"जंगल गाथा -अशोक चक्रधर": अवतरणों में अंतर

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मगरमच्छ बोला-
मगरमच्छ बोला-
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने
खास तुम्हारे लिये
ख़ास तुम्हारे लिये
सिंघाड़े का अचार भेजा है.
सिंघाड़े का अचार भेजा है।


बंदर ने सोचा
बंदर ने सोचा
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इधर ये दोनों थर-थर कापें।
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे-जैसे
बकरी लगी जैसे - जैसे
बच्चे को थामने।
बच्चे को थामने।
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
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हो उत्सव!
हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
आशीष देता ये पशु - पुंगव - शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
उछलो, कूदो, नाचो
उछलो, कूदो, नाचो
और जियो हँसते-हँसते
और जियो हँसते - हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!



12:23, 25 दिसम्बर 2011 का अवतरण

जंगल गाथा -अशोक चक्रधर
अशोक चक्रधर
अशोक चक्रधर
कवि अशोक चक्रधर
जन्म 8 फ़रवरी, 1951
जन्म स्थान खुर्जा, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ बूढ़े बच्चे, भोले भाले, तमाशा, बोल-गप्पे, मंच मचान, कुछ कर न चम्पू , अपाहिज कौन , मुक्तिबोध की काव्यप्रक्रिया
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अशोक चक्रधर की रचनाएँ



पानी से निकलकर
मगरमच्छ किनारे पर आया,
इशारे से
बंदर को बुलाया.
बंदर गुर्राया-
खों खों, क्यों,
तुम्हारी नजर में तो
मेरा कलेजा है?

मगरमच्छ बोला-
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने
ख़ास तुम्हारे लिये
सिंघाड़े का अचार भेजा है।

बंदर ने सोचा
ये क्या घोटाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आने वाला है.
लेकिन प्रकट में बोला-
वाह!
अचार, वो भी सिंघाड़े का,
यानि तालाब के कबाड़े का!
बड़ी ही दयावान
तुम्हारी मादा है,
लगता है शेर के खिलाफ़
चुनाव लड़ने का इरादा है.

कैसे जाना, कैसे जाना?
ऐसे जाना, ऐसे जाना
कि आजकल
भ्रष्टाचार की नदी में
नहाने के बाद
जिसकी भी छवि स्वच्छ है,
वही तो मगरमच्छ है.

एक नन्हा मेमना
और उसकी माँ बकरी,
जा रहे थे जंगल में
राह थी संकरी।
अचानक सामने से आ गया एक शेर,
लेकिन अब तो
हो चुकी थी बहुत देर।
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
उधर शेर के कदम धरती नापें,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे - जैसे
बच्चे को थामने।
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
शेर अंकल!
क्या तुम हमें खा जाओगे
एकदम कच्चा?
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा
मेमने के सिर पर फिराया।
बोला-
हे बकरी - कुल गौरव,
आयुष्मान भव!
दीर्घायु भव!
चिरायु भव!
कर कलरव!
हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु - पुंगव - शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
उछलो, कूदो, नाचो
और जियो हँसते - हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!

इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
बकरी हैरान-
बेटा ताज्जुब है,
भला ये शेर किसी पर
रहम खाने वाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आने वाला है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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