"जंगल गाथा -अशोक चक्रधर": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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मगरमच्छ बोला- | मगरमच्छ बोला- | ||
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने | नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने | ||
ख़ास तुम्हारे लिये | |||
सिंघाड़े का अचार भेजा | सिंघाड़े का अचार भेजा है। | ||
बंदर ने सोचा | बंदर ने सोचा | ||
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इधर ये दोनों थर-थर कापें। | इधर ये दोनों थर-थर कापें। | ||
अब तो शेर आ गया एकदम सामने, | अब तो शेर आ गया एकदम सामने, | ||
बकरी लगी जैसे-जैसे | बकरी लगी जैसे - जैसे | ||
बच्चे को थामने। | बच्चे को थामने। | ||
छिटककर बोला बकरी का बच्चा- | छिटककर बोला बकरी का बच्चा- | ||
पंक्ति 96: | पंक्ति 96: | ||
हो उत्सव! | हो उत्सव! | ||
साबुत रहें तेरे सब अवयव। | साबुत रहें तेरे सब अवयव। | ||
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर, | आशीष देता ये पशु - पुंगव - शेर, | ||
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा | कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा | ||
उछलो, कूदो, नाचो | उछलो, कूदो, नाचो | ||
और जियो हँसते-हँसते | और जियो हँसते - हँसते | ||
अच्छा बकरी मैया नमस्ते! | अच्छा बकरी मैया नमस्ते! | ||
12:23, 25 दिसम्बर 2011 का अवतरण
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पानी से निकलकर |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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