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*आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार सफ़ेद दाग़ एक प्रकार का त्वचा रोग है जिसे ल्यूकोडर्मा नाम दिया गया है। त्वचा के बाहरी स्तर में मेलेनिन नामक एक रंजक [[द्रव्य]] रहता है, जिस पर [[त्वचा]] का [[रंग]] निर्भर करता है। यह रंजक द्रव्य (मेलेनिन) गर्मी से त्वचा की रक्षा करता है। <ref name="vdh"/>
'''ल्यूकोडर्मा''' अथवा '''सफ़ेद दाग़''' आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार एक प्रकार का [[त्वचा]] रोग है। त्वचा के बाहरी स्तर में मेलेनिन नामक एक रंजक [[द्रव्य]] रहता है, जिस पर [[त्वचा]] का [[रंग]] निर्भर करता है। यह रंजक द्रव्य (मेलेनिन) गर्मी से त्वचा की रक्षा करता है।<ref name="vdh"/> ‘ल्यको का मतलब है ‘सफ़ेद’ और डर्मा का मतलब है ‘खाल’। ल्यूकोडर्मा में असामान्य रूप से खाल का रंग [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] होने लगता है। शरीर के जिस हिस्से पर इसका प्रभाव पड़ता है वहाँ से मेलेन्साइट्स पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं। यह रोग अनुवांशिक भी हो सकता है या फिर इस रोग का संबंध [[मधुमेह]] या फिर थायोराइड से हो सकता है। यह रोग छूने से नहीं फैलता, इसमें सिर्फ चमड़ी का रंग ही सफ़ेद हो जाता है।<ref name="vdh1">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/health/health/0810/08/1081008017_1.htm |title=क्या है ल्यूकोडर्मा |accessmonthday=11 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेबदुनिया हिन्दी |language= हिन्दी }}</ref>
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==ल्यूकोडर्मा के लक्षण==
==ल्यूकोडर्मा के लक्षण==

08:25, 15 अप्रैल 2012 का अवतरण

ल्यूकोडर्मा अथवा सफ़ेद दाग़ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार एक प्रकार का त्वचा रोग है। त्वचा के बाहरी स्तर में मेलेनिन नामक एक रंजक द्रव्य रहता है, जिस पर त्वचा का रंग निर्भर करता है। यह रंजक द्रव्य (मेलेनिन) गर्मी से त्वचा की रक्षा करता है।[1] ‘ल्यको का मतलब है ‘सफ़ेद’ और डर्मा का मतलब है ‘खाल’। ल्यूकोडर्मा में असामान्य रूप से खाल का रंग सफ़ेद होने लगता है। शरीर के जिस हिस्से पर इसका प्रभाव पड़ता है वहाँ से मेलेन्साइट्स पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं। यह रोग अनुवांशिक भी हो सकता है या फिर इस रोग का संबंध मधुमेह या फिर थायोराइड से हो सकता है। यह रोग छूने से नहीं फैलता, इसमें सिर्फ चमड़ी का रंग ही सफ़ेद हो जाता है।[2]

ल्यूकोडर्मा के लक्षण

शरीर में किसी भी स्थान की त्वचा पर त्वचा के सामान्य रंग से पृथक रंग का बिन्दु जैसा दाग़ उत्पन्न होता है। अत्यंत धीमी गति से इस दाग़ की वृद्धि होती जाती है। प्रारंभ में इसकी ओर रोगी का ध्यान नहीं जाता। दाग़ के कुछ बड़े होने पर ही इसका पता चलता है। फैलते-फैलते किसी रोगी के संपूर्ण शरीर की त्वचा ही सफ़ेद हो जाती है। किसी-किसी स्थान पर कुछ काले धब्बे ही शेष रह जाते हैं। दोष भेद से इन दाग़ों में रूखापन, जलन, खुजली तथा स्थान विशेष के रोम (केश) नष्ट होना आदि लक्षण होते हैं।[1]

ल्यूकोडर्मा के कारण

ल्यूकोडर्मा किस वजह से होता है, इसका कारण अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन शरीर पर इन सफ़ेद धब्बों के कुछ संभव कारण हैं:-

  1. खून में मेलेनिन नामक तत्व का कम हो जाना।
  2. अत्यधिक कब्ज।
  3. यकृत (लिवर) का ठीक से कार्य ना कर पाना या पीलिया
  4. पेट से संबंधित बीमारी या पेट में कीड़ों का होना।
  5. टाइफाइड जैसी बीमारियाँ जिन से पेट या आंतों में संक्रमण होने का खतरा हो।
  6. अत्याधिक तनाव।[2]

समाचार

रक्षा वैज्ञानिकों ने बनायी 'ल्यूकोडर्मा' की अचूक हर्बल औषधि

रविवार, 11 सितंबर, 2011

सफ़ेद दाग़ (ल्यूकोडर्मा) से पीड़ित भारत की 1-2 फीसदी आबादी, जो इसके कारगर इलाज के अभाव में कुंठा में जीवन यापन करने को मजबूर है, उन्हें देश के रक्षा वैज्ञानिकों ने उम्मीद की लौ दिखायी है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने एक विकास संगठन ने एक पौधे से सफ़ेद दाग़ को पूरी तरह खत्म करने की दवा ईजाद करने में कामयाबी हासिल की है, जो शोध परीक्षणों में खरी उतरी है। इस हर्बल द्रव और लगाने के लिए मलहम रूप में होगी। इस दवा के व्यावसायिक उत्पादन और मार्केटिंग के लिए डीआरडीओ ने देश की एक फार्मास्यूटिकल्स कंपनी से करार किया है, जो तकनीकि हस्तांतरण से इसका उत्पादन शुरू करने जा रही है। डीआरडीओ की हल्द्वानी (उत्तराखंड) स्थित प्रयोगशाला-डिफेंस एग्रीकल्चर रिसर्च लैबोरेटरी ने इस मेडिसिनल रिसर्च को अंजाम दिया है। इस लैबौरेटरी ने मेडिसिनल प्लांट्स के क्षेत्र में पूर्व में भी उल्लेखनीय काम किया है। और अब सफ़ेद दाग़ के कारगर इलाज के लिए ल्युकोसिन औषधि का निर्माण और इसके स्रोत मेडिसिनल प्लांट की खोज इसके द्वारा किए गए कार्यों में मील का पत्थर साबित होगा। तक़रीबन एक दर्जन से अधिक वैज्ञानिकों की टीम के अथक परिश्रम का प्रतिफल 'ल्युकोसिन' औषधि सफ़ेद दाग़ मरीजों के लिए एक वरदान साबित होगा, ऐसा इन वैज्ञानिकों का मानना है। इस दवा के शोध एवं विकास में लगे एक वरदान साबित होगा, ऐसा इन वैज्ञानिकों का मानना है। इस दवा के शोध एवं विकास में लगे वैज्ञानिकों का नेतृत्व प्रख्यात वैज्ञानिकों एवं चीफ कंट्रोलर रिसर्च एंड डवलपमेंट (लाइफ सांइसेज) डा. डब्ल्यू सेल्वामूर्थी ने किया।

एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि भारत में औसतन तक़रीबन 1-2 फीसदी आबादी इस रोग से पीड़ित है। लेकिन राजस्थान और गुजरात में यह 4-5 फीसदी लोगों को है। चिकित्सकों का कहना है कि सफ़ेद दाग़ (विटिल्गो या ल्यूकोडर्मा) जिसे कुछ इलाकों में चरक कहा जाता है, दरअसल यह छुआछूत की बीमारी नहीं है। लेकिन देश की ग्रामीण जनता और बहुत सारे पढ़े-लिखे लोग भी इसे कुष्ठ रोग से जोड़ कर देखते हैं। वस्तुत: यह एक त्वचा रोग है जो कि हार्मोनल डिसआर्डर के चलते होता है। इसके इलाज के लिए एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में दवायें तो हैं, लेकिन बहुत सारे मरीजों में देखा गया है कि इलाज से ठीक होने के कुछ दिनों बाद फिर से उनके शरीर के दूसरे हिस्सों में सफ़ेद दाग़ होने लगता है। और फिर अंग्रेज़ी दवा बहुत कारगर नहीं हो पायी। डीआरडीओ का दावा है कि यह हर्बल दवा सफ़ेद दाग़ के मरीजों को उनके निराश जीवन से मुक्ति दिलाएगी। इस हर्बल औषधि के खोज और निर्माण में जुटे रक्षा वैज्ञानिकों का कहना है कि देश में चिकित्सा के क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी खोज है। हर्बल औषधि होने के चलते इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। [3]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 ल्यूकोडर्मा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 11 सितंबर, 2011।
  2. 2.0 2.1 क्या है ल्यूकोडर्मा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 11 सितंबर, 2011।
  3. आभार- राष्ट्रीय सहारा दिनांक 11 सितंबर, 2011 पृष्ठ संख्या- 1

बाहरी कड़ियाँ

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