"स्रुघना": अवतरणों में अंतर
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चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] के वर्णन से प्रतीत होता है कि श्रुघ्न की स्थिति [[हरियाणा]] के उत्तर पूर्वी भाग में थी। युवानच्वांग ने इस स्थान को 'मतिपुर' ([[मंडावर उत्तर प्रदेश|मंडावर]], [[बिजनौर ज़िला|ज़िला बिजनौर]], उत्तर प्रदेश) तथा [[जालंधर]] (पूर्वी [[पंजाब]]) के बीच में बताया है। चीनी यात्री यहां के बौद्ध बिहार में कई मास तक निरंतर ठहरकर जयगुप्त नामक विद्वान के पास अध्ययन करता रहा था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=925|url=}}</ref> | चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] के वर्णन से प्रतीत होता है कि श्रुघ्न की स्थिति [[हरियाणा]] के उत्तर पूर्वी भाग में थी। युवानच्वांग ने इस स्थान को 'मतिपुर' ([[मंडावर उत्तर प्रदेश|मंडावर]], [[बिजनौर ज़िला|ज़िला बिजनौर]], उत्तर प्रदेश) तथा [[जालंधर]] (पूर्वी [[पंजाब]]) के बीच में बताया है। चीनी यात्री यहां के बौद्ध बिहार में कई मास तक निरंतर ठहरकर जयगुप्त नामक विद्वान के पास अध्ययन करता रहा था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=925|url=}}</ref> | ||
[[महमूद ग़ज़नवी]] [[कन्नौज]] पर आक्रमण के | [[महमूद ग़ज़नवी]] [[कन्नौज]] पर आक्रमण के पश्चात् स्रुघना के मार्ग से ही वापस गया तथा [[तैमूर]] भी [[हरिद्वार]] से लूट-पाट के अपने अभियान के पश्चात् इसी मार्ग से वापस गया था तथा [[बाबर]] ने [[दिल्ली]] विजय के समय इसी मार्ग का अनुसरण किया। स्रुघना से 500 ई. पू. से लेकर 1000 ई. काल की मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ से बड़ी-बड़ी ईंटें प्राप्त हुई हैं, जो 9.5 से 10.5 लम्बी तथा 2.5 से 3.5 मोटी हैं तथा इन ईंटों के यहाँ अनेक टीले मिले हैं। | ||
==युवानच्वांग का उल्लेख== | ==युवानच्वांग का उल्लेख== | ||
स्रुघना [[गुप्त काल|गुप्तकालीन]] हैं। सातवीं [[शताब्दी]] में चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] थानेश्वर छोड़ने के | स्रुघना [[गुप्त काल|गुप्तकालीन]] हैं। सातवीं [[शताब्दी]] में चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] थानेश्वर छोड़ने के पश्चात् स्रुघना पहुँचा था। युवानच्वांग ने स्रुघना को '''सु- लु- किन- ना''' कहा है। उसके अनुसार स्रुघना साढ़े तीन मील के दायरे में फैला हुआ था तथा किसी [[राज्य]] की राजधानी था। स्रुघना [[बौद्ध]] तथा[[ ब्राह्मण]] शिक्षा का केन्द्र था। युवानच्वांग कहता है कि इस राजधानी का कुछ भाग उसके समय [[खंडहर]] बन गया था, लेकिन यहाँ से प्राप्त सिक्कों के आधार पर [[कनिंघम]] का कहना है कि इस नगर का पतन [[मुस्लिम]] शासकों द्वारा विजय प्राप्त करने के समय हुआ। | ||
[[गुप्त काल]] में इस स्थान के बौद्ध भिक्षुओं की ख्याति दूर-दूर तक थी। [[दर्शन शास्त्र]] पढ़ने के लिए देश के अनेक भागों से विद्यार्थी स्रुघना आते थे। चीनी यात्री युवानच्वांग यहाँ के [[बौद्ध विहार]] में कई मास तक निरंतर ठहरकर जयगुप्त नामक विद्वान के पास अध्ययन करता रहा था। वर्तमान समय में यहाँ सुघ नाम का गाँव यमुना के निकट व जगाधरी बूरिया के बीच में प्राचीन खण्डहरों के बीच बसा है। | [[गुप्त काल]] में इस स्थान के बौद्ध भिक्षुओं की ख्याति दूर-दूर तक थी। [[दर्शन शास्त्र]] पढ़ने के लिए देश के अनेक भागों से विद्यार्थी स्रुघना आते थे। चीनी यात्री युवानच्वांग यहाँ के [[बौद्ध विहार]] में कई मास तक निरंतर ठहरकर जयगुप्त नामक विद्वान के पास अध्ययन करता रहा था। वर्तमान समय में यहाँ सुघ नाम का गाँव यमुना के निकट व जगाधरी बूरिया के बीच में प्राचीन खण्डहरों के बीच बसा है। |
07:30, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
स्रुघना अथवा श्रुघ्न उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के पश्चिम तट पर सतलुज-यमुना विभाजक में जगाधरी के निकट स्थित एक स्थान। गुप्त काल में इस स्थान के बौद्ध भिक्षुओं की विद्वता की ख्याति दूर-दूर तक थी। यहां के 'अभिधर्म' और दर्शन के पंडितों के पास पढ़ने के लिए देश के अनेक भागों से विद्यार्थी आते थे।
स्थिति
श्रुघ्न थानेश्वर के उत्तर-पूर्व में 38 कि.मी. दूरी पर स्थित है। कनिंघम के अनुसार इस स्थान का महत्त्व इस तथ्य से दिखाया जा सकता है कि यह स्थान गंगा के दोआब से मिरात सहारनपुर तथा अम्बाला से होते हुए ऊपर पंजाब की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवस्थित है एवं यमुना के मार्ग पर नियंत्रण रखता है।
इतिहास
चीनी यात्री युवानच्वांग के वर्णन से प्रतीत होता है कि श्रुघ्न की स्थिति हरियाणा के उत्तर पूर्वी भाग में थी। युवानच्वांग ने इस स्थान को 'मतिपुर' (मंडावर, ज़िला बिजनौर, उत्तर प्रदेश) तथा जालंधर (पूर्वी पंजाब) के बीच में बताया है। चीनी यात्री यहां के बौद्ध बिहार में कई मास तक निरंतर ठहरकर जयगुप्त नामक विद्वान के पास अध्ययन करता रहा था।[1]
महमूद ग़ज़नवी कन्नौज पर आक्रमण के पश्चात् स्रुघना के मार्ग से ही वापस गया तथा तैमूर भी हरिद्वार से लूट-पाट के अपने अभियान के पश्चात् इसी मार्ग से वापस गया था तथा बाबर ने दिल्ली विजय के समय इसी मार्ग का अनुसरण किया। स्रुघना से 500 ई. पू. से लेकर 1000 ई. काल की मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ से बड़ी-बड़ी ईंटें प्राप्त हुई हैं, जो 9.5 से 10.5 लम्बी तथा 2.5 से 3.5 मोटी हैं तथा इन ईंटों के यहाँ अनेक टीले मिले हैं।
युवानच्वांग का उल्लेख
स्रुघना गुप्तकालीन हैं। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री युवानच्वांग थानेश्वर छोड़ने के पश्चात् स्रुघना पहुँचा था। युवानच्वांग ने स्रुघना को सु- लु- किन- ना कहा है। उसके अनुसार स्रुघना साढ़े तीन मील के दायरे में फैला हुआ था तथा किसी राज्य की राजधानी था। स्रुघना बौद्ध तथाब्राह्मण शिक्षा का केन्द्र था। युवानच्वांग कहता है कि इस राजधानी का कुछ भाग उसके समय खंडहर बन गया था, लेकिन यहाँ से प्राप्त सिक्कों के आधार पर कनिंघम का कहना है कि इस नगर का पतन मुस्लिम शासकों द्वारा विजय प्राप्त करने के समय हुआ।
गुप्त काल में इस स्थान के बौद्ध भिक्षुओं की ख्याति दूर-दूर तक थी। दर्शन शास्त्र पढ़ने के लिए देश के अनेक भागों से विद्यार्थी स्रुघना आते थे। चीनी यात्री युवानच्वांग यहाँ के बौद्ध विहार में कई मास तक निरंतर ठहरकर जयगुप्त नामक विद्वान के पास अध्ययन करता रहा था। वर्तमान समय में यहाँ सुघ नाम का गाँव यमुना के निकट व जगाधरी बूरिया के बीच में प्राचीन खण्डहरों के बीच बसा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 925 |