"मेगुती जैन मंदिर": अवतरणों में अंतर
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पुरातत्त्वज्ञों का मत है कि मेगुती का मंदिर तथा [[बीजापुर ज़िला|बीजापुर ज़िले]] के अन्य चालुक्य कालीन मंदिर मुख्यतः उत्तर तथा [[मध्य भारत]] के पूर्व-गुप्तकालीन मंदिरों की परम्परा में है। अंतर केवल शिखर की उपस्थिति के कारण है, जो प्राचीन परम्परा के विकसित रूप का परिचायक है। | पुरातत्त्वज्ञों का मत है कि मेगुती का मंदिर तथा [[बीजापुर ज़िला|बीजापुर ज़िले]] के अन्य चालुक्य कालीन मंदिर मुख्यतः उत्तर तथा [[मध्य भारत]] के पूर्व-गुप्तकालीन मंदिरों की परम्परा में है। अंतर केवल शिखर की उपस्थिति के कारण है, जो प्राचीन परम्परा के विकसित रूप का परिचायक है। | ||
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10:50, 29 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
मेगुती जैन मंदिर
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विवरण | 'मेगुती जैन मंदिर' कर्नाटक के धार्मिक स्थलों में से एक है। चालुक्य वास्तुशैली में निर्मित यह एक महत्त्वपूर्ण जैन मंदिर है। |
राज्य | कर्नाटक |
ज़िला | बीजापुर |
निर्माण काल | 634 ई. |
निर्माता | पुलकेशिन द्वितीय के मंत्री द्वारा। |
संबंधित लेख | जैन मन्दिर, जैन धर्म, चालुक्य वंश |
अन्य जानकारी | मेगुती जैन मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर पटा हुआ प्रदक्षिणापथ है। इसका शिखर विकास की प्रारंभिक अवस्था का द्योतक है। मंदिर के निर्माण में लघु शिलाखण्डों का प्रयोग हुआ है। |
मेगुती जैन मंदिर कर्नाटक राज्य के बीजापुर ज़िले में स्थित है। मंदिर में बने शिलालेखों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 634 ई. में पुलकेशिन द्वितीय के मंत्री द्वारा करवाया गया था। चालुक्य वास्तुशैली में निर्मित यह एक महत्त्वपूर्ण जैन मंदिर है।
बुद्ध प्रतिमा
उस काल में इस मंदिर का निर्माण अधूरा ही रह गया था। मंदिर की नक्काशी का काफ़ी काम छूट गया था। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की बैठी हुई मूर्ति ध्यान मुद्रा में लगी स्थापित है। मंदिर में माता अम्बिका की पूजा-आराधना भी की जाती है। वर्तमान में इस मंदिर का निर्माण मोर्टार का इस्तेमाल किए बिना द्रविड़ शैली में किया गया है।
स्थापत्य
मेगुती जैन मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर पटा हुआ प्रदक्षिणापथ है। इसका शिखर विकास की प्रारंभिक अवस्था का द्योतक है। मंदिर के निर्माण में लघु शिलाखण्डों का प्रयोग हुआ है। बाह्म-स्तम्भों के कोष्ठकीय शीर्षकों का निर्माण कुशल और अलंकृत है। इस मंदिर में केन्द्रीय देवगृह के बाहर स्तम्भयुक्त संस्थागार (सभागृह) है। भवन के कई भागों में तक्षण कला अपूर्ण है, इससे यह परिलक्षित होता है कि शिल्पी पहले भवन को निर्मित कर लेते थे, तदुपरांत काट-छाँट और पच्चीकारी करते थे। इससे यह भी स्पष्ट है कि ऐहोल के इन मन्दिरों की निर्माण कला में बौद्ध गिरि-कीर्तित चैत्य गृहों की निर्माण कला का प्रभाव पड़ा था।
पुरातत्त्वज्ञों का मत
पुरातत्त्वज्ञों का मत है कि मेगुती का मंदिर तथा बीजापुर ज़िले के अन्य चालुक्य कालीन मंदिर मुख्यतः उत्तर तथा मध्य भारत के पूर्व-गुप्तकालीन मंदिरों की परम्परा में है। अंतर केवल शिखर की उपस्थिति के कारण है, जो प्राचीन परम्परा के विकसित रूप का परिचायक है।
अन्य मंदिर
ऐहोल आने वाले सभी पर्यटकों को इस मंदिर में दर्शन करने अवश्य आना चाहिए। यहाँ और भी कई छोटे-छोटे मंदिर स्थित हैं। प्रारम्भ में, जैन मेगुती मंदिर में एक बड़ा-सा मुख्य मंडप था, जिसमें कुल 16 स्तम्भ, एक गर्भगृह और विशाल हॉल था। पर्यटक यहां तक आने के लिए सीढ़ियाँ चढ़कर पहुंच सकते हैं। जैसे-जैसे पर्यटक मंदिर की छत की ओर देखेंगे, उन्हें एहसास होगा कि यह मंदिर अन्य मंदिरों से ख़ास है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जैन मेगुती मंदिर, ऐहोल (हिन्दी) नेटिव प्लेनेट। अभिगमन तिथि: 21 सितम्बर, 2014।
संबंधित लेख