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रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥


बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंक्ति 32: पंक्ति 59:
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥


माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
पंक्ति 39: पंक्ति 65:
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥


जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
पंक्ति 49: पंक्ति 74:
जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग।
जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥


गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया।
गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया।
जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥
जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥


एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥


आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
पंक्ति 64: पंक्ति 86:
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥


तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥


चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥


खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय।
खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय।
पंक्ति 79: पंक्ति 98:
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥


देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥


टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार।
टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥


छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥


वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
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14:53, 26 जुलाई 2014 का अवतरण

रहीम के दोहे
रहीम
रहीम
कवि रहीम
जन्म 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु 1627 ई.
मुख्य रचनाएँ रहीम रत्नावली, रहीम विलास, रहिमन विनोद, रहीम 'कवितावली, रहिमन चंद्रिका, रहिमन शतक
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रहीम की रचनाएँ

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥

रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥

रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥

रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥

बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥

माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥

मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥

जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥

जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥

गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया।
जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥

आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥

अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥

खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥

खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥

देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥

टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥

छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥


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