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'''रेवत''' रोहिणीपुत्र [[बलराम]] के श्वसुर थे, जो [[कुशस्थली]] के राजा थे। [[ब्रह्मा]] की आज्ञा से इन्होंने अपनी पुत्री [[रेवती]]<ref>किसी-किसी ग्रंथ में रेवती को 'कुकुद्मी' अथवा 'ककुदमी' की पुत्री बताया गया है।</ref><ref>[[भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह चक्र पृ. 272]]</ref> का विवाह [[बलराम]] से कर दिया था।<ref>[[विष्णुपुराण]]</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=449|url=}}</ref> | '''रेवत''' रोहिणीपुत्र [[बलराम]] के श्वसुर थे, जो [[कुशस्थली]] के राजा थे। [[ब्रह्मा]] की आज्ञा से इन्होंने अपनी पुत्री [[रेवती (बलराम की पत्नी)|रेवती]]<ref>किसी-किसी ग्रंथ में रेवती को 'कुकुद्मी' अथवा 'ककुदमी' की पुत्री बताया गया है।</ref><ref>[[भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह चक्र पृ. 272]]</ref> का विवाह [[बलराम]] से कर दिया था।<ref>[[विष्णुपुराण]]</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=449|url=}}</ref> | ||
*वैवस्वत मन्वन्तर की प्रथम चतुर्युगी के सतयुग में [[वैवस्वत मनु]] के वंश में [[शर्याति|महाराज शर्याति]] हुए। उनके तीन पुत्र थे- | *वैवस्वत मन्वन्तर की प्रथम चतुर्युगी के सतयुग में [[वैवस्वत मनु]] के वंश में [[शर्याति|महाराज शर्याति]] हुए। उनके तीन पुत्र थे- |
08:29, 28 जनवरी 2017 का अवतरण
रेवत रोहिणीपुत्र बलराम के श्वसुर थे, जो कुशस्थली के राजा थे। ब्रह्मा की आज्ञा से इन्होंने अपनी पुत्री रेवती[1][2] का विवाह बलराम से कर दिया था।[3][4]
- वैवस्वत मन्वन्तर की प्रथम चतुर्युगी के सतयुग में वैवस्वत मनु के वंश में महाराज शर्याति हुए। उनके तीन पुत्र थे-
- आनर्त के पुत्र हुए रेवत। महाराज रेवत ने ही समुद्र के मध्य में पहले कुशस्थली नगर बसाया।
- महारात आनर्त के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र थे- ककुदमी।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ किसी-किसी ग्रंथ में रेवती को 'कुकुद्मी' अथवा 'ककुदमी' की पुत्री बताया गया है।
- ↑ भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह चक्र पृ. 272
- ↑ विष्णुपुराण
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 449 |