"दिलीप": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "{{incomplete}}" to "")
No edit summary
 
(6 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<br />
{{main|खट्वांग}}
 
'''दिलीप''' [[अंशुमान]] के पुत्र और [[अयोध्या]] के राजा थे। इनका दूसरा नाम खट्वांग है।
*ये अंशुमान के पुत्र और [[अयोध्या]] के राजा थे।  
*दिलीप बड़े पराक्रमी थे, यहाँ तक कि देवराज [[इन्द्र]] की भी सहायता करने जाते थे। इन्होंने [[देवासुर संग्राम]] में भाग लिया था। वहाँ से विजयोल्लास से भरे राजा लौट रहे थे। रास्ते में [[कामधेनु]] खड़ी मिली लेकिन उसे दिलीप ने प्रणाम नहीं किया तब कामधेनु ने श्राप दे दिया कि तुम पुत्रहीन रहोगे।  
*दिलीप बड़े पराक्रमी थे यहाँ तक के देवराज [[इन्द्र]] की भी सहायता करने जाते थे।  
*इन्होंने देवासुर संग्राम में भाग लिया था। वहाँ से विजयोल्लास से भरे राजा लौट रहे थे। रास्ते में [[कामधेनु]] खड़ी मिली लेकिन उसे दिलीप ने प्रणाम नहीं किया तब कामधेनु ने श्राप दे दिया कि तुम पुत्रहीन रहोगे।  
*यदि मेरी सन्तान तुम्हारे ऊपर कृपा कर देगी तो भले ही सन्तान हो सकती है। श्री [[वसिष्ठ]] जी की कृपा से उन्होंने नन्दिनी गौ की सेवा करके पुत्र श्री रघु जी को प्राप्त किया।
*यदि मेरी सन्तान तुम्हारे ऊपर कृपा कर देगी तो भले ही सन्तान हो सकती है। श्री [[वसिष्ठ]] जी की कृपा से उन्होंने नन्दिनी गौ की सेवा करके पुत्र श्री रघु जी को प्राप्त किया।


 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
{{पौराणिक चरित्र}}
[[Category:पौराणिक चरित्र]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:कथा साहित्य कोश]]
[[Category:कथा साहित्य कोश]]
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

10:38, 31 मई 2012 के समय का अवतरण

दिलीप अंशुमान के पुत्र और अयोध्या के राजा थे। इनका दूसरा नाम खट्वांग है।

  • दिलीप बड़े पराक्रमी थे, यहाँ तक कि देवराज इन्द्र की भी सहायता करने जाते थे। इन्होंने देवासुर संग्राम में भाग लिया था। वहाँ से विजयोल्लास से भरे राजा लौट रहे थे। रास्ते में कामधेनु खड़ी मिली लेकिन उसे दिलीप ने प्रणाम नहीं किया तब कामधेनु ने श्राप दे दिया कि तुम पुत्रहीन रहोगे।
  • यदि मेरी सन्तान तुम्हारे ऊपर कृपा कर देगी तो भले ही सन्तान हो सकती है। श्री वसिष्ठ जी की कृपा से उन्होंने नन्दिनी गौ की सेवा करके पुत्र श्री रघु जी को प्राप्त किया।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख