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'''नारायण श्रीधर बेन्द्रे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Narayan Shridhar Bendre'', जन्म- [[21 अगस्त]], [[1910]]; मृत्यु- [[19 फ़रवरी]], [[1992]]) प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार थे। उनको पहली सार्वजनिक मान्यता [[1934]] में मिली, जब उन्हें बाम्बे आर्ट सोसायटी का रजत पदक प्रदान किया गया। [[1941]] में इसका सर्वोच्च सम्मान स्वर्ण पदक भी उन्होंने प्राप्त किया। [[1969]] में [[भारत सरकार]] ने उन्हें '[[पद्मश्री]]' से सम्मानित किया था। | {{सूचना बक्सा कलाकार | ||
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नारायण श्रीधर बेन्द्रे
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पूरा नाम | नारायण श्रीधर बेन्द्रे |
जन्म | 21 अगस्त, 1910 |
जन्म भूमि | इंदौर, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 19 फ़रवरी, 1992 |
कर्म भूमि | भारत |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्मश्री' (1969), 'अबन गगन पुरस्कार' (1984), 'कालिदास सम्मान'। |
प्रसिद्धि | चित्रकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 1948 में नारायण श्रीधर बेंद्रे ने यूएसए की यात्रा की और न्यूयॉर्क की विंडर मेयर गैलरी में अपने चित्रों की प्रदर्शनी की। |
नारायण श्रीधर बेन्द्रे (अंग्रेज़ी: Narayan Shridhar Bendre, जन्म- 21 अगस्त, 1910; मृत्यु- 19 फ़रवरी, 1992) प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार थे। उनको पहली सार्वजनिक मान्यता 1934 में मिली, जब उन्हें बाम्बे आर्ट सोसायटी का रजत पदक प्रदान किया गया। 1941 में इसका सर्वोच्च सम्मान स्वर्ण पदक भी उन्होंने प्राप्त किया। 1969 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया था।
परिचय
नारायण श्रीधर बेंद्रे का जन्म 21 अगस्त, 1910 को मध्य प्रदेश के इंदौर नगर में हुआ। कला की प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने राजकीय कला विद्यालय, इंदौर से प्राप्त की और उच्च शिक्षा 1933 में गवर्नमेंट डिप्लोमा, बंबई (वर्तमान मुम्बई) से। पर्यटन की अभिरूचि के कारण उन्होंने अनेक यात्राएं कीं और इन यात्रा दृश्यों को अपनी कलाकृतियों भिन्न-भिन्न शैलियों में ढाल कर प्रस्तुत किया। उनका समस्त कला जीवन ऐसे अनुभवों से परिपूर्ण है।
प्रारंभिक चित्र
बेंद्रे के प्रारंभिक चित्रों में इंदौर की खासी शैली का प्रचुर प्रभाव है। बाद के दिनों में उन्होंने दृश्यचित्रण और तैल व गोचा शैली को अपनी अभिव्यक्ति के करीब पाया। वर्गाकृतियों, छायावाद और अमूर्त क्षेत्र में भी उन्होंने अनेक प्रयोग किये। इसका नतीजा यह हुआ कि उनकी कलाकृति 'कांटे' को 1955 में राष्ट्रीय पुरस्कार के लिये चुना गया। यह कलाकृति यूरोपीय आधुनिक शैली और पारंपरिक भारतीय शैली के संयोग की उत्कृष्ट मिसाल थी। 1945 में वे नंदलाल बोस, रामकिंकर बैज, बिनोद बिहारी मुखर्जी जैसे कलाकारों के साथ शांति निकेतन में रहे।
विदेश यात्रा
1948 में नारायण श्रीधर बेंद्रे ने यूएसए की यात्रा की और न्यूयॉर्क की विंडर मेयर गैलरी में अपने चित्रों की प्रदर्शनी की। वापसी में वे यूरोप होते हुए लौटे, जहां उन्हें आधुनिक शैली के अनेक चित्रकारों से मिलने और उनकी कलाकृतियों व शैलियों को समझने का अवसर मिला। 1958 में उन्होंने पश्चिम एशिया और लंदन तथा 1962 में जापान की यात्रा की। 1950 से 1966 तक नारायण श्रीधर बेंद्रे ने बड़ौदा के कला संकाय में अध्यापन किया, डीन के पद पर पहुँचने के पश्चात सेवानिवृत्ति ली और अपने अंतिम समय तक चित्रकारी करते रहे।
पुरस्कार व सम्मान
नारायण श्रीधर बेंदे को पहली सार्वजनिक मान्यता 1934 में मिली, जब उन्हें बाम्बे आर्ट सोसायटी का रजत पदक प्रदान किया गया। 1941 में इसका सर्वोच्च सम्मान स्वर्ण पदक भी उन्होंने प्राप्त किया। 1969 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया। 1971 में नारायण श्रीधर बेंद्रे नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय त्रिवार्षिकी के ज्यूरी चुने गए और 1974 में ललितकला अकादमी के सदस्य। 1984 में उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय के 'अबन गगन' पुरस्कार और मध्य प्रदेश सरकार के 'कालिदास सम्मान' से सम्मानित किया गया।
मृत्यु
नारायण श्रीधर बेंद्रे का 18 फ़रवरी, 1992 को निधन हुआ।
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