"कवितावली (पद्य)-अयोध्या काण्ड": अवतरणों में अंतर

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==अयोध्या काण्ड==
==अयोध्या काण्ड==
<poem style="font-size:larger; color:#990099">   
</poem>
==वनगमन== 
<poem style="font-size:larger; color:#990099">  
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(वनगमन )   
(वनगमन)   
कीरके कगार ज्यों नृपचीर, बिभूषन उप्पम अंगनि पाई।  
कीरके कगार ज्यों नृपचीर, बिभूषन उप्पम अंगनि पाई।  
औध तजी मगवासके रूख ज्यों,पंथके साथ ज्यों लोग लोगाई।।
औध तजी मगवासके रूख ज्यों,पंथके साथ ज्यों लोग लोगाई।।
संग सुबंधु, पुनीत प्रिया, मनो धर्मु क्रिया धरि देह सुहाई।।  
संग सुबंधु, पुनीत प्रिया, मनो धर्मु क्रिया धरि देह सुहाई।।  
राजिवलोचन रामु चले तजि बापको राजु बटाउ कीं नाई।1।  
राजिवलोचन रामु चले तजि बापको राजु बटाउ कीं नाई।1।  


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सिथिल सनेह कहैं कौसिला सुमित्राजू सों,  
सिथिल सनेह कहैं कौसिला सुमित्राजू सों,  
मैं न लखी सौति, सखी! भगनी ज्यों सेई है।  
मैं न लखी सौति, सखी! भगनी ज्यों सेई है।  
कहै मोहि मैया, कहौं -मैं न मैया, भरतकी,  
कहै मोहि मैया, कहौं -मैं न मैया, भरतकी,  
बलैया जेहौं भैया, तेरी मैया कैकेई है।।
बलैया जेहौं भैया, तेरी मैया कैकेई है।।
तुलसी सरल भायँ रघुरायँ माय मानी,
तुलसी सरल भायँ रघुरायँ माय मानी,
काय-मन-बानीहूँ न जानी कै मतेई है।  
काय-मन-बानीहूँ न जानी कै मतेई है।  
बाम बिधि मेरो सुखु सिरिस -सुमन -सम,  
बाम बिधि मेरो सुखु सिरिस -सुमन -सम,  
ताकेा छल-छुरी कोह-कुलिस लै टेई है।3।  
ताकेा छल-छुरी कोह-कुलिस लै टेई है।3।  


कीजै कहा, जीजी जू! स्ुमित्रा परि पायँ कहै,  
कीजै कहा, जीजी जू! सुमित्रा परि पायँ कहै,  
तुलसी सहावै बिधि, सोइ सहियतु है।  
तुलसी सहावै बिधि, सोइ सहियतु है।  
रावरो सुभाउ रामजन्म ही ते जानियत,  
रावरो सुभाउ रामजन्म ही ते जानियत,  
भरतकी मातु केा कि ऐसो चहियतु है।।  
भरतकी मातु के कि ऐसो चहियतु है।।  
जाई राजघर, ब्याहि आई राजघर माहँ,
जाई राजघर, ब्याहि आई राजघर माहँ,
  राज-पूतु पाएहँू न सुखु लहियतु हैं।  
  राज-पूतु पाएहूँ न सुखु लहियतु हैं।  
देह सुधागेह, ताहि मृगहूँ मलीन कियो,  
देह सुधागेह, ताहि मृगहूँ मलीन कियो,  
ताहू पर बाहु बिनु राहु गहियतु है।4।
ताहू पर बाहु बिनु राहु गहियतु है।4।
पंक्ति 39: पंक्ति 34:
==गुहका पाद-प्रक्षालन==  
==गुहका पाद-प्रक्षालन==  
<poem style="font-size:larger; color:#990099">  
<poem style="font-size:larger; color:#990099">  
नाम अजामिल -से खल कोटि अपार नदीं भव बूड़त काढ़ें।  
नाम अजामिल -से खल कोटि अपार नदीं भव बूड़त काढ़ें।  
जो सुमिरें गिरि मेरू सिलाकन होेत, अजाखुर बारिधि बाढ़े।।  
जो सुमिरें गिरि मेरू सिलाकन होत, अजाखुर बारिधि बाढ़े।।  
तुलसी जेहि के पद पंकज तें  प्रगटी तटिनी, जो हरै अघ गाढ़े।।  
तुलसी जेहि के पद पंकज तें  प्रगटी तटिनी, जो हरै अघ गाढ़े।।  
ते प्रभु या सरिता तरिबे कहुँ मागत नाव करारे ह्वै ठाढ़े।5।  
ते प्रभु या सरिता तरिबे कहुँ मागत नाव करारे ह्वै ठाढ़े।5।  
पंक्ति 50: पंक्ति 44:
बरू मारिए मोहि, बिना पग धोएँ हौं नाथ न नाव चढ़ाइहौं जू।6।  
बरू मारिए मोहि, बिना पग धोएँ हौं नाथ न नाव चढ़ाइहौं जू।6।  


रावरे देाषु पायनकेा, पगधूरिको भूरि प्रभाउ महा है।  
रावरे देषु पायनके, पगधूरिको भूरि प्रभाउ महा है।  
पाहन तें बन-बाहनु काठको कोमल है, जलु खाइ रहा है।।
पाहन तें बन-बाहनु काठको कोमल है, जलु खाइ रहा है।।
पावन पाय पखारि कै नाव चढ़ाइहौं, आयसु होत कहा है।  
पावन पाय पखारि कै नाव चढ़ाइहौं, आयसु होत कहा है।  
तुलसी सुनि केवटके बर बैन हँसे प्रभु जानकी ओर हहा है।7।  
तुलसी सुनि केवटके बर बैन हँसे प्रभु जानकी ओर हहा है।7।  


पात भरी सहरी, सकल सुत बारे-बारे,  
पात भरी सहरी, सकल सुत बारे-बारे,  
केवटकी जाति, कछु बेद न पढ़ाइहों ।  
केवटकी जाति, कछु बेद न पढ़ाइहों ।  
सबु परिवारू मेरेा याहि लागि, राजा जू,  
सबु परिवारू मेरे याहि लागि, राजा जू,  
हौं दीन बित्तहीन,  कैसें दूसरी गढ़ाइहौं ।।
हौं दीन बित्तहीन,  कैसें दूसरी गढ़ाइहौं ।।
गौतमकी घरनी ज्यों तरनी तरैगी मेरी,  
गौतमकी घरनी ज्यों तरनी तरैगी मेरी,  
प्रभुसेां निषादु ह्वै कै बादु ना बढ़ाइहौं।
प्रभुसे निषादु ह्वै कै बादु ना बढ़ाइहौं।
तुलसी के ईस राम, रावरे सों साँची कहौं,
तुलसी के ईस राम, रावरे सों साँची कहौं,
बिना पग धोएँ नाथ, नाव ना चढ़ाइहौं।8।  
बिना पग धोएँ नाथ, नाव ना चढ़ाइहौं।8।  


जिन्हको पुनीत बारि धारैं सिरपै पुरारि,  
जिन्हको पुनीत बारि धारैं सिरपै पुरारि,  
पंक्ति 68: पंक्ति 62:
जिन्हको जोगीन्द्र मुनिबृंद देव देह दमि,  
जिन्हको जोगीन्द्र मुनिबृंद देव देह दमि,  
करत बिबिध जोग-जप मनु लाइकै।।
करत बिबिध जोग-जप मनु लाइकै।।
तुलसी जिन्हकी धूरि परसि अहल्या तरी,  
तुलसी जिन्हकी धूरि परसि अहल्या तरी,  
गौतम सिधारे गृह सो लेवादकै।।  
गौतम सिधारे गृह सो लेवादकै।।  
तेई पाय पाइकै चढ़ाइ नाव धोए बिनु,  
तेई पाय पाइकै चढ़ाइ नाव धोए बिनु,  
पंक्ति 76: पंक्ति 70:
बंदि कै चरन चहूँ दिसि बैठे घेरि-घेरि।  
बंदि कै चरन चहूँ दिसि बैठे घेरि-घेरि।  
छोटो-सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजूको,
छोटो-सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजूको,
धोइ पाय पीअत पुनीत बारि फेरि-फेरि।।
धोइ पाय पीअत पुनीत बारि फेरि-फेरि।।
तुलसी सराहैं ताको भागु, सानुराग सुर,  
तुलसी सराहैं ताको भागु, सानुराग सुर,  
बरषैं  सुमन, जय-जय कहैं टेरि -टेरि।।
बरषैं  सुमन, जय-जय कहैं टेरि -टेरि।।
बिबिध सनेह -सानी बानी असयानी सुनि,  
बिबिध सनेह -सानी बानी असयानी सुनि,  
हँसैं राघौ जानकी-लखन तन हेरि-हेरि।10।
हँसैं राघौ जानकी-लखन तन हेरि-हेरि।10।
</poem>  
</poem>  
==वन के मार्ग में ==  
==वन के मार्ग में ==  
<poem style="font-size:larger; color:#990099">  
<poem style="font-size:larger; color:#990099">  
           
पुर तें निकसी रघुबीर बधू धरि धीर दए मगमें डग द्वै।  
पुर तें निकसी रघुबीर बधू धरि धीर दए मगमें डग द्वै।  
झलकीं भरि भाल कनीं जलकी, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
झलकीं भरि भाल कनीं जलकी, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
फिरि बूझति हैं, चलनो अब केतिक, पर्नककुटी करिहैं कित ह्वै?
फिरि बूझति हैं, चलनो अब केतिक, पर्नककुटी करिहैं कित ह्वै?
तियकी लखि आतुरता पियकी अँखियाँ अति चारू चलीं जल च्वै।11।   
तियकी लखि आतुरता पियकी अँखियाँ अति चारू चलीं जल च्वै।11।   


जलको गए लक्खनु, हैं लरिका,  
जलको गए लक्खनु, हैं लरिका,  
परिखौ, पिय! छाँह घरीक ह्वै ठाढ़े।  
परिखौ, पिय! छाँह घरीक ह्वै ठाढ़े।  
पोेंछि पसेउ बयारि करौं ,  
पोंछि पसेउ बयारि करौं ,  
अरू  पाय पखारिहौं भूभुरि-डाढ़े।।  
अरू  पाय पखारिहौं भूभुरि-डाढ़े।।  
तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै  
तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै  
पंक्ति 106: पंक्ति 99:
जड! डारू धौं प्रान निछावरि कै।।  
जड! डारू धौं प्रान निछावरि कै।।  
श्रमसीकर साँवरि देह लसै,  
श्रमसीकर साँवरि देह लसै,  
मनेा रासि महा तम तारकमै।13।  
मने रासि महा तम तारकमै।13।  


जलजनयन, जलजानन जटा है सिर,
जलजनयन, जलजानन जटा है सिर,
जौबन -उमंग अंग उदित उदार है।।  
जौबन -उमंग अंग उदित उदार है।।  
साँवरे-गोरेके बीच भामिनी सुदामिनी-सी,
साँवरे-गोरेके बीच भामिनी सुदामिनी-सी,
मुनिपट धारैं , उर फूलनिके हार हैं।।  
मुनिपट धारैं , उर फूलनिके हार हैं।।  
करनि सरासन सिलीमुख, निषंग कटि,
करनि सरासन सिलीमुख, निषंग कटि,
अति ही अनूप काहू भूपके कुमार है।  
अति ही अनूप काहू भूपके कुमार है।  
तुलसी बिलोकि कै तिलोकके तिलक तीनि
तुलसी बिलोकि कै तिलोकके तिलक तीनि
रहे नरनारि ज्यों चितेरे चित्रसार हैं।14।  
रहे नरनारि ज्यों चितेरे चित्रसार हैं।14।  


आगे साँवरो कुँवरू गोरो पाछें-पाछें,  
आगे साँवरो कुँवरू गोरो पाछें-पाछें,  
आछे मुनिवेष धरें, लाजत अनंग हैं।
आछे मुनिवेष धरें, लाजत अनंग हैं।
बान बिसिषासन, बसन बनही के कटि ,
बान बिसिषासन, बसन बनही के कटि ,
कसे हैं बनाइ, नीके राजत निषंग हैं।।  
कसे हैं बनाइ, नीके राजत निषंग हैं।।  
साथ निसिनाथ मुखी पाथनाथनंदिनी-सी,  
साथ निसिनाथ मुखी पाथनाथनंदिनी-सी,  
तुलसी बिलोकें चितु लाइ लेत संग है।
तुलसी बिलोकें चितु लाइ लेत संग है।
आनँद उमंग मन, जौबन-उमंग तन,  
आनंद उमंग मन, जौबन-उमंग तन,  
रूपकी उमंग उमगत अंग-अंग है।15।  
रूपकी उमंग उमगत अंग-अंग है।15।  


सुन्दर बदन , सरसीरूह सुहाए नैन,  
सुन्दर बदन, सरसीरूह सुहाए नैन,  
मंजुल प्रसून माथें मुकुट जटनि के।  
मंजुल प्रसून माथें मुकुट जटनि के।  
अंसनि सरासन, लसत सुचि सर कर,  
अंसनि सरासन, लसत सुचि सर कर,  
पंक्ति 132: पंक्ति 125:
नारि सुकुमारि संग, जाके अंग उबटि कै,  
नारि सुकुमारि संग, जाके अंग उबटि कै,  
बिधि बिरचैं बरूथ बिद्युतछटनि के।।  
बिधि बिरचैं बरूथ बिद्युतछटनि के।।  
गोरेको बरनु देखें सोनो न सलोनेा लागै,
गोरेको बरनु देखें सोनो न सलोने लागै,
साँवरे बिलोकें गर्ब घटत धटनि के।16।  
साँवरे बिलोकें गर्ब घटत धटनि के।16।  


बलकल-बसन, धनु-बान पानि, तून कटि,  
बलकल-बसन, धनु-बान पानि, तून कटि,  
पंक्ति 145: पंक्ति 138:


बनिता बनी स्यामल गौर के बीच ,
बनिता बनी स्यामल गौर के बीच ,
बिलोकहु, री सखि! मोहि-सी ह्वै।  
बिलोकहु, री सखि! मोहि-सी ह्वै।  
मनुजोगु न कोमल, क्यों चलिहै,  
मनुजोगु न कोमल, क्यों चलिहै,  
सकुचाति मही पदपंकज छ्वै।।  
सकुचाति मही पदपंकज छ्वै।।  
पंक्ति 153: पंक्ति 146:
अनूप हैं भूपके बालक द्वै।18।
अनूप हैं भूपके बालक द्वै।18।


साँवरे-गोरे सलेाने सुभायँ, मनोहरताँ जिति मैनु लियो है।  
साँवरे-गोरे सलोने सुभायँ, मनोहरताँ जिति मैनु लियो है।  
बान-कमान, निषंग कसें, सिर सोहैं जटा, मुनिबेषु कियेा है।।  
बान-कमान, निषंग कसें, सिर सोहैं जटा, मुनिबेषु कियेा है।।  
संग लिएँ बिधुबैनी बधू, रतिको जेहि  रंचक रूप दियो है।  
संग लिएँ बिधुबैनी बधू, रतिको जेहि  रंचक रूप दियो है।  
पंक्ति 160: पंक्ति 153:
रानी मैं जानी अयानी महा, पबि-पाहनहू तें कठोर हियो है।  
रानी मैं जानी अयानी महा, पबि-पाहनहू तें कठोर हियो है।  
राजहुँ काजु अकाजु न जान्यो, कह्यो तियको जेहिं कान कियो है।।  
राजहुँ काजु अकाजु न जान्यो, कह्यो तियको जेहिं कान कियो है।।  
ऐसी मनेाहर मूरति ए, बिछुरें कैसे प्रीतम लोगु जियो है।  
ऐसी मनोहर मूरति ए, बिछुरें कैसे प्रीतम लोगु जियो है।  
आँखिनमें सखि! राखिबे जोगु , इन्हैं  किमि कै बनबासु दियो है।20।  
आँखिनमें सखि! राखिबे जोगु , इन्हैं  किमि कै बनबासु दियो है।20।  
   
   
सीस जटा, उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी -सी मौंहें।  
सीस जटा, उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी -सी मौंहें।  
तून सरासन-बान धरें तुुलसी बन-मारगमें सुठि सोहैं।  
तून सरासन-बान धरें तुलसी बन-मारगमें सुठि सोहैं।  
सादर बारहिं बार सुभायँ चितै तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं।  
सादर बारहिं बार सुभायँ चितै तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं।  
पूँछत ग्रामबधू सिय सों, कहौ, साँवरे-से सखि ! रावरे को हैं।21।  
पूँछत ग्रामबधू सिय सों, कहौ, साँवरे-से सखि ! रावरे को हैं।21।  


सुनि सुंदर बैन सुधारस -साने सयानी हैं जानकीं जानी भली।  
सुनि सुंदर बैन सुधारस -साने सयानी हैं जानकीं जानी भली।  
तिरछे करि नैन, दै सैन तिन्है समुझाइ कछू , मुसकाइ चली।।  
तिरछे करि नैन, दै सैन तिन्है समुझाइ कछू, मुसकाइ चली।।  
तुलसी तेहिं औसर सोहैं सबै अवलोकति लोचनलाहु अलीं।  
तुलसी तेहिं औसर सोहैं सबै अवलोकति लोचनलाहु अलीं।  
अनुराग -तड़ागमें भानु उदैं बिगसी मनो मंजुल कंजकलीं।22।  
अनुराग -तड़ागमें भानु उदैं बिगसी मनो मंजुल कंजकलीं।22।  


धरि धीर कहैं, चलु देखिअ जाइ, जहाँ सजनी! रजनी रहिहैं।  
धरि धीर कहैं, चलु देखिअ जाइ, जहाँ सजनी! रजनी रहिहैं।  
कहिहै जगु पोच , न सेाचु कछू ,फलु लोचन आपन तौ लहिहैं।
कहिहै जगु पोच , न सेचु कछू ,फलु लोचन आपन तौ लहिहैं।
सुखु पाइहैं कान सुनें बतियाँ कल, आपुस में कछु पै कहिहैं।।  
सुखु पाइहैं कान सुनें बतियाँ कल, आपुस में कछु पै कहिहैं।।  
तुलसी अति प्रेम लगीं पलकैं, पुलकीं  लखि रामु हिए हैं।23।   
तुलसी अति प्रेम लगीं पलकैं, पुलकीं  लखि रामु हिए हैं।23।   


पंक्ति 192: पंक्ति 185:


प्रेम सों पीछें तिरीछें प्रियाहि चितै चितु दै चले लै चितु चोरैं।  
प्रेम सों पीछें तिरीछें प्रियाहि चितै चितु दै चले लै चितु चोरैं।  
स्याम समीर पसेउ लसै हुलसै ‘तुलसी’ छाबि सेा मन मोरे।  
स्याम समीर पसेउ लसै हुलसै ‘तुलसी’ छाबि से मन मोरे।  
लोचन लोल, चलैं भृकुटी कल काम कमानहु सेा तृनु तोरैं।   
लोचन लोल, चलैं भृकुटी कल काम कमानहु से तृनु तोरैं।   
राजत राम कुरंगके संग निषंगु कसे धनुसों सरू जोरैं।26।  
राजत राम कुरंगके संग निषंगु कसे धनुसों सरू जोरैं।26।  


पंक्ति 209: पंक्ति 202:
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*[[कवितावली (पद्य)-अरण्य काण्ड|आगे पढें ]]  
*[[कवितावली (पद्य)-अरण्य काण्ड|आगे पढें ]]  
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06:49, 15 सितम्बर 2012 का अवतरण

कवितावली (अयोध्या काण्ड)

अयोध्या काण्ड

 
(वनगमन)
कीरके कगार ज्यों नृपचीर, बिभूषन उप्पम अंगनि पाई।
औध तजी मगवासके रूख ज्यों,पंथके साथ ज्यों लोग लोगाई।।
संग सुबंधु, पुनीत प्रिया, मनो धर्मु क्रिया धरि देह सुहाई।।
राजिवलोचन रामु चले तजि बापको राजु बटाउ कीं नाई।1।

कागर कीर ज्यों भूषन-चीर सरीरू लस्यो तजि नीरू ज्यों काई।
मातु-पिता प्रिय लोग सबै सनमानि सुभायँ सनेह सगाई।।
संग सुभासिनि, भाइ भलो, दिन द्वै जनु औध हुते पहुनाई।।
राजिवलोचन रामु चले तजि बापको राजु बटाउ कीं नाई।2।

सिथिल सनेह कहैं कौसिला सुमित्राजू सों,
मैं न लखी सौति, सखी! भगनी ज्यों सेई है।
कहै मोहि मैया, कहौं -मैं न मैया, भरतकी,
बलैया जेहौं भैया, तेरी मैया कैकेई है।।
तुलसी सरल भायँ रघुरायँ माय मानी,
काय-मन-बानीहूँ न जानी कै मतेई है।
बाम बिधि मेरो सुखु सिरिस -सुमन -सम,
ताकेा छल-छुरी कोह-कुलिस लै टेई है।3।

कीजै कहा, जीजी जू! सुमित्रा परि पायँ कहै,
तुलसी सहावै बिधि, सोइ सहियतु है।
रावरो सुभाउ रामजन्म ही ते जानियत,
भरतकी मातु के कि ऐसो चहियतु है।।
जाई राजघर, ब्याहि आई राजघर माहँ,
 राज-पूतु पाएहूँ न सुखु लहियतु हैं।
देह सुधागेह, ताहि मृगहूँ मलीन कियो,
ताहू पर बाहु बिनु राहु गहियतु है।4।

गुहका पाद-प्रक्षालन

 
नाम अजामिल -से खल कोटि अपार नदीं भव बूड़त काढ़ें।
जो सुमिरें गिरि मेरू सिलाकन होत, अजाखुर बारिधि बाढ़े।।
तुलसी जेहि के पद पंकज तें प्रगटी तटिनी, जो हरै अघ गाढ़े।।
ते प्रभु या सरिता तरिबे कहुँ मागत नाव करारे ह्वै ठाढ़े।5।

एहि घाटतें थोरिक दूरि अहै कटि लौं जलु थाह दिखाइहौं जू।।
परसें पगघूरि तरै तरनी, घरनी घर क्यों समुझाइहौं जू।।
तुलसी अवलंबु न और कछू, लरिका केहि भाँति जिआइहौंजू।
बरू मारिए मोहि, बिना पग धोएँ हौं नाथ न नाव चढ़ाइहौं जू।6।

रावरे देषु न पायनके, पगधूरिको भूरि प्रभाउ महा है।
पाहन तें बन-बाहनु काठको कोमल है, जलु खाइ रहा है।।
पावन पाय पखारि कै नाव चढ़ाइहौं, आयसु होत कहा है।
तुलसी सुनि केवटके बर बैन हँसे प्रभु जानकी ओर हहा है।7।

पात भरी सहरी, सकल सुत बारे-बारे,
केवटकी जाति, कछु बेद न पढ़ाइहों ।
सबु परिवारू मेरे याहि लागि, राजा जू,
हौं दीन बित्तहीन, कैसें दूसरी गढ़ाइहौं ।।
गौतमकी घरनी ज्यों तरनी तरैगी मेरी,
प्रभुसे निषादु ह्वै कै बादु ना बढ़ाइहौं।
तुलसी के ईस राम, रावरे सों साँची कहौं,
बिना पग धोएँ नाथ, नाव ना चढ़ाइहौं।8।

जिन्हको पुनीत बारि धारैं सिरपै पुरारि,
त्रिपथगामिनि जसु बेद कहैं गाइकै।
जिन्हको जोगीन्द्र मुनिबृंद देव देह दमि,
करत बिबिध जोग-जप मनु लाइकै।।
तुलसी जिन्हकी धूरि परसि अहल्या तरी,
गौतम सिधारे गृह सो लेवादकै।।
तेई पाय पाइकै चढ़ाइ नाव धोए बिनु,
ख्वैहौं न पठावनी कै ह्वैहौं न हँसाइ कै।9।

प्रभुरूख पाइ कै, बोलाइ बालक बालक धरनिहि,
बंदि कै चरन चहूँ दिसि बैठे घेरि-घेरि।
छोटो-सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजूको,
धोइ पाय पीअत पुनीत बारि फेरि-फेरि।।
तुलसी सराहैं ताको भागु, सानुराग सुर,
बरषैं सुमन, जय-जय कहैं टेरि -टेरि।।
बिबिध सनेह -सानी बानी असयानी सुनि,
हँसैं राघौ जानकी-लखन तन हेरि-हेरि।10।

वन के मार्ग में

 
पुर तें निकसी रघुबीर बधू धरि धीर दए मगमें डग द्वै।
झलकीं भरि भाल कनीं जलकी, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
फिरि बूझति हैं, चलनो अब केतिक, पर्नककुटी करिहैं कित ह्वै?
तियकी लखि आतुरता पियकी अँखियाँ अति चारू चलीं जल च्वै।11।

जलको गए लक्खनु, हैं लरिका,
परिखौ, पिय! छाँह घरीक ह्वै ठाढ़े।
पोंछि पसेउ बयारि करौं ,
अरू पाय पखारिहौं भूभुरि-डाढ़े।।
तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै
बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े।
जानकीं नाहको नेहु लख्यो,
पुलको तनु, बारि बिलोचन बाढ़े।12।

ठाढ़े हैं नवद्रुमडार गहें,
धनु काँधे धरें, कर सायकु लै।
बिकटी भृकुटी, बड़री अँखियाँ,
अनमोल कपोलन की छबि है।।
तुलसी अस मूरति आनु हिएँ,
जड! डारू धौं प्रान निछावरि कै।।
श्रमसीकर साँवरि देह लसै,
मने रासि महा तम तारकमै।13।

जलजनयन, जलजानन जटा है सिर,
जौबन -उमंग अंग उदित उदार है।।
साँवरे-गोरेके बीच भामिनी सुदामिनी-सी,
मुनिपट धारैं , उर फूलनिके हार हैं।।
करनि सरासन सिलीमुख, निषंग कटि,
अति ही अनूप काहू भूपके कुमार है।
तुलसी बिलोकि कै तिलोकके तिलक तीनि
रहे नरनारि ज्यों चितेरे चित्रसार हैं।14।

आगे साँवरो कुँवरू गोरो पाछें-पाछें,
आछे मुनिवेष धरें, लाजत अनंग हैं।
बान बिसिषासन, बसन बनही के कटि ,
कसे हैं बनाइ, नीके राजत निषंग हैं।।
साथ निसिनाथ मुखी पाथनाथनंदिनी-सी,
तुलसी बिलोकें चितु लाइ लेत संग है।
आनंद उमंग मन, जौबन-उमंग तन,
रूपकी उमंग उमगत अंग-अंग है।15।

सुन्दर बदन, सरसीरूह सुहाए नैन,
मंजुल प्रसून माथें मुकुट जटनि के।
अंसनि सरासन, लसत सुचि सर कर,
तून कटि , मुनिपट लूटक पटनि के।।
नारि सुकुमारि संग, जाके अंग उबटि कै,
बिधि बिरचैं बरूथ बिद्युतछटनि के।।
गोरेको बरनु देखें सोनो न सलोने लागै,
साँवरे बिलोकें गर्ब घटत धटनि के।16।

बलकल-बसन, धनु-बान पानि, तून कटि,
रूपके निधान घन-दामिनी-बरन हैं।
तुलसी सुतीय संग, सहज सुहाए अंग,
नवल कँवलहू तें केामल चरत हैं।।
औरै सो बसंतु, और रति, औरै रतिपति,
मूरति बिलोकें तन-मनके हरन हैं।
तापस बेषै बनाइ पथिक पथें सुहाइ,
चले लोकलोचननि सुफल करन हैं।17।

बनिता बनी स्यामल गौर के बीच ,
बिलोकहु, री सखि! मोहि-सी ह्वै।
मनुजोगु न कोमल, क्यों चलिहै,
सकुचाति मही पदपंकज छ्वै।।
तुलसी सुनि ग्रामबधू बिथकीं,
पुलकीं तन, औ चले लोचन च्वै।
सब भाँति मनोहर मोहनरूप,
अनूप हैं भूपके बालक द्वै।18।

साँवरे-गोरे सलोने सुभायँ, मनोहरताँ जिति मैनु लियो है।
बान-कमान, निषंग कसें, सिर सोहैं जटा, मुनिबेषु कियेा है।।
संग लिएँ बिधुबैनी बधू, रतिको जेहि रंचक रूप दियो है।
पायन तौ पनहीं न , पयादेहिं क्यों चलिहैं, सकुचात हियो है।19।

रानी मैं जानी अयानी महा, पबि-पाहनहू तें कठोर हियो है।
राजहुँ काजु अकाजु न जान्यो, कह्यो तियको जेहिं कान कियो है।।
ऐसी मनोहर मूरति ए, बिछुरें कैसे प्रीतम लोगु जियो है।
आँखिनमें सखि! राखिबे जोगु , इन्हैं किमि कै बनबासु दियो है।20।
 
सीस जटा, उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी -सी मौंहें।
तून सरासन-बान धरें तुलसी बन-मारगमें सुठि सोहैं।
सादर बारहिं बार सुभायँ चितै तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं।
पूँछत ग्रामबधू सिय सों, कहौ, साँवरे-से सखि ! रावरे को हैं।21।

सुनि सुंदर बैन सुधारस -साने सयानी हैं जानकीं जानी भली।
तिरछे करि नैन, दै सैन तिन्है समुझाइ कछू, मुसकाइ चली।।
तुलसी तेहिं औसर सोहैं सबै अवलोकति लोचनलाहु अलीं।
अनुराग -तड़ागमें भानु उदैं बिगसी मनो मंजुल कंजकलीं।22।

धरि धीर कहैं, चलु देखिअ जाइ, जहाँ सजनी! रजनी रहिहैं।
कहिहै जगु पोच , न सेचु कछू ,फलु लोचन आपन तौ लहिहैं।
सुखु पाइहैं कान सुनें बतियाँ कल, आपुस में कछु पै कहिहैं।।
तुलसी अति प्रेम लगीं पलकैं, पुलकीं लखि रामु हिए हैं।23।

पद कोमल, स्यामल -गौर कलेवर राजत कोटि मनोज लजाऐँ।
कर बान-सरासन, सीस जटा, सरसीरूह -लोचन सोन सुहाएँ।
जिन्ह देखे सखी! सतिभायहु तें तुलसी तिन्ह तौ मन फेरि न पाए।
ऐहिं मारग आजु किसोर बधू बिधुबैनी समेत सुभायँ सिधाए।24।

मुख पंकज, कंजबिलोचन मंजु, मनोज-सरासन -सी बनीं भौंहें।
कमनीय कलेवर कोमल स्यामल-गौर किसोर, जटा सिर सोहैं।।
तुलसी कटि तून, धरें धनु बान, अचानक दिष्टि परी तिरछौंहें।।
केहि भाँति कहौं सजनी! तोहि सों मृदु मरति द्वै निवसीं मन मोहैं।25।

वन में

 

प्रेम सों पीछें तिरीछें प्रियाहि चितै चितु दै चले लै चितु चोरैं।
स्याम समीर पसेउ लसै हुलसै ‘तुलसी’ छाबि से मन मोरे।
लोचन लोल, चलैं भृकुटी कल काम कमानहु से तृनु तोरैं।
राजत राम कुरंगके संग निषंगु कसे धनुसों सरू जोरैं।26।

सर चारिक चारू बनाइ कसें कटि, पानि सरासनु सायकु लै।
बन खेलत रामु फिरैं मृगया, ‘तुलसी’ छबि सो बरनै किमि कै।।
अवलोकि अलौकिक रूपु मृगीं मृग चौकि चकैं, चितवैं चितु दै।।
न डगैं जियँ जानि जियँ सिलीमुख पंच धरैं रति नायकु है।27।

बिंधिके बासी उदासी तपी ब्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे।
गौतमतीय तरी ‘तुलसी’ सो कथा सुनि भे मुनिबृंद सुखारे।।
ह्वैहैं सिला सब चंदमखीं परसें पद मंजुल कंज तिहारे।
कीन्ही भली रघुनायकजू! करूना करि काननको पगु धारें।28।

(इति अयोध्याकाण्ड)

इन्हें भी देखें: कवितावली -तुलसीदास


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