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==निर्माण काल==
भोरमदेव मंदिर के चारों ओर मैकल पर्वतसमूह है, जिनके मध्य हरी-भरी घाटी में यह मंदिर स्थित है। मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब भी है। मंदिर की बनावट [[खजुराहो]] तथा [[कोणार्क]] के मंदिर के समान है, जिसके कारण लोग इस मंदिर को 'छत्तीसगढ़ का खजुराहो' भी कहते हैं। यह मंदिर एक एतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा देवराय ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोंड राजाओं के [[देवता]] भोरमदेव थे, जो कि [[शिव]] का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा।
==स्थापत्य==
मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है, जो कि छत का भार संभाले हुए है।


'''भोरमदेव मंदिर''' एक बहुत ही पुराना [[हिंदू]] मंदिर है जो भगवान [[शिव]] को समर्पित है, यह [[छत्तीसगढ़]] राज्य के [[कवर्धा ज़िला|कवर्धा ज़िले]] में स्थित है।
मंडप में [[लक्ष्मी]], [[विष्णु]] एवं [[गरुड़]] की मुर्ति रखी है तथा भगवान के ध्यान में बैठे हुए एक राजपुरुष की मूर्ति भी रखी हुई है। मंदिर के गर्भगृह में अनेक मुर्तियां रखी हैं तथा इन सबके बीच में एक काले पत्थर से बना हुआ [[शिवलिंग]] स्थापित है। गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मुर्ति है, साथ ही नृत्य करते हुए [[गणेश]] की मूर्ति तथा ध्यानमग्न अवस्था में राजपुरुष एवं उपासना करते हुए एक स्त्री-पुरुष की मूर्ति भी है। मंदिर के ऊपरी भाग का शिखर नहीं है। मंदिर के चारों ओर बाहरी दीवारों पर विष्णु, [[शिव]], चामुंडा तथा गणेश आदि की मुर्तियां लगी हैं। इसके साथ ही लक्ष्मी, विष्णु एवं [[वामन अवतार]] की मूर्ति भी दीवार पर लगी हुई है। [[सरस्वती देवी|देवी सरस्वती]] की मूर्ति तथा शिव की अर्धनारीश्वर की मूर्ति भी यहाँ लगी हुई है।
*भोरमदेव मंदिर कृत्रिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच स्थित है, यह लगभग 7 से 11 वीं [[शताब्दी]] तक की अवधि में बनाया गया था।
*भोरमदेव मंदिर नाग राजवंश के राजा रामचन्द्र द्वारा बनाया गया था।
*भोरमदेव मंदिर में [[खजुराहो|खजुराहो मंदिर]] की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है।
*भोरमदेव मंदिर पर नृत्य की आकर्षक भाव भंगिमाँए के साथ-साथ [[हाथी]], घोड़े, भगवान [[गणेश]] एवं [[नटराज]] की मूर्तियाँ चंदेल शैली में उकेरी गयी हैं।
*प्राकृतिक सौंदर्य की पृष्ठभूमि में, इस मंदिर को भी अपनी [[वास्तुकला]] के लिए अद्वितीय है।
*मंदिर के गर्भगृह के तीनों प्रवेशद्वार पर लगाया गया [[काला रंग|काला]] चमकदार पत्थर इसकी आभा में और वृद्धि करता है।




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==संबंधित लेख==
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12:04, 8 दिसम्बर 2017 का अवतरण

भोरमदेव मंदिर
भोरमदेव मंदिर
भोरमदेव मंदिर
वर्णन 'भोरमदेव मंदिर' एक बहुत ही पुराना हिंदू मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है, यह छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम ज़िले में स्थित है।
स्थान कबीरधाम ज़िला, छत्तीसगढ़
निर्माता राजा रामचन्द्र
निर्माण काल 7 से 11 वीं शताब्दी
देवी-देवता शिव, गणेश
वास्तुकला चंदेल शैली
भौगोलिक स्थिति कबीरधाम से 18 कि.मी. तथा रायपुर से 125 कि.मी. की दूरी पर।
अन्य जानकारी भोरमदेव मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को 'छत्तीसगढ़ का खजुराहो' भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह के तीनों प्रवेशद्वार पर लगाया गया काला चमकदार पत्थर इसकी आभा में और वृद्धि करता है।
अद्यतन‎

भोरमदेव छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में कबीरधाम से 18 कि.मी. दूर तथा रायपुर से 125 कि.मी. दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर कृत्रिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच स्थित है, यह लगभग 7 से 11 वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था। यहाँ मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को "छत्तीसगढ़ का खजुराहो" भी कहा जाता है।

निर्माण काल

भोरमदेव मंदिर के चारों ओर मैकल पर्वतसमूह है, जिनके मध्य हरी-भरी घाटी में यह मंदिर स्थित है। मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब भी है। मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान है, जिसके कारण लोग इस मंदिर को 'छत्तीसगढ़ का खजुराहो' भी कहते हैं। यह मंदिर एक एतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा देवराय ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोंड राजाओं के देवता भोरमदेव थे, जो कि शिव का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा।

स्थापत्य

मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है, जो कि छत का भार संभाले हुए है।

मंडप में लक्ष्मी, विष्णु एवं गरुड़ की मुर्ति रखी है तथा भगवान के ध्यान में बैठे हुए एक राजपुरुष की मूर्ति भी रखी हुई है। मंदिर के गर्भगृह में अनेक मुर्तियां रखी हैं तथा इन सबके बीच में एक काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मुर्ति है, साथ ही नृत्य करते हुए गणेश की मूर्ति तथा ध्यानमग्न अवस्था में राजपुरुष एवं उपासना करते हुए एक स्त्री-पुरुष की मूर्ति भी है। मंदिर के ऊपरी भाग का शिखर नहीं है। मंदिर के चारों ओर बाहरी दीवारों पर विष्णु, शिव, चामुंडा तथा गणेश आदि की मुर्तियां लगी हैं। इसके साथ ही लक्ष्मी, विष्णु एवं वामन अवतार की मूर्ति भी दीवार पर लगी हुई है। देवी सरस्वती की मूर्ति तथा शिव की अर्धनारीश्वर की मूर्ति भी यहाँ लगी हुई है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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