"सिद्ध": अवतरणों में अंतर
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# (जैन मत में) अर्हत, जिन। | # (जैन मत में) अर्हत, जिन। | ||
# पूर्वी भारत के 84 वज्रयानी बौद्ध तांत्रिकों का एक वर्ग जो लगभग 800 से 1100 ईसवीं के मध्य हुए। जैसे-बौद्ध सिद्धाचार्य। | # पूर्वी भारत के 84 वज्रयानी बौद्ध तांत्रिकों का एक वर्ग जो लगभग 800 से 1100 ईसवीं के मध्य हुए। जैसे-बौद्ध सिद्धाचार्य। | ||
# शैव नाथ-योगी। [विशेष- वज्रयानी बौद्ध सिद्धों से भिन्न नाथ-सम्प्रदाय के निर्गुण शिव-उपासक योगी मत्स्येंद्रनाथ, गोरखनाथ आदि भी 'सिद्ध' कहे जाते थे। ये सिद्ध योगी 'सिद्ध रसायन' द्वारा अपने शरीर को अजर-अमर रखने को महत्त्वपूर्ण मानते थे। वज्रयानी बौद्ध सिद्धों और नाथ-योगी शैव सिद्धों में परस्पर अनेक तत्वों का आदान-प्रदान होता रहा। नाथ-सम्प्रदाय अत्यंत प्राचीन है परन्तु गोरखनाथ नवीं शती ईसवीं में हुए। अनेक सिद्धों के नाम दोनों परम्पराओं की सूची में समान हैं] | |||
# आध्यात्मिक दृष्टि से महान् और लोक-प्रसिद्ध त्यागी-विरागी महात्मा। | |||
# बिना पकाया हुआ दाल-चावल आदि; सीधा। | |||
|व्याकरण=[[पुल्लिंग]] | |व्याकरण=[[पुल्लिंग]] | ||
|उदाहरण= | |उदाहरण=जहँ जहँ आवत बसे बराती। तहँ तहँ सिद्ध चला बहु भाँति। -[[तुलसीदास]] ([[रामचरितमानस]] 1/333/2) | ||
|विशेष= | |विशेष=सिद्धों के साधना-केंद्र सम्पूर्ण भारत में थे और उन्हें 'सिद्धपीठ' कहा जाता था। परन्तु कामरूप, पूर्णगिरि, श्रीहट्ट आदि इनके प्रमुख केंद्र पूर्वी भारत में ही थे। नालंदा तथा विक्रमशिला के विश्वविद्यालय में भी कुछ सिद्धाचार्य विद्यमान थे। | ||
|विलोम= | |विलोम= | ||
|पर्यायवाची= | |पर्यायवाची= |
07:25, 8 मार्च 2015 का अवतरण
सिद्ध उत्तर भारत में प्रचलित 'प्राचीन भारतीय कृषिजन्य व्यवस्था एवं राजस्व संबंधी पारिभाषिक शब्दावली' में एक शब्द है। सिद्ध का अर्थ है- ऐसी भूमि जिसे कृषि योग्य बना लिया गया है। इन्हें भी देखें: सल्तनत काल की शब्दावली एवं भूगोल शब्दावली
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