"दूर से आये थे साक़ी -नज़ीर अकबराबादी": अवतरणों में अंतर

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दूर से आये थे साक़ी -नज़ीर अकबराबादी
नज़ीर अकबराबादी
नज़ीर अकबराबादी
कवि नज़ीर अकबराबादी
जन्म 1735
जन्म स्थान दिल्ली
मृत्यु 1830
मुख्य रचनाएँ बंजारानामा, दूर से आये थे साक़ी, फ़क़ीरों की सदा, है दुनिया जिसका नाम आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
नज़ीर अकबराबादी की रचनाएँ

दूर से आये थे साक़ी सुनके मयख़ाने को हम ।
बस तरसते ही चले अफ़सोस पैमाने को हम ।।

मय भी है, मीना भी है, साग़र भी है साक़ी नहीं।
दिल में आता है लगा दें, आग मयख़ाने को हम।।

हमको फँसना था क़फ़ज़ में, क्या गिला सय्याद का।
बस तरसते ही रहे हैं, आब और दाने को हम।।

बाग़ में लगता नहीं सहरा में घबराता है दिल।
अब कहाँ ले जाके बेठाऐं ऐसे दीवाने को हम।।

ताक-ए-आबरू में सनम के क्या ख़ुदाई रह गई।
अब तो पूजेंगे उसी क़ाफ़िर के बुतख़ाने को हम।।

क्या हुई तक़्सीर हम से, तू बता दे ए ‘नज़ीर’
ताकि शादी मर्ग समझें, ऐसे मर जाने को हम।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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