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पश्चिमी पंजाब के झेलम ज़िले (जो अब [[पाकिस्तान]] में है) के दीना गांव में [[18 अगस्त]] [[1936]] को जन्मे सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलज़ार ने न सिर्फ गीतकार के रूप में ही नहीं बल्कि लेखक, निर्माता और निर्देशक के रूप में भी बॉलीवुड में अपना विशेष योगदान दिया है। बचपन के दिनों से ही शेर-ओ-शायरी का शौक़ रखने वाले गुलज़ार अंताक्षरी के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेते थे। उन्हें गीत संगीत के प्रति ख़ासी रूचि थी। वह [[रवि शंकर]] और [[अली अकबर खान]] के कार्यक्रम सुनने के लिए जाया करते थे। वर्ष 1947 में [[भारत का विभाजन|हिन्दुस्तान विभाजन]] के बाद उनका परिवार [[अमृतसर]] चला आया। इसके बाद अपने सपनों को नया रूप देने के लिए गुलज़ार [[मुंबई]] आ गए लेकिन सपनों की नगरी में उन्हें काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना प़डा। अपने जीवन यापन के लिए उन्होंने मोटर गैराज में एक मैकेनिक की नौकरी भी की।<ref name="KK">{{cite web |url=http://www.khaskhabar.com/feature/gulzar-happy-birthday-998edf728e401f2306cdb16f067234a5.html |title=गुलज़ार जन्म दिवस पर: दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन. . |accessmonthday=24 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=खास खबर |language=हिन्दी }}</ref>
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====आंरभिक जीवन====
====आंरभिक जीवन====
मुंबई आने के बाद [[कवि]] के रूप में गुलज़ार प्रोग्रेसिव रायर्टस एसोसिएशन पी.डब्लू.ए से जुड गए। उन्होंने अपने सिने कैरियर की शुरूआत वर्ष 1961 में बॉलीवुड के महान निर्देशक [[बिमल रॉय]] के सहायक के रूप में की। गुलज़ार ने [[ऋषिकेश मुखर्जी]] और [[हेमन्त कुमार]] के सहायक के तौर पर भी काम किया। विमल राय ने अपने इस सहायक निर्देशक के भीतर एक ऐसे कवि को देखा जो रूहानी और रोमानी शब्दों से इस तरह खेलता था जैसे बच्चे खिलौनों से खेलते हैं। उन्होंने गुलज़ार को सहायक निर्देशक के रूप में काम देते हुए अपनी क्लासिक फ़िल्म 'बंदिनी' के लिए गीत लिखने का काम दिया। गीतकार के रूप में गुलज़ार ने पहला गाना 'मेरा गोरा अंग लेई ले' वर्ष 1963 में प्रदर्शित बंदिनी के लिए लिखा। जब तक बंदिनी प्रदर्शित हुई उससे पहले [[बलराज साहनी]] की फ़िल्म काबुलीवाला का प्रदर्शन हो गया। इस फ़िल्म के गीतों को भी गुलज़ार ने ही लिखा था। काबुलीवाला में उनका लिखा गाना 'ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछडे चमन तुझपे दिल कुर्बान और गंगा आए कहां से, गंगा जाए कहां से ने उन्हें न सिर्फ श्रोताओं और दर्शकों की नजर में उभार दिया था बल्कि बंदिनी के गीतकार के रूप में दर्शकों ने जब उनका नाम सुना तो उम्मीदें ज्यादा बढ गई और गुलज़ार श्रोताओं की उम्मीदों पर न सिर्फ खरे उतरे बल्कि उन्होंने अपने लिए बॉलीवुड में नाम और शोहरत भी पाई।<ref name="KK"/>
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====फ़िल्म निर्देशन====
====फ़िल्म निर्देशन====

15:17, 18 अगस्त 2013 का अवतरण

गुलज़ार
गुलज़ार
गुलज़ार
पूरा नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा
प्रसिद्ध नाम गुलज़ार
अन्य नाम गुलज़ार साहब
जन्म 18 अगस्त, 1936
जन्म भूमि दीना गांव, झेलम ज़िला, (पाकिस्तान)
पति/पत्नी राखी गुलज़ार
संतान मेघना गुलज़ार
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र गीतकार, कवि, साहित्यकार, फ़िल्म निर्देशक
मुख्य फ़िल्में मेरे अपने (1971), आँधी (1975), कोशिश (1972)
पुरस्कार-उपाधि ऑस्कर, ग्रैमी पुरस्कार, तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार, पद्मभूषण
नागरिकता भारतीय
भाषा हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी
पुस्तकें चौरस रात (1962), जानम (1963), एक बूँद चाँद (1972)
अद्यतन‎

गुलज़ार (अंग्रेज़ी: Gulzar) वास्तविक नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा (जन्म- 18 अगस्त, 1936) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार के अलावा ये एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार हैं। उनकी रचनाएँ मुख्यतः हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी में हैं। गुलज़ार को वर्ष 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2009 में डैनी बॉयल निर्देशित फ़िल्म स्लमडॉग मिलियनेयर में उनके द्वारा लिखे गीत 'जय हो...' के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार भी मिल चुका है। इसी गीत के लिये गुलज़ार को ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

जीवन परिचय

पश्चिमी पंजाब के झेलम ज़िले (जो अब पाकिस्तान में है) के दीना गांव में 18 अगस्त 1936 को जन्मे सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलज़ार ने न सिर्फ गीतकार के रूप में ही नहीं बल्कि लेखक, निर्माता और निर्देशक के रूप में भी बॉलीवुड में अपना विशेष योगदान दिया है। बचपन के दिनों से ही शेर-ओ-शायरी का शौक़ रखने वाले गुलज़ार अंताक्षरी के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेते थे। उन्हें गीत संगीत के प्रति ख़ासी रूचि थी। वह रवि शंकर और अली अकबर खान के कार्यक्रम सुनने के लिए जाया करते थे। वर्ष 1947 में हिन्दुस्तान विभाजन के बाद उनका परिवार अमृतसर चला आया। इसके बाद अपने सपनों को नया रूप देने के लिए गुलज़ार मुंबई आ गए लेकिन सपनों की नगरी में उन्हें काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना प़डा। अपने जीवन यापन के लिए उन्होंने मोटर गैराज में एक मैकेनिक की नौकरी भी की।[1]

आंरभिक जीवन

मुंबई आने के बाद कवि के रूप में गुलज़ार 'पी.डब्लू.ए.' [2] से जुड गए। उन्होंने अपने सिने कॅरियर की शुरूआत वर्ष 1961 में बॉलीवुड के महान निर्देशक बिमल रॉय के सहायक के रूप में की। गुलज़ार ने ऋषिकेश मुखर्जी और हेमन्त कुमार के सहायक के तौर पर भी काम किया। विमल राय ने अपने इस सहायक निर्देशक के भीतर एक ऐसे कवि को देखा जो रूहानी और रोमानी शब्दों से इस तरह खेलता था जैसे बच्चे खिलौनों से खेलते हैं। उन्होंने गुलज़ार को सहायक निर्देशक के रूप में काम देते हुए अपनी क्लासिक फ़िल्म 'बंदिनी' के लिए गीत लिखने का काम दिया। गीतकार के रूप में गुलज़ार ने पहला गाना 'मेरा गोरा अंग लेई ले' वर्ष 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म 'बंदिनी' के लिए लिखा। जब तक बंदिनी प्रदर्शित हुई उससे पहले बलराज साहनी की फ़िल्म 'काबुली वाला' का प्रदर्शन हो गया। इस फ़िल्म के गीतों को भी गुलज़ार ने ही लिखा था। काबुली वाला में उनका लिखा गाना 'ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछडे चमन, तुझ पे दिल कुर्बान' और 'गंगा आए कहां से, गंगा जाए कहां से' ने उन्हें न सिर्फ श्रोताओं और दर्शकों की नज़र में उभार दिया था बल्कि बंदिनी के गीतकार के रूप में दर्शकों ने जब उनका नाम सुना तो उम्मीदें ज्यादा बढ़ गईं और गुलज़ार श्रोताओं की उम्मीदों पर न सिर्फ खरे उतरे बल्कि उन्होंने अपने लिए बॉलीवुड में नाम और शोहरत भी पाई।[1]

फ़िल्म निर्देशन

काबुलीवाला के बाद गुलज़ार ने पीछे मुडकर नहीं देखा। उन्होंने एक से बढ़कर एक गीत लिखकर जन-जन के हृदय के तार झनझनाए और उन्हें भाव विभोर कर फ़िल्मी गीत गंगा को समृद्ध किया। गुलज़ार ने वर्ष 1971 में फ़िल्म मेरे अपने के जरिए निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा। अपने समय की ट्रेजडी क्वीन के नाम से विख्यात मीना कुमारी के साथ उन्होंने विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा को इस फ़िल्म में पेश किया था। मीना कुमारी के दमदार अभिनय और निर्देशकीय क्षमता की वजह से सफलता पाने में कामयाब हुई। गुलज़ार ने अपनी फ़िल्मों में अनगिनत अभिनेत्रियों को बेहतरीन किरदारों में पेश किया। उन्होंने सुचित्रा सेन के साथ आंधी, रेखा के साथ इजाजत, हेमा मालिनी के साथ खुशबू, किनारा, शबाना के साथ देवता, शर्मिला टैगोर के साथ मौसम, नमकीन जैसी अविस्मरणीय फ़िल्में बनाई लेकिन उन्होंने ताउम्र रिश्ता तोडने के बाद राखी की तरफ कभी पलटकर नहीं देखा और न ही कभी अपनी किसी फ़िल्म में उन्हें नायिका के तौर पर लिया। संजीव कुमार गुलज़ार के पसन्दीदा कलाकार थे। संजीव कुमार को लेकर उन्होंने मौसम, कोशिश, आंधी, नमकीन, अंगूर, देवता जैसी अविस्मरणीय फ़िल्में दीं। ऐसा नहीं कि उन्होंने अन्य नायकों के साथ काम नहीं किया उन्होंने अपनी शुरूआत विनोद खन्ना से की थी उनके साथ उन्होंने समय-समय कुछ चुनिंदा-अचानक, लेकिन मीरा जैसी फ़िल्में की।[1]

प्रमुख फ़िल्में (बतौर निर्देशक)

  • मेरे अपने (1971)
  • परिचय (1972)
  • कोशिश (1972)
  • अचानक (1973)
  • खुशबू (1974)
  • आँधी (1975)
  • मौसम (1976)
  • किनारा (1977)
  • किताब (1978)
  • अंगूर (1980)
  • नमकीन (1981)
  • मीरा (1981)
  • इजाजत (1986)
  • लेकिन (1990)
  • लिबास (1993)
  • माचिस (1996)
  • हु तू तू (1999)
टीवी सीरियल
  • मिर्जा गालिब (1988)
  • किरदार (1993) [3]

विवाह

1973 में गुलज़ार का संजोग कुछ ऐसा बना की उन्होंने फ़िल्म अभिनेत्री राखी से शादी कर ली। राखी और गुलज़ार की शादी में गुलज़ार ने सिर्फ एक शर्त रखी कि राखी शादी के बाद फ़िल्मों में काम नहीं करेंगी। राखी ने गुलज़ार का कहा माना और काम बन्द कर दिया। इसके बावजूद इन दोनों की कभी नहीं बनी और तीन साल बाद राखी अपनी बेटी मेघना को लेकर गुलज़ार से अलग हो गई और उन्होंने फिर से फ़िल्मों में काम करना शुरू कर दिया। गुलज़ार से शादी से पूर्व 15 वर्ष की उम्र में राखी की शादी अजय विश्वास के साथ हुई थी। वह मुम्बई के फ़िल्मालय में काम करते थे। सास ने पति के पास रहने के लिए मुम्बई भिजवा दिया। राखी को अजय का साथ जरा भी नहीं जमा। उनकी संगत ग़लत लोगों के साथ थी। एक दिन अजय ने राखी को घर से निकाल दिया। राखी को आज भी इस बात का गम है कि गुलज़ार ने कभी उसकी अभिनय क्षमता को पहचानने की कोशिश ही नहीं की। गुलज़ार से राखी को एक बेटी मेघना हुई, आज वह भी बॉलीवुड में बतौर निर्देशक और लेखक के रूप में अपनी पहचान रखती है।[1]

मीना कुमारी और गुलज़ार

मीना कुमारी और गुलज़ार के रिश्ते भावनाओं से भरे हुए रहे हैं। मीना ने मौत से पहले अपनी तमाम डायरी और शायरी की कापियाँ गुलज़ार को सौंप दी थीं। गुलज़ार ने उन्हें संपादित कर बाद में प्रकाशित भी कराया था। मीना-गुलज़ार की भेंट फ़िल्म ‘बेनज़ीर’ के सेट पर हुई थी। बिमल राय निर्देशक थे और गुलज़ार सहायक थे। शॉट रेडी होने पर स्टार को कैमरे तक लाने की जिम्मेदारी उनकी थी। यहीं से दोस्ती में अपनापन पनपता चला गया। बाद में गुलज़ार जब स्वतंत्र फ़िल्म निर्देशक बने तो फ़िल्म ‘मेरे अपने’ की मुख्य भूमिका गुलज़ार ने मीना को सौंपी। 1972 में मीना चल बसीं। ‘मेरे अपने’ कुछ समय बाद प्रदर्शित हुई और गुलज़ार स्वतंत्र फ़िल्म निर्देशक बन गए। आज भी गुलज़ार के ऑफिस में दीवार पर ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी का चित्र बोलता-सा नजर आता है।[3]

साहित्य लेखन

गुलज़ार द्वारा लिखित कुछ पुस्तकें निम्न हैं

  • चौरस रात (लघु कथाएँ, 1962)
  • जानम (कविता संग्रह, 1963)
  • एक बूँद चाँद (कविताएँ, 1972)
  • रावी पार (कथा संग्रह, 1997)
  • रात, चाँद और मैं (2002)
  • रात पश्मीने की
  • खराशें (2003) [3]

सम्मान और पुरस्कार

गुलज़ार को तीन बार 'राष्ट्रीय पुरस्कार' से भी नवाजा जा चुका है। इनमें वर्ष 1972 में 'कोशिश' फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले का पुरस्कार, वर्ष 1975 में 'मौसम' फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और वर्ष 1987 में 'इजाज़त' फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार शामिल है। गुलज़ार के चमकदार कैरियर में एक गौरवपूर्ण नया अध्याय तब जुड गया जब वर्ष 2009 में फ़िल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' में उनके गीत 'जय हो' को ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 2004 में उन्हें देश के तीसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया।[1]इसके अतिरिक्त गुलज़ार को वर्ष 2002 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' भी मिल चुका है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 गुलज़ार जन्म दिवस पर: दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन. . (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) खास खबर। अभिगमन तिथि: 24 सितम्बर, 2012।
  2. प्रोग्रेसिव रायर्टस एसोसिएशन
  3. 3.0 3.1 3.2 हजार चेहरों वाले गुलज़ार (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 24 सितम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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