"जीवन (अभिनेता)": अवतरणों में अंतर

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'''जीवन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jeevan'', जन्म- [[24 अक्टूबर]], [[1915]], [[श्रीनगर]]; मृत्यु- [[10 जून]], [[1987]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। उनका पूरा नाम 'ओंकार नाथ धर' था। उन्होंने फ़िल्मी पर्दे पर अपनी भूमिकाओं को बड़ी ही संजीदगी से निभाया। वैसे तो अभिनेता जीवन ने अधिकांश फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई थी, लेकिन फिर भी एक भूमिका ऐसी थी जिसमें दर्शकों ने उन्हें देखना हमेशा पसंद किया। [[नारद|देवर्षि नारद]] के रूप में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका को दर्शक कभी नहीं भूल पायेंगे। नारद मुनि के पौराणिक पात्र को अभिनेता जीवन ने 60 से भी अधिक फ़िल्मों में पर्दे पर जीवंत किया।
==परिचय==
==परिचय==
अभिनेता जीवन का जन्म 24 अक्टूबर, 1915 को श्रीनगर, [[जम्मू और कश्मीर]] में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ओंकार नाथ धर था। जीवन को बचपन से ही अभिनेता बनने का मन था। उनके पुत्र और खुद भी एक जाने माने अभिनेता किरण कुमार ने एक पुराने साक्षात्कार में बताया था कि जीवन के पिता जी [[पाकिस्तान]] में स्थित गिलगिट के गवर्नर थे। जीवन की माताजी का देहांत सन [[1915]] में जीवन साहब के जन्म के समय ही हो गया था। उनकी उम्र तीन साल की होते-होते जीवन के पिताजी भी चल बसे थे। किन्तु गवर्नर साहब के खानदान के पुत्र को सिनेमा में अभिनय जैसे उस समय के निम्न व्यवसाय से नाता जोड़ने की इजाजत [[परिवार]] वाले कैसे देते? लिहाजा 18 साल की उम्र में जेब में मात्र 26 रुपये लेकर ओंकार नाथ धर [[बम्बई]] (वर्तमान मुम्बई) जाने के लिए घर से भाग गए।
अभिनेता जीवन का जन्म 24 अक्टूबर, 1915 को [[श्रीनगर, उत्तराखण्ड|श्रीनगर]], [[जम्मू और कश्मीर]] में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ओंकार नाथ धर था। जीवन को बचपन से ही अभिनेता बनने का मन था। उनके पुत्र और खुद भी एक जाने माने अभिनेता किरण कुमार ने एक पुराने साक्षात्कार में बताया था कि जीवन के पिता जी [[पाकिस्तान]] में स्थित गिलगिट के गवर्नर थे। जीवन की माताजी का देहांत सन [[1915]] में जीवन साहब के जन्म के समय ही हो गया था। उनकी उम्र तीन साल की होते-होते जीवन के पिताजी भी चल बसे थे। किन्तु गवर्नर साहब के खानदान के पुत्र को सिनेमा में अभिनय जैसे उस समय के निम्न व्यवसाय से नाता जोड़ने की इजाजत [[परिवार]] वाले कैसे देते? लिहाजा 18 साल की उम्र में जेब में मात्र 26 रुपये लेकर ओंकार नाथ धर [[बम्बई]] (वर्तमान मुम्बई) जाने के लिए घर से भाग गए।


जीवन का घर का नाम ‘जीवन किरण’ था और लोग समजते थे कि उन्होंने अपने साथ बेटे का भी नाम जोड़ा था, परंतु हकीकत ये थी कि उनकी पत्नी का नाम ‘किरण’ था। वे [[लाहौर]] की थीं। पर्दे पर अधिकतर खलनायक की भूमिका करने वाले जीवन साहब निजी ज़िन्दगी में इतने भले थे कि पैसों के मामले में कोई अगर उन्हें दगा दे जाये तो वे कहते थे- "उस व्यक्ति को ज्यादा जरुरत होगी"।
जीवन का घर का नाम ‘जीवन किरण’ था और लोग समजते थे कि उन्होंने अपने साथ बेटे का भी नाम जोड़ा था, परंतु हकीकत ये थी कि उनकी पत्नी का नाम ‘किरण’ था। वे [[लाहौर]] की थीं। पर्दे पर अधिकतर खलनायक की भूमिका करने वाले जीवन साहब निजी ज़िन्दगी में इतने भले थे कि पैसों के मामले में कोई अगर उन्हें दगा दे जाये तो वे कहते थे- "उस व्यक्ति को ज्यादा जरुरत होगी"।
==फ़िल्मी शुरुआत==
==फ़िल्मी शुरुआत==
[[मुंबई]] में फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश के लिए स्टुडियो में जो भी काम मिला, वह स्वीकार कर लिया। जीवन साहब और बाद में ‘शोले’ जैसी अनेक फ़िल्मों के अदभूत कैमेरा मेन द्वारका दिवेचा दोनों दोस्त मिलकर, शूटिंग के दौरान स्टार्स के चेहरे चमकाने के लिए उन पर प्रकाश फेंकने वाले यानि रिफ्लैकटर्स को संभालने वाले मज़दूर बन गए। एक दिन स्टुडियो में निर्माता मोहन सिन्हा यानि ‘रजनी गंधा’ की हीरोइन अभिनेत्री विद्या सिन्हा के दादाजी अपनी नई फ़िल्म के लिए नये कलाकारों के स्क्रीन टेस्ट कर रहे थे। सिन्हा जी ने कम्पाउन्ड में उन दोनों दोस्तों को देखा और अच्छी कद-काठी के नौजवान ओंकार नाथ धर को पूछा- "क्या तुम अभिनय करना चाहते हो?" ना कहने का सवाल ही कहाँ था? उनका स्क्रीन टेस्ट हुआ और स्वाभाविक था कि परिणाम अच्छा था। सिन्हा जी ने पूछा- "क्या करते हो?" और युवा ने बताया कि वह उनके स्टुडियो में रिफ्लैक्टर संभालता है।  
[[मुंबई]] में फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश के लिए स्टुडियो में जो भी काम मिला, वह स्वीकार कर लिया। जीवन साहब और बाद में ‘शोले’ जैसी अनेक फ़िल्मों के अदभूत कैमेरा मेन द्वारका दिवेचा दोनों दोस्त मिलकर, शूटिंग के दौरान स्टार्स के चेहरे चमकाने के लिए उन पर प्रकाश फेंकने वाले यानि रिफ्लैकटर्स को संभालने वाले मज़दूर बन गए। एक दिन स्टुडियो में निर्माता मोहन सिन्हा यानि ‘रजनी गंधा’ की हिरोइन अभिनेत्री विद्या सिन्हा के दादाजी अपनी नई फ़िल्म के लिए नये कलाकारों के स्क्रीन टेस्ट कर रहे थे। सिन्हा जी ने कम्पाउन्ड में उन दोनों दोस्तों को देखा और अच्छी कद-काठी के नौजवान ओंकार नाथ धर को पूछा- "क्या तुम अभिनय करना चाहते हो?" ना कहने का सवाल ही कहाँ था? उनका स्क्रीन टेस्ट हुआ और स्वाभाविक था कि परिणाम अच्छा था। सिन्हा जी ने पूछा- "क्या करते हो?" और युवा ने बताया कि वह उनके स्टुडियो में रिफ्लैक्टर संभालता है।  


दूसरा सवाल आया- "क्या कुछ गा सकते हो?" जवाब में ओंकार जी ने [[पंजाब]] की अमर प्रेम कथा ‘हीर रांझा’ की कुछ पंक्तियां सुनाई और एक मज़दूरी करने वाले व्यक्ति की अभिनय की यात्रा का आरंभ ‘फैशनेबल इन्डिया’ फ़िल्म से हुआ। जब ओंकार नाथ धर यानि ने विजय भट्ट की फ़िल्म में काम करना शुरू किया, तब उन्होंने नया नाम ‘जीवन’ दिया, जो जीवन भर उनका नाम रहा। उनके अभिनय की एक खासियत ये थी कि खलनायकी में वे कॉमेडी भी डाल देते थे। उन्हें [[दिलीप कुमार]] के खिलाफ़ खलनायक के रूप में फ़िल्म ‘कोहिनूर’ में देखें या ‘नया दौर’ में, अभिनेता जीवन की टक्कर एक अलग ही माहौल खड़ा करती थी। उनका काम ‘अमर अकबर एथॉनी’ में भी काफ़ी सराहा गया था। सन [[1964]] की फ़िल्म ‘महाभारत’ में उनकी भूमिका ‘शकुनि मामा’ की थी।
दूसरा सवाल आया- "क्या कुछ गा सकते हो?" जवाब में ओंकार जी ने [[पंजाब]] की अमर प्रेम कथा ‘हीर रांझा’ की कुछ पंक्तियां सुनाई और एक मज़दूरी करने वाले व्यक्ति की अभिनय की यात्रा का आरंभ ‘फैशनेबल इन्डिया’ फ़िल्म से हुआ। जब ओंकार नाथ धर यानि ने विजय भट्ट की फ़िल्म में काम करना शुरू किया, तब उन्होंने नया नाम ‘जीवन’ दिया, जो जीवन भर उनका नाम रहा। उनके अभिनय की एक खासियत ये थी कि खलनायकी में वे कॉमेडी भी डाल देते थे। उन्हें [[दिलीप कुमार]] के ख़िलाफ़ खलनायक के रूप में फ़िल्म ‘कोहिनूर’ में देखें या ‘नया दौर’ में, अभिनेता जीवन की टक्कर एक अलग ही माहौल खड़ा करती थी। उनका काम ‘अमर अकबर एथॉनी’ में भी काफ़ी सराहा गया था। सन [[1964]] की फ़िल्म ‘महाभारत’ में उनकी भूमिका ‘शकुनि मामा’ की थी।
==नारद मुनि की भूमिका==
==नारद मुनि की भूमिका==
अभिनेता जीवन को दर्शकों ने नारद मुनि की भूमिका में काफ़ी पसंद किया। "नारायण.... नारायण..." बोलते जीवन ने देवर्षि नारद के उस पौराणिक पात्र को 60 से अधिक फ़िल्मों में पर्दे पर जीवंत किया था, जो शायद अपने आप में एक विक्रम और एक कलाकार के लिए बड़ी उपलब्धि थी। उनको मुख्य भूमिका में लेकर ‘नारद लीला’ फ़िल्म भी आई थी। फ़िल्म 'जॉनी मेरा नाम' के एक दृश्य में 80 लाख के हीरे छुपाने वाले स्मगलर ‘हीरा’ (जीवन) से जब पुलिस पुछताछ करती है तो वे सिगरेट का धुंआ निकालते हुए कहते हैं- "कमिश्नर साहब, आपको जो चार्ज लगाना हो लगाकर छुट्टी कीजिए.... फालतु अफवाहों पे बहस करने से क्या फायदा?" ऐसे तो जाने कितने ही दृश्य याद आ जाते हैं, जब भी जीवन साहब की स्मृति ताजा होती है। लेकिन दर्शकों ने जीवन को सबसे ज़्यादा नारद मुनि के रूप में ही अपनी यादों में बनाये रखा।
अभिनेता जीवन को दर्शकों ने नारद मुनि की भूमिका में काफ़ी पसंद किया। "नारायण.... नारायण..." बोलते जीवन ने देवर्षि नारद के उस पौराणिक पात्र को 60 से अधिक फ़िल्मों में पर्दे पर जीवंत किया था, जो शायद अपने आप में एक विक्रम और एक कलाकार के लिए बड़ी उपलब्धि थी। उनको मुख्य भूमिका में लेकर ‘नारद लीला’ फ़िल्म भी आई थी। फ़िल्म 'जॉनी मेरा नाम' के एक दृश्य में 80 लाख के [[हीरा|हीरे]] छुपाने वाले स्मगलर ‘हीरा’ (जीवन) से जब पुलिस पुछताछ करती है तो वे सिगरेट का धुंआ निकालते हुए कहते हैं- "कमिश्नर साहब, आपको जो चार्ज लगाना हो लगाकर छुट्टी कीजिए.... फालतु अफवाहों पे बहस करने से क्या फायदा?" ऐसे तो जाने कितने ही दृश्य याद आ जाते हैं, जब भी जीवन साहब की स्मृति ताजा होती है। लेकिन दर्शकों ने जीवन को सबसे ज़्यादा नारद मुनि के रूप में ही अपनी यादों में बनाये रखा।
==प्रमुख फ़िल्में==
==प्रमुख फ़िल्में==
जीवन साहब की फ़िल्मों में प्रमुख हैं-
जीवन साहब की फ़िल्मों में प्रमुख हैं-
‘दिल ने फिर याद किया’, ‘आबरु’, ‘हमराज़’, ‘बंधन’, ‘भाई हो तो ऐसा’, ‘तलाश’, ‘धरम वीर’, ‘चाचा भतीजा’, ‘सुहाग’, ‘नसीब’, ‘टक्कर’, ‘मेरे हमसफ़र’, ‘डार्लिंग डार्लिंग’, ‘फूल और पत्थर’, ‘इन्तकाम’, ‘हीर रांझा’, ‘रोटी’, ‘शरीफ़ बदमाश’, ‘सबसे बड़ा रुपैया’, ‘गेम्बलर’, ‘याराना’, ‘प्रोफेसर प्यारेलाल’, ‘बुलंदी’, ‘सनम तेरी कसम’, ‘देशप्रेमी’, ‘सुरक्षा’ और ‘लावारिस’ इत्यादि।
‘दिल ने फिर याद किया’, ‘आबरु’, ‘हमराज़’, ‘बंधन’, ‘भाई हो तो ऐसा’, ‘तलाश’, ‘धरम वीर’, ‘चाचा भतीजा’, ‘सुहाग’, ‘नसीब’, ‘टक्कर’, ‘मेरे हमसफ़र’, ‘डार्लिंग डार्लिंग’, ‘फूल और पत्थर’, ‘इन्तकाम’, ‘हीर रांझा’, ‘रोटी’, ‘शरीफ़ बदमाश’, ‘सबसे बड़ा रुपैया’, ‘गेम्बलर’, ‘याराना’, ‘प्रोफेसर प्यारेलाल’, ‘बुलंदी’, ‘सनम तेरी कसम’, ‘देशप्रेमी’, ‘सुरक्षा’ और ‘लावारिस’ इत्यादि।
==काम के प्रति समर्पित==
==काम के प्रति समर्पित==
जीवन एक ऐसे खलनायक थे, जो हीरो से मार खाने में कभी भी कंजूसी नहीं करते थे। उनका मानना था कि एक फ़िल्म तभी हिट होती है, जब हीरो खलनायक को पीटता है। वह अपने पुत्र किरण कुमार को भी सलाह देते थे कि कोई पात्र तभी हीरो कहलाता है, जब वह खलनायक को बराबर मारता है। इसलिए अपने से कद में छोटे हीरो से भी मार खाने में कसर मत छोड़ो। जीवन से कभी भी निर्माताओं को कोई शिकायत नहीं होती थी, क्योंकि उनके [[परिवार]] के किसी सदस्य को सेट पर आना तो दूर की बात थी, फोन भी लंच के समय के अलावा नहीं कर सकते थे। वे अपने अभिनय के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहते थे। इसलिए [[बी. आर. चोपड़ा]] और [[मनमोहन देसाई]] जैसे बड़े निर्माताओं की फ़िल्मों में जीवन साहब नियमित रूप से लिये जाते थे। अभिनेता जीवन के पुत्र किरण कुमार ने एक साक्षात्कार में बताया था कि जीवन साहब धार्मिक स्थानों पर गरीबों को खाना खिलाने में और योग्य विद्यार्थीओं को पढ़ाने में आर्थिक सहायता करते रहते थे। वक्त के पाबंद जीवन साहब कभी भी सेट पर देर से नहीं पहुंचे। जब भी वे शूटींग के लिए हाजिर होते थे, सबसे पहले स्टेज को छू कर नमन करने के बाद ही अपना दिन प्रारंभ करते थे।
जीवन एक ऐसे खलनायक थे, जो हीरो से मार खाने में कभी भी कंजूसी नहीं करते थे। उनका मानना था कि एक फ़िल्म तभी हिट होती है, जब हीरो खलनायक को पीटता है। वह अपने पुत्र किरण कुमार को भी सलाह देते थे कि कोई पात्र तभी हीरो कहलाता है, जब वह खलनायक को बराबर मारता है। इसलिए अपने से कद में छोटे हीरो से भी मार खाने में कसर मत छोड़ो। जीवन से कभी भी निर्माताओं को कोई शिकायत नहीं होती थी, क्योंकि उनके [[परिवार]] के किसी सदस्य को सेट पर आना तो दूर की बात थी, फोन भी लंच के समय के अलावा नहीं कर सकते थे। वे अपने [[अभिनय]] के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहते थे। इसलिए [[बी. आर. चोपड़ा]] और [[मनमोहन देसाई]] जैसे बड़े निर्माताओं की फ़िल्मों में जीवन साहब नियमित रूप से लिये जाते थे। अभिनेता जीवन के पुत्र किरण कुमार ने एक साक्षात्कार में बताया था कि जीवन साहब धार्मिक स्थानों पर ग़रीबों को खाना खिलाने में और योग्य विद्यार्थीओं को पढ़ाने में आर्थिक सहायता करते रहते थे। वक्त के पाबंद जीवन साहब कभी भी सेट पर देर से नहीं पहुंचे। जब भी वे शूटींग के लिए हाजिर होते थे, सबसे पहले स्टेज को छू कर नमन करने के बाद ही अपना दिन प्रारंभ करते थे।
==मृत्यु==
==मृत्यु==
अपने काम को पूजा-इबादत जैसा मानने वाले अभिनेता जीवन का 72 साल की उम्र में [[10 जून]], [[1987]] को निधन हुआ। नारद मुनि की अपनी अनेक भूमिकाओं और कितनी सारी फ़िल्मों के एक से एक यादगार पात्रों से जीवन साहब हिन्दी सिनेमा के दर्शकों के जीवन में अपना अलग स्थान रखते हुए आज भी ज़िन्दा ही हैं।
अपने काम को पूजा-इबादत जैसा मानने वाले अभिनेता जीवन का 72 साल की उम्र में [[10 जून]], [[1987]] को निधन हुआ। नारद मुनि की अपनी अनेक भूमिकाओं और कितनी सारी फ़िल्मों के एक से एक यादगार पात्रों से जीवन साहब हिन्दी सिनेमा के दर्शकों के जीवन में अपना अलग स्थान रखते हुए आज भी ज़िन्दा ही हैं।
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<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://tikhaaro.blogspot.in/2013/10/blog-post.html जीवन-‘नारद मुनि’ से लेकर कुटिल विलन तक के कितने रूप]
*[http://www.jagran.com/entertainment/bollywood-5-bollywood-actor-who-loved-to-rekha-11690016.html इन पांच अभिनेताओं से लगाया था रेखा ने दिल, लेकिन...]
==संबंधित लेख==
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05:41, 10 जून 2018 के समय का अवतरण

जीवन (अभिनेता)
जीवन
जीवन
पूरा नाम ओंकार नाथ धर
प्रसिद्ध नाम जीवन
जन्म 24 अक्टूबर, 1915
जन्म भूमि श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर
मृत्यु 10 जून, 1987
पति/पत्नी किरण
संतान किरण कुमार, भूषण जीवन
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी सिनेमा
मुख्य फ़िल्में ‘दिल ने फिर याद किया’, ‘हमराज़’, ‘बंधन’, ‘धरम वीर’, ‘चाचा भतीजा’, ‘सुहाग’, ‘नसीब’, ‘मेरे हमसफ़र’, ‘हीर रांझा’, ‘रोटी’, ‘गेम्बलर’, ‘याराना’, ‘सनम तेरी कसम’, ‘देशप्रेमी’ और ‘लावारिस’ इत्यादि।
प्रसिद्धि अभिनेता
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी अभिनेता जीवन को दर्शकों ने नारद मुनि की भूमिका में काफ़ी पसंद किया। "नारायण.... नारायण..." बोलते जीवन ने देवर्षि नारद के उस पौराणिक पात्र को 60 से अधिक फ़िल्मों में पर्दे पर जीवंत किया था, जो शायद अपने आप में एक विक्रम और एक कलाकार के लिए बड़ी उपलब्धि थी।
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जीवन (अंग्रेज़ी: Jeevan, जन्म- 24 अक्टूबर, 1915, श्रीनगर; मृत्यु- 10 जून, 1987) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। उनका पूरा नाम 'ओंकार नाथ धर' था। उन्होंने फ़िल्मी पर्दे पर अपनी भूमिकाओं को बड़ी ही संजीदगी से निभाया। वैसे तो अभिनेता जीवन ने अधिकांश फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई थी, लेकिन फिर भी एक भूमिका ऐसी थी जिसमें दर्शकों ने उन्हें देखना हमेशा पसंद किया। देवर्षि नारद के रूप में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका को दर्शक कभी नहीं भूल पायेंगे। नारद मुनि के पौराणिक पात्र को अभिनेता जीवन ने 60 से भी अधिक फ़िल्मों में पर्दे पर जीवंत किया।

परिचय

अभिनेता जीवन का जन्म 24 अक्टूबर, 1915 को श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ओंकार नाथ धर था। जीवन को बचपन से ही अभिनेता बनने का मन था। उनके पुत्र और खुद भी एक जाने माने अभिनेता किरण कुमार ने एक पुराने साक्षात्कार में बताया था कि जीवन के पिता जी पाकिस्तान में स्थित गिलगिट के गवर्नर थे। जीवन की माताजी का देहांत सन 1915 में जीवन साहब के जन्म के समय ही हो गया था। उनकी उम्र तीन साल की होते-होते जीवन के पिताजी भी चल बसे थे। किन्तु गवर्नर साहब के खानदान के पुत्र को सिनेमा में अभिनय जैसे उस समय के निम्न व्यवसाय से नाता जोड़ने की इजाजत परिवार वाले कैसे देते? लिहाजा 18 साल की उम्र में जेब में मात्र 26 रुपये लेकर ओंकार नाथ धर बम्बई (वर्तमान मुम्बई) जाने के लिए घर से भाग गए।

जीवन का घर का नाम ‘जीवन किरण’ था और लोग समजते थे कि उन्होंने अपने साथ बेटे का भी नाम जोड़ा था, परंतु हकीकत ये थी कि उनकी पत्नी का नाम ‘किरण’ था। वे लाहौर की थीं। पर्दे पर अधिकतर खलनायक की भूमिका करने वाले जीवन साहब निजी ज़िन्दगी में इतने भले थे कि पैसों के मामले में कोई अगर उन्हें दगा दे जाये तो वे कहते थे- "उस व्यक्ति को ज्यादा जरुरत होगी"।

फ़िल्मी शुरुआत

मुंबई में फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश के लिए स्टुडियो में जो भी काम मिला, वह स्वीकार कर लिया। जीवन साहब और बाद में ‘शोले’ जैसी अनेक फ़िल्मों के अदभूत कैमेरा मेन द्वारका दिवेचा दोनों दोस्त मिलकर, शूटिंग के दौरान स्टार्स के चेहरे चमकाने के लिए उन पर प्रकाश फेंकने वाले यानि रिफ्लैकटर्स को संभालने वाले मज़दूर बन गए। एक दिन स्टुडियो में निर्माता मोहन सिन्हा यानि ‘रजनी गंधा’ की हिरोइन अभिनेत्री विद्या सिन्हा के दादाजी अपनी नई फ़िल्म के लिए नये कलाकारों के स्क्रीन टेस्ट कर रहे थे। सिन्हा जी ने कम्पाउन्ड में उन दोनों दोस्तों को देखा और अच्छी कद-काठी के नौजवान ओंकार नाथ धर को पूछा- "क्या तुम अभिनय करना चाहते हो?" ना कहने का सवाल ही कहाँ था? उनका स्क्रीन टेस्ट हुआ और स्वाभाविक था कि परिणाम अच्छा था। सिन्हा जी ने पूछा- "क्या करते हो?" और युवा ने बताया कि वह उनके स्टुडियो में रिफ्लैक्टर संभालता है।

दूसरा सवाल आया- "क्या कुछ गा सकते हो?" जवाब में ओंकार जी ने पंजाब की अमर प्रेम कथा ‘हीर रांझा’ की कुछ पंक्तियां सुनाई और एक मज़दूरी करने वाले व्यक्ति की अभिनय की यात्रा का आरंभ ‘फैशनेबल इन्डिया’ फ़िल्म से हुआ। जब ओंकार नाथ धर यानि ने विजय भट्ट की फ़िल्म में काम करना शुरू किया, तब उन्होंने नया नाम ‘जीवन’ दिया, जो जीवन भर उनका नाम रहा। उनके अभिनय की एक खासियत ये थी कि खलनायकी में वे कॉमेडी भी डाल देते थे। उन्हें दिलीप कुमार के ख़िलाफ़ खलनायक के रूप में फ़िल्म ‘कोहिनूर’ में देखें या ‘नया दौर’ में, अभिनेता जीवन की टक्कर एक अलग ही माहौल खड़ा करती थी। उनका काम ‘अमर अकबर एथॉनी’ में भी काफ़ी सराहा गया था। सन 1964 की फ़िल्म ‘महाभारत’ में उनकी भूमिका ‘शकुनि मामा’ की थी।

नारद मुनि की भूमिका

अभिनेता जीवन को दर्शकों ने नारद मुनि की भूमिका में काफ़ी पसंद किया। "नारायण.... नारायण..." बोलते जीवन ने देवर्षि नारद के उस पौराणिक पात्र को 60 से अधिक फ़िल्मों में पर्दे पर जीवंत किया था, जो शायद अपने आप में एक विक्रम और एक कलाकार के लिए बड़ी उपलब्धि थी। उनको मुख्य भूमिका में लेकर ‘नारद लीला’ फ़िल्म भी आई थी। फ़िल्म 'जॉनी मेरा नाम' के एक दृश्य में 80 लाख के हीरे छुपाने वाले स्मगलर ‘हीरा’ (जीवन) से जब पुलिस पुछताछ करती है तो वे सिगरेट का धुंआ निकालते हुए कहते हैं- "कमिश्नर साहब, आपको जो चार्ज लगाना हो लगाकर छुट्टी कीजिए.... फालतु अफवाहों पे बहस करने से क्या फायदा?" ऐसे तो जाने कितने ही दृश्य याद आ जाते हैं, जब भी जीवन साहब की स्मृति ताजा होती है। लेकिन दर्शकों ने जीवन को सबसे ज़्यादा नारद मुनि के रूप में ही अपनी यादों में बनाये रखा।

प्रमुख फ़िल्में

जीवन साहब की फ़िल्मों में प्रमुख हैं-

‘दिल ने फिर याद किया’, ‘आबरु’, ‘हमराज़’, ‘बंधन’, ‘भाई हो तो ऐसा’, ‘तलाश’, ‘धरम वीर’, ‘चाचा भतीजा’, ‘सुहाग’, ‘नसीब’, ‘टक्कर’, ‘मेरे हमसफ़र’, ‘डार्लिंग डार्लिंग’, ‘फूल और पत्थर’, ‘इन्तकाम’, ‘हीर रांझा’, ‘रोटी’, ‘शरीफ़ बदमाश’, ‘सबसे बड़ा रुपैया’, ‘गेम्बलर’, ‘याराना’, ‘प्रोफेसर प्यारेलाल’, ‘बुलंदी’, ‘सनम तेरी कसम’, ‘देशप्रेमी’, ‘सुरक्षा’ और ‘लावारिस’ इत्यादि।

काम के प्रति समर्पित

जीवन एक ऐसे खलनायक थे, जो हीरो से मार खाने में कभी भी कंजूसी नहीं करते थे। उनका मानना था कि एक फ़िल्म तभी हिट होती है, जब हीरो खलनायक को पीटता है। वह अपने पुत्र किरण कुमार को भी सलाह देते थे कि कोई पात्र तभी हीरो कहलाता है, जब वह खलनायक को बराबर मारता है। इसलिए अपने से कद में छोटे हीरो से भी मार खाने में कसर मत छोड़ो। जीवन से कभी भी निर्माताओं को कोई शिकायत नहीं होती थी, क्योंकि उनके परिवार के किसी सदस्य को सेट पर आना तो दूर की बात थी, फोन भी लंच के समय के अलावा नहीं कर सकते थे। वे अपने अभिनय के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहते थे। इसलिए बी. आर. चोपड़ा और मनमोहन देसाई जैसे बड़े निर्माताओं की फ़िल्मों में जीवन साहब नियमित रूप से लिये जाते थे। अभिनेता जीवन के पुत्र किरण कुमार ने एक साक्षात्कार में बताया था कि जीवन साहब धार्मिक स्थानों पर ग़रीबों को खाना खिलाने में और योग्य विद्यार्थीओं को पढ़ाने में आर्थिक सहायता करते रहते थे। वक्त के पाबंद जीवन साहब कभी भी सेट पर देर से नहीं पहुंचे। जब भी वे शूटींग के लिए हाजिर होते थे, सबसे पहले स्टेज को छू कर नमन करने के बाद ही अपना दिन प्रारंभ करते थे।

मृत्यु

अपने काम को पूजा-इबादत जैसा मानने वाले अभिनेता जीवन का 72 साल की उम्र में 10 जून, 1987 को निधन हुआ। नारद मुनि की अपनी अनेक भूमिकाओं और कितनी सारी फ़िल्मों के एक से एक यादगार पात्रों से जीवन साहब हिन्दी सिनेमा के दर्शकों के जीवन में अपना अलग स्थान रखते हुए आज भी ज़िन्दा ही हैं।


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