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'''मरियम मिर्ज़ाख़ानी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Maryam Mirzakhani'', [[3 मई]], [[1977]], [[ईरान]]; मृत्यु- [[15 जुलाई]], [[2017]]) गणित की दुनिया का प्रतिष्ठित सम्मान 'फील्ड्स मेडल' पाने वाली पहली महिला गणितज्ञ थीं।  
'''मरियम मिर्ज़ाख़ानी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Maryam Mirzakhani'', [[3 मई]], [[1977]], [[ईरान]]; मृत्यु- [[15 जुलाई]], [[2017]], [[अमेरिका]]) गणित की दुनिया का प्रतिष्ठित सम्मान 'फील्ड्स मेडल' पाने वाली पहली महिला गणितज्ञ थीं। उन्हें यह सम्मान ज्यामिति और डायनेमिकल सिस्टम के क्षेत्र में योगदान के लिए दिया गया था।
==परिचय==
==परिचय==
मरियम मिर्ज़ाख़ानी का जन्म 3 मई, 1977 को तेहरान, ईरान में हुआ था। उनका गणित में इतना ऊंचा मुकाम हासिल करना किसी परिकथा से कम नहीं है। वे जब तेहरान में अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर रही थीं, तब उनका देश कट्टरपंथी इस्लामी क्रांति और इराक के साथ लंबे युद्ध का सामना कर रहा था। इस अशांत स्थिति में भी किसी आम तेहरानी की तरह मरियम में [[साहित्य]] के प्रति गहरा अनुराग था और बड़ी होकर वे इसी क्षेत्र में कुछ करना चाहती थीं। यहां से गणित के बिल्कुल अजनबी दायरे में अपनी यात्रा का एक दिलचस्प किस्सा उन्होंने बताया था।<ref>{{cite web |url=http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/nbteditpage/the-brilliance-of-mathematics-mariam-mirzakhani/|title=अलग ही गणित बनाती आई हैं मरियम मिर्जाखानी |accessmonthday=16 जुलाई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=blogs.navbharattimes.indiatimes.com|language=हिंदी }}</ref>
मरियम मिर्ज़ाख़ानी का जन्म 3 मई, 1977 को तेहरान, ईरान में हुआ था। उनका गणित में इतना ऊंचा मुकाम हासिल करना किसी परिकथा से कम नहीं है। वे जब तेहरान में अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर रही थीं, तब उनका देश कट्टरपंथी इस्लामी क्रांति और इराक के साथ लंबे युद्ध का सामना कर रहा था। इस अशांत स्थिति में भी किसी आम तेहरानी की तरह मरियम में [[साहित्य]] के प्रति गहरा अनुराग था और बड़ी होकर वे इसी क्षेत्र में कुछ करना चाहती थीं। यहां से गणित के बिल्कुल अजनबी दायरे में अपनी यात्रा का एक दिलचस्प किस्सा उन्होंने बताया था।<ref name="a">{{cite web |url=http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/nbteditpage/the-brilliance-of-mathematics-mariam-mirzakhani/|title=अलग ही गणित बनाती आई हैं मरियम मिर्जाखानी |accessmonthday=16 जुलाई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=blogs.navbharattimes.indiatimes.com|language=हिंदी }}</ref>


मरियम मिर्ज़ाख़ानी के बड़े भाई एक दिन स्कूल से आए और उन्हें 01 से लेकर 100 तक की संख्याओं का जोड़ फटाफट बताने को कहा। मेहनत-मशक्कत करके इस सवाल का कोई जवाब खोज पातीं, इसके पहले ही भाई ने उन्हें बताया कि ऊपर और नीचे की संख्याओं के जोड़े बनाकर देखो- 100+1=101, 99+2=101, 98+3=101…. 49+52=101 और 50+51=101, यानी कुल 50 ऐसे जोड़े, जिनका जोड़ 101 आता है। इस तरह कुल हिसाब 50×101=5050 का बनता है। मरियम का कहना था कि यह चमत्कार देखकर वे गणित की मुरीद हो गईं।
मरियम मिर्ज़ाख़ानी के बड़े भाई एक दिन स्कूल से आए और उन्हें 01 से लेकर 100 तक की संख्याओं का जोड़ फटाफट बताने को कहा। मेहनत-मशक्कत करके इस सवाल का कोई जवाब खोज पातीं, इसके पहले ही भाई ने उन्हें बताया कि ऊपर और नीचे की संख्याओं के जोड़े बनाकर देखो- 100+1=101, 99+2=101, 98+3=101…. 49+52=101 और 50+51=101, यानी कुल 50 ऐसे जोड़े, जिनका जोड़ 101 आता है। इस तरह कुल हिसाब 50×101=5050 का बनता है। मरियम का कहना था कि यह चमत्कार देखकर वे गणित की मुरीद हो गईं।


कितनी प्रतिभा उनके अंदर छिपी थी और कितनी तेजी से उन्होंने इसका इस्तेमाल करना सीख लिया था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाईस्कूल पास करने के तुरंत बाद [[1994]] और [[1995]], इन दोनों वर्षों के इंटरनेशनल मैथमेटिकल ओलिंपियाड उन्होंने जीते। पहली बार 99 और दूसरी बार सौ में सौ अंकों के साथ। यहां से आगे अपनी बी.एससी. उन्होंने तेहरान की शरीफ टेक्निकल युनिवर्सिटी से पूरी की और फिर हायर स्टडीज के लिए [[अमेरिका]] आ गईं। गनीमत इतनी ही थी कि इस समय [[ईरान]] में उदारवादी नेता मोहम्मद खातमी का शासन था और बाहर पढ़ने की उनकी अर्जी को पलायन या देशद्रोह की कोशिश की तरह नहीं देखा गया। जहां तक सवाल गणित में मरियम के योगदान का है तो यह ज्योमेट्री (रेखागणित) की एक ताजातरीन शाखा में है। पहली नजर में कोई भी इसे ऐब्स्ट्रैक्ट मैथमेटिक्स तक सीमित बताएगा। लेकिन कंप्यूटर साइंस से लेकर जीव विज्ञान तक विज्ञान के कई दायरों में उनके काम की धमक आने वाले दिनों में सुनाई देगी।
कितनी प्रतिभा उनके अंदर छिपी थी और कितनी तेजी से उन्होंने इसका इस्तेमाल करना सीख लिया था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाईस्कूल पास करने के तुरंत बाद [[1994]] और [[1995]], इन दोनों वर्षों के इंटरनेशनल मैथमेटिकल ओलिंपियाड उन्होंने जीते। पहली बार 99 और दूसरी बार सौ में सौ अंकों के साथ। यहां से आगे अपनी बी.एससी. उन्होंने तेहरान की शरीफ टेक्निकल युनिवर्सिटी से पूरी की और फिर हायर स्टडीज के लिए [[अमेरिका]] आ गईं। गनीमत इतनी ही थी कि इस समय [[ईरान]] में उदारवादी नेता मोहम्मद खातमी का शासन था और बाहर पढ़ने की उनकी अर्जी को पलायन या देशद्रोह की कोशिश की तरह नहीं देखा गया। उन्होंने [[2004]] में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की, जहां तक सवाल गणित में मरियम के योगदान का है तो यह ज्योमेट्री (रेखागणित) की एक ताजातरीन शाखा में है। पहली नजर में कोई भी इसे ऐब्स्ट्रैक्ट मैथमेटिक्स तक सीमित बताएगा। लेकिन कंप्यूटर साइंस से लेकर जीव विज्ञान तक विज्ञान के कई दायरों में उनके काम की धमक आने वाले दिनों में सुनाई देगी।
==पुरस्कार व सम्मान==
==पुरस्कार व सम्मान==
वर्ष [[2014]] में मरियम मिर्ज़ाख़ानी को फील्ड्स मेडल से सम्मानित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय गणितज्ञ कांग्रेस की ओर से दिए जाने वाले इस पुरस्कार को '''गणित की दुनिया का नोबेल पुरस्कार''' कहा जाता है। उन्हें यह सम्मान ज्यामिति और डायनेमिकल सिस्टम के क्षेत्र में योगदान के लिए दिया गया था। मरियम को [[2013]] में अमेरिकन मैथमेटिकल सोसायटी की ओर से 'सैटर पुरस्कार' और [[2009]] में 'ब्लूमेंथल पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था।<ref>{{cite web |url=http://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/dainik+navajyoti-epaper-jyoti/mahan+ganitagy+mariyam+mirjakhani+ka+nidhan-newsid-70387778|title=महान गणितज्ञ मरियम मिर्जाखानी का निधन |accessmonthday=16 जुलाई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=m.dailyhunt.in |language=हिंदी }}</ref>
वर्ष [[2014]] में मरियम मिर्ज़ाख़ानी को फील्ड्स मेडल से सम्मानित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय गणितज्ञ कांग्रेस की ओर से दिए जाने वाले इस पुरस्कार को '''गणित की दुनिया का नोबेल पुरस्कार''' कहा जाता है। उन्हें यह सम्मान ज्यामिति और डायनेमिकल सिस्टम के क्षेत्र में योगदान के लिए दिया गया था। मरियम को [[2013]] में अमेरिकन मैथमेटिकल सोसायटी की ओर से 'सैटर पुरस्कार' और [[2009]] में 'ब्लूमेंथल पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था।<ref>{{cite web |url=http://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/dainik+navajyoti-epaper-jyoti/mahan+ganitagy+mariyam+mirjakhani+ka+nidhan-newsid-70387778|title=महान गणितज्ञ मरियम मिर्जाखानी का निधन |accessmonthday=16 जुलाई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=m.dailyhunt.in |language=हिंदी }}</ref>
'फील्ड्स मेडल' को गणित का नोबेल कह देने का रिवाज चल पड़ा है, लेकिन गणित में [[नोबेल पुरस्कार|नोबेल]] के वजन का पुरस्कार 'आबेल प्राइज' है। इसको अभी उतनी पहचान नहीं मिल पाई है, क्योंकि इसे शुरू हुए अभी तेरह साल ही हुए हैं। भारतीय मूल के प्रोफेसर एस.आर. श्रीनिवास वरदन 'रघु' इसे पाने वाले कुछ-एक गिने-चुने गणितज्ञों में से एक हैं। फील्ड्स मेडल असाधारण प्रतिभा वाले गणितज्ञों की पहचान करने वाला एक अलग तरह का पुरस्कार है। चार साल के अंतर पर दिया जाने वाला यह पुरस्कार 40 साल से कम उम्र के मैथमेटिशियंस को ही मिलता है। इसकी दुर्लभता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि [[1936]] से अब तक यह कुल 60 लोगों को मिला है, जिनमें सिर्फ पांच एशियाई हैं- तीन जापानी, एक विएतनामी और अब मरियम मिर्ज़ाख़ानी के रूप में एक ईरानी।<ref name="a"/>
==मृत्यु==
महान गणितज्ञ मरियम मिर्ज़ाख़ानी का 40 साल की आयु में निधन [[15 जुलाई]], [[2017]] को हुआ। मरियम कैंसर से पीडि़त थीं और उनका [[अमेरिका]] के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
भारतीय संस्कृति के सर्जक, पेज न. (65)
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.bbc.com/hindi/international-40620239 http://www.bbc.com/hindi/international-40620239 गणितज्ञ मरियम मिर्ज़ाख़ानी का निधन]
==संबंधित लेख==
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06:47, 16 जुलाई 2017 का अवतरण

मरियम मिर्ज़ाख़ानी (अंग्रेज़ी: Maryam Mirzakhani, 3 मई, 1977, ईरान; मृत्यु- 15 जुलाई, 2017, अमेरिका) गणित की दुनिया का प्रतिष्ठित सम्मान 'फील्ड्स मेडल' पाने वाली पहली महिला गणितज्ञ थीं। उन्हें यह सम्मान ज्यामिति और डायनेमिकल सिस्टम के क्षेत्र में योगदान के लिए दिया गया था।

परिचय

मरियम मिर्ज़ाख़ानी का जन्म 3 मई, 1977 को तेहरान, ईरान में हुआ था। उनका गणित में इतना ऊंचा मुकाम हासिल करना किसी परिकथा से कम नहीं है। वे जब तेहरान में अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर रही थीं, तब उनका देश कट्टरपंथी इस्लामी क्रांति और इराक के साथ लंबे युद्ध का सामना कर रहा था। इस अशांत स्थिति में भी किसी आम तेहरानी की तरह मरियम में साहित्य के प्रति गहरा अनुराग था और बड़ी होकर वे इसी क्षेत्र में कुछ करना चाहती थीं। यहां से गणित के बिल्कुल अजनबी दायरे में अपनी यात्रा का एक दिलचस्प किस्सा उन्होंने बताया था।[1]

मरियम मिर्ज़ाख़ानी के बड़े भाई एक दिन स्कूल से आए और उन्हें 01 से लेकर 100 तक की संख्याओं का जोड़ फटाफट बताने को कहा। मेहनत-मशक्कत करके इस सवाल का कोई जवाब खोज पातीं, इसके पहले ही भाई ने उन्हें बताया कि ऊपर और नीचे की संख्याओं के जोड़े बनाकर देखो- 100+1=101, 99+2=101, 98+3=101…. 49+52=101 और 50+51=101, यानी कुल 50 ऐसे जोड़े, जिनका जोड़ 101 आता है। इस तरह कुल हिसाब 50×101=5050 का बनता है। मरियम का कहना था कि यह चमत्कार देखकर वे गणित की मुरीद हो गईं।

कितनी प्रतिभा उनके अंदर छिपी थी और कितनी तेजी से उन्होंने इसका इस्तेमाल करना सीख लिया था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाईस्कूल पास करने के तुरंत बाद 1994 और 1995, इन दोनों वर्षों के इंटरनेशनल मैथमेटिकल ओलिंपियाड उन्होंने जीते। पहली बार 99 और दूसरी बार सौ में सौ अंकों के साथ। यहां से आगे अपनी बी.एससी. उन्होंने तेहरान की शरीफ टेक्निकल युनिवर्सिटी से पूरी की और फिर हायर स्टडीज के लिए अमेरिका आ गईं। गनीमत इतनी ही थी कि इस समय ईरान में उदारवादी नेता मोहम्मद खातमी का शासन था और बाहर पढ़ने की उनकी अर्जी को पलायन या देशद्रोह की कोशिश की तरह नहीं देखा गया। उन्होंने 2004 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की, जहां तक सवाल गणित में मरियम के योगदान का है तो यह ज्योमेट्री (रेखागणित) की एक ताजातरीन शाखा में है। पहली नजर में कोई भी इसे ऐब्स्ट्रैक्ट मैथमेटिक्स तक सीमित बताएगा। लेकिन कंप्यूटर साइंस से लेकर जीव विज्ञान तक विज्ञान के कई दायरों में उनके काम की धमक आने वाले दिनों में सुनाई देगी।

पुरस्कार व सम्मान

वर्ष 2014 में मरियम मिर्ज़ाख़ानी को फील्ड्स मेडल से सम्मानित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय गणितज्ञ कांग्रेस की ओर से दिए जाने वाले इस पुरस्कार को गणित की दुनिया का नोबेल पुरस्कार कहा जाता है। उन्हें यह सम्मान ज्यामिति और डायनेमिकल सिस्टम के क्षेत्र में योगदान के लिए दिया गया था। मरियम को 2013 में अमेरिकन मैथमेटिकल सोसायटी की ओर से 'सैटर पुरस्कार' और 2009 में 'ब्लूमेंथल पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था।[2]

'फील्ड्स मेडल' को गणित का नोबेल कह देने का रिवाज चल पड़ा है, लेकिन गणित में नोबेल के वजन का पुरस्कार 'आबेल प्राइज' है। इसको अभी उतनी पहचान नहीं मिल पाई है, क्योंकि इसे शुरू हुए अभी तेरह साल ही हुए हैं। भारतीय मूल के प्रोफेसर एस.आर. श्रीनिवास वरदन 'रघु' इसे पाने वाले कुछ-एक गिने-चुने गणितज्ञों में से एक हैं। फील्ड्स मेडल असाधारण प्रतिभा वाले गणितज्ञों की पहचान करने वाला एक अलग तरह का पुरस्कार है। चार साल के अंतर पर दिया जाने वाला यह पुरस्कार 40 साल से कम उम्र के मैथमेटिशियंस को ही मिलता है। इसकी दुर्लभता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1936 से अब तक यह कुल 60 लोगों को मिला है, जिनमें सिर्फ पांच एशियाई हैं- तीन जापानी, एक विएतनामी और अब मरियम मिर्ज़ाख़ानी के रूप में एक ईरानी।[1]

मृत्यु

महान गणितज्ञ मरियम मिर्ज़ाख़ानी का 40 साल की आयु में निधन 15 जुलाई, 2017 को हुआ। मरियम कैंसर से पीडि़त थीं और उनका अमेरिका के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 अलग ही गणित बनाती आई हैं मरियम मिर्जाखानी (हिंदी) blogs.navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 16 जुलाई, 2017।
  2. महान गणितज्ञ मरियम मिर्जाखानी का निधन (हिंदी) m.dailyhunt.in। अभिगमन तिथि: 16 जुलाई, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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