"मानव पर्यावरण स्टॉकहोम सम्मेलन": अवतरणों में अंतर

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;सिद्धान्त 8  
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यह सिद्धान्त यह उपबन्ध करता है कि मनुष्य के लिए अनुकूल जीवन के सुनिश्चयन के लिए तथा उचित [[पर्यावरण]] बनाने के लिए आर्थिक तथा सामाजिक विकास आवश्यक है तथा पृथ्वी पर ऐसी दशाएं उत्पन्न करना आवश्यक है जो जीवन के स्तर का सुधार करने के लिए जरूरी है।
यह सिद्धान्त यह उपबन्ध करता है कि मनुष्य के लिए अनुकूल जीवन के सुनिश्चयन के लिए तथा उचित [[पर्यावरण]] बनाने के लिए आर्थिक तथा सामाजिक विकास आवश्यक है तथा पृथ्वी पर ऐसी दशाएं उत्पन्न करना आवश्यक है जो जीवन के स्तर का सुधार करने के लिए ज़रूरी है।
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यह सिद्धान्त यह उपबन्ध किया गया है कि राज्यो को अपनी पर्यावरणीय नीति बनाने का प्रभुत्व सम्पन्न अधिकार है और यह सुनिश्चित करने का उन पर दायित्व है कि उनकी अधिकारिता के अधीन कार्य अन्य राज्यों के पर्यावरण को या उनकी राष्ट्रीय अधिकारिता की सीमा के बाहर के क्षेत्रों को पर्यावरणीय क्षति नहीं पहुँचायेगें।
यह सिद्धान्त यह उपबन्ध किया गया है कि राज्यो को अपनी पर्यावरणीय नीति बनाने का प्रभुत्व सम्पन्न अधिकार है और यह सुनिश्चित करने का उन पर दायित्व है कि उनकी अधिकारिता के अधीन कार्य अन्य राज्यों के पर्यावरण को या उनकी राष्ट्रीय अधिकारिता की सीमा के बाहर के क्षेत्रों को पर्यावरणीय क्षति नहीं पहुँचायेगें।

10:46, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के स्वीडन के स्टॉकहोम शहर में 5 जून, 1972 से प्रारंभ होकर 16 जून, 1972 को समाप्त हुआ था।

उद्देश्य

इस सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य अंतराष्ट्रीय स्तर पर मानवीय पर्यावरण के संरक्षण तथा सुधार की विश्वव्यापी समस्या का निदान करना था। पर्यावरण के संरक्षण के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का यह पहला प्रयास था। इस सम्मेलन में 119 देशों ने पहली बार 'एक ही पृथ्वी' का सिद्धांत स्वीकार किया। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ। सम्मेलन में मानवीय पर्यावरण का संरक्षण करने तथा उसमें सुधार करने के लिए राज्यों तथा अंतराष्ट्रीय संस्थाओं को दिशा-निर्देश दिये गये। प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा इसी सम्मेलन में की गई।

स्टॉकहोम घोषणापत्र 1972

स्टॉकहोम सम्मेलन में पारित संविधान स्टॉकहोम घोषणापत्र 1972 के नाम से प्रसिद्ध है। इस घोषणा पत्र में 26 सिद्धांत स्वीकार किये गये। उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त निम्न हैं।

  1. मानवीय पर्यावरण की घोषणा
  2. मानवीय पर्यावरण के लिए कार्य योजना
  3. विश्व पर्यावरण दिवस घोषित किये जाने के लिए प्रस्ताव
  4. नाभिकीय शस्त्रों के परीक्षण पर प्रस्ताव
  5. दूसरा संयुक्त राष्ट्र मानवीय पर्यावरण सम्मेलन बुलाने के लिए सिफारिश

मानवीय पर्यावरण पर घोषणा

मानवीय पर्यावरण पर घोषणा को दो भागों में विभाजित किया गया है -

प्रथम भाग

घोषणा का प्रथम भाग पर्यावरण के सम्बन्ध में मनुष्य के बारे में सात सत्यों का उल्लेख करता है। इन सत्यों में प्रमुख हैं - मनुष्य अपने पर्यावरण का निर्माता तथा ढालने वाला दोनों स्वयं है, जो उसे शारीरिक रूप से जीवित रखता है एवं उसे बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास का अवसर उपलब्ध कराता है। मानवीय पर्यावरण का संरक्षण एवं विकास एक गंभीर मामला है, जिसका प्रभाव जनमानस की उन्नति एवं सम्पूर्ण विश्व के आर्थिक विकास पर पड़ता है तथा यह सारे विश्व की जनता की तत्कालीन आकांक्षा एवं सभी सरकारों का कर्तव्य हैं।

द्वितीय भाग

घोषणा के दूसरे भाग में 26 सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया गया है, जिसमें से पहला, दूसरा, सातवां, आठवां, इक्कीसवां एवं छब्बीसवां सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण हैं।

सिद्धान्त 1

इस सिद्धान्त के तहत यह उपलब्ध है कि मनुष्य का अच्छे पर्यावरण में जीवन की समुचित स्थिति का मौलिक अधिकार प्राप्त है, जो उसे गौरवमयी एवं समृद्ध जीवन की अनुमति देता है और वर्तमान तथा भावी पीढ़ी के लिए पर्यावरण की रक्षा करने एवं उसमें सुधार करने का उत्तरदायित्व अधिरोपित करता है।

सिद्धान्त 2

इसमें यह उपबन्ध किया गया है कि पृथ्वी के साथी संघटक, जिनमें वायु, जल, भूमि, वनस्पति और विशेषतया परिस्थितिक तन्त्र शामिल हैं, को वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों के लिए समुचित योजना एवं प्रबन्ध के माध्यम से संरक्षित किया जाना चाहिए।

सिद्धान्त 7

यह सिद्धान्त यह उपबन्ध करता है कि राज्य उन पदार्थों द्वारा समुद्र के प्रदूषण को रोकने के लिए सभी सम्भव क़दम उठायेंगें, जो मानव स्वास्थ्य के प्रति ख़तरा पैदा करने, जीवित संसाधनों एवं सामुद्रिक जीवन को क्षतिकारित करने या समुद्र के वैध प्रयोगों में हस्तक्षेप करने के लिए उत्तरदायी हैं।

सिद्धान्त 8

यह सिद्धान्त यह उपबन्ध करता है कि मनुष्य के लिए अनुकूल जीवन के सुनिश्चयन के लिए तथा उचित पर्यावरण बनाने के लिए आर्थिक तथा सामाजिक विकास आवश्यक है तथा पृथ्वी पर ऐसी दशाएं उत्पन्न करना आवश्यक है जो जीवन के स्तर का सुधार करने के लिए ज़रूरी है।

सिद्धान्त 21

यह सिद्धान्त यह उपबन्ध किया गया है कि राज्यो को अपनी पर्यावरणीय नीति बनाने का प्रभुत्व सम्पन्न अधिकार है और यह सुनिश्चित करने का उन पर दायित्व है कि उनकी अधिकारिता के अधीन कार्य अन्य राज्यों के पर्यावरण को या उनकी राष्ट्रीय अधिकारिता की सीमा के बाहर के क्षेत्रों को पर्यावरणीय क्षति नहीं पहुँचायेगें।

सिद्धान्त 22

इस सिद्धान्त में उपबन्ध किया गया है कि राज्य प्रदूषण तथा अन्य पर्यावरण सम्बन्धी क्षति जो राज्यों द्वारा अपनी अधिकारिता के बाहर किया जाता है, के पीड़ितों के लिए दायित्व तथा प्रतिकर के सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विकास के लिए सहयोग करेंगे।

सिद्धान्त 26

अन्तिम सिद्धान्त यह उपबन्ध करता है कि मनुष्य तथा उसके पर्यावरण को नाभिकीय शस्त्रों तथा अन्य सभी प्रकार के जन विनाश के साधनों के प्रभावों से बचाकर रखा जायें।

मानवीय पर्यावरण पर कार्ययोजना

इस कार्य योजना को तीन भागों में बांटा गया है-

विश्व पर्यावरण निर्धारण प्रोग्राम

इसे भूमि निरीक्षण प्रोग्राम के नाम से भी जाना जाता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की समस्याओं को जाना है जिससे अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय समस्याओं के विरुद्ध चेतावनी दी जा सके।

पर्यावरण प्रबंध के कार्य

इसका तात्पर्य उन क्रिया-कलापों को व्यवहार में लागू करना है जो पर्यावरण के सम्बन्ध में अपेक्षित एवं आवश्यक है।

अन्तर्राष्ट्रीय सहायता उपाय

निर्धारण तथा प्रबन्ध के राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय कार्यों को सहायता पहुँचने वाले अन्तर्राष्ट्रीय उपाय करना। उदाहरणार्थ - शिक्षा, प्रशिक्षण, सार्वजनिक सूचना तथा वित्त के उपाय करना।

विश्व पर्यावरण दिवस घोषित करने के लिए प्रस्ताव

सम्मेलन द्वारा सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाय। परिणामस्वरूप प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।

संस्थागत तथा वित्तीय प्रबन्धन का प्रस्ताव

पर्यावरण संरक्षण के लिए सम्मेलन द्वारा निम्न संस्थायें स्थापित करने की संस्तुति की गयी-

  1. पर्यावरण कार्यक्रम के लिए शासी परिषद - संक्षेप में इसे यू.एन.ई.पी. कहा जाता है।
  2. पर्यावरण सचिवालय
  3. पर्यावरण कोष
  4. पर्यावरण समन्वय परिषद

नाभिकीय शस्त्रों के परीक्षण पर प्रस्ताव

सम्मेलन में नाभिकीय शस्त्रों के परीक्षण की कटु निन्दा की गयी। प्रस्ताव में कहा गया कि ऐसे परीक्षणों से पर्यावरण प्रदूषित होता है, इसलिए राज्यों से यह निवेदन किया जाता है कि वे नाभिकीय श़स्त्रों का परीक्षण करने से अपने को अलग रखें। स्टॉकहोम सम्मेलन के बाद भारत में 'प्रोजेक्ट टाइगर' चलाने के निर्णय लिए गये तथा वायु प्रदूषण सें संबंधित क़ानून बनाये गये।

पर्यावरण कार्यक्रम शासी परिषद का योगदान

परिषद का पहला सम्मेलन जून 1973 में जेनेवा में हुआ। मई, 1975 में इसका तीसरा सम्मेलन नैरोबी (केन्या) में हुआ। परिषद का चौथा सम्मेलन 30 मार्च 1976 में शुरु हुआ था तथा 14 अप्रैल, 1976 को समाप्त हुआ। परिषद की कुछ अन्य उपलब्धियां निम्नलिखित हैं -

हैविटाट सम्मेलन 1976

इस सम्मेलन में घोषणा की गई कि राष्ट्र को जीवनमण्डल और महासागरों को प्रदूषण से बचाना चाहिए तथा सभी पर्यावरणीय संसाधनों को अनुचित शोषण समाप्त करने के लिए सभी राज्यों को मिलकर प्रयास करना चाहिए।

रेगिस्तान को दूर करने के सम्मेलन, 1977

परिषद द्वारा रेगिस्तान को दूर करने के लिए एक सम्मेलन नैरोबी में बुलाया गया, जो 29 अगस्त, 1977 को आरम्भ हुआ तथा 9 सितम्बर 1977 को समाप्त हुआ। सम्मेलन में एक ऐसी कार्य योजना स्वीकार की गयी जिसके तहत 26 सिफारिशें स्वीकार की गई।

व्यापक मध्यम अवधि पर्यावरण कार्यक्रम प्रणाली

1982 में इस प्रणाली का उद्भव हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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