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प्रिया राजवंश ने सिर्फ चेतन आनन्द की बनाई फ़िल्मों में ही [[अभिनय]] किया था। जब प्रिया राजवंश [[नाटक|नाटकों]] में काम करती थीं, तभी एक फोटोग्राफर ने उनकी फोटोज खींची। चेतन आनंद ने अपने एक दोस्त के घर यह तस्वीर देखी तो वह प्रिया राजवंश की खूबसूरती के क़ायल हो गए। उन दिनों चेतन आनंद को अपनी नई फ़िल्म के लिए नए चेहरे की तलाश थी। [[20 अक्टूबर]], [[1962]] को [[चीन]] ने देश पर हमला कर दिया था। हिंदुस्तानी फौज को भारी नुक़सान हुआ था और फौज को पीछे हटना पड़ा। इस थीम पर चेतन आनंद हक़ीक़त नाम से फ़िल्म बनाना चाहते थे। उन्होंने प्रिया राजवंश से संपर्क किया और उन्हें फ़िल्म की नायिका के लिए चुन लिया गया। [[1964]] में बनी इस फ़िल्म के निर्माण के दौरान प्रिया राजवंश ने चेतन आनंद की हर स्तर पर मदद की। संवाद लेखन से लेकर पटकथा लेखन, निर्देशन, [[अभिनय]] और संपादन तक में उनका द़खल रहा। चेतन आनंद उन दिनों अपनी पत्नी उमा से अलग हो चुके थे। इसी दौरान प्रिया राजवंश और चेतन आनंद एक दूसरे के क़रीब आ गए और | प्रिया राजवंश ने सिर्फ चेतन आनन्द की बनाई फ़िल्मों में ही [[अभिनय]] किया था। जब प्रिया राजवंश [[नाटक|नाटकों]] में काम करती थीं, तभी एक फोटोग्राफर ने उनकी फोटोज खींची। चेतन आनंद ने अपने एक दोस्त के घर यह तस्वीर देखी तो वह प्रिया राजवंश की खूबसूरती के क़ायल हो गए। उन दिनों चेतन आनंद को अपनी नई फ़िल्म के लिए नए चेहरे की तलाश थी। [[20 अक्टूबर]], [[1962]] को [[चीन]] ने देश पर हमला कर दिया था। हिंदुस्तानी फौज को भारी नुक़सान हुआ था और फौज को पीछे हटना पड़ा। इस थीम पर चेतन आनंद हक़ीक़त नाम से फ़िल्म बनाना चाहते थे। उन्होंने प्रिया राजवंश से संपर्क किया और उन्हें फ़िल्म की नायिका के लिए चुन लिया गया। [[1964]] में बनी इस फ़िल्म के निर्माण के दौरान प्रिया राजवंश ने चेतन आनंद की हर स्तर पर मदद की। संवाद लेखन से लेकर पटकथा लेखन, निर्देशन, [[अभिनय]] और संपादन तक में उनका द़खल रहा। चेतन आनंद उन दिनों अपनी पत्नी उमा से अलग हो चुके थे। इसी दौरान प्रिया राजवंश और चेतन आनंद एक दूसरे के क़रीब आ गए और फिर ज़िंदगी भर साथ रहे। प्रिया राजवंश उम्र में चेतन आनंद से तक़रीबन 22 साल छोटी थीं, लेकिन उम्र का फासला उनके बीच कभी नहीं आया। | ||
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प्रिया राजवंश ने बहुत कम फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्म हक़ीक़त के बाद [[1970]] में उनकी फ़िल्म हीर रांझा आई। [[1973]] में हिंदुस्तान की क़सम और हंसते ज़ख्म [[1977]] में साहेब बहादुर [[1981]] में क़ुदरत और [[1985]] में हाथों की लकीरें आई। प्रिया राजवंश ने सिर्फ चेतन आनंद की फ़िल्मों में ही काम किया और चेतन ने भी हक़ीक़त के बाद प्रिया राजवंश को ही अपनी हर फ़िल्म में नायिका बनाया। उन्हें फ़िल्मों के बहुत से प्रस्ताव मिलते थे, लेकिन वह इंकार कर देती थीं। उनकी खुशी तो सिर्फ और सिर्फ चेतन आनंद के साथ थी। हालांकि दोनों ने [[विवाह]] नहीं किया था, लेकिन फ़िल्मी दुनिया में उन्हें पति-पत्नी ही माना जाता था। चेतन आनंद के साथ अपनी छोटी सी दुनिया में वह बहुत सुखी थीं। कहा जाता है कि हीर रांझा प्रिया राजवंश को केंद्र में रखकर ही बनाई गई थी। इस फ़िल्म की खासियत यह है कि इसके सारे संवाद पद्य यानी काव्य रूप में हैं, जिन्हें कैफ़ी आज़मी ने लिखा था। इसे काव्य फ़िल्म कहना गलत न होगा। इसके गीत भी कैफ़ी आज़मी ने ही लिखे थे। | प्रिया राजवंश ने बहुत कम फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्म हक़ीक़त के बाद [[1970]] में उनकी फ़िल्म हीर रांझा आई। [[1973]] में हिंदुस्तान की क़सम और हंसते ज़ख्म [[1977]] में साहेब बहादुर [[1981]] में क़ुदरत और [[1985]] में हाथों की लकीरें आई। प्रिया राजवंश ने सिर्फ चेतन आनंद की फ़िल्मों में ही काम किया और चेतन ने भी हक़ीक़त के बाद प्रिया राजवंश को ही अपनी हर फ़िल्म में नायिका बनाया। उन्हें फ़िल्मों के बहुत से प्रस्ताव मिलते थे, लेकिन वह इंकार कर देती थीं। उनकी खुशी तो सिर्फ और सिर्फ चेतन आनंद के साथ थी। हालांकि दोनों ने [[विवाह]] नहीं किया था, लेकिन फ़िल्मी दुनिया में उन्हें पति-पत्नी ही माना जाता था। चेतन आनंद के साथ अपनी छोटी सी दुनिया में वह बहुत सुखी थीं। कहा जाता है कि हीर रांझा प्रिया राजवंश को केंद्र में रखकर ही बनाई गई थी। इस फ़िल्म की खासियत यह है कि इसके सारे संवाद पद्य यानी काव्य रूप में हैं, जिन्हें कैफ़ी आज़मी ने लिखा था। इसे काव्य फ़िल्म कहना गलत न होगा। इसके गीत भी कैफ़ी आज़मी ने ही लिखे थे। | ||
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14:04, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
प्रिया राजवंश का फ़िल्मी सफ़र
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पूरा नाम | वेरा सुन्दर सिंह |
प्रसिद्ध नाम | प्रिया राजवंश |
जन्म | 1937 |
जन्म भूमि | शिमला, हिमाचल प्रदेश |
मृत्यु | 27 मार्च, 2000 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | पिता - सुन्दर सिंह |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेत्री |
मुख्य फ़िल्में | हाथों की लकीरें (1986), कुदरत (1981), साहेब बहादुर (1977), हँसते ज़ख़्म (1973), हिन्दुस्तान की कसम (1973), हीर राँझा (1970), हक़ीक़त (1964) |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 1937 में शिमला में जन्मीं प्रिया राजवंश अपने जमाने की खूबसूरत अभिनेत्री में गिनी जाती थीं। |
अद्यतन | 05:58, 5 जुलाई 2017 (IST) |
प्रिया राजवंश ने सिर्फ चेतन आनन्द की बनाई फ़िल्मों में ही अभिनय किया था। जब प्रिया राजवंश नाटकों में काम करती थीं, तभी एक फोटोग्राफर ने उनकी फोटोज खींची। चेतन आनंद ने अपने एक दोस्त के घर यह तस्वीर देखी तो वह प्रिया राजवंश की खूबसूरती के क़ायल हो गए। उन दिनों चेतन आनंद को अपनी नई फ़िल्म के लिए नए चेहरे की तलाश थी। 20 अक्टूबर, 1962 को चीन ने देश पर हमला कर दिया था। हिंदुस्तानी फौज को भारी नुक़सान हुआ था और फौज को पीछे हटना पड़ा। इस थीम पर चेतन आनंद हक़ीक़त नाम से फ़िल्म बनाना चाहते थे। उन्होंने प्रिया राजवंश से संपर्क किया और उन्हें फ़िल्म की नायिका के लिए चुन लिया गया। 1964 में बनी इस फ़िल्म के निर्माण के दौरान प्रिया राजवंश ने चेतन आनंद की हर स्तर पर मदद की। संवाद लेखन से लेकर पटकथा लेखन, निर्देशन, अभिनय और संपादन तक में उनका द़खल रहा। चेतन आनंद उन दिनों अपनी पत्नी उमा से अलग हो चुके थे। इसी दौरान प्रिया राजवंश और चेतन आनंद एक दूसरे के क़रीब आ गए और फिर ज़िंदगी भर साथ रहे। प्रिया राजवंश उम्र में चेतन आनंद से तक़रीबन 22 साल छोटी थीं, लेकिन उम्र का फासला उनके बीच कभी नहीं आया।
प्रमुख फ़िल्में
प्रिया राजवंश ने बहुत कम फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्म हक़ीक़त के बाद 1970 में उनकी फ़िल्म हीर रांझा आई। 1973 में हिंदुस्तान की क़सम और हंसते ज़ख्म 1977 में साहेब बहादुर 1981 में क़ुदरत और 1985 में हाथों की लकीरें आई। प्रिया राजवंश ने सिर्फ चेतन आनंद की फ़िल्मों में ही काम किया और चेतन ने भी हक़ीक़त के बाद प्रिया राजवंश को ही अपनी हर फ़िल्म में नायिका बनाया। उन्हें फ़िल्मों के बहुत से प्रस्ताव मिलते थे, लेकिन वह इंकार कर देती थीं। उनकी खुशी तो सिर्फ और सिर्फ चेतन आनंद के साथ थी। हालांकि दोनों ने विवाह नहीं किया था, लेकिन फ़िल्मी दुनिया में उन्हें पति-पत्नी ही माना जाता था। चेतन आनंद के साथ अपनी छोटी सी दुनिया में वह बहुत सुखी थीं। कहा जाता है कि हीर रांझा प्रिया राजवंश को केंद्र में रखकर ही बनाई गई थी। इस फ़िल्म की खासियत यह है कि इसके सारे संवाद पद्य यानी काव्य रूप में हैं, जिन्हें कैफ़ी आज़मी ने लिखा था। इसे काव्य फ़िल्म कहना गलत न होगा। इसके गीत भी कैफ़ी आज़मी ने ही लिखे थे।
- मशहूर गीत
प्रिया राजवंश पर फ़िल्माया गया गीत-मिलो न तुम तो, हम घबराएं, मिलो तो आंख चुराएं, हमें क्या हो गया है…बहुत मशहूर हुआ। इसी तरह फ़िल्म हंसते जख्म का कैफ़ी आज़मी का लिखा और मदन मोहन के संगीत से सजा गीत-बेताब दिल की तमन्ना यही है…आज भी लोग गुनगुना उठते हैं।
अंग्रेज़ी के लेखक आर के नारायण के उपन्यास गाइड पर आधारित फ़िल्म गाइड बनाने के व़क्त पहला विवाद नायिका को लेकर ही हुआ था। देव आनंद माला सिन्हा को नायिका रोज़ी की भूमिका के लिए लेना चाहते थे, लेकिन चेतन की पसंद प्रिया राजवंश थीं। विजय आनंद का मानना था कि रोज़ी की भूमिका वहीदा रहमान से बेहतर कोई और अभिनेत्री नहीं निभा सकती, लेकिन वहीदा रहमान राज खोसला के साथ काम नहीं करती थीं। दरअसल, हुआ यह था कि देव आनंद गाइड के निर्देशन के लिए पहले ही राज खोसला से बात कर चुके थे। अब उन्हें राज खोसला और वहीदा रहमान में से किसी एक को चुनना था। चेतन आनंद और विजय आनंद ने वहीदा का समर्थन किया और फिर चेतन आनंद की सलाह पर निर्देशन की ज़िम्मेदारी विजय आनंद को सौंप दी गई। वहीदा रहमान ने कमाल का अभिनय किया और फ़िल्म मील का पत्थर साबित हुई।
- प्रिया राजवंश की मुख्य फ़िल्मों की सूची-
वर्ष | फिल्में |
---|---|
1986 | हाथों की लकीरें |
1981 | कुदरत |
1977 | साहेब बहादुर |
1973 | हँसते ज़ख़्म |
1973 | हिन्दुस्तान की कसम |
1970 | हीर राँझा |
1964 | हक़ीक़त |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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