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#मिर्गी के झटकों के दौरान व्यक्ति को जोरों से पकड़ कर रखना भी ठीक नहीं होता। इसी तरह बेहोशी की अवस्था में मुँह में पानी या अन्य कोई तरल [[पदार्थ]] डालना भी खतरनाक हो सकता है। | #मिर्गी के झटकों के दौरान व्यक्ति को जोरों से पकड़ कर रखना भी ठीक नहीं होता। इसी तरह बेहोशी की अवस्था में मुँह में पानी या अन्य कोई तरल [[पदार्थ]] डालना भी खतरनाक हो सकता है। | ||
#मिर्गी रोग से पीड़ित व्यक्ति को कभी भी भारी तथा श्वेतसारिक पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को भोजन में अधिकतर शाकाहारी पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए और रोज नियमित रूप से [[दूध]] का सेवन करना चाहिए, जितना | #मिर्गी रोग से पीड़ित व्यक्ति को कभी भी भारी तथा श्वेतसारिक पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को भोजन में अधिकतर शाकाहारी पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए और रोज नियमित रूप से [[दूध]] का सेवन करना चाहिए, जितना ज़रूरत हो उतना ही भोजन करना चाहिए तथा खाने में केक, पेस्ट्री जैसे न पचने वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। | ||
#मिर्गी के रोगी को परावर्तन दोष या अपच की समस्या हो तो उसका तुरंत इलाज कराना चाहिए, रोगी को ताजी हवा लेनी चाहिए, खुली हवा में व्यायाम करना चाहिए। | #मिर्गी के रोगी को परावर्तन दोष या अपच की समस्या हो तो उसका तुरंत इलाज कराना चाहिए, रोगी को ताजी हवा लेनी चाहिए, खुली हवा में व्यायाम करना चाहिए। | ||
#रोगी को अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए, रोगी को कभी भी तले या भुने पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। | #रोगी को अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए, रोगी को कभी भी तले या भुने पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। |
10:47, 2 जनवरी 2018 का अवतरण
मिर्गी (अंग्रेज़ी: Epilepsy) जिसे 'अपस्मार' भी कहा जाता है, लंबे समय से चलने वाला तंत्रिका संबंधी विकार है, जिसकी पहचान 'मिर्गी के दौरे' से की जाती है। ये दौरे वे घटनाएँ हैं, जो कि लगातार कंपन की संक्षिप्त और लगभग पता न लग पाने वाली घटनाओं से काफ़ी लंबी अवधि तक हो सकती हैं। ज्यादातर मामलों में कारण अज्ञात हैं, तथापि कुछ लोगों में मस्तिष्क की चोट, स्ट्रोक, मस्तिष्क कैंसर और नशीली दवाओं और शराब के दुरुपयोग और अन्य कारणों के परिणामस्वरूप मिर्गी विकसित होती है। मिर्गी में दौरे बार-बार पड़ते हैं और उनका कोई तत्काल अंतर्निहित कारण नहीं होता, जबकि ऐसे दौरे जो किसी एक विशेष कारण से होते हैं, उन्हें मिर्गी का प्रतीक होना नहीं माना जाता है। मिर्गी की पुष्टि अक्सर एक 'इलैक्ट्रोएनस्फैलोग्राम'[1] के साथ की जा सकती है।
परिचय
दुनियाभर के पाँच करोड़ लोग और भारत के क़रीब एक करोड़ लोग मिर्गी के शिकार हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के 8 से 10 प्रतिशत तक को अपने जीवन काल में एक बार इसका दौरा पड़ सकता है। आधुनिक काल के बहुत-से वैज्ञनिकों ने यह ज्ञात किया है कि मिर्गी रोग[2] कोई रोग नहीं है, बल्कि यह किसी गंभीर रोग का लक्षण है। दरअसल यह कोई मानसिक रोग नहीं अपितु मस्तिष्कीय विकृति है। यह रोग दिमाग में रक्त के संचरण अथवा तंतुओं में किसी प्रकार की गड़बड़ी आ जाने के कारण होता है। कई डॉक्टरों के अनुसार यह रोग पाचन क्रिया में गड़बड़ी के कारण होता है तथा इसके और भी कई कारण हो सकते हैं, जैसे- अत्यधिक शराब का सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में चोट लग जाना, कोई बहुत बड़ा सदमा हो जाना, मानसिक तनाव आदि तथा मन में किसी प्रकार का डर बैठ जाना।
हमारा मस्तिष्क खरबों तंत्रिका कोशिकाओं से निर्मित है। इन कोशिकाओं की क्रियाशीलता ही हमारे कार्यों को नियंत्रित करती है। मस्तिष्क के समस्त कोषों में एक विद्युतीय प्रवाह होता है। ये सारे कोष विद्युतीय नाड़ियों के ज़रिए आपस में सम्पर्क क़ायम रखते हैं, लेकिन जब कभी मस्तिष्क में असामान्य रूप से विद्युत का संचार होने लगता है, तो मरीज़ को विशेष प्रकार के झटके लगते हैं और वह बेहोश हो जाता है। बेहोशी की अवधि चंद सेकेंड, मिनट या घंटों तक हो सकती है। दौरा समाप्त होते ही मरीज़ सामान्य हो जाता है।
बेहोशी के दौरे
मिर्गी रोग में रोगी को बार-बार बेहोशी के दौरे पड़ने लगते हैं। यह रोग कई प्रकार का होता हैं, लेकिन इन सभी रोगो में रोगी को दौरे ही पड़ते हैं। इस रोग से पीड़ित रोगी को अपने शरीर में ऐंठन तथा आक्षेप होने लगता है या शरीर में कभी-कभी ऐंठन भी नहीं होती। रोगी के मस्तिष्क के एक भाग में तीव्र और अव्यवस्थित विद्युत क्रिया होने लगती है, जिसे 'दौरा' कहते है। दौरे पड़ने के साथ ही रोगी के मस्तिष्क की क्रिया बिगड़ जाती है, जिसके कारण रोगी के काम करने की क्षमता नष्ट हो जाती है तथा रोगी छटपटाने लगता है। मिर्गी का दौरा पड़ना इस बात पर निर्भर करता है कि मनुष्य के शरीर के कौन से भाग में गड़बड़ी पैदा हुई है। यह रोग युवा लोगों के मुकाबले बच्चों को अधिक होता है। इस रोग से पीड़ित रोगी भय तथा अंधविश्वासों के चक्कर में पड़ जाता है। वैसे मिर्गी के रोगियों का जीवन ज़्यादातर सामान्य होता है।
बच्चों को मिर्गी
मिर्गी की शिकायत कभी भी किसी को भी किसी भी उम्र में और कई कारणों से हो सकती है। फिर भी यह रोग बच्चों में अधिकांशत: दिखाई देता है-
- यदि बच्चा जन्म के समय 3 मिनट तक न रोए। इससे बच्चे को किसी प्रकार का मानसिक रोग या मिर्गी हो सकती है।
- यदि बच्चे के शरीर का तापमान 101 से अधिक हो जाए।
- सिर में गहरी चोट लग जाए।
- सिर का ट्यूमर हो या फिर अन्य सिर से जुड़ी बीमारियों के कारण बच्चों को मिर्गी हो सकती है।
गर्भावस्था के दौरान
मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें। माँ के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार दवाइयां लेती रहें। इससे उन्हें मिर्गी की परेशानी नहीं होगी। गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोग की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।
प्रकार
मिर्गी रोग दो तरह का हो सकता है- 'आंशिक' तथा 'पूर्ण'। आंशिक मिर्गी से मस्तिष्क का एक भाग ज़्यादा प्रभावित होता है, वहीं पूर्ण मिर्गी में मस्तिष्क के दोनों भाग प्रभावित होते हैं। इसी प्रकार अलग-अलग रोगियों में इसके लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। दौरा पड़ने के समय, आमतौर पर मरीज़ कुछ देर के लिए बेहोश हो सकता है। मिर्गी के दौरे दो तरह की होते हैं, जैसे-
- ग्रांड माल
- पेटिट माल
रोग के लक्षण
सामान्य भाषा में मिर्गी को 'मूर्च्छा' या 'दौरा' कहते हैं। मिर्गी रोग से पीड़ित व्यक्ति को दौरा पड़ने से पहले उसके रंग में परिवर्तन होने लगता है तथा उसे कानों में अजीब-अजीब-सी आवाजें सुनाई देने लगती हैं और रोगी को लगता है कि उसकी त्वचा पर या उसके नीचे बहुत से कीड़े रेंग रहे हैं।
इस अवस्था को 'पूर्वाभास' कहते हैं। ग्रांड माल दौरे की अवस्था में रोगी ज़ोर से चीखता है और शरीर में खिंचाव होने लगता है तथा रोगी के हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं और फिर रोगी बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ता है तथा अपने हाथ-पैर इधर-उधर फेंकने लगता है। रोगी व्यक्ति अपने शरीर को धनुष के आकार में तान लेता है और अपने सिर को एक तरफ लटका लेता है। इसके साथ-साथ वह अपने हाथ-पैरों में जोर-जोर से झटके मारता है तथा हाथ तथा पैर मुड़ जाते हैं, गर्दन टेढ़ी हो जाती है, आंखे फटी-फटी हो जाती है, पलकें स्थिर हो जाती हैं तथा उसके मुंह से झाग निकलने लगता है।
मिर्गी का दौरा पड़ने पर कभी-कभी तो रोगी की जीभ भी बाहर निकल जाती है, जिसके कारण रोगी के दांतों से उसकी जीभ के कटने का डर भी लगा रहता है। मिर्गी के दौरे के समय में रोगी का पेशाब और मल भी निकल जाता है। इस क्रिया के बाद उसका शरीर ढीला पड़ जाता है तथा कुछ समय बाद रोगी को फिर से वैसे ही अगला दौरा पड़ने लगता है। इसके बाद में रोगी होश में आ जाता है। जब रोगी का दौरा समाप्त हो जाता है तो उसे अपने शरीर में बहुत कमज़ोरी महसूस होती है तथा उसका चेहरा नीला पड़ जाता है और उसके बाद रोगी को बहुत गहरी नींद आ जाती है। दौरा पड़ने के बाद रोगी बेहोश हो जाता है तथा इसके कुछ घंटे बाद रोगी को बेहतर अनुभव होने लगता है, लेकिन दौरे का असर एक हफ्ते तक रह सकता है।
कारण
मिर्गी रोग के निम्नलिखित प्रमुख कारण हैं-
- मिर्गी रोग होने का वैसे तो कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं दिखाई पड़ता है, लेकिन बहुत सारे वैज्ञानिकों का मानना है कि यह रोग होने का प्रमुख कारण मस्तिष्क का काई भाग क्षतिग्रस्त हो जाना है, जिसकी वजह से यह रोग हो जाता है।
- आमतौर पर मिर्गी का रोग अधिकतर पैतृक (वंशानुगत/अनुवांशिक) होता है। इसका कारण रोगी के माता-पिता का फिरंग रोग या उपदंश रोग से पीड़ित होना या अधिक मात्रा में शराब पीने जैसे कारणों से बच्चों को हो जाता है।
- इस रोग के होने के और भी कई कारण हैं, जैसे- लिंगमुण्ड की कठोरता, अपच की उग्र अवस्था, कब्ज की समस्या होने, पेट या आंतों में कीड़े होने, नाक में किसी प्रकार की ख़राबी, आंखों के रोग या मानसिक उत्तेजना, स्त्रियों के मासिकधर्म सम्बन्धित रोगों के कारण आदि।
- मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं, जैसे- बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना आदि। इस रोग के होने का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, संक्रमक ज्वर भी है। वैसे यह कारण बहुत कम ही देखने को मिलता है।
- भागदौड़ भरी ज़िंदगी में इस बीमारी के कई कारण हो सकते हैं। ज़रूरत से ज़्यादा तनाव, नींद पूरी न होना और शारीरिक क्षमता से अधिक मानसिक व शारीरिक काम करने के कारण किसी को भी मिर्गी की परेशानी हो सकती है।
- मिर्गी रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण भी होता है, जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।
- अत्यधिक नशीले पदार्थों, जैसे- तम्बाकू, शराब का सेवन या अन्य नशीली चीजों का सेवन करने के कारण मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है और व्यक्ति को मिर्गी का रोग हो जाता है।
- विशेषज्ञों के अनुसार सूअरों की आंतों में पाए जाने वाले फीताकृमि (टेपवर्म) के संक्रमण की वजह से भी मिर्गी का रोग हो सकता है। सूअर खुली जगह में मल त्याग करते हैं, जिसकी वजह से ये कीड़े साग-सब्जियों के द्वारा घरों में पहुँच जाते हैं। टेपवर्म का 'सिस्ट' यदि मस्तिष्क में पहुँच जाए तो उसके क्रियाकलापों को प्रभावित कर सकता है, जिससे मिर्गी की आशंका बढ़ जाती है।
रोग का उपचार
मिर्गी रोग साध्य है, बशर्ते इसका उपचार सही ढंग से कराया जाए। रोग के लक्षण दिखते ही न्यूरोलॉजिस्ट की राय लें। इसके इलाज में धैर्य बहुत ज़रूरी होता है। मिर्गी रोगी का इलाज 3 से 5 वर्ष तक चल सकता है। सामान्य तौर पर इस रोग के लिए 15-20 दवाइयां मौजूद हैं। डॉक्टर मरीज़ की ज़रूरतों के अनुसार इन दवाइयों का प्रयोग करते हैं। यदि एक दवाई का मरीज़ पर असर नहीं होता, तो डॉक्टर बाकी दवाइयों से उपचार करते हैं। मरीज़ पर ये दवाइयां असर करनी शुरू कर दें, तो रोग पर काबू पाया जा सकता है। किसी भी दवाई के कारगर न होने पर डॉक्टर सर्जरी की सलाह दे सकते हैं।
एक्यूप्रेशर द्वारा उपचार
'एक्यूप्रेशर पद्धति' में मिर्गी का उपचार करने के लिए स्थायी रूप से स्नायु संस्थान, मस्तिष्क, हृदय तथा आमाशय के पास पाये जाने वाले एक्यूप्रेशर बिन्दुओं पर दबाब देकर इस रोग का उपचार किया जा सकता है। इस उपचार में गर्दन, रीढ़ की हड्डी, टखनों पर भी लगातार दबाब दिया जाना चाहिए। दौरे पड़ने की अवस्था में नाक और पैरों के नीचे के भाग पर दबाव देने से बहुत ही आराम मिलता है। यदि नियमित रूप से इन केन्द्रों पर प्रेशर दिए जाए तो रोगी को इस रोग के ठीक होने में बहुत लाभ मिल सकता है। उचित एक्यूप्रेशर डाक्टर की सलाह द्वारा काफ़ी हद तक इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
चुम्बक से उपचार
इस रोग से पीड़ित रोगी की कनपटियों पर रोज सुबह सेरामिक चुम्बकों को लगभग 10 से 15 मिनट तक लगाना चाहिए तथा इसके साथ-साथ रोज सुबह 10 मिनट तक शरीर के सूचीवेधन बिन्दु जी.बी.- 20 पर दक्षिणी ध्रुव सेरामिक चुम्बक को लगाना चाहिए। रोगी को दिन में तीन बार दवाई की मात्रा के बराबर चुम्बकित जल को पिलाना चाहिए।
अन्य उपचार
- यदि आपके आसपास के किसी व्यक्ति को मिर्गी का दौरा पड़ा है तो तुरंत बजाय की उन्हें घेर लेने के खुला माहौल दें। जब मिर्गी के रोगी को दौरा पडने लगे तो उसकी जीभ को दांतों से होने वाले नुकसान/कटने से बचाना चाहिए।
- रोगी के दांतों के बीच में किसी मुलायम तौलिये या कपड़े को रख लेना चाहिए तथा रोगी ने जो कपड़े पहन रखे हों उन्हें ढीला कर देना चाहिए और पेट के बल लिटा देना चाहिए। इससे दौरे में यदि मरीज़ को उल्टी या मुंह से झाग निकलता है तो वह सांस की नली में नहीं जा पाएगा।
- अगर मरीज़ को कमरे में परेशानी हो तो पंखा चला दें। इससे उन्हें अच्छा मेहसूस होगा।
- मिर्गी के झटकों के दौरान व्यक्ति को जोरों से पकड़ कर रखना भी ठीक नहीं होता। इसी तरह बेहोशी की अवस्था में मुँह में पानी या अन्य कोई तरल पदार्थ डालना भी खतरनाक हो सकता है।
- मिर्गी रोग से पीड़ित व्यक्ति को कभी भी भारी तथा श्वेतसारिक पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को भोजन में अधिकतर शाकाहारी पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए और रोज नियमित रूप से दूध का सेवन करना चाहिए, जितना ज़रूरत हो उतना ही भोजन करना चाहिए तथा खाने में केक, पेस्ट्री जैसे न पचने वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
- मिर्गी के रोगी को परावर्तन दोष या अपच की समस्या हो तो उसका तुरंत इलाज कराना चाहिए, रोगी को ताजी हवा लेनी चाहिए, खुली हवा में व्यायाम करना चाहिए।
- रोगी को अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए, रोगी को कभी भी तले या भुने पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
- इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को अकेले गाड़ी नहीं चलानी चाहिए।
प्राकृतिक चिकित्सा
- मिर्गी के रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कम से कम दो महीने तक फलों, सब्जियों और अंकुरित अन्न का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा रोगी को फलों एवं सब्जियों के रस का सेवन करके सप्ताह में एक बार उपवास रखना चाहिए।
- पीड़ित रोगी को सुबह के समय गुनगुने पानी के साथ 'त्रिफला' के चूर्ण का सेवन करना चाहिए तथा फिर सोयाबीन को दूध के साथ खाना चाहिए। इसके बाद कच्ची हरे पत्तेदार सब्जियां खानी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
- रोगी व्यक्ति को अपने पेट को साफ़ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए तथा इसके बाद अपने पेट तथा माथे पर मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए। रोगी को कटिस्नान करना चाहिए तथा इसके बाद उसे मेहनस्नान, ठंडे पानी से रीढ़ स्नान और जलनेति क्रिया करनी चाहिए।
- मिर्गी रोग से पीड़ित रोगी का रोग ठीक करने के लिए सूर्यतप्त जल को दिन में कम से कम 6 बार पीना चाहिए और फिर माथे पर भीगी पट्टी लगानी चाहिए। जब पट्टी सूख जाए तो उस पट्टी को हटा लेना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी को सिर पर आसमानी रंग का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को गहरी नींद लेनी चाहिए।
- जब रोगी व्यक्ति को मिर्गी रोग का दौरा पड़े तो दौरे के समय रोगी के मुंह में रुमाल लगा देना चाहिए ताकि उसकी जीभ न कटे। दौरे के समय में रोगी व्यक्ति के अंगूठे के नाखून को दबाना चाहिए, ताकि रोगी व्यक्ति की बेहोशी दूर हो सके। फिर रोगी के चेहरे पर पानी की छींटे मारनी चाहिए। इससे भी उसकी बेहोशी दूर हो जाती है। इसके बाद रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए, ताकि मिर्गी का रोग ठीक हो सके।
स्मरणीय तथ्य
मिर्गी के रोगी को घर से बाहर निकलने पर अपना परिचय कार्ड साथ रखना चाहिए। जिसमें उसका नाम, पता, बीमारी का नाम व दवा का विवरण आदि का उल्लेख हो। रोगी को वाहन चलाने व स्विमिंग करने जैसे कामों से बचना चाहिए, क्योंकि मिर्गी का दौरा कभी भी आ सकता है। खतरनाक मशीनों के संचालन से भी उसे बचना चाहिए।
मिथ्या धारणा
दौरा पड़ने के समय मरीज़ के हाथों में लोहे की कोई चीज़ या चाबियों का गुच्छा पकड़ा देने या पुराना जूता सुंघाने की धारणा ग़लत है। चूंकि मिर्गी का दौरा दो-तीन मिनट तक रहता है, इसलिए लोगों को लगता है कि उनके नुस्खे की वजह से सब ठीक हो गया है। जबकि दौरे की अवधि समाप्त हो चुकी होती है। किसी-किसी मरीज़ को यह दौरे कुछ घंटों के लिए भी पड़ सकते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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