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'''शुल्काध्यक्ष''' भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य की शासन व्यवस्था का एक उच्च पद था।<br /> | '''शुल्काध्यक्ष''' [[भारतीय इतिहास]] में [[मौर्य साम्राज्य]] की शासन व्यवस्था का एक उच्च पद था।<br /> | ||
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*कौटिल्य अर्थशास्त्र में अध्ययन से मौर्य साम्राज्य के केन्द्रीय संगठन के सम्बन्ध में भली-भाँति परिचय मिलता है। इस काल में शासन के विविध विभाग 'तीर्थ' कहलाते थे। इनकी संख्या अठारह होती थी। प्रत्येक तीर्थ एक [[महामात्य]] के अधीन रहता था। | *[[अर्थशास्त्र -कौटिल्य|कौटिल्य अर्थशास्त्र]] में अध्ययन से मौर्य साम्राज्य के केन्द्रीय संगठन के सम्बन्ध में भली-भाँति परिचय मिलता है। इस काल में शासन के विविध विभाग '[[तीर्थ (मौर्यकालीन पद)|तीर्थ]]' कहलाते थे। इनकी संख्या अठारह होती थी। प्रत्येक तीर्थ एक [[महामात्य]] के अधीन रहता था। | ||
*विविध प्रकार के व्यापार से सम्बन्ध रखने वाले तथा अनेक प्रकार के शुल्कों (करों) को एकत्र करना '''शुल्काध्यक्ष''' का कार्य था। | *विविध प्रकार के व्यापार से सम्बन्ध रखने वाले तथा अनेक प्रकार के शुल्कों (करों) को एकत्र करना '''शुल्काध्यक्ष''' का कार्य था। | ||
06:25, 10 मार्च 2021 के समय का अवतरण
शुल्काध्यक्ष भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य की शासन व्यवस्था का एक उच्च पद था।
- कौटिल्य अर्थशास्त्र में अध्ययन से मौर्य साम्राज्य के केन्द्रीय संगठन के सम्बन्ध में भली-भाँति परिचय मिलता है। इस काल में शासन के विविध विभाग 'तीर्थ' कहलाते थे। इनकी संख्या अठारह होती थी। प्रत्येक तीर्थ एक महामात्य के अधीन रहता था।
- विविध प्रकार के व्यापार से सम्बन्ध रखने वाले तथा अनेक प्रकार के शुल्कों (करों) को एकत्र करना शुल्काध्यक्ष का कार्य था।
इन्हें भी देखें: मौर्यकालीन भारत, मौर्य काल का शासन प्रबंध, मौर्ययुगीन पुरातात्विक संस्कृति एवं मौर्यकालीन कला
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