवां है मोहब्बत... जैसे गीत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं।
==महत्वपूर्ण फिल्म==
वर्ष 1949 में प्रदर्शित फिल्म अंदाज महबूब खान की महत्वपूर्ण फिल्मों में शामिल है। प्रेम त्रिकोण पर बनी दिलीप कुमार, राज कपूर और नर्गिस अभिनीत यह फिल्म क्लासिक फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म में दिलीप कुमार और राजकपूर ने पहली और आखिरी बार एक साथ काम किया था। वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म आन महबूब खान की एक और महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई। इस फिल्म की खास बात यह थी कि यह हिंदुस्तान में बनी पहली टेक्नीकलर फिल्म थी और इसे काफी खर्च के साथ वृहत पैमाने पर बनाया गया था।
 
दिलीप कुमार, प्रेमनाथ और नादिरा की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह भी है कि भारत में बनी यह पहली फिल्म थी जो पूरे विश्व में एक साथ प्रदर्शित की गई। आन की सफलता के बाद महबूब खान ने अमर फिल्म का निर्माण किया। बलात्कार जैसे संवेदनशील विषय बनी इस फिल्म में दिलीप कुमार, मधुबाला और निम्मी ने मुख्य निभाई। हालांकि फिल्म व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं हुई, लेकिन महबूब खान इसे अपनी एक महत्वपूर्ण फिल्म मानते थे।
====मदर इंडिया====
====मदर इंडिया====
वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म मदर इंडिया महबूब खान की सर्वाधिक सफल फिल्मों में शुमार की जाती है। उन्होंने मदर इंडिया से पहले भी इसी कहानी पर 1939 मे औरत फिल्म का निर्माण किया था और वह इस फिल्म का नाम भी औरत ही रखना चाहते थे। लेकिन नर्गिस के कहने पर उन्होंने इसका मदर इंडिया जैसा विशुद्व अंग्रेजी नाम रखा। फिल्म की सफलता से उनका यह सुझाव सही साबित हुआ। महान अदाकारा नर्गिस को फिल्म इंडस्ट्री में लाने में महबूब खान की अहम भूमिका रही।
{{मुख्य|मदर इंडिया}}
 
वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म [[मदर इंडिया]] महबूब ख़ान की सर्वाधिक सफल फ़िल्मों में शुमार की जाती है। उन्होंने मदर इंडिया से पहले भी इसी कहानी पर 1939 में औरत फ़िल्म का निर्माण किया था और वह इस फ़िल्म का नाम भी औरत ही रखना चाहते थे। लेकिन नर्गिस के कहने पर उन्होंने इसका मदर इंडिया जैसा विशुद्ध अंग्रेज़ी नाम रखा। फ़िल्म की सफलता से उनका यह सुझाव सही साबित हुआ। महान् अदाकारा नर्गिस को फ़िल्म इंडस्ट्री में लाने में महबूब ख़ान की अहम भूमिका रही। [[नर्गिस]] अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी, लेकिन महबूब ख़ान को उनकी [[अभिनय]] क्षमता पर पूरा भरोसा था और वह उन्हें अपनी फ़िल्म में अभिनेत्री के रूप में काम देना चाहते थे। एक बार नर्गिस की माँ ने उन्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए महबूब ख़ान के पास जाने को कहा। चूंकि नर्गिस अभिनय क्षेत्र में जाने की इच्छुक नहीं थीं, इसलिए उन्होंने सोचा कि यदि वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो जाती हैं तो उन्हें अभिनेत्री नहीं बनना पडे़गा।
नर्गिस अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी, लेकिन महबूब खान को उनकी अभिनय क्षमता पर पूरा भरोसा था और वह उन्हें अपनी फिल्म में अभिनेत्री के रूप में काम देना चाहते थे। इससे जुड़ा एक रोचक वाकया है। एक बार नर्गिस की मां ने उन्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए महबूब खान के पास जाने को कहा। चूंकि नर्गिस अभिनय क्षेत्र में जाने की इच्छुक नहीं थीं, इसलिए उन्होंने सोचा कि यदि वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो जाती हैं तो उन्हें अभिनेत्री नहीं बनना पडे़गा।
 
स्क्रीन टेस्ट के दौरान नर्गिस ने अनमने ढंग से संवाद बोले और सोचा कि महबूब खान उन्हें स्क्रीन टेस्ट में फेल कर देंगे। लेकिन उनका यह विचार गलत निकला। महबूब खान ने अपनी नई फिल्म तकदीर [1943] के लिए नायिका उन्हें चुन लिया। बाद में नर्गिस ने महबूब खान की कई फिल्मों में अभिनय किया। इसमें 1957 में प्रदर्शित फिल्म मदर इंडिया खास तौर पर उल्लेखनीय है।
 
====सन ऑफ इंडिया====
वर्ष 1962 में प्रदर्शित फिल्म सन ऑफ इंडिया महबूब खान के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई। बड़े बजट से बनी यह फिल्म टिकट खिड़की की पर बुरी तरह नकार दी गई। हांलाकि नौशाद के स्वरबद्ध फिल्म के गीत नन्हा मुन्ना राही हूं... और तुझे दिल ढूंढ रहा है... श्रोताओं के बीच आज भी तन्मयता के साथ सुने जाते है।
 
अपने जीवन के आखिरी दौर में महबूब खान 16वीं शताब्दी की कवयित्री हब्बा खातून की जिंदगी पर एक फिल्म बनाना चाहते थे। लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया।
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|+महत्वपूर्ण फिल्म
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|1957
|मदर इण्डिया
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|1946
|अनमोल घड़ी
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|1945
|हुमायूँ
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|1943
|नज़मा
|}
==पुरस्कार==
==पुरस्कार==
मदर इंडिया (1957) के निर्माण ने सर्वाधिक ख्याति दिलाई क्योंकि मदर इंडिया को विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिये अकादमी पुरस्कार (Academy Award for Best Foreign Language Film) के लिये नामांकित किया गया तथा इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार भी जीता।
फ़िल्म '[[मदर इंडिया]]' ([[1957]]) के निर्माण ने महबूब ख़ान को सर्वाधिक ख्याति दिलाई, क्योंकि 'मदर इंडिया' को विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये अकादमी पुरस्कार के लिये नामांकित किया गया तथा इस फ़िल्म ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी जीता।
==महबूब खान की प्रमुख कृतियाँ==
[[चित्र:Mehboob-Khan-Stamp.jpg|thumb|200px|महबूब ख़ान और [[मदर इंडिया]] के सम्मान में [[भारत]] सरकार द्वारा जारी डाक टिकट]]
====<u>निर्देशक के रूप में</u>====
==महबूब ख़ान की प्रमुख फ़िल्में==
* सन ऑफ इंडिया (1962)
{{main|महबूब ख़ान की प्रमुख फ़िल्में}}
* अ हैंडफुल ऑफ ग्रेन (1959)
====निर्देशक के रूप में====
* मदर इंडिया (1957)
* सन ऑफ़ इंडिया ([[1962]])
* अमर (1954)
* अ हैंडफुल ऑफ़ ग्रेन ([[1959]])
* आन (1952)
* मदर इंडिया ([[1957]])
* अंदाज (1949)
* अमर ([[1954]])
* अनोखी अदा (1948)
* आन ([[1952]])
* ऐलान (1947)
* [[अंदाज़ (1949 फ़िल्म)|अंदाज़]] ([[1949]])
* अनमोल घड़ी (1946)
* अनोखी अदा ([[1948]])
* हुमायुँ (1945)
* ऐलान ([[1947]])
* अनमोल घड़ी ([[1946]])
* हुमायुँ ([[1945]])
* नाज़िमा (1943)
* नाज़िमा (1943)
* तकदीर (1943)
* तकदीर ([[1943]])
* रोटी (1942)
* बहन (1941)
* अलीबाबा (1940/I)
* अलीबाबा (1940/II)
* औरत (1940)
* एक ही रास्ता (1939)
* हम तुम और वो (1938)
* वतन (1938)
* जागीरदार (1937)
* डेक्कन क्वीन (1936)
* मनमोहन (1936)
* जजमेंट ऑफ अल्लाह (1935)
 
====<u>निर्माता के रूप में</u>====
* अमर (1954)
* आन (1952)
* अनोखी अदा (1948)
* अनमोल घड़ी (1946)
 
====<u>अभिनेता के रूप में</u>====
* दिलावर (1931)
* मेरी जान (1931)
==मृत्यु==
==मृत्यु==
अपनी फिल्मों से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार महबूब ख़ान 28 मई 1964 को इस दुनिया से रूखसत हो गया।
अपनी फ़िल्मों से दर्शकों के बीच ख़ास पहचान बनाने वाले महान् फ़िल्मकार महबूब ख़ान [[28 मई]], [[1964]] को इस दुनिया से रूख़सत हो गये।
 
 


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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[[Category:नया पन्ना]]
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://biographyhindi.com/mehboob-khan-biography-in-hindi/ अविस्मरणीय फिल्मकार महबूब खान की जीवनी]
==संबंधित लेख==
{{महबूब ख़ान विषय सूची}}{{फ़िल्म निर्माता और निर्देशक}}
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06:21, 9 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

महबूब ख़ान
महबूब ख़ान
महबूब ख़ान
पूरा नाम महबूब रमजान ख़ान
प्रसिद्ध नाम महबूब ख़ान
जन्म 9 सितम्बर, 1907
जन्म भूमि बिलमिरिया, गुजरात
मृत्यु 28 मई, 1964
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भारतीय सिनेमा
मुख्य फ़िल्में 'मदर इण्डिया', 'सन ऑफ़ इंडिया', 'अमर', 'तकदीर', 'रोटी', 'एक ही रास्त' आदि।
प्रसिद्धि फ़िल्म निर्माता-निर्देशक
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख महबूब स्टूडियो
अन्य जानकारी महबूब ख़ान ने अपने सिने कॅरियर की शुरुआत 1927 में प्रदर्शित फ़िल्म 'अलीबाबा एंड फोर्टी थीफ्स' से अभिनेता के रूप में की। इस फ़िल्म में उन्होंने चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभाई थी।
महबूब ख़ान विषय सूची

महबूब रमज़ान ख़ान (अंग्रेज़ी: Mehboob Khan, जन्म- 9 सितम्बर, 1907, बिलमिरिया, गुजरात; मृत्यु- 28 मई, 1964)[1] भारतीय सिनेमा इतिहास के अग्रणी निर्माता-निर्देशक थे। हिन्दी सिनेमा जगत् के युगपुरुष महबूब ख़ान को एक ऐसी शख़्सियत के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फ़िल्मों का तोहफा दिया। वह युवावस्था में घर से भागकर मुंबई आ गए और एक स्टूडियो में काम करने लगे। भारतीय सिनेमा को आधुनिकतम तकनीकी से सँवारने में अग्रणी निर्माता-निर्देशक महबूब ख़ान का अहम किरदार रहा है। महबूब ख़ान हॉलीवुड की फ़िल्मों से बहुत अधिक प्रभावित थे और भारत में भी उच्च स्तर के चलचित्रों का निर्माण करने में जुटे रहते थे।

परिचय

महबूब ख़ान का जन्म 9 सितम्बर, सन 1907 को गुजरात के सूरत शहर के निकट एक छोटे-से गाँव में ग़रीब परिवार में हुआ था। शुरू से ही वह एक मेहनतकश इन्सान थे, इसीलिए उन्होंने अपने निर्माण संस्थान 'महबूब प्रोडक्शन' का चिन्ह 'हंसिया-हथौड़े' को दर्शाता हुआ रखा। जब वह 1925 के आसपास बम्बई नगरी (वर्तमान मुम्बई) में आये तो इंपीरियल कम्पनी ने उन्हें अपने यहाँ सहायक के रूप में रख लिया। कई वर्ष बाद उन्हें फ़िल्म 'बुलबुले बगदाद' में खलनायक का किरदार निभाना पड़ा।

फ़िल्मी कॅरियर

महबूब ख़ान ने अपने सिने कॅरियर की शुरुआत 1927 में प्रदर्शित फ़िल्म 'अलीबाबा एंड फोर्टी थीफ्स' से अभिनेता के रूप में की। इस फ़िल्म में उन्होंने चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभाई थी। बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत की पहली बोलती फ़िल्म आलम आरा के लिए महबूब ख़ान का अभिनेता के रूप में चयन किया गया था। लेकिन फ़िल्म निर्माण के समय आर्देशिर ईरानी ने महसूस किया कि फ़िल्म की सफलता के लिए नए कलाकार को मौक़ा देने के बजाय किसी स्थापित अभिनेता को यह भूमिका देना सही रहेगा। बाद में उन्होंने महबूब ख़ान की जगह मास्टर विट्ठल को इस फ़िल्म में काम करने का अवसर दिया। इसके बाद महबूब ख़ान सागर मूवीटोन से जुड़ गए और कई फ़िल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में काम किया।

मदर इंडिया

वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म मदर इंडिया महबूब ख़ान की सर्वाधिक सफल फ़िल्मों में शुमार की जाती है। उन्होंने मदर इंडिया से पहले भी इसी कहानी पर 1939 में औरत फ़िल्म का निर्माण किया था और वह इस फ़िल्म का नाम भी औरत ही रखना चाहते थे। लेकिन नर्गिस के कहने पर उन्होंने इसका मदर इंडिया जैसा विशुद्ध अंग्रेज़ी नाम रखा। फ़िल्म की सफलता से उनका यह सुझाव सही साबित हुआ। महान् अदाकारा नर्गिस को फ़िल्म इंडस्ट्री में लाने में महबूब ख़ान की अहम भूमिका रही। नर्गिस अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी, लेकिन महबूब ख़ान को उनकी अभिनय क्षमता पर पूरा भरोसा था और वह उन्हें अपनी फ़िल्म में अभिनेत्री के रूप में काम देना चाहते थे। एक बार नर्गिस की माँ ने उन्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए महबूब ख़ान के पास जाने को कहा। चूंकि नर्गिस अभिनय क्षेत्र में जाने की इच्छुक नहीं थीं, इसलिए उन्होंने सोचा कि यदि वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो जाती हैं तो उन्हें अभिनेत्री नहीं बनना पडे़गा।

पुरस्कार

फ़िल्म 'मदर इंडिया' (1957) के निर्माण ने महबूब ख़ान को सर्वाधिक ख्याति दिलाई, क्योंकि 'मदर इंडिया' को विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये अकादमी पुरस्कार के लिये नामांकित किया गया तथा इस फ़िल्म ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी जीता।

महबूब ख़ान और मदर इंडिया के सम्मान में भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट

महबूब ख़ान की प्रमुख फ़िल्में

निर्देशक के रूप में

  • सन ऑफ़ इंडिया (1962)
  • अ हैंडफुल ऑफ़ ग्रेन (1959)
  • मदर इंडिया (1957)
  • अमर (1954)
  • आन (1952)
  • अंदाज़ (1949)
  • अनोखी अदा (1948)
  • ऐलान (1947)
  • अनमोल घड़ी (1946)
  • हुमायुँ (1945)
  • नाज़िमा (1943)
  • तकदीर (1943)

मृत्यु

अपनी फ़िल्मों से दर्शकों के बीच ख़ास पहचान बनाने वाले महान् फ़िल्मकार महबूब ख़ान 28 मई, 1964 को इस दुनिया से रूख़सत हो गये।


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