"विश्वकर्मा": अवतरणों में अंतर

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'''विश्वकर्मा''' को [[हिन्दू]] धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार निर्माण एवं सृजन का [[देवता]] माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि [[सोना|सोने]] की [[लंका]] का निर्माण इन्होंने ही किया था। [[भारतीय संस्कृति]] और [[पुराण|पुराणों]] में भगवान विश्वकर्मा को [[यंत्र|यंत्रों]] का अधिष्ठाता और [[देवता]] माना गया है। उन्हें हिन्दू [[संस्कृति]] में यंत्रों का देव माना जाता है। विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इनके द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है। प्राचीन शास्त्रों में वैमानकीय विद्या, नवविद्या, यंत्र निर्माण विद्या आदि का भगवान विश्वकर्मा ने उपदेश दिया है। माना जाता है कि प्राचीन समय में स्वर्ग लोक, [[लंका]], [[द्वारिका]] और [[हस्तिनापुर]] जैसे नगरों के निर्माणकर्ता भी विश्वकर्मा ही थे।
==जन्म कथा==
एक कथा के अनुसार यह मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम [[नारायण]] अर्थात 'साक्षात [[विष्णु]] भगवान' क्षीर सागर में शेषशैय्या पर आविर्भूत हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख [[ब्रह्मा]] दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' तथा धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए। कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री<ref>जो [[दक्ष]] की कन्याओं में एक थी</ref> से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। अपने [[पिता]] की भांति ही विश्वकर्मा भी आगे चलकर [[वास्तुकला]] के अद्वितीय आचार्य बने।
====रूप====
भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। उन्हें कहीं पर दो बाहु, कहीं चार, कहीं पर दस बाहुओं तथा एक मुख, और कहीं पर चार मुख व पंचमुखों के साथ भी दिखाया गया है। उनके पाँच पुत्र- [[मनु]], मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं। यह भी मान्यता है कि ये पाँचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार भी [[वैदिक काल]] में किया। इस प्रसंग में मनु को [[लोहा|लोहे]] से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं [[तांबा|तांबे]], शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को [[सोना|सोने]]-[[चाँदी]] से जोड़ा जाता है।
==निर्माण कार्य==
आदि काल से ही विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न देवल मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदनीय हैं। भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, [[यमपुरी]], वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी और शिवमण्डलपुरी का उल्लेख है। [[पुष्पक विमान]] का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ भी इनके द्वारा ही निर्मित हैं। [[कर्ण]] का 'कुण्डल', [[विष्णु]] भगवान का [[सुदर्शन चक्र]], [[शंकर]] भगवान का [[त्रिशूल अस्त्र|त्रिशूल]] और [[यमराज]] का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।
====देवों की उत्पत्ति====
विश्वकर्मा ने [[ब्रह्मा]] की उत्पत्ति करके उन्हें प्राणि मात्र का सृजन करने का वरदान दिया और उनके द्वारा 84 लाख योनियों को उत्पन्न किया। विष्णु भगवान की उत्पत्ति कर उन्हें जगत में उत्पन्न सभी प्राणियों की रक्षा और भरण-पोषण का कार्य सौप दिया। प्रजा का ठीक, सुचारु रुप से पालन और हुकुमत करने के लिये एक अत्यंत शक्तिशाली तिव्रगामी सुदर्शन चक्र प्रदान किया। बाद में संसार के प्रलय के लिये एक अत्यंत दयालु बाबा 'भोलेनाथ' शंकर भगवान की उत्पत्ति की। उन्हें [[डमरु]], कमण्डल, त्रिशुल आदि प्रदान कर उनके ललाट पर प्रलयकारी तीसरा नेत्र भी प्रदान कर उन्हे प्रलय की शक्ति देकर शक्तिशाली बनाया। यथानुसार इनके साथ इनकी देवियाँ, ख़ज़ाने की अधिपति माँ [[लक्ष्मी]], राग-रागिनी वाली वीणा वादिनी माँ [[सरस्वती देवी|सरस्वती]] और माँ [[गौरी]] को देकर देंवों को सुशोभित किया।
==अवतार==
हिन्दू धर्मशास्त्रों और ग्रथों में विश्वकर्मा के पाँच स्वरूपों और [[अवतार|अवतारों]] का वर्णन मिलता है-
#'''विराट विश्वकर्मा''' - सृष्टि के रचयिता
#'''धर्मवंशी विश्वकर्मा''' - महान् शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र
#'''अंगिरावंशी विश्वकर्मा''' - आदि विज्ञान विधाता [[वसु]] पुत्र
#'''सुधन्वा विश्वकर्म''' - महान् शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवी ऋषि के पौत्र
#'''भृंगुवंशी विश्वकर्मा''' - उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य ([[शुक्राचार्य]] के पौत्र)


*[[प्रभास]] नामक वसु की पत्नी महासती [[योगासिद्धा]] इन देवशिल्पी की माता हैं।
*देवताओं के समस्त विमानादि तथा [[अस्त्र शस्त्र]] इन्हीं के द्वारा निर्मित हैं।
*[[लंका]] की स्वर्णपुरी, [[द्वारिका|द्वारिकाधाम]], भगवान जगन्नाथ का श्रीविग्रह इन्होंने ही निर्मित किया।
*इनका एक नाम त्वष्टा है।
*[[सूर्य देवता|सूर्य]] पत्नी [[संज्ञा (सूर्य की पत्नी)|संज्ञा]] इन्हीं की पुत्री हैं। इनके पुत्र विश्वरूप और वृत्र हुए।
*सर्वमेध के द्वारा इन्होंने जगत की सृष्टि की और आत्मबलिदान करके निर्माण कार्य पूर्ण किया।
*समस्त शिल्प के ये अधिदेवता हैं।
*भगवान श्री[[राम]] के लिये सेतुनिर्माण करने वाले वानरराज [[नल]] इन्हीं के अंश से उत्पन्न हुए थे।
*हिन्दू-शिल्पी अपने कर्म की उन्नति के लिये भाद्रपद की संक्रान्ति को इनकी आराधना करते हैं। उस दिन शिल्प का कोई उपकरण व्यवहार में नहीं आता।
*बंगाल में यह पूजा विशेष प्रचलित है।
[[Category:पौराणिक_कोश]]
[[Category:हिन्दू_भगवान_अवतार]]
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]


{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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09:44, 1 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

विश्वकर्मा एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- विश्वकर्मा (बहुविकल्पी)
संक्षिप्त परिचय
विश्वकर्मा
विश्वकर्मा
विश्वकर्मा
कुल 'विश्वकर्मा' को हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है।
पिता वास्तुदेव
माता अंगिरसी
संतान पाँच पुत्र- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं।
रंग-रूप भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। उन्हें कहीं पर दो बाहु, कहीं चार, कहीं पर दस बाहुओं तथा एक मुख, और कहीं पर चार मुख व पंचमुखों के साथ भी दिखाया गया है।
संबंधित लेख विश्वकर्मा जयंती
निर्माण कार्य विश्वकर्मा के निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी और शिवमण्डलपुरी आदि का उल्लेख है।
अन्य जानकारी कर्ण का 'कुण्डल', विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।

विश्वकर्मा को हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सोने की लंका का निर्माण इन्होंने ही किया था। भारतीय संस्कृति और पुराणों में भगवान विश्वकर्मा को यंत्रों का अधिष्ठाता और देवता माना गया है। उन्हें हिन्दू संस्कृति में यंत्रों का देव माना जाता है। विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इनके द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है। प्राचीन शास्त्रों में वैमानकीय विद्या, नवविद्या, यंत्र निर्माण विद्या आदि का भगवान विश्वकर्मा ने उपदेश दिया है। माना जाता है कि प्राचीन समय में स्वर्ग लोक, लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर जैसे नगरों के निर्माणकर्ता भी विश्वकर्मा ही थे।

जन्म कथा

एक कथा के अनुसार यह मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम नारायण अर्थात 'साक्षात विष्णु भगवान' क्षीर सागर में शेषशैय्या पर आविर्भूत हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' तथा धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए। कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री[1] से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। अपने पिता की भांति ही विश्वकर्मा भी आगे चलकर वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।

रूप

भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। उन्हें कहीं पर दो बाहु, कहीं चार, कहीं पर दस बाहुओं तथा एक मुख, और कहीं पर चार मुख व पंचमुखों के साथ भी दिखाया गया है। उनके पाँच पुत्र- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं। यह भी मान्यता है कि ये पाँचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार भी वैदिक काल में किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चाँदी से जोड़ा जाता है।

निर्माण कार्य

आदि काल से ही विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न देवल मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदनीय हैं। भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी और शिवमण्डलपुरी का उल्लेख है। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ भी इनके द्वारा ही निर्मित हैं। कर्ण का 'कुण्डल', विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।

देवों की उत्पत्ति

विश्वकर्मा ने ब्रह्मा की उत्पत्ति करके उन्हें प्राणि मात्र का सृजन करने का वरदान दिया और उनके द्वारा 84 लाख योनियों को उत्पन्न किया। विष्णु भगवान की उत्पत्ति कर उन्हें जगत में उत्पन्न सभी प्राणियों की रक्षा और भरण-पोषण का कार्य सौप दिया। प्रजा का ठीक, सुचारु रुप से पालन और हुकुमत करने के लिये एक अत्यंत शक्तिशाली तिव्रगामी सुदर्शन चक्र प्रदान किया। बाद में संसार के प्रलय के लिये एक अत्यंत दयालु बाबा 'भोलेनाथ' शंकर भगवान की उत्पत्ति की। उन्हें डमरु, कमण्डल, त्रिशुल आदि प्रदान कर उनके ललाट पर प्रलयकारी तीसरा नेत्र भी प्रदान कर उन्हे प्रलय की शक्ति देकर शक्तिशाली बनाया। यथानुसार इनके साथ इनकी देवियाँ, ख़ज़ाने की अधिपति माँ लक्ष्मी, राग-रागिनी वाली वीणा वादिनी माँ सरस्वती और माँ गौरी को देकर देंवों को सुशोभित किया।

अवतार

हिन्दू धर्मशास्त्रों और ग्रथों में विश्वकर्मा के पाँच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन मिलता है-

  1. विराट विश्वकर्मा - सृष्टि के रचयिता
  2. धर्मवंशी विश्वकर्मा - महान् शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र
  3. अंगिरावंशी विश्वकर्मा - आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र
  4. सुधन्वा विश्वकर्म - महान् शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवी ऋषि के पौत्र
  5. भृंगुवंशी विश्वकर्मा - उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जो दक्ष की कन्याओं में एक थी

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