"अंग्रेज़ी साहित्य": अवतरणों में अंतर
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10:59, 14 फ़रवरी 2011 का अवतरण
अंग्रेज़ी भाषा हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की भाषा है और इस प्रकार से हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी आदि भाषाओं के साथ इसका दूर का संबंध है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तर्राष्ट्रीय भाषा माना जाता है। पुरानी अंग्रेज़ी का जो साहित्य उपलब्ध है, उसके आधार पर पता लगता है कि प्राचीन युग के लेखकों और कवियों की विशेष रुचि यात्रावर्णन तथा रोचक कहानी कहने में थी। उस युग की प्रमुख रचनाएँ हैं 'विडसिथ', 'दी वाण्डरर' तथा 'बिओल्फ'। मध्य अंग्रेज़ी की दो भाषाएँ थी। पश्चिमी भाषा में पूर्ववर्ती एंग्लो-सैक्सन साहित्य की परम्परा अक्षुण्ण बनी रही। इस शाखा की प्रतिनिधि रचनाएँ हैं विलियम लैगलैण्ड की 'दी विज़न आफ पीपर्स प्लाउमैन' और किसी अज्ञात कवि के द्वारा विरचित 'गेवेत एण्ड दी ग्रीन नाइट' तथा 'दी पर्ल'। दूसरी अर्थात् दक्षिण-पूर्वी शाखा के प्रतिनिधि लेखक थे-
- जॉन गोवर (1325-1408 ई0) तथा
- चॉसर (1340-1400 ई.)।
चॉसर को आधुनिक अंग्रेज़ी का प्रथम कवि माना जाता है और उसकी रचनाओं का अंग्रेज़ी साहित्य में विशेष महत्व है। इसके उपरान्त प्राय: डेढ़ सौ वर्षों तक उसका अनुसरण होता रहा और कोई महान कवि नहीं पैदा हुआ। इसी काल में पहले-पहल कैक्स्टन ने इंग्लैण्ड में छापाख़ाना स्थापित किया। मुद्रण की सुविधा से गद्य साहित्य की विशेष उन्नति हुई। लगभग 16वीं शती के मध्य से इंग्लैण्ड में यूरोपीय नवजागरण (रिनेसाँ) का प्रभाव प्रकट होने लगा। प्राचीन साहित्य के अध्ययन के साथ ही साथ फ़्रेच तथा इटैलियन साहित्य का भी अध्ययन होने लगा और इन तीनों के सम्मिलित प्रभाव से अंग्रेज़ी साहित्य का नवोत्थान हुआ।
- कविता के क्षेत्र में वायट, सरे, 'फेयरी क्वीन' के प्रणेता एडमंड स्पेंसर (1552-99 ई0), सर फिलिप सिडनी प्रभुति ने विशेष यश प्राप्त किया।
- नाटक का महत्त्वपूर्ण अभ्युदय हुआ तथा ग्रीन (1562-92 ई0), लिली (1554-1606 ई0), टामस किड (1557-95 ई0), मार्लो (1564-93 ई0) आदि नाटककारों ने अपनी सुन्दर कृतियाँ प्रस्तुत कीं। अंग्रेज़ी नाटक साहित्य का परम उत्थान शेक्सपीयर (1564-1616 ई.) की रचनाओं में हुआ। शेक्सपीयर के नाटक तथा काव्य विश्व साहित्य की गौरवपूर्ण विभूति हैं।
- सत्रहवीं शती में बहुत बड़ी संख्या में अंग्रेज़ी नाटक लिखे गये। बेन जॉन्सन (1573-1673 ई0) ने शेक्सपीयर क रूमानी नाटकों के विपरीत क्लासिकी आदर्श पर सुखान्त और दु:खान्त नाटकों की रचना की। बेमेंट और फ्लेचर ने अनेक सुखान्त और दु:खान्त-सुखान्त नाटकों का सफल निर्माण किया।
- चेपमैन (1559-1634 ई0), बेब्स्टर (1580-1625 ई0), शर्ले (1596-1666 ई0), टूर्नो (1575-1626 ई0), और फिलिप मेसिंज़र (1583-1648 ई0) ने अपने कतिपय सुखान्त नाटकों की सफलता द्वारा विशेष ख्याति अर्जित की। 1642 ई0 से 1660 ई0 तक लंदन के नाट्यगृह प्यूरिटनों के द्वारा बन्द कर दिये गये।
- 1660 ई0 के उपरान्त नाटकों की रचना और उनका प्रदर्शन फिर से आरम्भ हुआ। दु:खान्त नाटकों का एक नया रूप सामने आया। इसके प्रमुख लेखक थे ड्राइडेन (1631-1700 ई0), आटवें (1652-85 ई0) और ली (1653-92 ई0)। सुखान्त नाटकों की 1660 ई0 के बाद विशेष प्रगति हुई। परिष्कृत भाषा में उच्च वर्ग के जीवन का इसमें चित्रण किया गया। इस वर्ग के प्रमुख लेखक थे, इथरिज (1634-91 ई0), बाइकरले (1640-1716 ई0) और कांग्रीव (1670-1729 ई0)।
- शताब्दी के प्रथम अर्द्धांश में स्पेन्सर, शेक्सपीयर और बेन जॉन्सन से प्रभावित होकर कविता लिखी गयी। आध्यात्मिक काव्य के प्रधान रचयिता थे जॉन डॉन (1572-1631 ई0), जिनकी रचनाओं में धार्मिक विचारों और श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति दुरूह कल्पना के आधार पर हुई है। बेन जॉन्सन और उनके अनुयायियों की रचनाएँ अपेक्षाकृत सरल हैं। इस शताब्दी के प्रधान कवि जॉन मिल्टन (1608-74 ई0) की गणना संसार के महाकवियों में की जाती है। स्फुट काव्य के अतिरिक्त उन्होंने अपने सुविख्यात महाकाव्य 'दी पैराडाइज़ लॉस्ट' की रचना करके अपना नाम अमर बना दिया है।
- शताब्दी के उत्तरार्द्ध के प्रधान कवि थे जॉन ब्राइडेन, जिन्होंने वर्णनात्मक और व्यंग्यात्मक काव्य रचना में विशेष सफलता प्राप्त की। ड्राइबेन क पूर्व अंग्रेज़ी गद्य प्राचीन लैटिन गद्य के अनुकरण में लिखा जाता था। इस प्राचीन विशद शैली के प्रमुख लेखक थे टॉमस ब्राउन (1605-82 ई0), जेरेमी टेलर (1613-67 ई0) और मिल्टन' ड्राइबेन की रचनाओं में नवीन अंग्रेज़ी गद्य की सृष्टि हुई। नवीन गद्य का निर्माण सुसंस्कृत जनों की बोलचाल की भाषा को आधार मानकर हुआ था।
- 18वीं शती का अंग्रेज़ी साहित्य गहराई तक उस नव-लासिकी सिद्धान्त से प्रभावित था, जिसका उदभव और विकास मुख्य रूप से फ़्राँस में हुआ था। नियमों के आग्रह और कठोर नियत्रंण को मानकर काव्य रचना होती थी। पोप (1688-1744 ई0) की रचनाओं से इस बात का स्पष्ट पता लगता है। अनेक अन्य कवियों के बारे में भी यह बात सत्य है, किन्तु कुछ ऐसे कवि भी थे, जिनकी रचनाएँ प्रकृति प्रेम और तीव्र भावनाओं से प्रेरित थी।
- 18वीं शती में गद्य ही प्रमुखता थी। पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित निबन्धों की परम्परा सुदृढ़ हो गयी। प्रमुख निबन्धकार थे एडिसन (1672-1719 ई0), स्टील (1672-1729 ई0), गोल्ड स्मिथ (1730-74 ई0) और डॉ. जॉन्सन (170984 ई0)।
- इसी शताब्दी में पाँच यशस्वी लेखकों ने अंग्रेज़ी उपन्यास लेखन की नींव डाली। वे थे फ़ील्डिंग (1707-54 ई0), रिचर्डसन (1689-1761 ई0), स्मॉलेट (1721-70 ई0), स्टर्न (1713-68 ई0), और गोल्डस्मिथ। इस काल में नाटकों की कोई विशेष उन्नति नहीं हुई। अधिकांश नाटक भावनाओं के अतिशय प्रदर्शन से विकृत हो गये थे। शेरिडेन (1751-1816 ई0) ने कांग्रीव की पूर्ववर्ती शैली में नाटक लिखने का प्रयास किया।
- गोल्डस्मिथ ने भी प्रशंसनीय नाटक लिखे। शताब्दी के पिछले तीस वर्षों में परिवर्तन के चिह्न दृष्टिगोचर होने लगे थे। टॉमस ग्रे (1716-71 ई0), कॉलिन्स (1721-59 ई0), बर्न्स (1751-96 ई0), ब्लेक (1757-1827 ई0), कूपर आदि की काव्य रचनाओं के प्रति अनास्था साफ़-साफ़ दिखायी देती है।
- अनेक प्रवृत्तियों और प्रभावों ने मिलकर उन्नीसवीं शती के प्रारम्भ से ही अंग्रेज़ी साहित्य को एक नवीन रूमानी स्वरूप दे दिया। अब नियमों की अवहेलना तथा स्वाभाविक प्रेरणा के वशीभूत होकर काव्यरचना होने लगी। कल्पना और भावना, उन्मुक्त तथा शैली निर्बन्ध हो गयी। इस नवीन प्रवृत्ति का सर्वोत्तम प्रतिफल वर्डसवर्थ (1770-1850 ई0), कोलरीज (1772-1834 ई0), स्कॉट (1771-1832 ई0), शेली (1792-1822 ई0), कीट्स (1795-1821 ई0), बायरन (1788-1824 ई0) आदि के काव्य में हुआ।
- इस श्रेणी का अधिकांश काव्य मुक्तकों में लिखा गया है तथा तीव्र अनुभूति से ओतप्रोत है। स्कॉट के उपन्यासों तथा लैब प्रभृति निबन्धकारों के लेखों में भी रूमानी प्रभाव लक्षित हुआ है। सब मिलाकर उन्नसवीं शती के 40 वर्षों का रूमानी साहित्य अत्यन्त रोचक और महत्त्वपूर्ण है।
- लगभग 1840 ई0 के बाद विक्टोरियन युग का आरम्भ हुआ। इस युग की अवधि लम्बी थी और इसमें रूमानी और क्लासिकी प्रभान ने मिलकर एक सन्तुलित अवस्था उत्पन्न की।
- विज्ञान तथा औद्योगिक उन्नति एवं पदार्थवादी दर्शन के विकास द्वारा इस नवीन युग की विशेषाताएँ निर्धारित हुईं। किन्तु साथ ही साथ पूर्ववर्ती कल्पनाजन्या भावनाजन्य प्रवृत्तियाँ भी निर्मूल नहीं हुईं। यदि ब्राउनिंग (1812-89 ई0) के काव्य में रूमानी प्रवृत्तियाँ अधिक स्पष्ट हैं तो टेनिसन (1809-92 ई0) के काव्य में क्लासिकी विशेषताओं की प्रमुखता है। आगे चलकर वही मिश्रण मैथ्यू आर्नाल्ड (1822-88 ई0), मेरेडिथ (1828-1909 ई0), हार्डी (1840-1928 ई0) प्रभृति की रचनाओं में दृष्टिगोचर होता है।
- गद्य साहित्य का उत्थान द्रुत गति से हो रहा था। उपन्यासों में यथार्थ चित्रण डिकेन्स (1812-70 ई0) आदि ने मनोविज्ञान का आधार लिया था; मेरेडिथ और हार्डी ने अपना नया जीवन दर्शन अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया। इस शती में निबन्ध और आलोचना की भी सन्तोषप्रद उन्नति हुई।
- बीसवीं शती का अंग्रेज़ी साहित्य वैविध्य तथा नवीनता से समन्वित है। स्वीकृत मूल्यों की फिर से जाँच हो रही है और नये-नये प्रयोग किये जा रहे हैं। साहित्य इतने प्रचुर परिमाण में प्रकाशित हो रहा है कि सामान्य निष्कर्षों में उसे समेटना कठिन हो गया है। नाटकों में पहले तो यथार्थवाद की ही प्रमुखता थी। बर्नर्ड शॉ (1853-1950 ई0), गाल्सवर्दी (1867-1933 ई0) आदि ने यथार्थ निरूपण की शैली में कतिपय समस्याओं का हल अपने नाटकों में प्रस्तुत किया है।
- इधर पिछले तीस वर्षों में काव्य नाट्य ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। टी. एस. इलियट, आडेन, स्टीफ़ेन स्पेंडर, क्रिस्टोफ़र फ्राई आदि ने प्रभावोत्पादक काव्य नाटक लिखे हैं। उपन्यास पहले तो सामाजिक विषयों पर लिखे गये, फिर बाद में मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर उनकी रचना हुई। पहली श्रेणी के प्रमुख लेखक हैं–एच0 जी0 वेल्स (1866-1946 ई0), गाल्सवर्दी, आर्नाल्ड बेनेट (1867-1913 ई0), और दूसरी श्रेणी के वर्ज़ीनिया वोल्फ (1822-1941 ई0), जेम्स ज्वाइस (1822-1941 ई0), आल्ड्स हक्सले (1894 ई0) आदि।
- इधर पिछले कुछ वर्षों से एलिज़ावेथ बोवेन, काम्प्टन बर्नेट, ग्राहम ग्रीन आदि ने ऐसे उपन्यास लिखे हैं, जिनमें कथा की रोचकता की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। बीसवीं शती की अंग्रेज़ी कविता 1920 ई0 के पूर्व परम्परागत थी। यह बात टॉमस हार्डी, रावर्ट ब्रिजेज़ (1844-1930 ई0) आदि की रचनाओं से विदित है। जार्जियन कवियों की रचनाओं में नवीनता अवश्य थी, किन्तु उन्होंने काव्य के क्षेत्र में क्रान्ति नहीं उपस्थित की।
- नवीन कविता का आरम्भ टी. एस. इलियट ने किया और उनके बाद आर्डेन, स्पेंडर, लीविस, मैंकनीस, डाइलैन टॉमस आदि ने उसे निरन्तर अधिकाधिक और चमत्कारपूर्ण बनाया। टी. एस. इलियट और आई. ए. रिचर्ड ने वर्तमान शती में अंग्रेज़ी आलोचना शास्त्र को अभूतपूर्व रीति से समृद्ध बनाया है। कोलरिज, आर्नाल्ड, वाल्टर पेटर (1839-94 ई0) के साथ ही साथ इन दोनों की भी गणना अंग्रेज़ी के प्रमुख साहित्यशास्त्रीयों में की जाएगी।
- लगभग 19वीं शताब्दी के मध्य से अंग्रेज़ी (जो कि उस समय शासन की भाषा थी) का प्रचार द्रुतगति से भारतवर्ष में बढ़ने लगा और फलत: हिन्दी साहित्य अंग्रेज़ी साहित्य से प्रभावित हुआ। तब से यह प्रभाव (यहाँ प्रभाव शब्द अपने सीमित, शास्त्रीय अर्थ में प्रयुक्त हो रहा है) निरन्तर बढ़ता ही गया है।
- हिन्दी गद्य बहुत हद तक अंग्रेज़ी गद्य के आदर्श पर विकसित हुआ। कतिपय लेखकों ने प्राचीन संस्कृत गद्य का आदर्श भी सामने रखा, किन्तु उसकी अपेक्षा आधुनिक अंग्रेज़ी गद्य को ही अपनया गया। हिन्दी गद्य साहित्य विविध अंगों पर अंग्रेज़ी साहित्य की छाप है।
- हिन्दी निबन्धों ने अंग्रेज़ी निबन्धों का बराबर अनुकरण किया है। हिन्दी कथासाहित्य ने प्राचीन कथा आख्यायिका का मार्ग छोड़कर अंग्रेज़ी उपन्यास की परम्परा अपनायी है। शैली, निर्माणपद्धति तथा उद्देश्यऑ–सभी दृष्टियों से आज का हिन्दी उपन्यास यूरोपीय उपन्यासों का ऋणी है।
- यही बात लघु कहानियों के सम्बन्ध में भी ठीक है। हिन्दी नाटक में 19वीं शताब्दी में शेक्सपीयर के नाटकों का प्रभाव पड़ा। उनका अनुवाद हुआ और उन्हीं के ढंग पर नाटक लिखे गये। तदनन्तर बराबर अंग्रेज़ी नाटकों के प्रभाव में हिन्दी नाटक लिखे गये हैं। उदाहरणार्थ, हिन्दी के समस्यामूलक नाटक इब्सन, शॉ और गाल्सवर्दी की रचनाओं से स्पष्टतया प्रभावित हैं। जयशंकर प्रसाद के नाटकों में भारतीय तथा पाश्चात्य प्रणाली का एकीकरण हुआ है।
- हिन्दी काव्य-नाट्य भी पाश्चात्य काव्य-नाट्य से प्रभावित है। हिन्दी कविता ने 19वीं शताब्दी के उपरान्त निरन्तर अंग्रेज़ी कविता से प्रभाव ग्रहण किया है। सबसे अधिक प्रभाव 19वीं शताब्दी के अंग्रेज़ रूमानी कवियों का पड़ा है। छायावादी कविता में यह प्रभाव पग-पग पर दिखलाई पड़ता है। पिछले पच्चीस वर्षों में हिन्दी कविता पर टी. एस. इलियट और उनके परवर्ती अंग्रेज़ी कवियों की कृतियों का विशेष प्रभाव पड़ा है।
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