"पैठण": अवतरणों में अंतर
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12:55, 20 जून 2013 का अवतरण
पैठान महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 35 कि.मी. दक्षिण की ओर तथा गोदावरी के उत्तरी तट पर स्थित है। यह अति प्राचीन व्यापारिक और धार्मिक स्थान है। पैठण महाराष्ट्र के वारकरी सम्प्रदाय का तीर्थस्थल और प्रसिद्ध संत एकनाथ की जन्मभूमि है। पैठण को 'पोतान', 'पैठान' भी कहते हैं। यहां अश्मक जनपद की राजधानी भी थी। इसका प्राचीन नाम 'प्रतिष्ठान' है। पैठण दक्षिण भारत के अति प्राचीन नगरों में से एक है। प्राचीन काल से ही पैठण महत्त्वपूर्ण तीर्थ के रूप में मान्यता प्राप्त स्थान है। पुराणों के अनुसार पैठान की स्थापना ब्रह्मा ने की थी और गोदावरी नदी के तट पर इस सुन्दर नगर को उन्होंने अपना स्थान बनाया था। 'प्रतिष्ठान माहात्म्य' में कथा है कि ब्रह्मा ने इस नगर का नाम 'पाटन' या 'पट्टन' रखा था और फिर अन्य नगरों से इसका महत्त्व ऊपर रखने के लिए इसका नाम बदल कर 'प्रतिष्ठान' कर दिया। महाभारत में पैठान में सब तीर्थों के पुण्य को प्रतिष्ठित बताया गया है-
'एवमेषा महाभाग प्रतिष्ठानं प्रतिष्ठता, तीर्थयात्रा महापुण्या सर्वपापप्रमोचनी'[1]
- यह उल्लेख 'प्रतिष्ठानपुर' या 'झूसी' के लिए भी हो सकता है।
स्थापना तथा इतिहास
पुराणों के अनुसार पैठान की स्थापना ब्रह्मा ने की थी और गोदावरी तट पर इस सुन्दर नगर को उन्होंने अपना निवास स्थान बनाया था। प्राचीन बौद्ध साहित्य में प्रतिष्ठान का उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच जाने वाले व्यापारिक मार्ग के दक्षिणी छोर पर अवस्थित नगर के रूप में वर्णन है। इसे दक्षिणापथ का मुख्य व्यापारिक केन्द्र माना जाता था। सातवाहन नरेशों के शासनकाल में पैठान एक समृद्धशाली नगर था। यहाँ से एक व्यापारिक मार्ग श्रावस्ती तक जाता था, जिस पर महिष्मती, उज्जयिनी, विदिशा, कौशाम्बी आदि नगर स्थित थे। पैरिप्लस से पता चलता है कि चार पहिया वाली गाड़ियों से व्यापारिक वस्तुएँ भड़ौंच भेजी जाती थीं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि प्रतिष्ठान दक्षिणापथ की प्रमुख व्यापारिक मण्डी थी।[2]
ग्रीक लेखक एरियन ने पैठान को 'प्लीथान' कहा है तथा मिस्र के रोमन भूगोलविद टॉलमी ने, जिसने भारत की द्वितीय शती ई. में यात्रा की थी, इसका नाम 'बैथन' लिखा है और इसे 'सित्तेपोलोमेयोस' (सातवाहन नरेश श्री पुलोमावी द्वितीय 138-170 ई.) की राजधानी बताया है। 'पैरिप्लस ऑफ़ दि एराइथ्रियन सी' के अज्ञात नाम लेखक ने इस नगर का नाम 'पोथान' लिखा है। प्रथम शती ई. के रोमन इतिहास लेखक प्लिनी ने प्रतिष्ठान को आंध्र प्रदेश के वैभवशाली नगर के रूप में सराहा है। पीतलखोरा गुफ़ा के एक अभिलेख तथा प्रतिष्ठान माहात्म्य में नगर का शुद्ध नाम 'प्रतिष्ठान' सुरक्षित है। अशोक ने अपने शिला अभिलेख 13 में जिन भोज, राष्ट्रिक व पतनिक लोगों का उल्लेख किया है, संभव है कि वे प्रतिष्ठान निवासी हों। किन्तु बृह्लर ने इस मत को नहीं माना है और न ही डॉक्टर भंडारकर ने।
ग्रंथों में उल्लेख
प्रतिष्ठान का उल्लेख जिन प्रभासूरि के विविध तीर्थकल्प और आवश्यक सूत्र में भी है। विविध तीर्थ कल्पसूत्र के अनुसार महाराष्ट्र के इस नगर में सातवाहन नरेश का राज्य था। उसने उज्जयिनी के विक्रमादित्य को हराया था। सातवाहन एक विधवा ब्राह्मणी का पुत्र था और उसके पिता नागराज का गोदावरी के निकट निवास स्थान था। सातवाहन ने दक्षिण दिशा में ताप्ती का निकटवर्ती प्रदेश जीत लिया था। इस ग्रंथ के अनुसार सातवाहन जैन धर्म का अनुयायी था और उसने अनेक चैत्य बनवाए और गोदावरी के तट पर महालक्ष्मी की मूर्ति की स्थापना की। गुजरात के कायस्थ कवि सोडल्ल (या सोडठल) की सुप्रसिद्ध रचना 'चंपूकाव्य' उदयसुन्दरी का नायक मलयवाहन प्रतिष्ठान का राजा था। उसका विवाह नागराज शिखराज की कन्या उदयसुन्दरी के साथ हुआ था।[2]
आन्ध्रों की राजधानी
सातवाहन नरेशों की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठान इतिहास में प्रसिद्ध रहा है। जान पड़ता है कि मलयवाहन इसी वंश का राजा था। प्राचीन काल में आंध्र साम्राज्य की राजधानी कृष्णा के मुहाने पर स्थित धन्यकटक या अमरावती में थी, किन्तु प्रथम शती ई. के अंतिम वर्षों में आंध्रों ने उत्तर पश्चिम में एक दूसरी राजधानी बनाने का विचार किया। क्योंकि उनके राज्य के इस भाग पर शक, पहलव और यवनों के आक्रमण का डर लगा हुआ था। इस प्रकार आंध्र साम्राज्य की राजधानी प्रतिष्ठान या पैठान में बनाई गई और पूर्वी भाग की राजधानी धन्यकटक में ही रही। प्रतिष्ठान में स्थापित होने वाली आंध्र शाखा के नरेशों ने अपने नाम के आगे आंध्रभृत्य विशेषण जोड़ा, जो उनकी मुख्य आंध्र शासकों की अधीनता का सूचक था, किन्तु कालान्तर में वे स्वतंत्र हो गए और शातवाहन कहलाए।
पुरातात्त्विक महत्त्व
पुरातत्त्व संबंधी खुदाई में पैठाण या पैठन से आंध्र नरेशों के सिक्के मिले हैं, जिन पर स्वस्तिक, बोधिद्रुम तथा अन्य चिह्न अंकित हैं। अन्य अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। जिनमें मिट्टी की मूर्तियाँ, माला की गुरियाँ, हाथी दांत और शंख की बनी वस्तुएं तथा मकानों के खंडहर उल्लेखनीय हैं। पैठाण की प्राय: सभी इमारतें खंडहर के रूप में हैं, किन्तु नगर में अपेक्षाकृत नवीन मंदिर भी हैं, जिनमें लकड़ी का अच्छा काम है। 1734 ई. में गोदावरी नदी पर स्थित नागाघाट निर्मित हुआ था। इसके पास ही दो मंदिर हैं, जिनमें से एक गणपति का है। नगर की मसजिद में एक कूप है, जिसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि यह वही कुआं है, जिसमें नागराज शेष का ब्राह्मण पुत्र शालिवाहन अपनी बनाई हुई मिट्टी की मूर्तियां डालता रहा था और इन सैनिकों तथा हाथी, घोड़ों की प्रतिमाओं ने बाद में जीवित रूप धारण करके शालिवाहन की आक्रमणकारी उज्जयिनी नरेश विक्रमादित्य से रक्षा की थी। विक्रमादित्य को ज्योतिषियों ने बताया था कि शालिवाहन उसका शत्रु होगा। शालिवाहन ने विक्रमादित्य को हराकर पूरे दक्षिणापथ पर अधिकार कर लिया और कहते हैं कि 78 ई. में प्रवर्तित 'शक शालिवाहन' नामक प्रसिद्ध संवत उसी ने चलाया था।[2]
विद्वानों की स्थली
'पैशाची प्राकृत' के प्रसिद्ध आचार्य गुणाढ्य प्रतिष्ठान निवासी थे। पीछे वह पिशाच देश में जा बसे थे। इनका प्रख्यात ग्रंथ 'बृहत्कथा' अब अप्राप्य है, किन्तु 12वीं शती तक यह उपलब्ध था। गुणाढ्य प्रतिष्ठान के राजा शालिवाहन (78 ई.) की राज्य सभा के रत्न थे। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध विद्वान हेमाद्रि का भी प्रतिष्ठान से निकट का संबंध था। ये शुक्ल यजुर्वेदी ब्राह्मण थे और देवगिरि के यादव नरेश महादेव तथ तत्पश्चात् रामचंद्र सेन के प्रधानमंत्री थे। इनके लिखे हुए कई प्रसिद्ध ग्रंथ हैं, जिनमें चतुर्वर्ग चिंतामणि तथा आयुर्वेद रसायन मुख्य हैं। हेमाद्रि को मराठी की 'मोडी लिपि' का आविष्कारक कहा जाता है। 14वीं शती में महाराष्ट्र के महानुभाव संत सम्प्रदाय का जन्म प्रतिष्ठान में हुआ था। डाक्टर भंडारकर ने प्रतिष्ठान का अभिज्ञान 'नवनर' या 'नवनगर' नामक स्थान से किया है, जो संदेहास्पद है। जैन ग्रंथ 'विविधतीर्थकल्प' के अनुसार महाराष्ट्र में स्थित यह नगर कालांतर में एक महत्त्वहीन गाँव बन गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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