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==इतिहास==
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==नववर्ष / New Year==
नए साल में लोग अपनी पुरानी और बुरी यादों को पीछे छोड़कर एक नई शुरुआत करते हैं। पहले नया साल [[1 जनवरी]] को नहीं मनाया जाता था। पहले नया साल कभी [[25 मार्च]] को तो कभी [[25 दिसंबर]] को मनाया जाता था। सबसे पहले नया साल के तौर पर 1 जनवरी को मान्यता [[15 अक्तूबर]] 1582 को मिली थी। मार्स यानि [[मंगल ग्रह]] पर [[मार्च]] का नाम रखा गया है। [[रोम]] में मंगल ग्रह को "युद्ध का देवता" माना जाता है। जो कैलेंडर सबसे पहला बनाया गया था, उसमें मात्र 10 महीने होते थे। तब एक साल में 310 दिन होते थे तथा 8 दिन का एक [[सप्ताह]] होता था।<ref name="pp">{{cite web |url= https://zeenews.india.com/hindi/off-beat/happy-new-year-2022-know-why-people-celebrate-january-1-as-new-year/1059555|title=पहले 25 दिसंबर को नया साल मनाते थे लोग|accessmonthday=31 दिसम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=zeenews.india.com |language=हिंदी}}</ref>
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रोम के राजा नूमा पोंपिलस ने रोमन कैलेंडर में सबसे पहले बदलाव किया था। इसके बाद रोमन कैलेंडर में साल का पहला महीना [[जनवरी]] को माना गया। जबकि पहले [[मार्च]] को साल का पहला महीना माना जाता था। इसके बाद रोम में एक शासक आए जूलियस सीजर। उन्होंने रोमन कैलेंडर में फिर बदलाव करवाया। उन्होंने एक साल में 12 महीने कर दिए। सीजर ने खगोलविदों से मुलाकात के बाद कैलेंडर बनवाया था। इस मुलाकात में उन्हें पता चला था कि [[पृथ्वी]] 365 दिन और छह घंटे में सूर्य का एक चक्कर लगाती है। इसकी वजह से उन्होंने एक कैलेंडर में 365 दिन का साल करवाया।


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हालांकि साल 1582 में पोप ग्रेगरी ने जूलियन कैलेंडर में लीप ईयर को लेकर एक गलती निकाली थी। तब के मशहूर धर्म गुरू सेंट बीड ने पोप ग्रेगरी को सलाह दी थी कि एक साल में 365 दिन, 5 घंटे और 46 सेकंड होते हैं। इसके बाद रोमन कैलेंडर में बड़ा बदलाव कर नया कैलेंडर बनाया गया और [[1 जनवरी]] को नया साल माना जाने लगा।
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==भारत में नववर्ष==
[[भारत]] कैलैंडरों के मामले में कम समृद्ध नहीं है। इस समय देश में [[विक्रम संवत]], [[शक संवत]], [[हिजरी  |हिजरी संवत]], फसली संवत, बांग्ला संवत, बौद्ध संवत, जैन संवत, खालसा संवत, तमिल संवत, मलयालम संवत, तेलुगु संवत आदि अनेक प्रचलित हैं। इनमें से हर एक के अपने अलग-अलग नववर्ष होते हैं। देश में सर्वाधिक प्रचलित संवत विक्रम और शक संवत है। माना जाता है कि विक्रम संवत गुप्त सम्राट [[विक्रमादित्य]] ने [[उज्जयिनि|उज्जयनी]] में [[शक|शकों]] को पराजित करने की याद में शुरू किया था। यह संवत 58 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। विक्रम संवत [[चैत्र]] [[माह]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] से शुरू होता है।[[चित्र:Newyear-ashok-chakradhar.jpg|thumb|left|नववर्ष की शुभकामनाएँ]] इसी समय [[नवरात्र|चैत्र नवरात्र]] प्रारंभ होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन [[उत्तर भारत]] के अलावा [[गुड़ी पड़वा]] और उगादी के रूप में भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष मनाया जाता है। सिंधी लोग इसी दिन चेटी चंद्र के रूप में नववर्ष मनाते हैं। शक सवंत को शालीवाहन शक संवत के रूप में भी जाना जाता है। माना जाता है कि इसे शक सम्राट [[कनिष्क]] ने 78 ई. में शुरू किया था। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसी शक संवत में मामूली फेरबदल करते हुए इसे राष्ट्रीय संवत के रूप में अपना लिया। राष्ट्रीय संवत का नव वर्ष [[22 मार्च]] को होता है जबकि लीप ईयर में यह [[21 मार्च]] होता है।<ref name="PIB"/> चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को विक्रमीय संवत की दृष्टि से नववर्ष मनाया जाता है। [[ब्रज]] में इस दिन [[नीम]] की पती और मिश्री खाने की परम्परा है।
==इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार==
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[[इस्लाम धर्म]] के कैलेंडर को [[हिजरी]] साल के नाम से जाना जाता है। इसका नववर्ष [[मोहर्रम]] माह के पहले दिन होता है। हिजरी कैलेंडर कर्बला की लड़ाई के पहले ही निर्धारित कर लिया गया था। मोहर्रम के दसवें दिन को आशूरा के रूप में जाना जाता है। इसी दिन [[पैगम्बर मुहम्मद|पैगम्बर मोहम्मद]] के नवासे इमाम हुसैन [[बगदाद]] के निकट कर्बला में शहीद हुए थे। हिजरी कैलेंडर के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इसमें [[चंद्रमा]] की घटती - बढ़ती चाल के अनुसार दिनों का संयोजन नहीं किया गया है। लिहाजा इसके महीने हर साल क़रीब 10 दिन पीछे खिसकते रहते हैं।<ref name="PIB"/>
==अन्य देशों में नववर्ष==
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1 जनवरी को अब नये साल के जश्न के रुप में मनाया जाता है। एक-दूसरे की देखा-देखी यह जश्न मनाने वाले शायद ही जानते हों कि दुनिया भर में पूरे 70 नववर्ष मनाए जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि आज भी पूरी दुनिया कैलेण्डर प्रणाली पर एकमत नहीं हैं। इक्कीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक [[युग]] में इंसान अन्तरिक्ष में जा पहुँचा है, मगर कहीं [[सूर्य]] पर आधारित, कहीं [[चन्द्रमा]] पर आधारित तो कहीं सूर्य, चन्द्रमा और [[तारा|तारों]] की चाल पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दुनिया में विभिन्न कैलेण्डर प्रणालियाँ लागू हैं। यही वजह है कि अकेले भारत में पूरे साल तीस अलग-अलग नव वर्ष मनाए जाते हैं। दुनिया में सर्वाधिक प्रचलित कैलेण्डर ‘ग्रेगोरियन कैलेण्डर’ है। जिसे पोप ग्रेगरी तेरह ने [[24 फरवरी]], 1582 को लागू किया था। यह कैलेण्डर [[15 अक्तूबर]], 1582  में शुरू हुआ। इसमें अनेक त्रुटियाँ होने के बावजूद भी कई प्राचीन कैलेण्डरों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आज भी मान्यता मिली हुई हैं।<ref name="PIB"/> 
==विभिन्न देशों में विभिन्न नववर्ष==
जापानी नव वर्ष ‘गनतन-साईं’ या ‘ओषोगत्सू’ के नाम से भी जाना जाता है। महायान बौद्ध [[7 जनवरी]], प्राचीन स्कॉट में [[11 जनवरी]], वेल्स के इवान वैली में नव वर्ष [[12 जनवरी]], सोवियत रूस के रुढि़वादी चर्चों, आरमेनिया और रोम में नववर्ष [[14 जनवरी]] को होता है। वहीं सेल्टिक, कोरिया, वियतनाम, [[तिब्बत]], लेबनान और चीन में नव वर्ष  [[21 जनवरी]] को प्रारंभ होता है। प्राचीन आयरलैंड में नववर्ष [[1 फरवरी]] को मनाया जाता है तो प्राचीन रोम में [[1 मार्च]] को। भारत में नानक शाही कैलेण्डर का नव वर्ष [[14 मार्च]] से शुरू होता है। इसके अतिरिक्त [[ईरान]], प्राचीन रूस तथा भारत में बहाई, तेलुगू तथा जमशेदी (जोरोस्ट्रियन) का नया वर्ष [[21 मार्च]] से शुरू होता है। प्राचीन ब्रिटेन में नव वर्ष [[25 मार्च]] को प्रारंभ होता है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.abhivyakti-hindi.org/parva/alekh/2004/nav_varsh.htm देश देश में नव वर्ष (1)]
*[http://astro.nmsu.edu/~lhuber/leaphist.html Calendars]
==संबंधित लेख==
{{पर्व और त्योहार}}
{{व्रत और उत्सव}}
[[Category:संस्कृति कोश]]
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__NOTOC__

05:44, 31 दिसम्बर 2021 के समय का अवतरण

नववर्ष
नववर्ष
नववर्ष
अन्य नाम नया साल, न्यू ईयर
अनुयायी सभी
उद्देश्य इस दिन के साथ दुनिया के ज़्यादातर लोग अपने नए साल की शुरुआत करते हैं।
तिथि 1 जनवरी
प्रसिद्धि 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष दरअसल ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई है।
अन्य जानकारी एक अनुमान के अनुसार अकेले भारत में ही क़रीब 50 कैलेंडर (पंचांग) हैं और इनमें से कई का नया साल अलग दिनों पर होता है।

नववर्ष (अंग्रेज़ी: New Year) यानी वर्ष का पहला दिन 1 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन के साथ दुनिया के ज़्यादातर लोग अपने नए साल की शुरुआत करते हैं। नए का आत्मबोध हमारे अंदर नया उत्साह भरता है और नए तरीक़े से जीवन जीने का संदेश देता है। हालांकि ये उल्लास, ये उत्साह दुनिया के अलग-अलग कोने में अलग-अलग दिन मनाया जाता है क्योंकि दुनिया भर में कई कैलेंडर हैं और हर कैलेंडर का नया साल अलग-अलग होता है। एक अनुमान के अनुसार अकेले भारत में ही क़रीब 50 कैलेंडर (पंचांग) हैं और इनमें से कई का नया साल अलग दिनों पर होता है।

माया कैलंडर

इतिहास

1 जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष दरअसल ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई है। पारंपरिक रोमन कैलेंडर का नववर्ष 1 मार्च से शुरू होता है। प्रसिद्ध रोमन सम्राट जूलियस सीज़र ने 47 ईसा पूर्व में इस कैलेंडर में परिवर्तन किया और इसमें जुलाई माह जोड़ा। इसके बाद उसके भतीजे के नाम के आधार पर इसमें अगस्त माह जोड़ा गया। दुनिया भर में आज जो कैलेंडर प्रचलित है, उसे पोप ग्रेगोरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगोरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान किया था। ईसाइयों का एक अन्य पंथ 'ईस्टर्न आर्थोडॉक्स चर्च' तथा इसके अनुयायी ग्रेगोरियन कैलेंडर को मान्यता न देकर पारंपरिक रोमन कैलेंडर को ही मानते हैं। इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस कैलेंडर की मान्यता के अनुसार जॉर्जिया, रूस, यरूशलम, सर्बिया आदि में 14 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है।[1]

नए साल में लोग अपनी पुरानी और बुरी यादों को पीछे छोड़कर एक नई शुरुआत करते हैं। पहले नया साल 1 जनवरी को नहीं मनाया जाता था। पहले नया साल कभी 25 मार्च को तो कभी 25 दिसंबर को मनाया जाता था। सबसे पहले नया साल के तौर पर 1 जनवरी को मान्यता 15 अक्तूबर 1582 को मिली थी। मार्स यानि मंगल ग्रह पर मार्च का नाम रखा गया है। रोम में मंगल ग्रह को "युद्ध का देवता" माना जाता है। जो कैलेंडर सबसे पहला बनाया गया था, उसमें मात्र 10 महीने होते थे। तब एक साल में 310 दिन होते थे तथा 8 दिन का एक सप्ताह होता था।[2]

रोम के राजा नूमा पोंपिलस ने रोमन कैलेंडर में सबसे पहले बदलाव किया था। इसके बाद रोमन कैलेंडर में साल का पहला महीना जनवरी को माना गया। जबकि पहले मार्च को साल का पहला महीना माना जाता था। इसके बाद रोम में एक शासक आए जूलियस सीजर। उन्होंने रोमन कैलेंडर में फिर बदलाव करवाया। उन्होंने एक साल में 12 महीने कर दिए। सीजर ने खगोलविदों से मुलाकात के बाद कैलेंडर बनवाया था। इस मुलाकात में उन्हें पता चला था कि पृथ्वी 365 दिन और छह घंटे में सूर्य का एक चक्कर लगाती है। इसकी वजह से उन्होंने एक कैलेंडर में 365 दिन का साल करवाया।

हालांकि साल 1582 में पोप ग्रेगरी ने जूलियन कैलेंडर में लीप ईयर को लेकर एक गलती निकाली थी। तब के मशहूर धर्म गुरू सेंट बीड ने पोप ग्रेगरी को सलाह दी थी कि एक साल में 365 दिन, 5 घंटे और 46 सेकंड होते हैं। इसके बाद रोमन कैलेंडर में बड़ा बदलाव कर नया कैलेंडर बनाया गया और 1 जनवरी को नया साल माना जाने लगा।

भारत में नववर्ष

भारत कैलैंडरों के मामले में कम समृद्ध नहीं है। इस समय देश में विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी संवत, फसली संवत, बांग्ला संवत, बौद्ध संवत, जैन संवत, खालसा संवत, तमिल संवत, मलयालम संवत, तेलुगु संवत आदि अनेक प्रचलित हैं। इनमें से हर एक के अपने अलग-अलग नववर्ष होते हैं। देश में सर्वाधिक प्रचलित संवत विक्रम और शक संवत है। माना जाता है कि विक्रम संवत गुप्त सम्राट विक्रमादित्य ने उज्जयनी में शकों को पराजित करने की याद में शुरू किया था। यह संवत 58 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। विक्रम संवत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है।

नववर्ष की शुभकामनाएँ

इसी समय चैत्र नवरात्र प्रारंभ होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन उत्तर भारत के अलावा गुड़ी पड़वा और उगादी के रूप में भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष मनाया जाता है। सिंधी लोग इसी दिन चेटी चंद्र के रूप में नववर्ष मनाते हैं। शक सवंत को शालीवाहन शक संवत के रूप में भी जाना जाता है। माना जाता है कि इसे शक सम्राट कनिष्क ने 78 ई. में शुरू किया था। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसी शक संवत में मामूली फेरबदल करते हुए इसे राष्ट्रीय संवत के रूप में अपना लिया। राष्ट्रीय संवत का नव वर्ष 22 मार्च को होता है जबकि लीप ईयर में यह 21 मार्च होता है।[1] चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को विक्रमीय संवत की दृष्टि से नववर्ष मनाया जाता है। ब्रज में इस दिन नीम की पती और मिश्री खाने की परम्परा है।

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार

पंचांग

इस्लाम धर्म के कैलेंडर को हिजरी साल के नाम से जाना जाता है। इसका नववर्ष मोहर्रम माह के पहले दिन होता है। हिजरी कैलेंडर कर्बला की लड़ाई के पहले ही निर्धारित कर लिया गया था। मोहर्रम के दसवें दिन को आशूरा के रूप में जाना जाता है। इसी दिन पैगम्बर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन बगदाद के निकट कर्बला में शहीद हुए थे। हिजरी कैलेंडर के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इसमें चंद्रमा की घटती - बढ़ती चाल के अनुसार दिनों का संयोजन नहीं किया गया है। लिहाजा इसके महीने हर साल क़रीब 10 दिन पीछे खिसकते रहते हैं।[1]

अन्य देशों में नववर्ष

यदि भारत के पड़ोसी देश और देश की पुरानी सभ्यताओं में से एक चीन में भी अपना एक अलग कैलेंडर है। तकरीबन सभी पुरानी सभ्यताओं के अनुसार चीन का कैलेंडर भी चंद्रमा गणना पर आधारित है। इसका नया साल 21 जनवरी से 21 फरवरी के बीच पड़ता है। चीनी वर्ष के नाम 12 जानवरों के नाम पर रखे गए हैं। चीनी ज्योतिष में लोगों की राशियाँ भी 12 जानवरों के नाम पर होती हैं। लिहाजा यदि किसी की बंदर राशि है और नया वर्ष भी बंदर आ रहा हो तो वह साल उस व्यक्ति के लिए विशेष तौर पर भाग्यशाली माना जाता है।

1 जनवरी को अब नये साल के जश्न के रुप में मनाया जाता है। एक-दूसरे की देखा-देखी यह जश्न मनाने वाले शायद ही जानते हों कि दुनिया भर में पूरे 70 नववर्ष मनाए जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि आज भी पूरी दुनिया कैलेण्डर प्रणाली पर एकमत नहीं हैं। इक्कीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक युग में इंसान अन्तरिक्ष में जा पहुँचा है, मगर कहीं सूर्य पर आधारित, कहीं चन्द्रमा पर आधारित तो कहीं सूर्य, चन्द्रमा और तारों की चाल पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दुनिया में विभिन्न कैलेण्डर प्रणालियाँ लागू हैं। यही वजह है कि अकेले भारत में पूरे साल तीस अलग-अलग नव वर्ष मनाए जाते हैं। दुनिया में सर्वाधिक प्रचलित कैलेण्डर ‘ग्रेगोरियन कैलेण्डर’ है। जिसे पोप ग्रेगरी तेरह ने 24 फरवरी, 1582 को लागू किया था। यह कैलेण्डर 15 अक्तूबर, 1582 में शुरू हुआ। इसमें अनेक त्रुटियाँ होने के बावजूद भी कई प्राचीन कैलेण्डरों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आज भी मान्यता मिली हुई हैं।[1]

विभिन्न देशों में विभिन्न नववर्ष

जापानी नव वर्ष ‘गनतन-साईं’ या ‘ओषोगत्सू’ के नाम से भी जाना जाता है। महायान बौद्ध 7 जनवरी, प्राचीन स्कॉट में 11 जनवरी, वेल्स के इवान वैली में नव वर्ष 12 जनवरी, सोवियत रूस के रुढि़वादी चर्चों, आरमेनिया और रोम में नववर्ष 14 जनवरी को होता है। वहीं सेल्टिक, कोरिया, वियतनाम, तिब्बत, लेबनान और चीन में नव वर्ष 21 जनवरी को प्रारंभ होता है। प्राचीन आयरलैंड में नववर्ष 1 फरवरी को मनाया जाता है तो प्राचीन रोम में 1 मार्च को। भारत में नानक शाही कैलेण्डर का नव वर्ष 14 मार्च से शुरू होता है। इसके अतिरिक्त ईरान, प्राचीन रूस तथा भारत में बहाई, तेलुगू तथा जमशेदी (जोरोस्ट्रियन) का नया वर्ष 21 मार्च से शुरू होता है। प्राचीन ब्रिटेन में नव वर्ष 25 मार्च को प्रारंभ होता है।

नववर्ष की शुभकामनाएँ

प्राचीन फ्रांस में 1 अप्रैल से अपना नया साल प्रारंभ करने की परंपरा थी। यह दिन 'अप्रैल फूल' के रुप में भी जाना जाता है। थाईलैंड, बर्मा, श्रीलंका, कम्बोडिया और लाओ के लोग 7 अप्रैल को बौद्ध नववर्ष मनाते हैं। वहीं कश्मीर के लोग अप्रैल में, भारत में वैशाखी के दिन, दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों, बंगलादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, कम्बोडिया, नेपाल, बंगाल, श्रीलंका व तमिल क्षेत्रों में, नया वर्ष 14 अप्रैल को मनाया जाता है। इसी दिन श्रीलंका का राष्ट्रीय नव वर्ष मनाया जाता है। सिखों का नया साल भी 14 अप्रैल को मनाया जाता है। बौद्ध धर्म के कुछ अनुयायी बुद्ध पूर्णिमा के दिन 17 अप्रैल को नया साल मनाते हैं। असम में नववर्ष 15 अप्रैल को, पारसी अपना नववर्ष 22 अप्रैल को, तो बेबीलोनियन नव वर्ष 24 अप्रैल से शुरू होता है। प्राचीन ग्रीक में नव वर्ष 21 जून को मनाया जाता था। प्राचीन जर्मनी में नया साल 29 जून को मनाने की परंपरा थी और प्राचीन अमेरिका में 1 जुलाई को। इसी प्रकार आरमेनियन कैलेण्डर 9 जुलाई से प्रारंभ होता है जबकि म्यांमार का नया साल 21 जुलाई से शुरू होता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 द्विवेदी, अपर्णा। नव वर्ष के वि‍भि‍न्‍न रूप (हिंदी) (ए.एस.पी) पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार। अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।
  2. पहले 25 दिसंबर को नया साल मनाते थे लोग (हिंदी) zeenews.india.com। अभिगमन तिथि: 31 दिसम्बर, 2021।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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