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'''अज़रा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Azra'', जन्म- [[21 सितम्बर]], [[मुम्बई]]) [[हिन्दी सिनेमा]] की जानी मानी अभिनेत्री हैं। उनके अभिनय से सजी फ़िल्मों की संख्या भले ही कम है, लेकिन जितनी भी फ़िल्मों उन्होंने की हैं, वह उनकी अभिनय प्रतिभा का परिचय देने के लिए पर्याप्त है। अभिनेत्री अज़रा को फ़िल्म '[[मदर इंडिया]]' ([[1957]]), 'गंगा जमुना' ([[1961]]) और 'जंगली' ([[1961]]) के लिए विशेषतौर पर जाना जाता है।
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'''अज़रा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Azra'', जन्म- [[21 सितम्बर]], [[मुम्बई]]) [[हिन्दी सिनेमा]] की जानी मानी अभिनेत्री हैं। उनके अभिनय से सजी फ़िल्मों की संख्या भले ही कम है, लेकिन जितनी भी फ़िल्में उन्होंने की हैं, वह उनकी अभिनय प्रतिभा का परिचय देने के लिए पर्याप्त है। अभिनेत्री अज़रा को फ़िल्म '[[मदर इंडिया]]' ([[1957]]), '[[गंगा जमुना (1961 फ़िल्म)|गंगा जमुना]]' ([[1961]]) और 'जंगली' ([[1961]]) के लिए विशेषतौर पर जाना जाता है।
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====फ़िल्मी शुरुआत====
====फ़िल्मी शुरुआत====
अज़रा जी का फ़िल्मों में आना महज़ एक इत्तेफ़ाक़ था। उनके अनुसार- "मैं जोगेश्वरी के इस्माईल यूसुफ़ कॉलेज में बी.ए. फ़र्स्ट ईयर में पढ़ रही थी। एक रोज़ मैं सांताक्रुज़ के आर्य समाज मंदिर में किसी [[विवाह|शादी]] में गयी, जहां [[महबूब ख़ान]] की पत्नी सरदार अख़्तर भी आयी हुई थीं। वह मेरी मौसी इंदुरानी की सहेली थीं। मुझे देखकर वह मौसी से कहने लगीं, तुम्हारी भांजी तो बहुत सुंदर है, और फिर बात आयी-गयी हो गयी। लेकिन तीन चार दिन बाद सरदार अख़्तर ने मेरे घर पर फ़ोन किया। मैं उस वक़्त कॉलेज गयी हुई थी। उसी शाम मुझे [[परिवार]] के साथ [[अजमेर]] जाना था, जहां मेरे पिता अपनी किसी फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे। उस फ़िल्म की हिरोईन [[चित्रा]] थीं। सरदार अख़्तर ने मेरे लिए संदेश छोड़ा कि कॉलेज से लौटते ही मैं फ़ौरन [[महबूब स्टूडियो]] पहुंच जाऊं।" अज़रा जी महबूब स्टूडियो पहुंचीं तो वहां फ़िल्म ‘[[मदर इंडिया]]’ की शूटिंग चल रही थी। फ़िल्म में बिरजू ([[सुनील दत्त]]) की प्रेमिका ‘चंद्रा’ की भूमिका में जिस लड़की को लिया गया था, वह [[लखनऊ]] में थी और बीमार पड़ जाने की वजह से [[मुम्बई]] नहीं आ पायी थी। ऐसे में सरदार अख़्तर को अज़रा जी का ख़्याल आया और इस तरह वह बिना किसी योजना के ही अभिनेत्री बन गयीं।
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नीचे से बाईं ओर- बेगम पारा, [[श्यामा]], [[सितारा देवी]]]]
सरदार अख़्तर ने मेरे लिए संदेश छोड़ा कि कॉलेज से लौटते ही मैं फ़ौरन [[महबूब स्टूडियो]] पहुंच जाऊं।" अज़रा जी महबूब स्टूडियो पहुंचीं तो वहां फ़िल्म ‘[[मदर इंडिया]]’ की शूटिंग चल रही थी। फ़िल्म में बिरजू ([[सुनील दत्त]]) की प्रेमिका ‘चंद्रा’ की भूमिका में जिस लड़की को लिया गया था, वह [[लखनऊ]] में थी और बीमार पड़ जाने की वजह से [[मुम्बई]] नहीं आ पायी थी। ऐसे में सरदार अख़्तर को अज़रा का ख़्याल आया और इस तरह वह बिना किसी योजना के ही [[अभिनेत्री]] बन गयीं।
==कॅरियर==
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==संबंधित लेख==
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11:33, 14 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

अज़रा विषय सूची
अज़रा
अज़रा
अज़रा
पूरा नाम अज़रा
जन्म 21 सितम्बर
जन्म भूमि मुम्बई
अभिभावक पिता- नानूभाई वक़ील, माता- सरोजिनी।
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी सिनेमा
मुख्य फ़िल्में 'मदर इण्डिया', 'जंगली', '[[गंगा जमुना (1961 फ़िल्म)|गंगा यमुना]]', 'भारत की बेटी’, ‘संसार नैया’, ‘दीपक महल’, ‘संस्कार’, ‘ताजमहल’, ‘नया ज़माना’ और ‘सर्कस किंग’ आदि।
प्रसिद्धि अभिनेत्री
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 1958 में अज़रा जी की फ़िल्म 'टैक्सी 555' प्रदर्शित हुई। प्रदीप कुमार और शकीला की मुख्य भूमिकाओं वाली इस फ़िल्म में वह सहनायिका थीं। 1959 में बनी फ़िल्म ‘घर घर की बात’ में वे नायिका बनीं। इस फ़िल्म का निर्माण उनके मौसा और सलीम शाह के पिता रमणीकलाल शाह ने किया था।
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अज़रा (अंग्रेज़ी: Azra, जन्म- 21 सितम्बर, मुम्बई) हिन्दी सिनेमा की जानी मानी अभिनेत्री हैं। उनके अभिनय से सजी फ़िल्मों की संख्या भले ही कम है, लेकिन जितनी भी फ़िल्में उन्होंने की हैं, वह उनकी अभिनय प्रतिभा का परिचय देने के लिए पर्याप्त है। अभिनेत्री अज़रा को फ़िल्म 'मदर इंडिया' (1957), 'गंगा जमुना' (1961) और 'जंगली' (1961) के लिए विशेषतौर पर जाना जाता है।

परिचय

अभिनेत्री अज़रा का जन्म 21 सितम्बर को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ था। दिल्ली के रहने वाले 'शेख इमामुद्दीन' और उनकी पत्नी 'मुनव्वर जहाँ' के सात बच्चों में से दो बेटियां 'रोशनजहाँ उर्फ़ रानी और उनसे छोटी इशरतजहाँ 1930 और 1940 के दशक की फ़ैंटेसी फ़िल्मों की स्टार अभिनेत्रियां थीं। रोशनजहाँ का स्क्रीननेम ‘सरोजिनी’ था। साल 1934 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘दीवानी’ से फ़िल्मों में कदम रखने वाली सरोजिनी ने क़रीब 12 साल के कॅरियर में ‘भारत की बेटी’, सुंदरी’, ‘मधु बंसरी’, ‘संसार नैया’, ‘सन ऑफ़ अलादीन’, ‘दीपक महल’, ‘हातिमताई की बेटी’, ‘जादुई कंगन’, ‘संस्कार’, ‘जादुई बंधन’, ‘ताजमहल’, ‘फ़रमान’, ‘नया ज़माना’, ‘श्रीकृष्णार्जुन युद्ध’ और ‘सर्कस किंग’ जैसी फ़िल्मों में काम किया। उसी दौरान उन्होंने फैंटेसी फ़िल्मों के लिए मशहूर निर्माता-निर्देशक नानूभाई वक़ील के साथ गुप्त विवाह भी कर लिया था। अज़रा इन्हीं सरोजिनी और नानूभाई वक़ील की बेटी हैं। अज़रा जी के पिता नानूभाई वक़ील का निधन 19 दिसम्बर 1980 को हुआ और उनकी मां सरोजिनी 1993 में गुज़रीं।[1]

अभिनेत्री अज़रा

फ़िल्मी शुरुआत

अज़रा जी का फ़िल्मों में आना महज़ एक इत्तफ़ाक़ था। उनके अनुसार- "मैं जोगेश्वरी के इस्माईल यूसुफ़ कॉलेज में बी.ए. फ़र्स्ट ईयर में पढ़ रही थी। एक रोज़ मैं सांताक्रुज़ के आर्य समाज मंदिर में किसी शादी में गयी, जहां महबूब ख़ान की पत्नी सरदार अख़्तर भी आयी हुई थीं। वह मेरी मौसी इंदुरानी की सहेली थीं। मुझे देखकर वह मौसी से कहने लगीं, तुम्हारी भांजी तो बहुत सुंदर है, और फिर बात आयी-गयी हो गयी। लेकिन तीन चार दिन बाद सरदार अख़्तर ने मेरे घर पर फ़ोन किया। मैं उस वक़्त कॉलेज गयी हुई थी। उसी शाम मुझे परिवार के साथ अजमेर जाना था, जहां मेरे पिता अपनी किसी फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे। उस फ़िल्म की हिरोइन चित्रा थीं।

अभिनेत्री श्यामा के जन्मदिन पर
ऊपर से बाईं ओर- जबीन जलील, सुनीता प्रसाद, अज़रा, निशि, शशिकला, निम्मी, यासमिन
नीचे से बाईं ओर- बेगम पारा, श्यामा, सितारा देवी

सरदार अख़्तर ने मेरे लिए संदेश छोड़ा कि कॉलेज से लौटते ही मैं फ़ौरन महबूब स्टूडियो पहुंच जाऊं।" अज़रा जी महबूब स्टूडियो पहुंचीं तो वहां फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ की शूटिंग चल रही थी। फ़िल्म में बिरजू (सुनील दत्त) की प्रेमिका ‘चंद्रा’ की भूमिका में जिस लड़की को लिया गया था, वह लखनऊ में थी और बीमार पड़ जाने की वजह से मुम्बई नहीं आ पायी थी। ऐसे में सरदार अख़्तर को अज़रा का ख़्याल आया और इस तरह वह बिना किसी योजना के ही अभिनेत्री बन गयीं।

कॅरियर

साल 1958 में अज़रा जी की फ़िल्म 'टैक्सी 555' प्रदर्शित हुई। प्रदीप कुमार और शकीला की मुख्य भूमिकाओं वाली इस फ़िल्म में वह सहनायिका थीं। 1959 में बनी फ़िल्म ‘घर घर की बात’ में वे नायिका बनीं। इस फ़िल्म का निर्माण उनके मौसा और सलीम शाह के पिता रमणीकलाल शाह ने किया, लेकिन ये दोनों ही फ़िल्में कुछ ख़ास नहीं चल पायीं। 1960 में अज़रा जी की दो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिनमें से एक थी ‘फ़िल्मिस्तान’ के बैनर में बनी ‘बाबर’ और दूसरी, ‘फ़िल्मिस्तान’ से अलग हुए शशधर मुकर्जी के बैनर ‘फ़िल्मालय’ की ‘लव इन शिमला’। ‘फ़िल्मालय’ के बैनर में इससे पहले ‘दिल देके देखो’ (1959) और ‘हम हिंदुस्तानी’ (1960) बन चुकी थीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अज़रा (हिन्दी) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 13 जून, 2017।

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अज़रा विषय सूची

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