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07:41, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
किष्किन्धा काण्ड
(समुद्रोल्लंघन)
जब अंगदादिनकी मति-गति मंद भई ,
पवनके पूतको न कूदिबेको पलु गो।
साहसी ह्वै सैलपर सहसा सकेलि आइ,
चितवत चहूँ ओर, औरति को कलु गो।
‘तुलसी’ रसातल को निकसि सलिलु आयो,
कालु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।
चारिहू चरन के चपेट चाँपें चिपिटि गो,
उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो।।
(इति किष्किन्धा काण्ड )
इन्हें भी देखें: कवितावली -तुलसीदास
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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